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Class 10 Geography Ch-1 “संसाधन एवं विकास” Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक यानी “समकालीन भारत-2” के अध्याय- 1 “संसाधन एवं विकास” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 1 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 10 Geography Chapter-1 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय-1 “संसाधन एवं विकास“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षादसवीं (10वीं)
विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ्यपुस्तकसमकालीन भारत-2 (भूगोल)
अध्याय नंबरएक (1)
अध्याय का नाम“संसाधन एवं विकास”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक-समकालीन भारत-2 (भूगोल)
अध्याय- 1 “संसाधन एवं विकास”

संसाधन किसे कहते हैं?

  • पर्यावरण में उपबद्ध हर एक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती है, वे सभी संसाधन हैं।
  • मनुष्य दैनिक जीवन में प्रकृति, प्रौद्योगिकी और संस्थाओं द्वारा निर्मित संसाधनों का उपयोग करता है।
  • मनुष्य प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्राकृतिक पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित करके उसका प्रयोग आर्थिक विकास के लिए करता है।
  • संसाधन मानवीय क्रियाओं का आधार माना जाता है और मनुष्य भी संसाधन का मुख्य भाग है।

संसाधन के प्रकार

विभिन्न आधारों के अनुसार संसाधन के प्रकार निम्नलिखित हैं-

उत्पत्ति के आधार पर संसाधन के प्रकार

  • जैव संसाधन- जीवमंडल से प्राप्त होने वाले संसाधनों को जैव संसाधन कहते हैं। मनुष्य, मत्स्य, वनस्पतियाँ, जीवन, पशुधन इत्यादि इस संसाधन के मुख्य उदाहरण हैं।
  • अजैव संसाधन- निर्जीव वस्तुओं से बने संसाधन अजैव संसाधन कहलाते हैं। चट्टान और धातुएँ इस संसाधन के मुख्य उदाहरण हैं।

समाप्यता के आधार पर संसाधन के प्रकार

  • नवीकरणीय संसाधन- भौतिक, रासायनिक व यांत्रिक प्रकियाओं द्वारा निर्मित संसाधन नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, वन, जानवर आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
  • अनवीकरणीय संसाधन- इन संसासधनों को भू-वैज्ञानिकों द्वारा लंबे समय में बनाया जाता है और ऐसे संसाधनों का प्रयोग सिर्फ एक बार किया जाता है।

स्वामित्व के आधार पर संसाधन के प्रकार

  • व्यक्तिगत संसाधन- ये संसाधन निजी स्वामित्व के अंतर्गत आते हैं। इन संसाधनों को एकाधिकार वाले संसाधन भी कह सकते हैं।
  • सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन- इन संसाधनों का उपयोग सभी समुदायों के लोगों द्वारा किया जाता है। उदाहरण के लिए खेल का मैदान।
  • राष्ट्रीय संसाधन- देश में पाए जाने वाले सभी तकनीकी संसाधन इसके अंगतर्गत आते हैं। महासागरीय क्षेत्र में पाए जाने वाले संसाधन राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय संसाधन- जिन संसाधनों का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के बिना नहीं किया जाता, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संसाधन कहा जाता है।

विकास-स्तर के आधार पर संसाधन के प्रकार

  • संभावी संसाधन- किसी विशेष प्रदेश में उपस्थित होने के बाद भी इन संसाधनों का उपयोग नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए राजस्थान एवं गुजरात में विद्यमान पवन एवं सौर ऊर्जा।
  • विकसित संसाधन- ऐसे संसाधनों का विकास प्रौद्योगिकी तथा उनके संभावना स्तर पर निर्भर करता है।
  • भंडार- श्रेष्ठ तकनीकी ज्ञान न होने के कारण पर्यावरण में उपलब्ध जिन संसाधनों का उपयोग संभन नहीं हो पाता लेकिन वे पदार्थ मनुष्य की आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकते हैं, भंडार के अंतर्गत आते हैं।
  • संचित कोष- इसके अंतर्गत आने वाले संसाधन भंडार का ही हिस्सा होते हैं परंतु इन्हें उपस्थित तकनीकी सहायता से उपयोग में लाया जा सकता है। इस संसाधनों का उपयोग अभी बहुत कम या बिल्कुल नहीं किया जाता है लेकिन भविष्य में इन संसाधनों का लोगों द्वारा बड़ी संख्या में प्रयोग करने की संभावना अधिक है।

संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएँ

संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  • कुछ व्यक्तियों ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए संसाधनों को अधिक हानी पहुँचाई है।
  • संसाधन के आधार पर समाज में दो वर्ग बन गये हैं, एक संसाधन संपन्न वर्ग और दूसरा संसाधनहीन वर्ग।
  • भूमंडलीय ताप का बढ़ना और ओजोन परत का लगातार ह्रास संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग का परिणाम है।
  • संसाधनों का लापरवाही से अत्यधिक प्रयोग करने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है साथ ही भूमि का अपरदन भी हो रहा है।

संसाधनों का विकास और उससे जुड़ी योजनाएँ

  • मानव विकास और विश्व में शांति बनाए रखने के लिए संसाधनों का बँटवारा समाज में सभी वर्गों के बीच बराबर होना चाहिए।
  • संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग पर रोक लगाना आवश्यक है।
  • सतत् पोषणीय विकास के माध्यम से भविष्य में उपयोग के लिए संसाधनों को बचाया जा सकता है।
  • जून 1992 में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय रियो डी जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरो शहर में हुआ था।
  • ब्राजील में हुए पृथ्वी सम्मेलन का उद्देश्य सतत् पोषणीय विकास तक पहुँच बनाना था।

संसाधन नियोजन की अनिवार्यता एवं भारत में संसाधन नियोजन

  • संसाधनों का उचित मात्रा में इस्तेमाल करने के लिए नियोजन का होना आवश्यक है।
  • झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ इत्यादि राज्यों में कोयले जैसे संसाधन की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है।
  • अरुणाचल प्रदेश में जल संसाधन की मात्रा सबसे अधिक है लेकिन यहाँ विकास का वास्तविक स्तर कम है।
  • इस तरह भारत में किसी राज्य में संसाधनों की कमी है, तो किसी राज्य में संसाधनों की अधिकता है।
  • राज्य से लेकर राष्ट्र ही नहीं बल्कि प्रत्येक स्तर पर संतुलन स्थापित करने के लिए संसाधन नियोजन की आवश्यकता है।
  • भारत में संसधान नियोजन के लिए निम्नलिखित सोपान हैं-
    1. विभिन्न प्रदेशों में उपलब्ध संसाधनों की सूची तैयार करना।
    2. संसाधन विकास के लिए प्रौद्योगिकी, कौशल एवं संस्थागत नियोजित योजनाओं को लागू करना।
    3. संसाधन तथा राष्ट्रीय विकास योजनाओं के बीच तालमेल बैठाना।
  • भारत में संसाधन विकास की कोशिश प्रथम पंचवर्षीय योजना से शुरू की गई थी।
  • प्रत्येक क्षेत्र का विकास वहाँ की संसाधन उपलब्धता की मात्रा पर भी निर्भर करता है।
  • अगर संसाधनों का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से नहीं किया गया तो और भी गंभीर सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरण संबंधित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • मनुष्य को संसाधनों का उपयोग पेट भरने के लिए करना चाहिए न कि पेटी भरने के लिए। ऐसा करके ही सीमित संसाधनों को संरक्षित किया जा सकता है।

भू-संसाधनों के उपयोग

निम्न भूमि का उपयोग संसाधनों के रूप में किया जाता है-

  • वन का उपयोग।
  • कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि।
  • जो बोए गए क्षेत्र में शामिल नहीं है या जिस भूमि पर पाँच सालों से कृषि न की गई हो उस भूमि का उपयोग।
  • परती या बंजर भूमि का उपयोग।
  • शुद्ध बोए गए क्षेत्र का उपयोग।

भारत में भूमि उपयोग की रूपरेखा

  • भूमि उपयोग की रूपरेखा को निर्धारित करने वाले तत्त्वों में लगभग सभी भौतिक कारकों को सम्मिलित किया जाता है।
  • भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी. है लेकिन 93% हिस्सा ही भू-उपयोग में लाया जाता है।
  • स्थायी चरागाह भूमि में भी कमी आई है। ऐसी भूमि का उपयोग नव-निर्माण के लिए किया जा रहा है।
  • पंजाब एवं हरियाणा में 80% भूमि का उपयोग खेती के लिए किया जाता है पर अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर जैसे क्षेत्रों में 10% से भी कम भूमि पर खेती होती है।
  • भारत में राष्ट्र वन नीति 1952 के तहत निर्धारित वनों में से 33% भौगोलिक क्षेत्र वांछित है।
  • भू-उपयोग को निम्न दो हिस्से में बाँटा गया है-
    • बंजर भूमि
    • गैर-कृषि प्रयोजन में लगाई गई भूमि

भूमि का निम्नीकरण एवं उसके संरक्षण के उपाय

  • संरक्षण व प्रबंधन को नकारते हुए लगातार भू-उपयोग करने की वजह से समाज और पर्यावरण को भयंकर आपदा का सामना करना पड़ सकता है।
  • भूमि ऐसा संसाधन है जिसका उपयोग पूर्वजों द्वारा बहुत पुराने समय से किया जा रहा है।
  • मनुष्य अपनी मूल आवश्यकताओं को भूमि के 95% भाग से पूर्ण करता है।
  • देश में लहभग 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत का हिस्सा है।
  • खनन के कारण बहुत से राज्यों में भूमि का निम्नीकरण हुआ है।
  • अति सिंचाई और औद्योगिक क्रियाओं द्वारा चुना पत्थर की परत का भूमि पर जमना, भूमि की गुणवत्ता को कम करते हैं।
  • उद्योग से निकलने वाला गंदा पानी जल के साथ भूमि प्रदूषण का भी प्रमुख कारण है।
भूमि संरक्षण के उपाय
  • वनारोपन एवं चरागाहों का सही तरीके से इस्तेमाल करके भूमि निम्नीकरण को कम किया जा सकता है।
  • वृक्षा रोपण एवं उनका संरक्षण।
  • पशुचारण नियंत्रण।
  • भूमि कटाव को रेतीली झाड़ियाँ लगाकर कम किया जा सकता है।
  • खनन और उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी पर रोकथाम लगाना या उसका उचित प्रबंधन करना।
  • पुनः चक्रण को अपनाना।

मृदा संसाधन क्या है?

  • मिट्टी सबसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है।
  • मिट्टी वनस्पतियों और विभिन्न प्रकार के जीवों के विकास व पोषण का आधार है।
  • गहरी मृदा बनने में लाखों साल का समय लग जाता है।
  • मृदा बनने में विभिन्न कारकों तथा क्रियाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
  • मिट्टी जैव एवं अजैव दो प्रकार के पदार्थों से बनती है।

भारत में मृदा के प्रकार

भारत में रंग, उच्चवाच, भू-आकृति, जलवायु और वनस्पतियों के आधार पर मुख्य छः प्रकार की मृदा (मिट्टी) पाई जाती है, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है-

1. जलोढ़ मृदा

  • पूरा उत्तरी मैदान जलोढ़ मृदा से बना है। यह मृदा सबसे अधिक उपजाऊ होती है।
  • आयु के आधार पर इस मृदा के दो प्रकार हैं-
    1. बांगर मृदा
    2. खादर मृदा

2. काली मृदा

  • इस मिट्टी का रंग काला होता है। इस मिट्टी को ‘रेगर’ या ‘काली कपास मृदा’ भी कहा जाता है।
  • इस मृदा में नमी अवशोषित करने की क्षमता सबसे अधिक होती है, इसलिए इन्हें जोतने में कठिनाइयाँ आती हैं।

3. लाल और पीली मृदा

  • लाल और पीली मृदा ओडिशा, छत्तीसगढ़, गंगा के मैदानी इलाके इत्यादि में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी का पीला रंग जलयोजन की वजह से होता है।

4. लेटराइट मृदा

  • यह मिट्टी भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। यह मिट्टी गहरी व अम्लीय होती है।
  • इस मिट्टी का पीएच (pH) <6.0 होता है। लेटराइट मृदा काजू की फसल के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

5. मरुस्थलीय मृदा

  • इस मृदा का रंग लाल एवं भूरा होता है और यह रेतीली व लवणीय होती है।
  • यह मृदा मुख्य रूप से राजस्थान में पाई जाती है। इस मिट्टी को विभिन्न क्रियाओं द्वारा खेती योग्य बनाया जा सकता है।

6. वन मृदा

  • इस तरह की मृदा पहाड़ी एवं पर्वतीय सीमाओं में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी में अधिसिलिक व ह्यूमस नहीं होती है इसलिए वन मृदाएँ उपजाऊ होती हैं।

मृदा का अपरदन (ह्रास) एवं उसका संरक्षण

  • लगातार मृदा कटाव व बहाव का होना मृदा अपरदन कहलाता है।
  • ऐसी भूमि को हल या मशीन से जोता नहीं जा सकता है।
  • इस तरह की भूमि को उत्खनन भूमि भी कहते हैं।
  • जब जल विस्तृत क्षेत्र में तेज बहाव के कारण ऊपरी मिट्टी जल के साथ घुलकर बह जाती है, तो यह चादर अपरदन कहलाती है।
  • पवन के कारण मृदा का ह्रास पवन अपरदन कहलाता है।
  • खेती के लिए गलत कृषि क्रियाओं को अपनाने से भी मृदा का अपरदन बढ़ता है।
मृदा अपरदन को कम करने के उपाय
  • समोच्च जुताई का तरीका अपनाकर जल के बहाव को कम किया जा सकता है।
  • सोपान बनाकर मिट्टी के कटाव को कम किया जा सकता है।
  • फसलों के बीच घास की पट्टियाँ उगाकर। कई स्थानों पर इस तरह की खेती को पट्टी कृषि भी कहते हैं।
  • हवा की तेज गति को कम करने के लिए पेड़ों को कतारों में लगाया जा सकता है।
  • भूमि में बंध बनाना और खेत (मिट्टी) को खाली न छोड़ना इत्यादि।
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