इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक-1 यानी भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग- 1 के अध्याय- 2 “राजा, किसान और नगर” (आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ) के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 2 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 History Book-1 Chapter-2 Notes In Hindi
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अध्याय- 2 “राजा, किसान और नगर” (आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ)
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | इतिहास |
पाठ्यपुस्तक | भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-1 |
अध्याय नंबर | दो (2) |
अध्याय का नाम | “राजा, किसान और नगर” (आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ) |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-1
अध्याय- 2 “राजा, किसान और नगर” (आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ)
1. बौद्ध और जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से 16 राज्यों का उल्लेख मिलता है।
2. सम्राट अशोक ने अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए संदेश प्राकृतिक पत्थरों और पॉलिश किए हुए स्तंभों पर लिखवाए।
3. अशोक के शिलालेख सबसे अधिक प्राकृत भाषा में लिखे गए थे।
4. ‘प्रयाग प्रशस्ति’ की रचना करने वाले हरिसेन समुद्रगुप्त के दरबारी कवि थे।
5. मौर्य साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली महाजनपद का नाम मगध है।
6. मगध की राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया गया।
7. मौर्य काल में ‘अर्थशास्त्र’ पुस्तक के लेखक कौटिल्य थे।
8. ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि का अर्थ जेम्स प्रिंसेप द्वारा निकाला गया।
9. कुषाण शासकों के बारे में सिक्के, मूर्तियाँ और अभिलेख से जाना जाता है।
10. गुप्त शासक समुद्रगुप्त बहुत अधिक शक्तिशाली और प्रसिद्ध था।
11. कुषाण शासकों ने स्वयं को देवपुत्र कहा।
12. भारत में पहली शताब्दी में सोने के सिक्के कुषाण साम्राज्य ने जारी किए।
13. सम्राट अशोक को प्रियदर्शी (पियदस्सी) नाम से संबोधित किया जाता था।
14. मौर्य काल में तीन सरदारियों चोल, चेर और पाण्ड्य का जन्म हुआ।
15. मगध की राजधानी राजगृह थी।
16. ‘इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख’ की रचना प्राकृति भाषा में की गई।
17. जिसने लोगों को भूमि दान में दी, वो शक्तिशाली रानी प्रभावती गुप्त थी।
18. ‘प्रयाग प्रशस्ति’ की रचना हिरसेन ने की थी।
19. मगध के विकास के साथ मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ।
20. ‘इंडिका’ मेगास्थनीज द्वारा रचित है।
21. मेगास्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य का दरबारी कवि था।
22. मगध की सत्ता का विकास और विभिन्न व्याख्याएँ-
प्रारंभिक लेखकों ने मगध के विकास और प्रसिद्धि के लिए निम्नलिखित व्याख्याएँ दी हैं-
(क) यहाँ लोहे की खदाने उपबद्ध थीं जिससे अधिक मात्रा में उपकरण या हथियार बनाना आसान हो गया था।
(ख) मगध मिट्टी उपजाऊ थी इसलिए यहाँ कृषि से उपज में अच्छी प्राप्त होती थी।
(ग) मगध के जंगलों में सेना के लिए हाथी पर्याप्त मात्रा में मिल जाते थे।
(घ) जल परिवहन सस्ता और सुलभ था। मुख्य रूप से गंगा और इसकी सहायक नदियों से।
23. मगध छठी से चौथी शताब्दी ई. पू. के मध्य सबसे शक्तिशाली जनपद कैसे बना?
राजगाह मगध का एक कीलेबंद शहर था लेकिन चौथी शताब्दी में पाटलिपुत्र को मगध की राजधानी के रूप में चुना गया। यहाँ लोहे की खदाने उपबद्ध थी जिससे अधिक मात्रा में उपकरण या हथियार बनाना आसान हो गया था। मगध मिट्टी उपजाऊ थी इसलिए यहाँ कृषि से उपज में अच्छी प्राप्त होती थी। यहाँ के जंगलों में सेना के लिए हाथी पर्याप्त मात्रा में मिल जाते थे। जल परिवहन सस्ता और सुलभ था। मुख्य रूप से गंगा और इसकी सहायक नदियों से। जैन एवं बौद्ध धर्म के लेखकों के मुताबिक के प्रसिद्धि का कारण महान राजाओं की नीतियाँ थीं जिसमें बिंबिसार, अजातशत्रु तथा महापद्मनंद जैसे महत्वाकांक्षी शासक शामिल हैं।
24. भूमिदान का प्रचलन और राज्य एवं किसानों के बीच संबंध-
भूमिदान का प्रचलन ईसवी के आरंभिक शताब्दी से ही शुरू हो गया था। भूमिदान के जो प्रमाण मिले हैं, वे मुख्यतः ब्राह्मणों या धार्मिक संस्थाओं को दिए गए थे। ब्राह्मणों को दान में मिली भूमि को अग्रहार कहा जाता था। कई अभिलेखों से पता चलता है कि किसान, ब्राह्मण और अनेक शिल्पकार समूह बनाकर रहा करते थे। इन्हें राजा को कर देने के साथ दौरे पर आए राजा के प्रसशासन व्यवस्था को संभालने वाले अधिकारियों के खाने और रहने का इंतजाम भी करना पड़ता था। वहीं मछुआरों, पशुपालक, घुमक्कड़ लोगों पर कोई प्रशासनिक दबाव नहीं था। ये लोग किसी तरह के आदान-प्रदान या हिसाब-किताब का विवरण नहीं रखते थे।
25. मौर्य साम्राज्य के संचालन के लिए भूमि और नदियों दोनों मार्गों से आवागमन की आवश्यकता-
मौर्य साम्राज्य विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था। इतने बड़े साम्राज्य व्यापार, साम्राज्य की सुरक्षा, प्रशासन व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए आवागमन के लिए भूमि और जल मार्ग दोनों की अहम भूमिका थी। इस साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र जल मार्ग (गंगा नदी) और स्थल मार्ग के किनारे बसी थी। जल मार्ग से सिर्फ नदी के बहाव वाली जगहों पर ही पहुँचा जा सकता था और जहां जल मार्ग से होकर नहीं पहुँचा जा सकता था वहाँ भूमि मार्ग से लोग जाया करते थे। इसी तरह जब कभी युद्ध होते थे या बंदरगाह तक जाना होता था तो जल मार्ग सुगम होता था। अंततः दोनों मार्गों की अपनी-अपनी अहम भूमिका है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
26. छठी शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी तक कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रयुक्त तरीके-
छठी शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी तक कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रयुक्त तरीके निम्नलिखित हैं-
(क) सिंचाई के लिए नई तकनीक- उपज को बढ़ाने के लिए तलाबों और कुओं और कहीं-कहीं नहरों द्वारा सिंचाई की जाती थी। इस मसी के लोगों ने सामूहिक सिंचाई को भी विकसित किया। उस समय के प्रसिद्ध लोग और राजा सिंचाई के लिए सुलभ साधनों का निर्माण करवाते थे।
(ख) हल का प्रयोग- गंगा के पास धान की रोपाई और कावेरी के घाटियों के आस-पास के क्षेत्रों में हलो के प्रयोग से कृषि की उपज में सबसे अधिक वृद्धि हुई। इस समय जहाँ सबसे ज़्यादा वर्षा होती थी वहाँ लोहे के फाल वाले हलों से खेती की जाने लगी।
27. “अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा होती है।” तर्कों के साथ इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए?
कई अभिलेख बड़े हल्के तरीके से लिखे होते हैं, जिन्हें देख पाना और पढ़ना कठिन होता है। ऐसे में अभिलेखों के जल्दी निरर्थक होने कि संभावना बढ़ जाती है। इस तरह विद्वानों को सही अर्थ तक पहुँचने में कई तरह की कठनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इन अभिलेखों में संपूर्ण जानकारी नहीं दी गई सिर्फ उन्हीं के विचार उत्कीर्ण किए गए हैं जो इन्हें बनवाते थे। यह सिर्फ विशेष अवसरों का वर्णन करते हैं। इनमें मौलिकता की समस्या है क्योंकि इसमें आम जनता, खेती और दैनिक जीवन का वर्णन नहीं किया गया है। इस प्रकार ये अभिलेख महज निर्माणकर्ता पर केंद्रित है।
28. मुद्राशास्त्र का अर्थ और वाणिज्यिक विनियम का पुनर्गठन-
जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है सिक्कों पर पाई जाने वाली चित्र लिपि को मुद्राशास्त्र कहा जाता है, जिसका अध्ययन किया जाता है। सिक्कों के अध्ययन ने मुद्राशास्त्रियों को उनके वाणिज्यिक विनियम का पुनर्गठन करने में निम्न प्रकार से मदद की-
(क) व्यापार विनियम राजनीतिक सीमाओं से बाहर रोमन तक भी फैली हुई थी। इसका प्रमाण दक्षिण भारत के कई पुरायस्थलों में पाए गए रोमन सिक्के हैं।
(ख) मौर्य वंश के राजाओं ने आहत सिक्कों को जारी किया था। इसके अलावा धनी लोगों, व्यापारियों और कई लोगों ने भी इस तरह के सिक्कों को जारी किया।
(ग) सबसे पहले चाँदी और ताँबे के आहत सिक्के जारी किए गए। इन्हीं के आधार पर मुद्राशास्त्रियों ने व्यापार विनियम के लिए संभावित क्षेत्रों का पता लगाया। अगर सिक्कों पर चित्र लिपि का उपयोग न किया गया होता तो विनिमय करना उतना सरल नहीं होता।
(घ) पंजाव एवं हरियाणा से पाए सिक्कों से वहाँ के लोगों का व्यापार में रुचि तथा भगीदारी का पता चलता है।
(ड़) गुप्त शासकों ने जब सोने के सिक्के चलाए, तो इनके माध्यम से दूर दराज के देशों से जुड़ना और अपने व्यापारको बढ़ाना पहले से और सरल हो गया।
(च) सोने के सिक्कों को सबसे पहले कुषाण शासकों द्वारा जारी किया गया था। सोने के सिक्कों के अधिक उपयोग से यह स्पष्ट होता है कि उस समय सबसे ज़्यादा विनिमय कीमती और दुर्लभ वस्तुओं का होता था।
29. मौर्य प्रशासन की विशेताएं और अशोक के ‘धम्म’ के सिद्धांत-
मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा 321 ई. पू. में की गई थी। जहाँ राजतंत्र और गणतंत्र ही व्यवस्था प्रचलन में थी। इसमें मुख्य रूप से पाँच राजनैतिक क्षेत्र शामिल थे जfसमें पाटलिपुत्र राजधानी के अलावा भी चार और मुख्य राजधानियाँ शामिल थीं। इस साम्राज्य में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सेना की थी। मेगास्थनीज ने सेना संचालन के लिए निम्नलिखित छः उपसमितियों का उल्लेख किया है-
(क) पहली उपसमिति नौसेना का संचालन
(ख) दूसरी उपसमिति यातायात एवं खान-पान का संचालन
(ग) तीसरी उपसमिति पैदल सैनिकों का संचालन
(घ) चौथी उपसमिति अश्वरोहियों का संचालन
(ड़) पाँचवीं उपसमिति रथरोहियों का संचालन
(च) छठी उपसमिति हाथियों का संचालन
मौर्य काल में अशोक एक ऐसा सम्राट था जिसने अपने अधिकारियों के साथ-साथ प्रजा के लिए भी संदेश लिखवाए। इसने अपने साम्राज्य में एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए कई प्रयास किए। इसके लिए अशोक ने बुद्ध के सिद्धांतों का धम्म के नाम से प्रसार किया। जिसमें दूसरों के धर्मों के प्रति आदर, बड़ों का सम्मान, सन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति आदर का भाव, दासों के प्रति उदार व्यवहार और बच्चों के लिए स्नेह शामिल हैं। धम्म का सिद्धांत इतना सहज और सरल है कि इसे कोई भी मनुष्य उस समय आसानी से अपना सकता था और उसका पालन कर सकता था। यही कारण के कि सम्राट अशोक अपने समय के एक अच्छे शासक माने गए। अशोक के अभिलेख में सम्राट अशोक को प्रियदर्शी कहकर संबोधित किया गया है, जिसका अर्थ है मनोहर मुखाकृति वाला।
30. अशोक के अभिलेख पर टिप्पणी-
अशोक वह पहला शासक था जिसने अपने अधिकारियों के साथ-साथ प्रजा के लिए भी संदेश लिखवाए। इसने अपने साम्राज्य में एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए कई प्रयास किए। इसके लिए अशोक ने बुद्ध के सिद्धांतों का धम्म के नाम से अपनी प्रजा के बीच प्रसार किया। जिसमें दूसरों के धर्मों के प्रति आदर, बड़ों का सम्मान, सन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति आदर का भाव, दासों के प्रति उदार व्यवहार और बच्चों के लिए स्नेह शामिल हैं। धम्म का सिद्धांत इतना सहज और सरल है कि इसे कोई भी मनुष्य आसानी से अपना सकता था और उसका पालन कर सकता था। यही कारण है कि सम्राट अशोक अपने समय के एक अच्छे शासक माने गए जिसके प्रमाण अभिलेखों में लिखित रूप में मिलते हैं।
अशोक के अभिलेख की खोज एक ब्रिटिश पुरातत्त्वविद जेम्स प्रिंसेप ने 1830 के दशक में की थी और इन्होंने ही सर्वप्रथम अशोक के अभिलेखों को पढ़ा था। इस अभिलेख बारे में कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-
(क) शोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा में लिखे गए थे। वहीं पश्चिमोत्तर भाग से पाए गए अभिलेख यूनानी और अरामाइक भाषा में लिखे गए हैं। प्राकृत भाषा में लिखे गए अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए।
(ख) अशोक को देवताओं के प्रिय होने की उपाधि प्रपात की थी जिसका जिक्र अशोक के अभिलेखों में मिलता है। इन अभिलेखों में कलिंग युद्ध, अशोक के विचारों के साथ हृदय परिवर्तन और प्रशासनिक सुधारों के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है।
(ग) भारत में अशोक के सिंह शीर्ष को सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न के रूप में अपनाया है। आज यह भारत के वीरों की एकता/अखंडता, उच्च आदर्शों, नैतिकता और प्रगति का प्रतीक बन चुका है।
(घ) अशोक के अभिलेखों में सम्राट अशोक को प्रियदर्शी कहकर संबोधित किया गया है, जिसका अर्थ है मनोहर मुखाकृति वाला।
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