बेताल को अपने कंधे पर डाले विक्रम जंगल की ओर बढ़ा जा रहा था। चलते-चलते विक्रम को आज फिर एक नई कहानी सुनने को जी चाहा। उसने बेताल से कहा कि आज उसे कोई मजेदार कहानी सुनाओ। बेताल ने पूछा कि वह विक्रम को कौन सी कहानी सुनाए? क्योंकि विक्रम के दिमाग में इतनी देर से नींद जैसे विषय पर विचार चल रहे थे इसलिए विक्रम ने इच्छा प्रकट की कि उसे सपने पर आधारित कोई कहानी सुनाई जाए। बेताल ने कहा कि वह उसे दगडू नाम के लड़के की कहानी सुनाएगा जिसे बहुत नींद आती थी।
बहुत समय पहले की बात है। चंद्रपुर नाम का एक विशाल गाँव था। उस गाँव में खूब सारे लोग रहते थे। उसी गाँव में एक चंचला नाम की बूढ़ी औरत रहती थी। उसी गाँव में वह दर्जी का काम किया करती थी। लोगों के कपड़े सिलकर वह अपने घर के लिए रोजी रोटी जुटाती थी। उसका एक बेटा भी था। उसके बेटे का नाम दगडू था। दगडू अपनी माँ का बहुत ख्याल रखता था। लेकिन एक चीज थी जिससे उसकी माँ बहुत ज्यादा परेशान रहती थी।
दरअसल दगडू को सोना बहुत ज्यादा अच्छा लगता था। नींद लेने से उसे नई ऊर्जा और नई उमंग का एहसास होता था। लेकिन इसी बात से उसकी माँ और उसके रिश्तेदार बहुत ज्यादा परेशान रहते थे। सभी यही सोचते थे कि ऐसे नींद लेने वाला व्यक्ति अपने आगे के जीवन में कैसे उन्नति करेगा। दगडू कमाई भी नहीं करता था। वह अपनी माँ की मेहनत के पैसों पर ही पल रहा था। उसे अपने भविष्य को लेकर बिल्कुल भी चिंता नहीं थी। वह दिन रात सोया करता था और हसीन सपने देखा करता था।
एक दिन दगडू दोपहर को खाना खाने के बाद सो गया। उसने सपने में देखा कि एक लड़की की शादी की तैयारी चल रही थी। शादी के लिए खूब सारे लजीज पकवान बनाए गए। लड़की भी पूरी सज धज कर बारात का इंतजार कर रही थी। शादी की तैयारी पूरी हो गई थी कि तभी एक बड़ी घटना घटी। उसी शादी वाले घर में डाकुओं ने धावा बोल दिया। और फिर वह खूब सारे गहने और रुपए चोरी करके ले गए। जब दगडू इस भयानक सपने से जागा तो उसने देखा कि एक लड़की उसकी माँ के पास कपड़े सिलने को देने आई।
दगड़ू ने अपना दिमाग दौड़ाया तो याद आया कि यह तो वही सपने वाली लड़की थी जिसके घर पर चोरी हुई थी। दगड़ू ने सोचा कि क्यों ना इस लड़की को चोरी के बारे में सचेत किया जाए। उसने ऐसा ही किया। जब लड़की ने खुद की शादी के लिए ऐसा बुरा सपना सुना तो वह दगड़ू पर गुस्सा हो गई और उसके सपने को अनसुना करके चली गई। थोड़े दिन बाद जब उस लड़की की शादी होने वाली थी तो ठीक उसी दिन ही बहुत बड़ी चोरी हो गई। दगड़ू का सपना जब पूरा हो गया तब उस लड़की के घरवालों ने दगड़ू को खूब मारा और उसे कोतवाल को हवाले कर दिया। लेकिन थोड़े दिन बाद निर्दोष साबित हो जाने के बाद दगड़ू दोबारा अपने घर लौट आया।
थोड़े दिनों तक सब सही चलता रहा। फिर एक दिन दगड़ू को फिर से एक अलग तरह का सपना आया। इस बार उसे सपना आया कि उसके पड़ोस में रहने वाले सेठ का मकान जो कि बनकर तैयार होने वाला था वह पूरा होने से पहले जल गया। वह भागता हुआ सेठ के पास गया। वहां पर पहुंचकर जब उसने सेठ को घर जलने की बात बताई तो वह सेठ दगड़ू पर बरस पड़ा। उसने दगड़ू को बहुत भला बुरा सुनाया और उसे बेइज्जत करके वहां से भगा दिया।
थोड़े ही दिन बाद में जब सेठ के घर का उद्घाटन हो रहा था तब उस दिन पता नहीं कहां से थोड़ी सी आग की चिंगारी लगी और वह चिंगारी पूरे घर में फैल गई। थोड़ी देर बाद में पूरा घर जलकर खाक हो गया। दगड़ू भी इस घटना को अपनी आंखों से देख रहा था। सेठ को लगा कि वह आग दगड़ू ने लगाई थी। इसलिए उस सेठ ने लोगों को साथ बुलाया और दगड़ू की खूब पिटाई की। बेचारे दगड़ू की हालत बुरी हो गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसने कौन से जन्म में इतने बुरे कर्म किए थे। वह हमेशा लोगों का भला सोचता था और बदले में लोग उसे धिक्कारते थे।
फिर बहुत दिनों तक दगडू के साथ बुरा होता गया। वह लोगों का हित करना चाहता था और लोग उसके साथ नाइंसाफी करते थे। एक दिन जब वह इन घटनाओं से हार गया तब उसने अपनी माँ से कहा, “माँ, मैं अब और ज्यादा दिन तक इस गाँव में नहीं रहना चाहता। लोग मेरे साथ बदतमीजी से पेश आते हैं। इसलिए मैं यहां से कहीं दूर नौकरी ढूँढने जा रहा हूं।” माँ ने अपने बेटे की भलाई सोचकर दगडू को उस गाँव से विदा कर दिया।
अब दगडू घूमते घूमते गाँव से एक दूसरे राज्य जा पहुंचा। जिस राज्य में वह पहुंचा वहां का राजा बहुत शक्तिशाली था। उस राज्य में पहुंचकर दगडू अपने लिए नौकरी ढूँढने लगा। उसने दिन रात एक कर दिए लेकिन उसको कहीं पर भी नौकरी नहीं मिली। फिर एक दिन उसने राजा से गुहार लगाई कि राजा उसे नौकरी प्रदान कर दे। उसने राजा से कहा कि वह उसको राजदरबार नें नौकरी दे दे। राजा को दगडू पर दया आ गई। राजा ने उसे अपने महल में बतौर चौकीदार नियुक्त कर दिया। फिर वह राजा के लिए पूरी जिम्मेदारी से काम करने लगा। वह दिन रात राजा की सेवा में ही व्यतीत कर देता। राजा को भी दगड़ू का काम पसंद आने लगा।
एक दिन दगडू को रात को सपना आया कि राजा आज से दो दिन बाद सोनपुर गाँव जाएंगे। जब राजा सोनपुर गाँव पहुंचेगा तब वहां पर जोरदार भूकंप आएगा और वह भूकंप सब तबाह कर देगा। सब कुछ तहस नहस हो जाएगा। जब दगडू सुबह नींद से जागा तो वह सीधा ही राजा के पास गया और उसने राजा को यह कहकर सचेत कर दिया कि सोनपुर में भयानक भूकंप आएगा। इसलिए वहां जाने से पहले पूरी सावधानी बरती जाए।
राजा ने दगडू की बात को थोड़ा सा मज़ाकिया अंदाज में लिया। लेकिन थोड़ा सा गंभीरता से भी लिया। राजा ने सोनपुर का दौरा टाल दिया। फिर दो दिन बाद राजा को पता चला कि जिस सपने की दगड़ू बात कर रहा था वह सपना सच हो गया। सोनपुर में भूकंप के चलते सब कुछ तबाह हो गया। राजा ने आखिरकार दगडू के सपनों को सच खारिज कर दिया। क्योंकि दगड़ू ने राजा की जान बचा ली थी इसलिए राजा ने दगड़ू खूब सारे सोने के सिक्के दिए। लेकिन दूसरी तरफ राजा ने दगड़ू को अपने राजमहल से निष्कासित भी कर दिया।
और फिर बेताल कहानी खत्म कर देता है। कहानी खत्म करने के बाद बेताल ने विक्रम से पूछा, “मेरी कहानी खत्म हुई, राजन। तो अब तुम यह बताओ कि राजा की जान बचाने पर भी दगडू को महल से निष्कासित क्यों कर दिया गया? मैं चाहता हूं कि तुम मुझे इसका उत्तर दो। अगर तुमनें मुझे जवाब नहीं दिया तो मैं तुम्हें जान से मार दूंगा।” विक्रम ने कहा, “दगड़ू को महल से इसलिए निकाला क्योंकि दगडू ने चौकीदारी करते समय नींद ले ली थी। ऐसा करके दगडू ने बहुत बड़ा गलत काम किया था।” जैसे ही विक्रम ने सही उत्तर दिया बेताल ने कहा, “राजन, तो बोला और मैं चला।” ऐसा कहकर बेताल उड़ गया।
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