इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 9वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी ”भारत और समकालीन विश्व-1” के अध्याय- 3 “नात्सीवाद और हिटलर का उदय” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 3 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 9 History Chapter-3 Notes In Hindi
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अध्याय-3 “नात्सीवाद और हिटलर का उदय“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | नौवीं (9वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | भारत और समकालीन विश्व-1 (इतिहास) |
अध्याय नंबर | तीन (3) |
अध्याय का नाम | “नात्सीवाद और हिटलर का उदय” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 9वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- भारत और समकालीन विश्व-1 (इतिहास)
अध्याय-3 “नात्सीवाद और हिटलर का उदय”
वाईमर गणराज्य का जन्म
- पहले विश्वयुद्ध में जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के खिलाफ युद्ध किया, 20वीं शताब्दी में जर्मनी एक ताकतवर साम्राज्य था। लेकिन प्रथम विश्व युद्ध इतना देर चलेगा यह किसी को नहीं पता था, जिसके कारण यूरोप के देशों को आर्थिक संकट झेलना पड़ा।
- वर्ष 1918 में जर्मनी को अमेरिका के सामने हार माननी पड़ी। इसके बाद जर्मनी के सम्राट ने पद त्याग दिया, जिसने यहाँ नई राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने का मौका दिया।
- वाईमार में एक संविधान सभा की बैठक बुलाई गई और लोकतान्त्रिक संविधान पारित किया गया। जर्मनी की हार के बाद देशों ने यहाँ कई प्रतिबंध लगा दिए थे।
- वर्साय में हुई संधि के परिणाम स्वरूप, जर्मनी को अपने सारे उपनिवेशवाद, 10% आबादी, 13% भूभाग, 26% कोयले का भंडार मित्र राष्ट्रों को देने पड़े।
- जर्मनी की सेना भंग कर दी गई, युद्ध में हुई तबाही का पूर्ण जिम्मेदार जर्मनी को ठहराया गया, और जुर्माना भी लगाया गया।
- जर्मनी के नागरिकों ने इस अपमान का जिम्मेदार वाईमर गणराज्य को ही ठहराया।
युद्ध के बाद स्थिति
- सम्पूर्ण यूरोप युद्ध के बाद कर्जदार हो गया था। इस नुकसान की आपूर्ति वाईमर गणराज्य से की जाने लगी। इस गणराज्य को नवंबर का अपराधी कहकर बुलाया जा रहा था।
- पहले विश्वयुद्ध के बाद सैनिकों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा। राजनेताओं ने पुरुषों के शौर्य और शक्तियों का महिमामंडन किया।
- यह वह समय था जब लोकतंत्र के विचार को अपनाना बेहद कठिन था। वाईमर गणराज्य की स्थापना के साथ ही रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई और जर्मनी में स्पार्टकिस्ट लीग की क्रांति हुई।
- सोवियत की तरह ही बर्लिन में भी मजदूर आंदोलन कर रहे थे जिसमें लोकतंत्र की स्थापना की मांग की गई। इस आंदोलन को खत्म कर दिया गया, और इसके बाद जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी की नींव डली।
- पहले विश्वयुद्ध में हारने के बाद जर्मनी ने कर्ज की रकम देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद यहाँ के कोयले के भंडार वाले इलाके, रूर पर कब्जा कर लिया, और बड़ी मात्रा में जर्मनी ने मार्क (जर्मनी मुद्रा) छापना शुरू कर दिया, जिससे एक अमेरिकी डॉलर 24,000 मार्क के बराबर था। यह धीरे-धीरे बढ़ने ही लगा, इस स्थिति को अति मुद्रास्फीति का नाम दिया गया।
- अमेरिका ने जर्मनी को इस स्थिति से निकालने के लिए डोव्स योजना बनाई।
जर्मनी में मंदी
- वर्ष 1924-28 जर्मनी की स्थिति सामान्य रही, वर्ष 1929 में शेयर बाजार बंद होते ही जर्मनी को मदद मिलना बंद हो गया। लोगों ने अपने पैसे बाजार से निकालने शुरू कर दिए।
- इस समय में अमेरिकी अर्थव्यवस्था खराब हो रही थी, जिसका सबसे ज्यादा असर जर्मनी पर पड़ा। यहाँ का उत्पादन बेहद कम हो गया, लोगों की आय कम हो गई या वे बेरोजगार हो गए।
- कारोबार बंद हो गए जिससे छोटे व्यवसाय, स्वरोजगार में लगे लोग और व्यापारियों को भारी नुकसान हो गया। इससे इन लोगों में मजदूर हो जाने या बेरोजगार हो जाने का डर हो गया। कृषि उत्पादों में गिरावट आई।
- राजनीतिक तौर पर भी यह गणराज्य नाजुक स्थिति में था। देश में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला, सरकार बार-बार राष्ट्रपति शासन लागू कर रही थी। लोगों का विश्वास लोकतान्त्रिक शासन से उठ रहा था।
हिटलर के शासन का उदय
- देश की यह हालत हिटलर के सत्ता में आने का बड़ा कारण रही। 1889 में हिटलर का जन्म हुआ, युवावस्था गरीबी में बीती, जिसके बाद रोजगार की तलाश में फौज में भर्ती हुआ।
- धीरे-धीरे सैना में कॉर्प्रोरल के पद को संभाला, प्रथम विश्वयुद्ध के बाद हुए जर्मनी की घटनाओं ने उसे आहत किया।
- 1919 में उसने एक पार्टी की सदस्यता ली, इसपर कब्जा कर इसका नाम नेशनल सोशलिस्ट पार्टी रखा, जिसे नात्सी पार्टी कहा गया।
- 1923 में हिटलर की कुछ गैर-कानूनी प्रयासों के चलते गिरफ्तार किया गया। बाद में वह रिहा हुआ, शुरुआत में उसकी पार्टी जनता का आकर्षण नहीं जीत सकी।
- हिटलर ने नात्सी के जरिए लोगों को नए भविष्य की उम्मीद दी। 1932 तक यह देश की बड़ी पार्टी बनी। हिटलर के भाषण में जोश, और जर्मनी के अपमान का बदला लेने का भाव होता था, जो जनता में भी जोश भरता था।
- आकर्षक प्रदर्शन के माध्यम से लोगों में आकर्षण और एकता का भाव पैदा होता। देश की जनता हिटलर को मसीहे के रूप में देखने लगी।
लोकतंत्र का नाश
- वर्ष 1933 में हिटलर को चांसलर का पद संभालने को कहा गया। इस पद पर आते ही हिटलर ने लोकतंत्र का नाश करना शुरू कर दिया, फरवरी 1933 में नागरिकों के कई अधिकार छीन लिए गए।
- कम्युनिस्टों पर भी निशाना साधा, और इन्हें कैंपों में बंद किया। कुल 52 किस्म के लोगों को निशाना बनाया गया।
- 3 मार्च 1933 को जर्मनी में तानाशाही स्थापित हुई। केवल अब नात्सी के जुड़े संगठन ही अस्तित्व में थे। संस्थाओं पर अब सीधे राज्य का अधिकार था।
- नई संस्थाओं का गठन किया गया और इसे अब खूंखार राज्य के रूप में देखा जाने लगा। पुलिस बलों और प्रशासन को निरंकुश शक्तियां प्रदान कर दी गईं थी।
पुनर्निर्माण
- देश की अर्थव्यवस्था की जिम्मेदारी ह्यालमार शाख्त को दी गई। विदेशी नीति में भी हिटलर को सफलता प्राप्त हुई। 1936 में राइनलैंड पर दुबारा कब्जा कर लिया और एक जन, एक साम्राज्य, एक नेता नीति के चलते ऑस्ट्रिया को जर्मनी में मिला लिया।
- पूरे चकोस्लोवकिया पर कब्जा कर लिया। हिटलर को इंग्लैंड का समर्थन प्राप्त था। शाख्त के हिटलर को आर्थिक सलाह देने के कारण उसे पद से हटा दिया गया।
- आर्थिक उपाय के रूप में उसने पोलैंड के साथ युद्ध किया, बाद में उसे फ्रांस और इंग्लैंड के साथ भी लड़ना पड़ा। अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिटलर की ताकत बहुत ज्यादा थी।
- हिटलर ने 1941 में सोवियत संघ पर भी हमला कर दिया, जिसमें उसे खासा नुकसान उठाना पड़ा, जर्मनी हार गया। यहाँ से पूर्वी यूरोप पर सोवियत संघ का राज स्थापित हो गया।
- अमेरिका ने खुद को दूसरे विश्वयुद्ध से दूर तो रखना चाहा, लेकिन जापान ने हिटलर को समर्थन देने के लिए अमेरिका पर बमबारी की, 1945 में अमेरिका ने जापान पर परमाणु हथियार का इस्तेमाल किया, और इसमें हिटलर की भी पराजय हुई।
नात्सियों का नजरिया
- नात्सी विचारधारा हिटलर के नजरिए का ही प्रतिबिंब थी, इसमें समाज में सभी को समान अधिकार नहीं दिए जाते थे। इसमें यहूदियों को नीची जाति का और ब्लॉन्ड यानी नीली आँखों वालों को ऊँची जाति का माना जाता था। हिटलर की सोच चार्ल्स डार्विन और हर्बर्ट स्पेन्सर जैसे विचारकों से मेल खाती थी।
- हर्बर्ट स्पेन्सर के अनुसार- सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट का सिद्धांत दिया गया, और इन्होंने सबसे मजबूत नस्ल के जिंदा रहने की बात कही है।
- हिटलर अपने मातृ देश का क्षेत्रफल बढ़ाना चाहता था, जिससे जर्मनी और भी अधिक शक्तिशाली देश बन सकता था।
नात्सी राज्यों की स्थापना
- जर्मन में आते ही इन्होंने अवांछित माने जाने वाली नस्लों को खत्म करना शुरू कर दिया। शुद्ध और स्वस्थ नार्डिक आर्यों के समाज को ही वांछित माना जाता था।
- यहूदियों के साथ-साथ हर उस व्यक्ति को मार दिया गया, जो इस समाज का हिस्सा बनने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं थे।
- जिप्सियों एवं अश्वेतों की नागरिकता छीन ली, और इंसानी बर्ताव के लायक नहीं माना गया। यहूदियों को समाज से अलग रहना होता था, इन बस्तियों को घेटो कहा गया। हिटलर ने यहूदियों की समस्या का यही हल निकाला, की इन्हें मार दिया जाए।
नात्सी कल्पनालोक का निर्माण
- पौलैंड के हिस्सों को खाली कराकर, वहां यूरोप में रहने वाले जर्मन नागरिकों को बसाया गया। यहाँ के बुद्धिजीवियों को मार दिया गया। सरकार के पास मौजूद गैस चेम्बरों में बड़े स्तर पर यहूदियों को मार दिया गया।
युवाओं की स्थिति
- नात्सी समाज को लेकर युवाओं और बच्चों को शिक्षा दी गई, स्कूलों में शुद्धिकरण की मुहीम चलाई गई।
- बच्चों को यहूदियों से नफरत करना और हिटलर की पूजा करना सिखाया गया। बच्चों को 10 साल की उम्र में यूंगफोक (नात्सी युवा संगठन) को सौंप दिया जाता था, और 14 वर्ष के बाद हिटलर-यूथ संगठन की सदस्यता अनिवार्य कर दी गई थी।
माताओं के लिए नात्सी विचार
- नात्सी विचार के आधार पर महिलाओं का पुरुषों के समान अधिकारों की मांग करना गलत था। उनके अनुसार महिलाओं को आर्य नस्ल को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए।
नात्सी विचारों का प्रचार
- नात्सियों ने अपने बोलने के तरीकों को सबसे भिन्न रखा, उन्होंने मौत या हत्या शब्द न इस्तेमाल करके, आखिरी समाधान और विशेष व्यवहार शब्द का इस्तेमाल किया।
- नात्सी विचारों को फैलाने के लिए आकर्षक नारों, पोस्टरों, रेडियो, फिल्मों आदि का इस्तेमाल किया जाता था। इन विचारों ने लोगों के दिलों में यहूदियों के प्रति नफरत को और भी भड़का दिया।
आम जनता की प्रतिक्रिया
- नात्सीवाद का विचार लोगों पर बेहद गहरे तक प्रभाव डाल रहा था, लोग अपने आस-पास रह रहे यहूदियों से नफरत करने लगे, उनके घरों के बाहर निशान बना दिए गए, शक होने पर पुलिस को सूचना पहुँचा दी जाती थी।
- जर्मनी में पूर्ण आबादी नात्सी नहीं थी, इसलिए कुछ लोगों ने इसका जमकर विरोध भी किया। लेकिन बड़ी आबादी इस विचारधारा का विरोध करने में असफल रही।
- इनका लगातार विरोध पादरी-मार्टिन निम्योलर ने किया, उन्होंने जर्मनी की जनता में इन अत्याचारों के प्रति दहशत पाई।
- इसके अलावा शार्लट बेरोट ने अपनी पुस्तक ‘थर्ड राइख ऑफ ड्रीम्स’ में उन्होंने बताया की, यहूदी भी बाद में नात्सियों की बातों और रूढ़ियों पर यकीन करने लगे थे।
होलोकोस्ट
- युद्ध खत्म होने और जर्मनी के हार जाने के बाद ही यहूदियों के साथ हुए अत्याचारों की जानकारी दुनिया के सामने आई। यहूदियों पर हुए कत्लेआम को होलोकोस्ट यानी महाध्वंस कहा गया।
- इस दमन के आखिरी पड़ाव पर लोग अपनी लिखी हुई डायरियाँ और लेख दुनिया तक पहुंचाना चाहते थे, ताकि सबको यहूदियों के साथ हुए अत्याचारों के विषय में पता चल सके।
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