इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “लोकतांत्रिक राजनीति-2” के अध्याय- 1 “सत्ता की साझेदारी” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 1 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 10 Political Science Chapter-1 Notes In Hindi
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अध्याय-1 “सत्ता की साझेदारी“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | दसवीं (10वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | लोकतांत्रिक राजनीति-2 (राजनीति विज्ञान) |
अध्याय नंबर | एक (1) |
अध्याय का नाम | “सत्ता की साझेदारी” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- लोकतांत्रिक राजनीति-2 (राजनीति विज्ञान)
अध्याय- 1 “सत्ता की साझेदारी”
लोकतांत्रिक सत्ता का परिचय
- लोकतांत्रिक सत्ता का संबंध प्रजातंत्र से है। प्रजातंत्र में सत्ता में बैठा शासक प्रजा द्वारा चुना जाता है।
- लोकतांत्रिक सत्ता में संपूर्ण ताकत किसी एक वर्ग तक समिति नहीं होती।
- विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका लोकतंत्र के कार्यों के लिए जरूरी केंद्र माने जाते हैं।
- विभिन्न लोकतांत्रिक शासन पद्धतियाँ सत्ता के बँटवारे की माँग को अनेक तरह से निपटा सकती हैं।
- लोकतंत्र में सत्ता का बँटवारा करना शासन व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है।
बेल्जियम और श्रीलंका की सरकार
- क्षेत्रफल की दृष्टि से बेल्जियम हरियाणा से भी छोटा एक देश है।
- इस देश की जनसंख्या हरियाणा की जनसंख्या से आधी है।
- बेल्जियम देश में समाज के अंतर्गत जातीय बुनावट अधिक जटिल है।
- यहाँ के विभिन्न इलाकों में डच, फ्रेंच और जर्मन जैसी भाषाएँ बोली जाती हैं।
- अल्पसंख्यक फ्रेंच भाषी लोगों के विकास को देखकर डच भाषी लोग उनसे नाराज रहने लगे।
- 1950 तथा 1960 के दशक में फ्रेंच और डच भाषी समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया।
- श्रीलंका एक द्वीपीय देश है और इसकी आबादी हरियाणा राज्य के बराबर है।
- श्रीलंका में भी अनेक जातीय समुदाय के लोग रहते हैं। यहाँ कुल जनसंख्या में 74% सिंहलियों और 18% तमिलों की आबादी है।
- तमिलों को दो वर्गों में बाँटा गया है-
- श्रीलंकाई मूल के तमिल
- हिंदुस्तानी तमिल
- ज्यादातर सिंहली-भाषी लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं।
- तमिल-भाषी लोगों में से कुछ लोग हिंदू धर्म और कुछ लोग मुस्लिम धर्म को मानते हैं।
- श्रीलंका में 7% ईसाई लोग रहते हैं।
- भाषाई क्षेत्र के आधार पर बड़ी संख्या वाले लोगों ने कम संख्या वाले लोगों पर अपनी इच्छाओं को थोपना शुरू कर दिया।
स्वतंत्र श्रीलंका में बहुसंख्यकवाद
- वर्ष 1948 में श्रीलंका एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
- सिंहली समुदाय के नेता अपनी अधिक संख्या के बल पर शासन व्यवस्था पर अधिकार जमाना चाहते थे।
- सरकार ने सिंहली समुदाय के प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए बहुसंख्यक-परस्ती के अंतर्गत बहुत से बदलाव किए।
- वर्ष 1956 में लागू किए कानून के तहत सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित कर दिया गया।
- नयी कानून व्यवस्था के अंतर्गत बौद्ध धर्म को सुरक्षा प्रदान की गई।
- सभी नए बदलावों ने श्रीलंकाई तमिल लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी को बढ़ावा दिया।
- तमिलों ने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर शिक्षा, भाषा, रोजगार इत्यादि क्षेत्रों में समान अवसरों की माँग करनी शुरू कर दी।
- तमिलों की स्वायत्तता से जुड़ी माँगों को बार-बार सरकार द्वारा नकार दिया गया।
- 1980 के दशक में उत्तर-पूर्वी श्रीलंका में स्वतंत्र तमिल की माँग की जाने लगी।
- दो समुदाय के बीच उत्पन्न हुए टकराव ने गृहयुद्ध का रूप ले लिया। इस युद्ध में दोनों पक्षों के हजारों लोग मारे गए।
- गृहयुद्ध के कारण बहुत से परिवारों को शरणार्थी बनना पड़ा। शिक्षा, व्यापार, विकास, स्वास्थ्य जैसे हर क्षेत्र में काफी नुकसान का सामना करना पड़ा।
- यह युद्ध वर्ष 2009 में समाप्त हो गया।
बेल्जियम में नेताओं की समझदारी
- बेल्जियम सरकार ने क्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक विविधताओं को स्वीकार किया।
- वर्ष 1970 और 1993 के बीच सरकार ने देश के लोगों के लिए अपने संविधान में चार संशोधन किए थे।
- बेल्जियम के नए संवैधानिक मॉडल की मुख्य चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- केंद्रीय सरकार में डच और फ्रेंच-भाषी मंत्रियों की संख्या समान रहेगी और प्रत्येक फैसला दोनों पक्षों के बहुमत से होगा।
- राज्य सरकारें केंद्र सरकार के अधीन नहीं रहेंगी।
- अगर किसी क्षेत्र विशेष में अलग सरकार बनती है, तो उसमें दोनों समुदायों का समान प्रतिनिधित्व होगा। ब्रूसेल्स में ऐसी ही सरकार है।
- केंद्र तथा राज्य सरकारों के अलावा सामुदायिक सरकार को भी संस्कृति, शिक्षा और भाषा से जुड़े विवादों में फैसला करने का अधिकार है।
- बेल्जियम का मॉडल जटिल होने के बाद भी काफी सफल रहा। यही कारण है कि इस देश को गृहयुद्ध का सामना नहीं करना पड़ा।
- ब्रूसेल्स को यूरोपीय संघ का मुख्यालय बनाया गया।
सत्ता की साझेदारी क्यों आवश्यक है?
- सभी समुदायों और क्षेत्रों को एक समान आदर देने से ही देश में एकता बनी रह सकती है।
- अगर कोई बहुसंख्यक वर्ग दूसरे समुदाय पर अपनी इच्छा थोपने की कोशिश करता है, तो देश की एकता संकट में पड़ सकती है।
- बहुसंख्यकों का आतंक कभी-कभी उन्हीं के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
- सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र की आत्मा मानी जाती है क्योंकि इसमें सभी समूह शासन व्यवस्था से जुड़े होते हैं।
- भारतीय संदर्भ में सत्ता की हिस्सेदारी के युक्तिपरक और नैतिक कारण बताए गए हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है-
- युक्तिपरक कारण- सत्ता का बँटवारा होना बहुत जरूरी है। सत्ता की हिस्सेदारी में जब हर किसी को भाग लेने का मौका मिलता है, तो ऐसे में विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच संघर्ष का भय कम हो जाता है।
- नैतिक कारण- लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम नागरिक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत देश में सभी नागरिकों को पूरा हक है कि वह सरकार की नीतियों और निर्णयों पर खुलकर बोल सकें। इससे सरकार को भी नागरिकों की कुछ योजनाओं पर पुनर्विचार करने का मौका मिल जाता है।
- अगर सत्ता की शक्तियों का उपयोग कोई एक समुदाय करता है, तो ऐसा करने से समाज में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।
सत्ता की साझेदारी के विभिन्न स्वरूप
- सत्ता की साझेदारी का विचार तभी आया जब राजनीतिक शक्तियों का बँटवारा करना संभव नहीं था।
- लोकतंत्र को जनता की राजनीतिक शक्तियों का स्त्रोत माना जाता है।
- लोकतंत्र को कायम रखने में सत्ता की साझेदारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- एक अच्छे लोकतांत्रिक देश में समाज के विभिन्न वर्गों और उनके विचारों को एक समान सम्मान दिया जाता है।
- वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता की साझेदारी के निम्नलिखित रूप हैं-
- प्रशासनिक शक्तियों का बँटवारा विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच किया जाता है और कार्यपालिका संसद के अधीन कार्य करती है।
- विभिन्न स्तरों पर सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा किया जा सकता है, जैसे कि पूरे देश के लिए एक सरकार और प्रांतीय स्तरों पर अलग-अलग सरकारें बनाना।
- सत्ता का बँटवारा कई सामाजिक समूहों के बीच किया जा सकता है। बेल्जियम की सामुदायिक सरकार इस व्यवस्था का उदाहरण है।
- विभिन्न प्रकार के दबाव-समूह और आंदोलनों का प्रभाव भी सत्ता के बँटवारे को नियंत्रित करता है।
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