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Class 9 History Ch-4 “वन्य समाज और उपनिवेशवाद” Notes In Hindi

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Navya Aggarwal
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 9वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी ”भारत और समकालीन विश्व-1” के अध्याय- 4 “वन्य समाज और उपनिवेशवाद” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 4 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 9 History Chapter-4 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय-4 “वन्य समाज और उपनिवेशवाद“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षानौवीं (9वीं)
विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ्यपुस्तकभारत और समकालीन विश्व-1 (इतिहास)
अध्याय नंबरचार (4)
अध्याय का नाम“वन्य समाज और उपनिवेशवाद”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 9वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- भारत और समकालीन विश्व-1 (इतिहास)
अध्याय- 4 “वन्य समाज और उपनिवेशवाद”

रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाले कई उपकरण प्रकृति की देन हैं, जो पेड़ों की भिन्न किस्मों और जानवरों से हमें प्राप्त होते हैं। पेड़ पौधों एवं जानवरों और पक्षियों में पाई जाने वाली प्रजातियों की भिन्नता औद्योगीकरण के दौर में कम होती जा रही हैं।

वनों के विनाश के कारण

  • भारत और विश्व के सभी भागों में वन-विनाश की समस्या आम है, यह औपनिवेशिक काल से चली आ रही है, 1700 से 1995 के वर्षों के दौरान करीब 139 लाख वर्ग किलोमीटर तक जंगलों की सफाई की जा चुकी है।
भारत में वन-विनाश के कारण

जमीन का इस्तेमाल

  • भारत में किसानों की जमीन का क्षेत्र पहले से विस्तृत हुआ है, जहां 1600 में भारत के भू-भाग के छठे हिस्से पर खेती होती थी, अब यह आधे हिस्से तक फैल चुकी है। औपनिवेशिक काल में भी खेती में काफी फैलाव आया है।
  • इस काल में अंग्रेजों ने यूरोप में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, बड़े पैमाने पर खेती के आदेश दिए, इसमें पटसन, गेहूं, कपास, गन्ना आदि व्यावसायिक फसलों के उत्पादन पर जोर दिया गया।
  • 19वीं सदी में खेती की जमीन प्राप्त करने के लिए पेड़ों की कटाई करवा दी गई। 1880 से 1920 के बीच खेती की जमीन में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी हुई।
  • 19वीं सदी में इंग्लैंड में ओक के जंगलों के लुप्त होने पर, भारत की वन-संपदा का अन्वेषण कर लकड़ी का भारी मात्रा में भारत से निर्यात किया गया।
  • औपनिवेशवादों के आवागमन के लिए रेल लाइनों का विस्तार भी आवश्यक था, जिसके लिए 1850 के दशक में लकड़ियों की नई मांग पैदा हुई, इनका इस्तेमाल पटरियों को जोड़े रखने के लिए किया गया।
  • भारत में 1890 तक करीब 25,500 किलोमीटर लंबी लाइनें बिछाई जा चुकी थीं, और यह संख्या बढ़ ही रही थी। 1850 में हर साल 35,000 पेड़ काटे गए।

बागान

  • यूरोप में चाय, कॉफी की आपूर्ति करने के लिए भी प्राकृतिक वनों को साफ कर दिया गया, ये वन यूरोप के बागान मालिकों को सस्ते में दिए गए और बड़ी मात्रा में चाय और कॉफी का उत्पादन किया गया।

वनों के संरक्षण की शुरुआत

  • अंग्रेजों को इस बात की चिंता भी सताने लगी की आम नागरिकों द्वारा वनों की अंधाधुंध कटाई से जंगल नष्ट हो जाएंगे, जिसके लिए उन्होंने देश के पहले वन महानिदेशक, डायट्रिच ब्रैन्डीस नाम के जर्मन विशेषज्ञ को भारत बुलाया।
  • ब्रैन्डीस ने लोगों को प्रशिक्षण देना शुरू किया, जिसके लिए कानून बनाए गए, कुछ पाबंदियाँ तय की गईं। 1906 में देहरादून में इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना की, इसमें वैज्ञानिक वानिकी की शिक्षा दी जाती थी, लेकिन इस पद्धति में पेड़ों की कटाई के लिए ही पेड़ों को लगाया जा रहा था।
  • 1865 में वन अधिनियम लागू हुआ, 1878 में पहला संशोधन हुआ हुआ, जिसमें वनों को आरक्षित, सुरक्षित और ग्रामीण वर्गों में बांटा गया।

लोगों के जीवन पर प्रभाव

  • ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की लकड़ियों और ईंधन संबंधी जरूरतें भिन्न थीं और वन-विभाग को जहाजों के निर्माण आदि के लिए इमारती लकड़ियों की आवश्यकता, जिसके लिए साल और सोगान लकड़ियों को प्रोत्साहित किया गया, बाकी को काट दिया गया।
  • वन अधिनियम ने ग्रामीण जनता की समस्या को बढ़ाया। सख्त नियमों के चलते लोग जंगलों से लकड़ियाँ चुराने लगे।

खेती पर प्रभाव

  • झूम और घुमंतू खेती पर उपनिवेशवाद का असर सबसे ज्यादा हुआ, इसमें खेतों के कुछ हिस्सों को जलाया जाता है, और राख में पहली बारिश के बाद बीज बोए जाते हैं, इसके बाद फसल के हो जाने के बाद इस जमीन को कई वर्षों तक छोड़ दिया जाता है, ताकि वापस जंगल पनप जाए।
  • यूरोप के वन रक्षकों ने इस पद्धति से निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की पैदावार न हो पाने का अंदेशा जताया, और कई समस्याओं को बताकर इस प्रकार की खेती पर रोक लगा दी, जिससे कई लोगों की आय के साधन छिन गए।

शिकार की आजादी

  • पारंपरिक शिकार की प्रथा अब गैर-कानूनी बन गई थी। लेकिन औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों के बाघों और अन्य जानवरों का शिकार करना जारी रखा, यह नवाबी और शाही शौक समझा जाता था।
  • यह चलन इतना बढ़ गया कि कुछ नस्लों के पूरी तरह लुप्त होने की नौबत आ गई। 1875 से 1925 के दौरान देश में 80,000 से ज्यादा बाघ, 2,00,000 भेड़िये, और 1,50,000 तेंदुए मार दिए गए।

रोजगार के नए अवसर

  • इन परिस्थितियों ने नागरिकों के सामने नए रास्तों को खोल दिया। भारत में मध्यकाल में आदिवासियों ने बंजारा समूहों ने हाथियों के सींग, खाल, हाथी दांत आदि का व्यापार किया, अंग्रेजों के आने के बाद वन संरक्षण के नाम पर वनों पर पूर्ण कब्जा कर लिया गया।
  • इसके बाद चरवाहे और घुमंतू समुदाय अपनी जीविका खो बैठे, जिन्हें सरकार की फैक्ट्रियों में मजदूरी करनी पड़ी।
  • जिन मजदूरों को नए काम के लिए लेकर जाया गया, उनके लिए वापस आना मुश्किल हो गया।

वन-विद्रोह

  • भारत के साथ, विश्व में सभी वन्य समुदायों ने अपने साथ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। 1910 में बस्तर में वन-विद्रोह हुआ।
  • यहाँ अनेकों आदिवासियों की बसावट है, उनके अनुसार धरती माँ ने सभी गांवों को जमीन प्रदान की है, इसके साथ-साथ इन्हें नदी, पहाड़ आदि के संरक्षण का जिम्मा भी है।
  • 1905 में औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों द्वारा रखे गए प्रस्तावों के कारण ये समुदाय परेशान थे, इन्हें वनों से दूर कर दिया गया, और लगान की मांग भी की जाने लगी। इसके साथ ही 1899-1900 और 1907 से 08 में अकाल आया और वन-संरक्षण के नियमों ने समुदायों में आग को भड़का दिया।
  • धुरवा समुदाय के लोग इस आंदोलन में सबसे आगे थे। इन समुदायों ने अवसरों के घरों में लुटपाट, स्कूलों और पुलिस थानों में लुटपाट कर उन्हें जलाया, साथ ही अनाज का पुनर्वितरण किया। इसका जवाब अंग्रेजी सैनिकों ने दिया।
  • आदिवासियों को इसका फायदा भी हुआ, आरक्षण के काम को कुछ समय के लिए रोक दिया गया।
  • आज के समय में लोगों को जंगलों से दूर रखने और औद्योगिक कार्यों से जंगलों को आरक्षित रखा जाता है।

इंडोनेशिया के जंगलों में बदलाव

  • भारत और इंडोनेशिया के वन-कानून में कई समानताएं रहीं, यहाँ डच का उपनिवेशवाद था। वहां के शासक भी जहाजों के निर्माण के लिए जावा (इंडोनेशिया वनाच्छादित महाद्वीप) के जंगलों से लकड़ियाँ प्राप्त करना चाहते थे। यहाँ डच ने वन प्रबंधन की शुरुआत की।

जावा के आदिवासी

  • यहाँ कलांग समुदाय के लोग और घुमंतू किसान थे। 1770 में डच ने कलांग समुदाय ने डच पर हमला करना चाहा, लेकिन उनकी आवाज को दबा दिया गया।

डच में वैज्ञानिक वानिकी

  • डच शासकों ने नागरिकों के साथ-साथ क्षेत्रों पर भी नियंत्रण करना शुरू किया और निर्माण आदि कार्यों के लिए उपयोग में आने वाली लकड़ियों को कुछ जंगलों से लेने की ही इजाजत थी।
  • जावा से 1882 में करीब 2,80,000 स्लीपरों का निर्यात किया गया। जब स्लीपर तैयार करने के लिए मजदूरों की आवश्यकता हुई, तब डचों ने जंगलों की खेती वाली जमीन पर लगान लगाकर कुछ मजदूरों को इससे छूट दे दी और मुफ़्त में पेड़ काटने का काम करवाया।

गाँव वासियों की चुनौती

  • 1890 में ही सागौन के जंगलों के निवासी सुरोंतिकों सामिन ने जंगलों पर जताए जा रहे इस हक का विरोध किया। इनका मानना था कि क्योंकि यह सब प्राकृतिक है, इसलिए इन पर राज्य का एकाधिकार नहीं होना चाहिए।
  • इस स्थिति ने आंदोलन का रूप ले लिया, 1907 तक 3000 परिवारों ने उनकी इस बात का समर्थन किया।
  • डचों के आने पर सामिन की बात को मानने वाले अपनी जमीनों पर लेटकर उनका विरोध करते थे।

युद्धों का प्रभाव

  • भारत और विश्व के अन्य देशों पर प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध का गहरा असर हुआ, सभी योजनाओं को बंद किया गया और अंग्रेजों ने अपनी जरूरतों के लिए पेड़ काटना शुरू कर दिया।
  • इंडोनेशिया पर जापान के कब्जे से पहले डचों ने ”भस्म कर भागो नीति अपनाई”, जिसमें कई मशीनों को जला दिया गया, ताकी वे जापानियों के हाथ न लग पाए।
  • भारत की ही तरह यहाँ भी जमीनों पर नागरिकों के पुनः कब्जे में कठिनाइयां आईं।

वानिकी के नियमों में बदलाव

  • एशिया और अफ्रीका की सरकारों ने वानिकी के नियमों में बदलाव किए, जिसमें लकड़ियाँ प्राप्त करने से ज्यादा आवश्यक जंगलों के संरक्षण को माना गया।
  • मणिपुर से लेकर केरल तक के जंगलों को इसलिए भी बचाया गया, क्योंकि यहाँ के नागरिकों ने इनकी रक्षा बगीचा समझ कर की है। इनमें कई गावों ने जंगलों की रक्षा स्वयं ही की।
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