इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक- 3 यानी भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग- 3 के अध्याय- 10 विद्रोही और राज (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान) के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 10 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 History Book-3 Chapter-10 Notes In Hindi
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अध्याय- 10 “विद्रोही और राज” (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान)
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | इतिहास |
पाठ्यपुस्तक | भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-3 |
अध्याय नंबर | दस (10) |
अध्याय का नाम | “विद्रोही और राज” (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान) |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-3
अध्याय- 10 “विद्रोही और राज” (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान)
1857 का विद्रोह
- मेरठ छावनी में 10 मई 1857 की दोपहर को सिपाहियों ने विद्रोह बुलंद किया जिसे भारत में प्रथम स्वतंत्रा संग्राम के नाम से जाना जाता है।
- आरंभ में विद्रोहियों ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया उसेक बाद शस्त्रागार पर नियंत्रण किया और जेल, सरकारी खजाने, टेलीग्राम, दफ्तर, रिकॉर्ड रूम, बंगलों सहित सरकारी इमारतों पर हमला करते हुए सभी रिकॉर्ड जलाते चले गए।
- उस दौरान अंग्रेजों से जुड़ी हर चीज और हर व्यक्ति विद्रोहियों के आक्रोश का शिकार था।
- शहर को दिल्ली से जोड़ने वाली टेलीग्राफ लाइन काट दी गई।
- लखनऊ, कानपुर और बरेली जैसे बड़े शहरों के साहूकार तथा अमीर भी विद्रोहियों के आक्रोश का शिकार बने।
- विद्रोहियों ने मेरठ व आस-पास के जगहों पर कब्जा करने के बाद 11 मई को दिल्ली पर कब्जा कर लिया और उस समय के मुगल बादशाह ‘बहादुरशाह जफर’ को अपना नेता बना लिया। इसके बाद विद्रोह का स्वर तेजी से गंगा घाटी की छावनियों और दिल्ली के पश्चिम की कुछ छावनियों में गूँज पड़ा।
संचार के माध्यम
- 1857 के विद्रोह के दौरान विभिन्न छावनियों में सिपाहियों के पास एक व्यवस्थित संचार व्यवस्था थी।
- जब सातवीं अवध इर्रेग्युलर कैवेलरी ने मई के आरंभ में नए कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया तब उन्होंने इसका प्रतिउत्तर जानने के लिए 48 नेटिव इंफेंट्री को पत्र लिखा। इस तरह सिपाही या उनके संदेशवाहक एक स्थान से दूसरे स्थान तक विचार करने हेतु संदेश लेकर जाते थे।
- विद्रोह के समय अवध मिलिट्री पुलिस के ‘कैप्टन हियर्से’ की मौत के प्रति अवध मिलिट्री पुलिस एवं 41वीं नेटिव इंफेंट्री के बीच मत-भेद उत्पन्न हो गया था।
- इस मामले को हल करने के लिए प्रत्येक रेजीमेंट के देशी अफसरों की एक पंचायत कानपुर में बुलाई गई। रात को कानपुर सिपाही लाइनों में एकत्रित होकर सामूहिक रूप से इस समस्या का समाधान करने और आगे की रणनीतियों को तैयार करने के लिए हिस्सा ले रहे थे।
- इस तरह से सिपाही अपने कर्ताधर्ता खुद ही थे और स्वयं ही सुनियोजित तरीके से कार्य करते थे।
विद्रोही नेता तथा अनुयायी
- उस समय अंग्रेजों से लड़ाई करने के लिए संगठन के साथ-साथ एक अच्छे नेता के नेतृत्व की भी जरूरत थी। इसलिए विद्रोहियों ने कई ऐसे नेताओं लोगों की शरण ली जो अंग्रेजों से पहले नेताओं की भूमिका निभाते थे।
- मेरठ के सिपाहियों ने सबसे पहले दिल्ली के शासक ‘बहादुर शाह’ की शरण ली थी।
- कानपुर में सिपाहियों और शहर के लोगों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी ‘नाना साहिब’ को विद्रोह की बागडोर संभालने के लिए मजबूर कर दिया था।
- वहीं ‘झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई’ और बिहार में आरा के स्थानीय जमींदार ‘कुँवर सिंह’ को जनता के दबाव में विद्रोह का नेतृत्व संभालना पड़ा था।
- लखनऊ में भी ब्रिटिश शासन समाप्त होने की खबर पर लोगों ने नवाब के युवा बेटे बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित कर दिया।
- कई जगहों पर किसानों, जमींदारों और आदिवासियों को भी विद्रोह में शामिल किया जा रहा था।
- छोटा नागपुर में स्थित सिंहभूम एक आदिवासी काश्तकार ‘गोनू’ ने इलाके के कोल आदिवासियों का नेतृत्व किया था।
विद्रोही/विद्रोहियों से जुड़ी अफवाहें और भविष्यवाणियाँ
- उस दौरान लोगों को विद्रोह के लिए जागरूक करने और उन्हें विद्रोह का हिस्सा बनाने के लिए कई तरह की अफवाहों और भविष्यवाणियों को माध्यम बनाया जा रहा था।
- कुछ ऐसी भी अफवाहें फैलाई जा रही थीं जो विद्रोहियों के आक्रोश में घी डालने का कार्य कर रही थीं।
- सबसे पहले दिल्ली में बहादुर शाह के सिपाहियों ने बताया कि सिपाहियों द्वारा प्रयोग किए जान वाले रायफल्स के कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी लगी होती है जिसके प्रयोग से उनके जाति और मजहब दोनों भ्रष्ट हो जाएंगे।
- इसके अलावा खबर में यह अफवाह भी जोरोशोरों से फैल रही थी कि अंग्रेजी सरकार ने हिंदुओं और मुसलमानों के धर्म को नष्ट करने के लिए बाजार में बिकने वाले आटे में गाय व सुअर की हड्डियों का चूर्ण मिलाया है। इस अफवाह के बाद सिपाहियों तथा आम जनता ने आटे को छूना बंद कर दिया था।
- लोगों को इस बात से डर लग रहा था कि अंग्रेज उनका धर्म परिवर्तन करके सबको ईसाई बनाना चाहते हैं। अफवाहें इतनी त्रिवता से फैल रही थीं कि अंग्रेजी सरकार भी अपनी बात रखने और लोगों को समझाने में असफल हो रही थी।
- जनता को इस भविष्यवाणी से बल मिला कि पलासी की जंग के 10 वर्ष पूरे होते ही 23 जून 1857 को अंग्रेजी राज समाप्त हो जाएगा।
- बात सिर्फ अफवाहों तक ही सीमित नहीं थी कुछ ऐसी क्रियाएँ भी हो रही थीं जिनका उद्देश्य आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया लेकिन फिर भी आम लोग इसे किसी आने वाली बड़ी घटना का संकेत मान रहे थे। दरअसल उस दौरान उत्तर भारत के विभिन्न गाँवों में चपातियाँ बाँटी जा रही थीं।
अफवाहों के फैलने के मुख्य कारण
- 1857 के विद्रोह की अफवाहें कितनी सच थीं और कितनी झूठ ये इस बात पर निर्भर करता है कि जो लोग अफवाहों पर विश्वास कर रहे थे उनकी मानसिकता कैसी थी।
- कोई भी अफवाह या भविष्यवाणी तभी तेजी से सफतापूर्वक फैलती है जब उससे जुड़े लोग या समाज किसी भयानक घटना से डरे और खुद को कमजोर माने।
- अफवाहों को लोग इसलिए भी स्वीकार करते थे क्योंकि अंग्रेजों ने 1820 के दशक में ऐसी नीतियाँ अपनाई जिसने भारत के बहुत से क्षेत्रों में बदलाव कर दिया।
- अफवाहों के आग की तरह फैलने के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
- गवर्नर जनरल ‘लॉर्ड विलियम बेंटिंक’ के नेतृत्व में भारतीय समाज को सुधारने के लिए पश्चिमी शिक्षा, पश्चिमी विचारों, अंग्रेजी माध्यम के शैक्षणिक केंद्रों (विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय) से संबंधित नीतियाँ लागू की गईं।
- पश्चिमी भू-राजस्व प्रणाली और अंग्रेजी तरीके से भूमि विवादों सुलझाने के तरीके का नकारात्मक प्रभाव सबसे अधिक उत्तर भारत के लोगों पर पड़ा।
- कला, विज्ञान जैसे कुछ विषयों को पश्चिमी तरीके से पढ़ाया जाने लगा।
- अंग्रेजों द्वारा ‘सती प्रथा’ को समाप्त करना (1829 ई.) और हिंदू विधवा विवाह को वैधता प्रदान किया जाना।
- लोगों को लगने लगा कि जिन चीजों में वो आस्था रखते थे, जिनका सम्मान करते थे, जिनको पवित्र मानते थे; जैसे कि राज-रजवाड़े, धार्मिक रीति-रिवाज, भू-राजस्व या कर अदा की प्रणाली उन सभी का अंत करके ऐसी व्यवस्था लागू की जा रही थी जो अधिक क्रूर, विदेशी और दमनकारी थी।
- गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि को रेजीडेंट कहा जाता है।
अवध विद्रोह
- अवध पर 1801 ई. मे सहायक संधि थोप दी गई थी जिसके अनुसार ये शर्त रखी गई थी कि नवाब को अपनी सेना समाप्त करनी होगी, रियासत में अंग्रेजी टुकड़ियों की तैनाती की आज्ञा दी जाए और नवाब ब्रिटिश रेजीडेंट के मुताबिक कार्य करे। बाद में ठीक ऐसा ही हुआ।
- 1856 ई. में औपचारिक रूप से अवध को ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा घोषित कर दिया गया।
- 1857 का विद्रोह अवध में काफी लंबा चला था जिसका नेतृत्व यहाँ किसानों और ताल्लुकदारों ने किया था।
- बंगाल आर्मी में अधिकतर सिपाही अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँवों से थे। अवध को बंगाल आर्मी की पौधशाला कहा जाता था।
अवध विलय के मुख्य घटक
- भारत की भूमि को अंग्रेजों द्वारा नील और कपास की खेती के लिए लाभकारी माना गया और उत्तर भारत को बाजार के रूप में विकसित किया गया।
- ब्रिटिश सरकार 1850 के दशक तक अधिकतर बड़े हिस्सों जैसे दोआब, मराठा भूमि, पंजाब, कर्नाटक और बंगाल पर अपना कब्जा जमा चुकी थी।
- लॉर्ड डलहौजी द्वारा अपनाई गई हड़प नीति ने अवध के लोगों में क्रोध को तेजी प्रदान की क्योंकि इस नीति के तहत नवाब वाजिद अली शाह को राजगद्दी से यह आरोप लगाकर निष्काषित कर दिया कि वो शासन व्यवस्था को अच्छी तरह से संचालित नहीं कर रहे थे।
- अवध के नवाब के निष्काषित होते ही अवध की हालत तितर-बितर हो गई।
ताल्लुकदारों और ग्रामीणों के आपसी संबंध
- अवध में फैले दुख और असंतोष ने लगभग सभी राजकुमारों, ताल्लुकदारों, सिपाहियों और किसानों को आपस में जोड़ दिया। ऐसे में उन्हें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ खड़े होने में बल मिला।
- एकाधिकार बंदोबस्त द्वारा ताल्लुकदारों को उनकी जमीनों से बेदखल कर दिया गया।
- एकाधिकार बंदोबस्त लागू होने के बाद अवध में गाँवों की संख्या 67% से घटकर 38% हो गई।
- ताल्लुकदारों के अंत के कारण निम्नलिखित थे-
- ताल्लुकदारों की जमीनें लेकर उसे उसके असली मालिक को दे देना।
- ऐसा करने के पीछे कारण था किसानों के शोषण में कमी लाना।
- राजस्व वसूली में वृद्धि।
- लेकिन किसानों कोई लाभ नहीं पहुँचा उल्टा कुछ जगहों पर राजस्व 30% से 70% तक बढ़ गया।
- इस तरह ताल्लुकदारों की सत्ता जाने के बाद पूरी सामाजिक व्यवस्था खंडित हो गई। किसानों से उनका सामाजिक जुड़ाव टूटने लगा।
- पहले किसान ताल्लुकदारों को अपने सुख-दुख का मसीहा मानते थे।
- अब किसानों ने विशेष अवसरों और पर्व पर कर्ज या किसी तरह की सहायता मिलने की उम्मीद छोड़ दी थी जोकि उन्हें पहले ताल्लुकदारों से मिल जाया करती थी।
विद्रोही क्या चाहते थे?
एकता की कल्पना
- 1857 के विद्रोह द्वारा विद्रोहियों ने जो घोषणा की उससे साफ-साफ नजर आता है कि वे सभी धर्मों और जातियों को बिना किसी भेदभाव के एक समान रूप में स्वीकार करना चाहते थे।
- इस विद्रोह को इस तरह पेश किया गया जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को समान नुकसान उठाना पड़ा। इसलिए खबरों में भी दोनों की भावनाओं का ध्यान रखा गया।
- बहादुर शाह की जारी की गई घोषणा में मुहम्मद और महावीर दोनों को इस विद्रोह में शामिल होने के लिए कहा गया जिससे स्पष्ट होता है कि दोनों धर्मों के लोग आपसी एकता को बनाए रखना चाहते थे।
- अंग्रेजी शासन ने हिंदू-मुसलमानों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने के लिए दिसंबर 1857 में बरेली में 50,000 रुपये खर्च किए लेकिन शासन इस उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया।
उत्पीड़न के प्रतीकों के खिलाफ
- विद्रोहियों द्वारा की गई घोषणाओं में ब्रिटिश शासन की सभी वस्तुओं को लोग पूर्ण रूप से अस्वीकार कर रहे थे।
- विदेशी शासन के आने के बाद बुनकर और दस्तकारों का अस्तित्व मिटने लगा।
- विद्रोहियों को प्रेरित किया गया कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ें।
- उनके (विद्रोहियों) द्वारा बनाई गई शासन संरचना का उद्देश्य युद्ध की आवश्यकताओं को पूरा करना था।
- यह युद्ध उन सभी के खिलाफ लड़ा गया जो अंग्रेजों के सहयोगी थे।
विद्रोह का दमन
- इस विद्रोह का दमन करना अंग्रेजों के लिए आसान नहीं था। इसलिए 1857 के मई और जून में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया।
- इस कानून के अनुसार जिस पर भी विद्रोह में शामिल होने का शक होता उसे गिरफ्तार कर लिया जाता। शक के आधार पर गिरफ्तारियाँ की जा रही थीं।
- 1857 में दिल्ली पर कब्जा करने के लिए पंजाब और कलकत्ता दोनों तरफ से आक्रमण किया गया।
- अंग्रेजों ने विद्रोह को शांत करने के लिए ब्रिटेन से सैनिक टुकड़ियों को बुलाया।
- वहीं जिन्होंने विद्रोहियों का साथ दिया उनकी जमीनें ले ली गईं और जिन्होंने उनका साथ नहीं दिया उन्हे शासन द्वारा उपहार देकर सम्मानित किया गया।
- अंग्रेजी शासन ने विद्रोहियों का दमन करने के लिए सैनिक ताकत का इस्तेमाल बड़े भयानक तरीके से किया था।
विद्रोह और विद्रोहियों की गतिविधियों को जानने हेतु स्त्रोत
- लिखित स्त्रोतों और चित्रों को इतिहासकारों ने मुख्य स्त्रोत माना है।
- इसके अलावा विद्रोहियों के घोषणा-पत्र, असंख्य मेमों, नोट्स, परिस्थितियों के पूर्वानुमान और नेताओं के पत्रों को भी स्त्रोत के रूप में स्वीकार किया गया है।
- विद्रोहियों द्वारा अपनाई गई हिंसात्मक कहानियों को अखबारों और पत्रिकाओं में लोमहर्षक शब्दों में प्रकाशित किया जाता था।
- कई चित्र, पेंसिल से बने रेखांकन, पोस्टर, उत्कीर्ण चित्र, बाजार चित्र और कार्टून भी 1857 के विद्रोह की कहानी को उजागर करते हैं।
- ‘इन मेमोरील’ नाम का चित्र ‘जोजेफ नोएल पेटन’ ने विद्रोह के दो साल बाद बनाया था जिसमें विद्रोहियों के हिंसक स्वरूप को चित्रित किया गया है।
- कुछ चित्रों में विद्रोहियों को वीरों की तरह बचाव करते हुए दिखाया गया है।
- ‘पंच’ ब्रिटिश पत्रिका द्वारा कैनिंग को एक भव्य नेक बुजुर्ग के रूप में दर्शाया गया है। इस चित्र में कैनिंग का हाथ एक सिपाही के सिर पर है जिसके हाथ में एक तलवार है।
- वहीं पत्र-पत्रिकाओं में माध्यम से विद्रोहियों के निर्मम दमन को दर्शाया गया है।
चित्रों और साहित्य में विद्रोह का स्वरूप
- 1857 की घटनाओं से 20वीं सदी के राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरणा मिली थी।
- इस विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से भी याद किया जाता है जिसमें देश के सभी वर्ग के लोगों ने अंग्रेजी/साम्राज्यवादी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
- साहित्य के माध्यम से विद्रोही नेताओं को नायकों के रूप प्रस्तुत किया गया जो देश को युद्ध भूमि की तरफ ले जा रहे थे।
- नायकों को वीरों की तरह युद्ध करते हुए देखा गया है।
- झाँसी की रानी को दुश्मनों का अंत करते हुए एक मर्दाना व्यक्तित्व के रूप में चित्रित किया गया है।
- झाँसी की रानी को अन्याय के खिलाफ लड़ने और विदेशी शासन खिलाफ दृढ़ता से डटे रहने वाली वीरांगना के प्रतीक रूप में साहित्य में स्थान दिया गया।
- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को आधार बनाकर उस दौरान कई वीर रस की कविताएँ लिखी गईं जिसमें झाँसी की रानी पर आधारित ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ की कविता अग्रणी स्थान रखती है।
समयावधि अनुसार मुख्य प्रथम स्वतंत्रता संग्राम घटनाक्रम
क्रम संख्या | काल | घटनाक्रम |
1. | 1801 | अवध में वेलेजली द्वारा सहायक संधि लागू की गई |
2. | 1856 | नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाया गया, अवध का अधिग्रहण |
3. | 1856-57 | अंग्रेजों द्वारा अवध में एकमुश्त लगान बंदोबस्त लागू |
4. | 10 मई 1857 | मेरठ में “सैनिक विद्रोह” |
5. | 11-12 मई | दिल्ली रक्षकसेना में विद्रोह: बहादुर शाह सांकेतिक नेतृत्व स्वीकार करते हैं |
6. | 20-27 मई | अलीगढ़, इटावा, मैनपुरी, एटा में सिपाही विद्रोह |
7. | 30 मई | लखनऊ में विद्रोह |
8. | मई-जून | सैनिक विद्रोह एक व्यापक जन विद्रोह में बदल जाता है |
9. | 30 जून | चिनहाट के युद्ध में अंग्रेजों की हार होती है |
10. | 25 सितंबर | हेवलॉक और ऑट्रम के नेतृत्व में अंग्रेजों की टुकड़ियाँ लखनऊ रेजीडेंसी में दाखिल होती हैं |
11. | जून 1858 | युद्ध में रानी झाँसी की मृत्यु |
12. | जुलाई | युद्ध में शाह मल की मृत्यु |
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