हर दिन की ही तरह विक्रम बेताल को अपने कंधे पर डालकर श्मशान की ओर जा रहा था। विक्रम हर दिन बेताल से अलग अलग कहानियां सुनता था। इस बार वह बेताल से थोड़ी अलग तरह की कहानी सुनना चाहता था। आज विक्रम साहस से भरी कोई कहानी सुनना चाहता था। बेताल ने विक्रम की बात स्वीकार कर ली और कहा कि आज वह उसे राजा रूपसेन और शौर्यवान वीरवर की कहानी सुनाएगा। फिर बेताल ने कहानी सुनानी शुरू कर दी।
यह बहुत समय पहले की बात है जब वर्धमान राज्य में राजा रूपसेन नाम के राजा का शाशन हुआ करता था। राजा रूपसेन इतना उदार दिल और नीतिवान था कि राज्य की लगभग सारी प्रजा उससे खुश हुआ करती थी। वह अपने राज्य में किसी को भी दुखी नहीं देखना चाहता था। उसने अपनी जनता को हर प्रकार की सुविधाएं प्रदान कर रखी थी। वह दीन दुखियों के लिए देवता समान था। देश के अलावा उस राजा ने अपनी पहचान विदेशों तक में भी बना ली थी। उसके शाशन में सुरक्षा भी बहुत कड़ी थी। कोई भी राज्य भी उसपर हमला करने की नहीं सोच सकता था।
एक दिन वर्धमान राज्य में एक आदमी आया। उस आदमी का नाम वीरवर था। वह राजा से मिलने को बहुत ही ज्यादा उत्सुक था। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि वह राजा के लिए काम करे। इसी सोच के साथ वह महल के लिए रवाना हो गया। जब वह महल पहुंचा तो उसने राजा से एक गुहार लगाई, “महाराज, आपका हार्दिक धन्यवाद कि आपने मुझे दरबार में आने की इजाजत दी। मेरा नाम वीरवर है। मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि मुझे आपको कुछ कहना है।
“राजा बोला, “हाँ, कहो वीरवर। बोलो तुम मुझे क्या कहना चाहते हो?” वीरवर ने कहा, “महाराज, मैं यही कहना चाहता हूं कि आप कृपया करके मुझे अपने महल में रहने को दे दीजिए। मैं आपका अंगरक्षक बनकर आपकी ताउम्र सेवा करना चाहता हूं। क्या आप मुझे यह सेवा प्रदान करेंगे?” राजा ने कहा, “चलो ठीक है मान लिया कि तुम मेरे अंगरक्षक बनना चाहते हो। लेकिन क्या तुम यह साबित कर सकते हो कि तुम मेरे अंगरक्षक कैसे बन सकते हो? क्या तुम्हारे पास इसके लिए उपयुक्त कौशल है।” वीरवर बोला, “मैं आपको यह साबित कर सकता हूं कि मैं हर चीज में दक्ष हूं। आप चाहे तो मेरी परीक्षा ले सकते हैं।” राजा ने वीरवर की मांग स्वीकार कर ली और वह राजा की हर परीक्षा में पास हो गया।
अपना अंगरक्षक नियुक्त करने से पहले राजा ने उससे पूछा कि, “वीरवर मैं तुम्हारी दक्षता देखकर बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ। अब तुम यह बताओ कि तुम्हें मेरा अंगरक्षक बनने के लिए कितना वेतन चाहिए होगा?” वीरवर बोला, महाराज मुझे पैसों के बदले में आप हजार तोला सोना दे सकते हैं क्या?” वीरवर की यह बात सुनकर सभी लोग एकदम से चौंक उठे। राजा को भी यह समझ नहीं आया कि वीरवर इतने सोने की मांग क्यों कर रहा था।
उसने वीरवर से पूछा कि, “वीरवर, लगता है तुम्हारे घर में खूब सारे लोग रहते हैं इसलिए तुम इतने सारे सोने की मांग कर रहे हो। बताओ कि कितने लोग रहते हैं तुम्हारे घर में।” वीरवर बोला, “महाराज, मेरे घर में कुल चार लोग रहते हैं। एक मेरी पत्नी और दो मेरे बच्चे और चौथा मैं खुद।” राजा ने अचरज भरी नजरों से देखा और पूछा, “अगर घर में इतने कम लोग रहते हैं तो फिर तुम्हें इतने सोने की क्या जरूरत?” वीरवर बोला, “महाराज, मैं आपको अभी इसका कारण नहीं बता सकता। बस मुझे आपसे हजार तोला सोना चाहिए।” राजा ने कई देर तक इस बात पर मंथन किया और फिर राजा इस बात के लिए राजी हो गया।
वीरवर अब राजा का अंगरक्षक बन गया था। वह हर हफ्ते हजार तोला सोना राजा से प्राप्त करता था। बदले में उसे रात को राजा के यहां सेवा देनी पड़ती थी। मतलब जब राजा रात को सोता था तब वीरवर राजा के कमरे के आगे खड़ा होकर रोज राजा की पहरेदारी करता था। राजा एक ही बात हमेशा सोचा करता था कि वीरवर इतने सोने का आखिर क्या करता था। इस बात की सच्चाई जानने के लिए राजा ने अपने गुप्तचरों को वीरवर की निगरानी में लगा दिया।
एक दिन उन गुप्तचरों ने देखा कि वीरवर को जितना भी सोना मिलता है उससे पहले तो वह गरीबों, दीन दुखियों और संन्यासियों में बांटता है। और उन सभी के लिए भोजन का भी प्रबंध भी वो ही करवाता है। बाद में बचे हुए सोने से वह अपने घर वालों के लिए जरूरत की चीजें खरीदता है। गुप्तचरों ने यह सारी जानकारी राजा को जाकर दे दी। राजा को जब यह बात पता चली तो राजा को खुद पर शर्म आ गई कि जिस इंसान पर वह शक कर रहा था वह असल में इतना ईमानदार था।
धीरे-धीरे वीरवर और राजा रूपसेन के बीच दोस्ती का संबंध प्रगाढ़ होता गया। हालांकि एक दिन राजा ने वीरवर की फिर से परीक्षा लेने की सोची। एक दिन जब राजा के सोने का समय हो गया था तब राजा ने सोचा कि क्यों ना यह देखा जाए कि आखिर वीरवर सच में पूरी रात को बिना झपकी लिए पहरेदारी देता भी है या नहीं।
रात को राजा ने बड़ी ही चतुराई से यह पता लगाया कि असल में वीरवर अपनी बिना पलक झपकाए ही रात को पहरेदारी देता है। फिर अचानक राजा को किसी महिला के रोने की आवाज सुनाई देती है। राजा घबराकर बाहर जाता है और वीरवर से कहता है कि, “वीरवर, तुम बाहर जाकर देखो कि आखिर कौन है यह जो इतना तेज रो रहा है?”
वीरवर ने जब बाहर जाकर देखा तो पाया कि वह एक महिला ही थी जो इतना तेज रो रही थी। जब वीरवर ने उससे पूछा कि वह महिला क्यों रो रही थी तो उस महिला ने कहा, “दरअसल मैं इसलिए रो रही हूं क्योंकि हम सभी के राजा थोड़े ही दिनों में मरने वाले हैं। मैं नहीं चाहती हूं कि मेरे राजा के मरने के बाद मैं किसी और राजा के संरक्षण में रहूं।” फिर वह और तेजी से रोने लगी।
वीरवर इस बात से बहुत ज्यादा डर गया और फिर उसने पूछा कि, “हे माता, क्या मैं इस बाधा को टाल सकता हूं। क्या आप मुझे कोई अच्छा उपाय बता सकते हो जिससे राजा पर आई हुई बाधा टल जाए।” वह महिला बोली, “मुझे इसका उपाय पता है। पर यह उपाय बहुत मुश्किल है। क्या तुम इसे पूरा कर सकोगे?” वीरवर बोला, “हां, मैं हर उपाय कर लूंगा।” फिर वह महिला बोली, “देखो, अगर तुम्हें राजा को बचाना है तो फिर तुम्हें अपना बलिदान देना होगा।” वह बोला, “ठीक है मैं अपना बलिदान दे दूंगा। मुझे कहां पर अपनी आहुति देनी होगी।” उस महिला ने कहा वीरवर को माँ काली के मंदिर में आहुति देनी होगी।
फिर वीरवर अपने घर की ओर निकल पड़ा। घर पहुंचकर उसने देखा कि उसका बेटा और बेटी खाना खा रहे थे। उसने अपनी पत्नी को अपने पास बुलाया और उससे कहा कि, “एक महिला ने बताया कि राजा की मृत्यु जल्द ही होने वाली है। इसलिए मुझे अपने राजा को बचाने के लिए खुद की आहुति देनी होगी।” उसकी पत्नी ने यह स्वीकार कर लिया। जब वह दोनों पति-पत्नी बात कर रहे थे तब उनकी बात उनके बेटे ने सुन ली।
फिर बेटे ने उन दोनों से कहा, “माँ-पिताजी मैं अपना बलिदान दूंगा। पिताजी आपको अपना बलिदान देने की कोई जरूरत नहीं है।” फिर वह चारों बलिदान देने के लिए माँ के मंदिर पहुंचे। वहां पहुंचकर वीरवर ने अपने बेटे की आहुति दे दी। बेटे की जुदाई जब माँ और बहन से नहीं हुई तब वीरवर की बेटी और पत्नी ने भी अपनी जान दे दी। उन दोनों के पीछे-पीछे वीरवर ने भी अपने प्राण त्याग दिए।
जब इस बारे में राजा को पता चला तो राजा भी माँ के मंदिर आ गया और माँ काली को कहा, “माँ, मेरे कारण एक पूरा परिवार खत्म हो गया। तो अब आप ही बताइए कि मैं भी इस दुनिया में जीकर क्या करूंगा? मैं भी अपने प्राण त्यागने आया हूं।” फिर जैसे ही राजा ने अपने सिर पर तलवार रखी, राजा के सामने माँ काली प्रकट हो गई। माँ ने कहा, “तुम बहुत ही न्यायप्रिय और दयावान राजा हो। मैं तुम्हारे साहसिक कदम से बहुत खुश हुई। मैं चाहती हूं कि तुम कोई वरदान मांगों।” राजा ने कहा, “माँ, मैं यह चाहता हूं कि आप वीरवर और उसके सारे परिवार को जीवित कर दें।” माँ काली ने तथास्तु बोला और वीरवर का परिवार जिंदा हो उठा।
फिर बेताल ने विक्रम से पूछा, “अच्छा तो राजन अब यह बताओ कि उन तीनों में से सबसे महान और बड़ा बलिदान किसका हुआ? अगर तुम मौन रहे तो मैं तुम्हारे सिर के टुकड़े कर दूँगा।” विक्रम बोला, “इस कहानी में सबसे बड़ा बलिदान करने वाला अगर कोई है तो वह राजा है। क्योंकि इस दुनिया में एक पुत्र अपने पिता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर सकता है। और एक दास अपने मालिक के लिए हमेशा वफादार रहता है। लेकिन जब एक राजा अपनी प्रजा के लिए सब कुर्बान कर दे तो ऐसे में वह राजा महान माना जाता है।” विक्रम का उत्तर सही था। और फिर सही उत्तर सुनने के बाद बेताल फिर से उड़ चला।
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