इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 9वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक यानी ”समकालीन भारत-1” (भूगोल)” के अध्याय- 2 “भारत का भौतिक स्वरूप” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 2 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 9 Geography Chapter- 2 Notes In Hindi
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अध्याय-2 “भारत का भौतिक स्वरूप“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | नौवीं (9वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | समकालीन भारत-1” (भूगोल) |
अध्याय नंबर | दो (2) |
अध्याय का नाम | “भारत का भौतिक स्वरूप” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 9वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- समकालीन भारत-1” (भूगोल)
अध्याय- 2 “भारत का भौतिक स्वरूप”
भारत में हर प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं, जिसमें पहाड़, मैदान, पर्वत, मरुस्थल आदि शामिल हैं। यहाँ की भूमि पर भौतिक भिन्नताएं मिलतीं हैं। प्रायद्वीपीय पठार पृथ्वी की प्राचीन सतह है। यह भूमि का स्थिर भाग माना जाता है। भारत में स्थित हिमालय और उत्तर के मैदानों का निर्माण हाल ही के सालों में हुआ।
भारतीय भौगोलिक आकृतियों का वितरण
हिमालय पर्वत
- ये भारत के उत्तर में स्थित एक वलित पर्वत शृंखला है, इसका फैलाव पश्चिम-पूर्व दिशा से ब्रह्यपुत्र की ओर है। ये विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है। इसका फैलाव 2400 किलोमीटर तक है।
- यह कश्मीर में 400 किलोमीटर और अरुणाचल प्रदेश में 150 किलोमीटर चौड़ा है। उत्तर में स्थित हिमालय की शृंखला को आंतरिक हिमालय या हिमाद्रि कहा जाता है।
- इन हिमालयों के क्रोड का निर्माण ग्रेनाइड से होता है। इनकी सतह बर्फ से ढकी रहती है, और यहाँ से कई हिमानियों का प्रवाह होता है।
- हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित शृंखला को हिमाचल या निम्न हिमालय के नाम से जाना जाता है। इनकी ऊंचाई 3700 से 4500 हो सकती है। इन शृंखलाओं में महत्वपूर्ण हैं- पीर पंजाल, धोलाधर और महाभारत शृंखला।
- शिवालिक, हिमालय की सबसे बाहरी शृंखला है- इनकी ऊंचाई 900 से 1100 मीटर तक है। नदियों द्वारा लाए गए असंपीड़ित अवसादों से इनका निर्माण होता है।
- ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय को सबसे पूर्वी सीमा प्रदान करती है। इसके बाद दिहांग गार्ज के बाद दक्षिण की ओर तीखा मोड़ बनाता है और भारत की पूर्वी सीमा में फैलता है।
- इन्हें पूर्वी पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है, इसमें नागा और मिजो आदि पहाड़ियाँ भी आती हैं।
उत्तरी मैदान
- इन मैदानों का निर्माण सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के साथ-साथ इनकी सहायक नदियों से मिलकर बना है। यहाँ जलोढ़ मृदा है, जो इन्हें उपजाऊ मैदान बनती है।
- करीब 7 लाख वर्ग किलोमीटर में इनका फैलाव है। यहाँ पानी की उपलब्धता, उपयुक्त मृदा और अनुकूल जलवायु की उपलब्धता है, जो इसे कृषि योग्य बनाती है।
- ये नदियां द्वीपों का भी निर्माण करती हैं। इनके निचले भाग में गाद भर जाने के कारण ये कई भागों में विभाजित हो जाती हैं, इन्हें वितरीकाएं कहा जाता है।
- उत्तरी मैदान का पश्चिमी भाग पंजाब मैदान कहलाता है। इसका काफी सारा भाग पाकिस्तान में स्थित है। सिंधु की प्रमुख सहायक नदियां हिमालय से ही नकलती हैं।
- गंगा के मैदान उत्तर भारत में दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि के भागों तक फैले हैं। इनका विस्तार घग्घर और तिस्ता नदी के बीच है। ब्रह्मपुत्र के मैदान असम में स्थित हैं।
- उत्तरी मैदानों का विभाजन आकृतिक भिन्नता के आधार पर 4 भागों में किया जाता है,
- ‘भाबर’ जब शिवालिक शृंखलाओं से नीचे गिरते हुए 8 से 16 किलोमीटर चौड़ी गाद जमा कर देती है, इसे भाबर कहा जाता है।
- इसी भाबर से जब नदियां बाहर निकली हैं, तो यहाँ का क्षेत्र दलदलीय या नम हो जाता है, जिसे तराई कहा जाता है।
- ‘खादर’ बाढ़ के मैदानों में नए और पुराने निक्षेपों को खादर कहा जाता है।
प्रायद्वीपीय पठार
- ये मेज जैसी आकृति के होते हैं, इनका निर्माण पुराने क्रिस्टलीय, रूपांतरित शैलों और आग्नेय से होता है।
- इसके दो मुख्य भाग हैं- ‘मध्य उच्च भूमि’ और ‘दक्कन का पठार’।
- मध्य उच्च भूमि प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग है जो नर्मदा नदी के उत्तर में मालवा पठार के कई भागों में फैला है।
- विंध्य श्रृंखला दक्षिण में सतपुड़ा श्रृंखला तथा उत्तर-पश्चिम में अरावली से घिरी है।
- यह पश्चिम में जाकर राजस्थान के बुलई और पथरीले मरुस्थल में मिल जाती है।
- पूर्व में इस पठार के विस्तार को बुंदेलखंड या बघेलखंड के नाम से जाना जाता है।
- दक्षिण का पठार त्रिभुजाकार है, और नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है। इसके उत्तर में सतपुड़ा रेंज और पूर्व में कैमूर की पहाड़ी और मैकाल शृंखला स्थित है। इसके पश्चिम से पूर्व की तरफ गारो, खासी और जयंतिया हैं।
- पश्चिमी घाट की ऊंचाई 900 से 1600 मीटर और पूर्वी घाट की 600 मीटर है। पश्चिमी घाटों में पर्वतीय वर्षा होती है। इनकी ऊंचाई उत्तर से दक्षिण की तरफ बढ़ती है। अनाई मुड़ी (2,695 मी.), डोडा बेटा (2633 मी.) आदि। पूर्वी घाट का सबसे ऊंचा शिखर है महेंद्रगिरी (1,500 मी.)।
- प्रायद्वीपीय पठारों में पाई जाने वाली काली मृदा को ‘दक्कन ट्रैप’ के नाम से भी जाना जाता है।
भारतीय मरुस्थल
- थार मरुस्थल– यह अरावली पहाड़ियों के पश्चिम में स्थित है, यहाँ 150 मि. मी. से भी कम बारिश होती है। यहाँ की सबसे बड़ी नदी ‘लूनी’ है।
तटीय मैदान
- तटीय पट्टियों का विस्तार अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक है। पश्चिम तटों, घाटों और अरब सागर के बीच तीन मैदान हैं- कोंकण मैदान (मुंबई और गोवा), कन्नड मैदान (मध्य भाग), मालाबार तट (दक्षिण भाग)।
- बंगाल की खाड़ी में यह मैदान चौड़े हैं। इसका दक्षिणी भाग कोरोमंडल नाम से जाना जाता है। इस तट पर डेल्टा का निर्माण महानदी, कृष्ण और गोदावरी द्वारा किया जाता है।
द्वीप समूह
- केरल के मालाबार तट के पास लक्षद्वीप समूह की स्थिति पाई जाती है। इसका नाम 1973 में लक्षद्वीप रखा गया।
- इसका क्षेत्रफल 32 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण की ओर फैला है। इन समूहों का फैलाव बड़े स्तर पर है।
- इन्हें दो भागों में बांटा गया है- उत्तर में अंडमान और दक्षिण में निकोबार। यहाँ पाए जाने वाले जीवों में काफी विविधता पाई जाती है।
- यहाँ विषुवतीय जलवायु पाई जाती है, और जंगल भी घने हैं।
भारत की यह भू-आकृति भिन्नताओं के साथ-साथ भारत को प्राकृतिक संसाधनों का धनी भी बना रही है। पर्वत, जल और वनों के लिए उपयोगी हैं, मैदान अन्न भंडार के लिए, पठार खनिजों के भंडार का स्त्रोत हैं। इनसे यह पता चलता है कि देश के भविष्य के विकास के लिए इन भू-आकृतियों की कितनी अहम भूमिका है।
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