हर दिन की ही तरह आज फिर से विक्रम बेताल से एक नई कहानी सुनने को बेताब था। उसने पूछा कि आज बेताल उसे कौन सी नई कहानी सुनाएगा। तो बदले में बेताल ने उत्तर दिया कि वह आज विक्रम को शशिप्रभा की कहानी सुनाएगा। फिर बेताल ने विक्रम को कहानी सुनानी शुरू कर दी।
यह बहुत समय पहले की बात है। धरती पर एक बहुत सुंदर देश हुआ करता था। उस सुंदर देश की चर्चा हर जगह थी। उस देश का नाम था नेपाल। इस देश में चारों तरफ खूबसूरती ने अपने पांव फैला रखे थे। यह देश हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता था। एक और खास कारण था इस देश की ओर आकर्षित होने का। दरअसल इस देश की जो राजकुमारी थी वह बहुत ही ज्यादा सुंदर थी। उस राजकुमारी की सुंदरता के चर्चे हर जगह थे। उस राजकुमारी का नाम शशिप्रभा था। शशिप्रभा इतनी सुंदर थी कि हर कोई उसे देखने के लिए लालायित रहता था। उसकी सुंदरता के चर्चे चारों ओर थे।
समय बीतने के साथ ही साथ शशिप्रभा की सुंदरता निखरती ही जा रही थी। अब शशिप्रभा की शादी की उम्र होने लगी थी। उससे शादी करने के लिए खूब सारे राजकुमारों तैयार थे। नेपाल के राजा अपनी बेटी के लिए सही वर चुनने का इंतजार कर रहे थे। राजकुमारी शशिप्रभा को अपनी बेटी की शादी की जल्दबाजी थी। वह अपनी बेटी को जल्द से जल्द विदा करने की इच्छुक थी।
नेपाल हर साल बसंत ऋतु का उत्सव बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाता था। यह उत्सव मेले के रूप में आयोजित हुआ करता था। सभी लोग इस दिन नए कपड़े पहनकर उत्सव में शामिल हुआ करते थे। इस मेले में एक अलग तरह की रौनक रहा करती थी। यह आयोजन नेपाल के राजा की ओर से किया जाता था।
एक दिन हर साल की ही तरह राजा, उसकी पत्नी और बेटी बसंत ऋतु के उत्सव में शामिल होने के लिए आए थे। उसी मेले में एक मनस्वामी नाम का सुंदर और बलवान युवक भी आया हुआ था। जैसे ही उसकी नजर राजकुमारी पर गई वह उसे देखकर एकदम से मोहित हो उठा। उसने आज तक इतनी सुंदर लड़की पहले कभी नहीं देखी थी। मनस्वामी का मन उत्सव से भी ज्यादा राजकुमारी के रूप पर अटक गया था। पर बेचारे मनस्वामी का मन इसलिए उदास हो गया था क्योंकि वह राजकुमारी से शादी का ख़्याल तक नहीं सोच सकता था क्योंकि वह एक साधारण ब्राह्मण युवक था।
फिर अचानक ही मनस्वामी ने देखा कि एक भारी भरकम शेर भागता हुआ शशिप्रभा की ओर आ रहा था। सभी ने उस शेर को वहां आते हुए देखा, लेकिन किसी ने भी शेर से भिड़ने की कोशिश नहीं की। यहां तक की राजा के मंत्री भी शेर से डरकर वहां से हट गए। लेकिन एक मनस्वामी था जो इस बात से बिल्कुल भी नहीं घबराया। वह झट से शशिप्रभा की ओर दौड़ा और राजकुमारी को मौत के चंगुल से बचा लिया।
मनस्वामी का ऐसा साहस देखकर सभी लोग दंग रह गए। वह सभी मनस्वामी के इस साहसिक कदम से बहुत प्रभावित हुए। राजा भी इस बात से बहुत खुश था कि मनस्वामी ने शशिप्रभा की जान बचा ली थी। बाद में राजा ने खुश होकर मनस्वामी को खूब सारी स्वर्ण मुद्राएं भेंट की। सिर्फ मनस्वामी ही नहीं बल्कि शशिप्रभा भी उसपर उतना ही मोहित हो गई थी। सभी लोग उस उत्सव से चले गए। लेकिन मनस्वामी और शशिप्रभा के मन अभी भी एक दूसरे पर ही अटके हुए थे।
अब उस घटना को हुए कई दिन बीत गए थे। शशिप्रभा अभी भी मनस्वामी की याद में ही डूबी रहती। उसे ना कुछ खाने-पीने का याद रहता और ना ही सोने-जगने का। वह हर पल मनस्वामी को याद करती रहती। तो वहीं दूसरी ओर मनस्वामी का हाल भी बहुत बुरा था। वह भी शशिप्रभा की याद में दिन रात डूबा रहता। फिर एक दिन मनस्वामी के गाँव में एक सिद्धि प्राप्त साधु आया। उस साधु की दूर दूर तक चर्चा थी।
एक दिन मनस्वामी साधु के पास गया। साधु के पास जाकर उसने साधु से कहा, “हे साधु, मेरा मन बहुत ही ज्यादा व्याकुल है। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? अब आप ही मेरी इस समस्या का कुछ समाधान निकालिए।” साधु ने उससे पूछा कि उसे क्या परेशानी खाए जा रही है। तो मनस्वामी ने कहा, “जी, मुझे राजकुमारी से प्रेम हो गया है। हालांकि मुझे उनसे प्रेम तो हो गया है। लेकिन मैं उनसे शादी कैसे कर सकता हूं यह एक बहुत बड़ी समस्या है।
मन करता है कि मैं हर पल उनके पास रहूं लेकिन ऐसा हो नहीं सकता। क्या आप इसका कोई समाधान निकाल सकते हैं?” वह साधु बोला कि वह इस समस्या को सुलझा सकता है। फिर साधु ने मनस्वामी को एक छोटा मोती दिया और उससे कहा कि वह उस मोती को अपने मुंह में रख ले। जैसे ही मनस्वामी ने मोती मुंह में रखा वह एक सुंदर नारी में परिवर्तित हो गया। फिर साधु ने उससे कहा कि वह इस नारी भेष में राजकुमारी के साथ रह सकता है।
साधु खुद भी एक ब्राह्मण के रूप में परिवर्तित हो गया और फिर उसे महल ले गया। वहां जाकर उस साधु ने राजा से कहा कि वह एक ब्राह्मण है जो अपनी बेटे की पत्नी को महल छोड़कर जाना चाहता है। जब राजा ने पूछा कि इसका पति कहां गया तो उस साधु ने कहा कि वह तो विदेश गया है। जब वह विदेश से लौट आएगा तो वह अपने बेटे की बहू को यहां से दोबारा ले जाएगा। तब तक उसकी पुत्रवधू राजकुमारी के पास सुरक्षित रहेगी।
अब महिला बना मनस्वामी राजकुमारी के साथ ही रहने लगा। वह दिन रात राजकुमारी के साथ रहकर बहुत खुश था। लेकिन राजकुमारी तो दुखी रहती थी। एक दिन मनस्वामी ने पूछा, “क्या हुआ राजकुमारी जी? आप इतनी दुखी क्यों हैं?” राजकुमारी ने कहा, “मैं इसलिए दुखी हूं क्योंकि मैं जिसे चाहती हूं वह यहां है ही नहीं।” फिर राजकुमारी ने बसंत ऋतु की वह सारी घटना मनस्वामी को बता दी। जैसे ही मनस्वामी ने राजकुमारी की बात सुनी उसने अपने मुंह से मोती निकाल लिया। मोती मुंह से बाहर निकालते ही वह मनस्वामी के भेष में आ गया। अब राजकुमारी बहुत खुश हो गई। अब वह दोनों ही इसी तरह साथ रहने लगे।
फिर धीरे धीरे यह हुआ कि राजा के मंत्री का बेटा मनस्वामी के स्त्री रूप को बहुत ज्यादा चाहने लगा। एक दिन राजा ने अपने बेटे के लिए स्त्री बने मनस्वामी का हाथ मांग लिया। राजा ने यह बात स्वीकार कर ली। उन दोनों की शादी हो गई। शादी होने के बाद मनस्वामी बने स्त्री ने मंत्री के बेटे से कहा कि तुमनें शादीशुदा औरत से शादी करके घोर पाप किया है। इसलिए तुम्हें यह पाप धोने के लिए काशी जाना होगा। मंत्री के बेटे ने मनस्वामी की यह बात मान ली। फिर मनस्वामी स्त्री से दुबारा पुरुष बन गया।
थोड़े दिन बाद में वह साधु उसी ब्राह्मण भेष में अपने मित्र के साथ महल पधारा। उस साधु के मित्र ने साधु के बेटे के भेष में अपना रूप धारण कर लिया। साधु ने जब राजा से कहा कि वह अपनी पुत्रवधू को लेने आया है तो राजा ने कहा कि मैंने तो उसकी शादी अपने मंत्री के बेटे से करवा दी है। लेकिन इस पाप के बदले में मैं अपने बेटी की शादी तुम्हारे बेटे से करवा दूंगा।” फिर राजकुमारी की शादी साधु के बेटे से करवा दी गई। जब सात फेरे पूरे हो जाते हैं तब मनस्वामी महल में प्रवेश करता है और राजा से कहता है कि उसने और राजकुमारी ने एक दूसरे को पति-पत्नी मान लिया है। तो फिर राजकुमारी की शादी इस आदमी से क्यों करवाई?
और ऐसे में बेताल कहानी खत्म कर देता है। कहानी खत्म करने के बाद बेताल विक्रम से बोलता है कि, “मैंने अपनी कहानी खत्म की। अब तुम यह बताओ कि शशिप्रभा किसकी पत्नी हुई? अगर तुमनें जवाब नहीं दिया तो मैं तुम्हारे सिर के दो टुकड़े कर दूंगा।” इस बात पर बेताल को आखिर जवाब देना ही पड़ा, “सुनो बेताल, शशिप्रभा उसकी पत्नी हुई जिसके साथ उसने सात फेरे लिए। इस हिसाब से वह मनस्वामी की कुछ नहीं हुई। क्योंकि मनस्वामी ने धोखे से राजमहल में प्रवेश किया था। और वह सबको धोखा देकर शशिप्रभा के साथ रह रहा था।”जवाब सुनते ही बेताल दुबारा पेड़ पर जाकर लटक गया।
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