हर दिन की ही तरह जब विक्रम बेताल को अपने कंधों पर लादकर जंगल की ओर जा रहा था तब बेताल ने विक्रम से कहा कि आज कितनी ज्यादा गर्मी है। विक्रम ने भी कहा कि आज सही में बहुत ज्यादा गर्मी है। तब बेताल ने कहा कि, “ऐसी गर्मी भरे रास्ते में चुपचाप चलते रहना मुश्किल हो जाएगा। इसी वजह से मैं तुम्हें कहानी सुनाना चाहता हूं। आज मैं तुम्हें मदनसेना नाम की लड़की की कहानी सुनाता हूं।” फिर बेताल ने कहानी कहनी शुरू कर दी।
बहुत समय पहले अनगपुर नाम की एक राजधानी हुआ करती थी। वह राजधानी बहुत सुंदर थी। उस राजधानी में एक व्यापारी भी रहता था जिसका नाम अर्थदत्त था। वह बहुत धार्मिक और दानशील स्वभाव का था। वह अपनी पत्नी और एक इकलौती बेटी मदनसेना के साथ रहता था। उसकी बेटी मदनसेना बहुत सुंदर थी। वह भी अपने पिता की तरह दयावान और धार्मिक स्वभाव की थी। उसे घूमने फिरने का भी बहुत ज्यादा शौक था। मदनसेना के पिता ने उसकी सगाई समुद्र दत्त से करवा दी थी। वह हर दिन बाग बगीचे में जाया करती थी।
एक दिन हर दिन की ही तरह वह बगीचे में मंदिर की पूजा के लिए फूल इक्कठे करने जा रही थी। वह जैसे ही फूल इक्कठे करने के लिए बगीचे में दाखिल हुई कि अचानक उसने देखा कि एक आदमी भी उसी बगीचे में फूल इक्कठे कर रहा था। जैसे ही उस आदमी ने मदनसेना को देखा वह उसपर पूरी तरह से मोहित हो गया। वह लगातार मदनसेना को टकटकी लगाए देखता ही रहा। मदनसेना को यह बहुत अजीब लगा कि वह आदमी उसे लगातार घूरे जा रहा है। इसलिए वह वहां से चली गई। उस आदमी की वजह से मदनसेना कई दिनों तक तो घर से बाहर तक नहीं निकली।
फिर कई दिनों बाद में वह जब वह दुबारा अपने घर से निकली तो उसे बहुत अच्छा लगा। वह दोबारा उसी बगीचे से फूल इक्कठे करने गई। जब वह फूल तोड़ रही थी तो उसने देखा कि वह आदमी आज फिर से उसी बगीचे में मौजूद था। उसे देखकर वह फिर से घबरा गई। उस आदमी ने आज हिम्मत रखकर साहस के साथ बोल ही दिया, “लोग मुझे धर्म सिंह के नाम से जानते हैं।
आपका शुभ नाम क्या है?” मदनसेना ने अपना नाम बताया। फिर धर्म सिंह बोला, “जब से मैंने आपको देखा है तब से मैं आपकी सुंदरता का कायल हो गया हूं। मैं आपसे शादी करने को बेताब हूं। कृपया करके आप मुझसे शादी कर लीजिए।” मदनसेना उसकी बात सुनकर भड़क उठी। उसने कहा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमसे ऐसे बात करने की। और बात रही शादी की तो हम तुमको बता देते हैं कि हम किसी और की ही अमानत हैं।
हमारी शादी समुद्र दत्त नाम से तय हो गई है। हमारी तरफ आंख उठाकर देखना भी तुम्हारे लिए पाप के समान है।” जैसे ही धर्म सिंह ने यह बात सुनी वह गुस्से से तिलमिला उठा। उसने कहा, “देखो तुम और किसी से शादी नहीं कर सकती। मैंने तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है। अगर तुम मेरी नहीं हुई तो मैं इसी समय अपने प्राण त्याग दूंगा।” मदनसेना को ऐसा लगा कि अगर उसने ना बोल दिया तो हत्या का पाप उसपर चढ़ जाएगा। इसलिए उसने झूठे ही धर्म सिंह को छह दिन बाद मिलने को हामी भर दी। वह मदनसेना के उत्तर से खुश हो गया।
छह दिन बाद मदनसेना की शादी समुद्र दत्त से हो गई। फेरे लेकर जैसे ही वह ससुराल विदा होने लगी तो उसने अपने पति से पूछा, “नाथ, मुझे किसी से मिलने जाना होगा। मेरा उससे मिलना बहुत जरूरी है। मैंने उसे वचन दे रखा है। अगर मैं वहां नहीं गई तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा।” समुद्र दत्त ने जब मदनसेना के मुंह से ऐसी बात सुनी तो उसे बहुत अजीब लगा। उसने सोचा कि अपने पति को छोड़कर आखिर एक शादीशुदा औरत किस आदमी से मिलने जा सकती है। उसने अपने दिल पर पत्थर रखकर मदनसेना को जाने की स्वीकृति दी। जब मदनसेना कुछ दूर आगे चली गई तब पीछे से समुद्र दत्त भी उसकी जासूसी करने उसके पीछे-पीछे चला गया।
जैसे ही वह बीच रास्ते पहुंची, एक डाकू ने उसे रोक लिया। उसे इस प्रकार गहनों से सजा धजा देखकर उस चोर ने सोचा कि एक ऐसी खूबसूरत महिला दुल्हन के भेष में कहां जा रही है। वह भी मदनसेना की खूबसूरती पर मोहित हो गया। उसने मदनसेना से कहा, “अरे ओ सुंदर नारी। तुम कहां जा रही हो। तुम्हारे गहनों और कपड़ों से प्रतीत होता है कि तुम्हारी शादी हो गई है।
अगर तुम शादी के ही दिन अपने पति को छोड़कर किसी और से मिलने जा रही हो तो तुम मेरी ही क्यों नहीं हो जाती। मैं तुम्हें शादी के बाद बहुत खुश रखूंगा।” जैसे ही मदनसेना ने चोर की नीयत को समझा वह बहुत डर गई। उसने कहा, “देखो आप जो भी हो, लेकिन मैं अपने पति को छोड़कर नहीं आई हूं। मैं तो उससे मिलने के लिए जा रही हूं जिससे मिलने का वादा किया था मैंने। मैं अपने पति की स्वीकृति लेकर आई हूं।” चोर बोला, “मैं चाहता हूं कि जैसे ही तुम उस इंसान से मिल लो जिससे तुम मिलने जा रही हो, तुम सीधा लौटकर मेरे पास ही आना। अगर तुमनें ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हारे पति को जान से मार दूंगा।” मदनसेना ने डर के चलते चोर से मिलने के लिए हामी भर दी।”
मदनसेना भागती-दौड़ती हुई सीधे ही धर्म सिंह के पास पहुंची। मदनसेना को दुल्हन के भेष में देखकर वह हैरान रह गया। उसने उखड़े मन से कहा, “यह क्या, तुमनें शादी कर ली। मुझे लगा था कि तुम मुझे छोड़कर और किसी से भी शादी नहीं करोगी।
लेकिन खैर तुम्हारी जब शादी हो ही गई है तो आज से तुम उसी की ही हो। मैं पराई स्त्री की ओर देखना तक नहीं चाहता। मैं तुम्हें अपने वचन से मुक्त करता हूं। तुम अपने पति के पास चली जाओ।” मदनसेना का पति और वह चोर इस बात को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। उन दोनों को लगा कि वह कितना गलत थे कि उन्होंने मदनसेना के बारे में इतना भला बुरा सोचा। फिर वह दोनों ही मदनसेना को आता देख तितर-बितर हो गए।”
फिर मदनसेना सीधे ही चोर के घर पहुंची और बोली, “देखो, मैं अपने वचन के मुताबिक तुमसे भी मिलने आ गई हूं।” चोर ने जब मदनसेना को अपने घर देखा तो उसे शर्म आ गई। चोर बोला, “मुझे सब पता चल गया है। तुम बहुत ही ज्यादा पवित्र और पतिव्रता नारी हो। मुझे खुद पर ही शर्म आ रही है कि मैंने तुम्हें बुरी नजरों से देखने की कोशिश की। तुम यहां पर मत खड़ी रहो। तुम अब अपने पति के पास चली जाओ।” ऐसा कहकर चोर ने मदनसेना को अपने पति के पास भेज दिया।
अब बेताल अपनी कहानी खत्म कर चुका था। उसने विक्रम से पूछा, “तो अब तुम यह बताओ, राजन, कि उन तीनों आदमियों में से सबसे अधिक त्यागी कौन हुआ? मुझे सही उत्तर चाहिए। अगर तुमनें उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम्हारे सिर के टुकड़े टुकड़े कर दूंगा।” विक्रम ने कहा, “सुनो बेताल, उन तीनों में सबसे अधिक त्यागी वह चोर ही हुआ। क्योंकि अगर हम मदनसेना के पति की बात करें तो पता चलता है कि उसने मदनसेना को धर्म सिंह के पास इसलिए जाने दिया।
क्योंकि उसने सोचा कि वह ऐसी पत्नी को अपने पास रखकर क्या करेगा जो पराये पुरुष से प्रेम करती हो। और अगर हम धर्म सिंह की बात करें तो उसने पराई स्त्री की ओर आकर्षित होकर एक बड़ा पाप किया था। और बात रही उस चोर की तो चोर का ह्रदय परिवर्तन हो गया था। चोर तो पहले से ही पापी होता है। अगर वह मदनसेना को अपना बनाकर पाप भी कर लेता तो यह उसके लिए बड़ी बात नहीं थी। लेकिन चोर ने अपने ह्रदय को परिवर्तित कर लिया। तो सबसे अधिक त्यागी तो चोर ही हुआ।” विक्रम का सही उत्तर सुनकर बेताल फिर से उड़ चला।
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