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Class 10 History Ch-2 “भारत में राष्ट्रवाद” Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी “भारत और समकालीन विश्व-2” के अध्याय- 2 “भारत में राष्ट्रवाद” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 2 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 10 History Chapter-2 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय-2 “भारत में राष्ट्रवाद

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षादसवीं (10वीं)
विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ्यपुस्तकभारत और समकालीन विश्व-2 (इतिहास)
अध्याय नंबरदो (2)
अध्याय का नाम“भारत में राष्ट्रवाद”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- भारत और समकालीन विश्व-2 (इतिहास)
अध्याय- 2 “भारत में राष्ट्रवाद”

1919 के बाद के राष्ट्रीय आंदोलन

  • 1919 के बाद आंदोलन नए सामाजिक समूहों के साथ विभिन्न इलाकों तक फैल गया।
  • उस समय विश्वयुद्ध के कारण एक नयी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
  • युद्ध के खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज लिया गया, वेतन पर कर लगा दिया गया और सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया।
  • 1913 से 1918 के बीच किमतें बढ़ गईं, जिसके कारण आम लोगों की मुश्किलें भी बढ़ गईं।
  • जबरदस्ती लोगों की भर्ती सेना में की गई, जिसके कारण गाँव के लोगों के अंदर गुस्सा भर गया।
  • उस दौरान फ्लू ने महामारी का रूप धारण कर लिया था। इस महामारी में लगभग 130 लाख लोग मारे गए थे।
  • लोगों को लग रहा था युद्ध के बाद उनकी सारी मुसीबतें खत्म हो जाएंगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
  • लोगों के सामने संघर्ष का एक नया रूप उभरने लगा।

नस्लभेदी सरकार और सत्याग्रह का विचार

  • जनवरी 1915 को महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे।
  • अफ्रीका में गाँधी जी ने सत्याग्रह के आधार पर नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था।
  • सत्याग्रह का मतलब सत्य के लिए बिना हिंसा किए अन्याय के खिलाफ उत्पीड़क से मुकाबला करना है।
  • सत्याग्रह को सिर्फ अहिंसा के सहारे सफल बनाया जाता है।
  • गाँधी जी का मानना था कि अहिंसा का मार्ग सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।
  • 1917 में गाँधी जी ने बिहार के चंपारन में बगानों में काम करने वाले किसानों को दमनकारी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
  • वर्ष 1917 में गुजरात के खेड़ा जिले में लगान को कम करने के लिए सत्याग्रह को शुरू किया गया।
  • वर्ष 1918 में गाँधी जी ने अहमदाबाद में सूत कपड़ा कारखानों के मजदूरों का नेतृत्व सत्याग्रह आंदोलन के लिए किया।

रॉलट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन

  • 1919 में गाँधी जी ने रॉलट एक्ट के खिलाफ राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन चलाने का फैसला लिया।
  • राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन को 6 अप्रैल को एक हड़ताल के रूप में शुरू करने के लिए शहरों में रैली-जुलूसों का आयोजन किया गया।
  • उस दौरान सभी मजदूर हड़ताल का हिस्सा बन गए।
  • भय के कारण अंग्रेजों ने राष्ट्रवादियों का दमन करना शुरू कर दिया।
  • 10 अप्रैल को पुलिस ने अमृतसर में शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चलाई थी।
  • आक्रोश में आकर लोगों ने सरकारी दफ्तरों पर हमला करना शुरू कर दिया। इस आक्रोश को शांत करने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया गया।
  • जलियाँवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल को हुआ था।
  • जनरल डायर के निर्देश पर सैनिकों ने निर्दोष भीड़ पर अँधाधुंध गोलियाँ चला दीं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इस घटना को जलियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
  • हत्याकांड की खबर सुनकर बहुत से शहरों के लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने लगे।
  • अंग्रेजी सरकार लोगों पर तरह-तरह के अत्याचर करने लगी। सरकार का ऐसा हिंसक रूप देखकर गाँधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया।
  • खिलाफत आंदोलन को महात्मा गाँधी बड़ी सख्या के साथ शुरू करना चाहते थे। हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ाने के लिए वे इस आंदोलन में दोनों की समान भागीदारी चाहते थे।
  • अभी रॉलट एक्ट सत्याग्रह आंदोलन सिर्फ शहरों एवं कस्बों तक सीमित था।
  • 1919 में खिलाफत समिति का गठन किया गया था।
  • 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग आंदोलन शुरू करने के लिए गाँधी जी ने दूसरे नेताओं को भी मना लिया था।

आंदोलन के रूप में असहयोग का विचार

  • हिंद स्वराज में गाँधी जी द्वारा कहा गया है कि भारत में ब्रिटिश शासन व्यवस्था भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुई थी।
  • स्वराज स्थापित करने के लिए लोगों को अपना सहयोग वापिस लेना पड़ा था।
  • गाँधी जी ने आंदोलन को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने के लिए सभी सरकारी पदों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का सुझाव दिया।
  • 1920 में गाँधी जी और शौकत अली ने समर्थन जुटाने के लिए देश भर में यात्राएँ की थीं।
  • वर्ष 1920 में हुए नागपुर अधिवेशन में एक समझौते के तहत असहयोग कार्यक्रम को स्वीकृति मिल गई।

आंदोलन के भीतर विभिन्न धाराएँ

शहरों में असहयोग आंदोलन
  • असहयोग-खिलाफत आंदोलन जनवरी 1921 में शुरू हुआ था।
  • मध्यवर्ग के सहयोग के साथ आंदोलन को शुरू किया गया।
  • विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज जाना छोड़ दिया, हेडमास्टरों-अध्यापकों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया।
  • मद्रास के अलावा सभी क्षेत्रों में चुनावों को बंद करवा दिया गया।
  • विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर दिया गया और शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई।
  • विदेशी कपड़ों को जला दिया गया।
  • विदेशी कपड़ों का आयात आधा हो गया और उसकी कीमत 102 करोड़ से घटकर 57 करोड़ हो गई।
  • शहरों में आंदोलन के कमजोर पड़ने का कारण खादी कपड़े का मिलों में बनने वाले कपड़े के मुकाबले अधिक महँगा होना था।
  • शहरों में वकीलों ने अपनी वकालत शुरू कर दी और शिक्षक, विद्यार्थी भी स्कूल-कॉलेजों में पहुँचने लगे।
ग्रामीण क्षेत्रों में असहयोग आंदोलन
  • असहयोग आंदोलन गाँवों में फैल गया। आदिवासी और किसान भी इस आंदोलन का हिस्सा बन गए।
  • फ्रांस में गिरमिटिया मजदूर के तौर पर काम करने वाले बाबा रामचंद्र भारतीय किसानों का नेतृत्व कर रहे थे।
  • किसानों को उस समय बिना किसी पारिश्रमिक के काम करना पड़ता था।
  • किसान लगान की दरों को कम करवाना चाहते थे और बेगार के साथ-साथ सभी दमनकारी प्रक्रियाओं की समाप्ति चाहते थे।
  • अक्टूबर 1920 तक नेहरू, बाबा रामचंद्र और कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व में किसान सभा का गठन किया गया।
  • वर्ष 1921 में तालुकदारों व व्यापारियों के मकानों पर हमले होने लगे, बाजारों में लुटपाट होने लगी और अनाज के गोदामों पर कब्जा कर लिया गया।
  • आदिवासी किसानों ने आंदोलन का कुछ अलग ही मतलब निकाला।
  • 1920 के दशक में आंध्र प्रदेश की पहाड़ियों में गुरिल्ला आंदोलन फैल गया।
  • अंग्रेजी सरकार ने जंगलों में जाने पर पाबंदी लगा दी, जिससे आदिवासियों का क्रोध बढ़ गया।
  • आदिवासियों की रोजी-रोटी छिन ली गई, उनके परंपरागत अधिकार छिन लिए गए और उन्हें बेगार करने के लिए मजबूर किया गया।
  • आदिवासी लोगों ने सरकार के खिलाफ बगावत करना शुरू कर दिया, जिसका नेतृत्व अल्लूरी सीताराम ने किया।
  • विद्रोही असहयोग आंदोलन से प्रेरित होने वाले राजू को ईश्वर का अवतार मानते थे।
  • राजू का मानना था कि देश सिर्फ बलप्रयोग के आधार पर ही स्वतंत्र हो सकता है।
  • अपने लोगों के बीच लोक नायक बनने वाले राजू को वर्ष 1924 में फाँसी दे दी गई।
स्वराज की अवधारणा के बारे में बागान मजदूरों की समझ
  • 1859 के इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट के अनुसार बगानों में कार्य करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत के कहीं भी आने-जाने की आजादी नहीं थी।
  • असम के बागान मजदूरों के लिए आजादी का मतलब आवाजाही पर लगाए गए पाबंदियों से मुक्ति और अपने गाँवों से संपर्क रखने से था।
  • मजदूर भी असहयोग आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए अपने घर जाने लगे लेकिन उन्हें रेलवे स्टेशन पर पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी पिटाई की।
  • कुछ लोगों के लिए स्वराज का मतलब सारे कष्ट और सारी मुसीबतों के खत्म होने से था।
  • आदिवासियों ने गाँधी जी को अपना समर्थक मानते हुए ‘स्वतंत्र भारत’ का नारा लगाया।

पूर्ण स्वराज के दौरान स्थिति

  • कांग्रेस के नेता लगातार जनसंघर्षों को देखकर थक चुके थे।
  • कांग्रेस प्रांतीय परिषदों के चुनाव में हिस्सा लेना चाहती थी।
  • जो कृषि उत्पादों की कीमतें 1926 से गिरने लगी थीं वो 1930 के बाद पूरी तरह से धराशाही हो गईं।
  • वर्ष 1930 में गाँवों में उथल-पुथल मच गई।
  • वर्ष 1928 में साइमन कमीशन का स्वागत ‘साइमन कमीशन गो बैक’ के नारे से किया गया।
  • वायसराय लॉर्ड इरविन ने 1929 में इस विरोध को खत्म करने के लिए ‘डोमीनियन स्टेटस’ का ऐलान किया था।
  • दिसंबर 1929 में नेहरू जी की अध्यक्षता में ‘पूर्ण स्वराज’ की माँग को औपचारिक रूप से स्वीकृति मिल गई।
  • 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया।

नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन

  • गाँधी जी ने 31 जनवरी 1930 को वायसराय को एक खत लिखा था, जिसमें उन्होंने मुख्य 11 माँगों का जिक्र किया था।
  • 11 माँगों में सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को समाप्त करने की थी।
  • नमक पर कर और उसके उत्पादन पर सरकारी अधिकार ब्रिटिश शासन का सबसे दमनकारी पहलू था।
  • जब सरकार ने माँगे पूरी नहीं की तब गाँधी जी ने 78 समर्थकों के साथ अपने आश्रम साबरमती से नमक यात्रा शुरू कर दी।
  • नमक यात्रा गुजरात के दांडी में 6 अप्रैल को पहुँचने के बाद समाप्त हुई। वहाँ समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा गया।
  • नमक कानून के टूटने के बाद से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआ मानी जाती है।
  • लोग दमनकारी कानूनों का उल्लंघन करने लगे। जंगलों में रहने वाले लोग आरक्षित वनों में आने-जाने लगे।
  • जनता के बदलते स्वरूप को देखते हुए अंग्रेजी सरकार कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारियाँ करने लगी।
  • अंग्रेजी सरकार द्वारा सत्याग्रहियों पर हमले किए गए, महिलाओं व बच्चों के साथ मार-पीट की गई और लगभग एक लाख लोगों को जेल में डाला गया।
  • गाँधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया और 5 मार्च 1931 को गाँधी-इरविन समझौते के जरिए लंदन में होने वाले गोलमेज सम्मेलन का हिस्सा बन गए। इसके बदले में कैदियों को छोड़ने की मंजूरी दी गई।
  • वार्ता टूटने के कारण गाँधी जी को लंदन से वापस लौटना पड़ा। उस समय गफ्फार खान और जवाहरलाल नेहरू को जेल में बंद कर दिया गया था।
  • उस समय कांग्रेस को ब्रिटिश सरकार ने गैर-कानूनी घोषित कर दिया था।
  • महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से शुरू कर दिया लेकिन 1934 तक यह आंदोलन कमजोर पड़ने लगा।

लोगों की दृष्टि में सविनय अवज्ञा आंदोलन

  • गुजरार के पटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट किसानों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी।
  • किसानों के लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई थी।
  • जब 1931 में लगान कम हुए बिना आंदोलन को वापस ले लिया गया तब किसानों ने गहरी निराशा के कारण 1932 में दोबारा से आंदोलन का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया।
  • अधिकतर व्यवसायी स्वराज को औपनिवेशिक पाबंदियों से मुक्त समझते थे।
  • गोलमेज सम्मेलन के असफल होने के कारण व्यवसायिक संगठनों का उत्साह मंद पड़ने लगा था।
  • नागपुर के औद्योगिक श्रमिकों ने बड़ी संख्या में इस आंदोलन में हिस्सा लिया था।
  • वर्ष 1930 में रेलवे कामगारों और वर्ष 1932 में गोदी कामगारों की हड़ताल हुई थी।
  • नागपुर के टीन खानों में काम करने वाले मजदूरों ने भी अभियानों और रैलियों में गाँधी समर्थक बनकर हिस्सा लिया था।
  • नमक सत्याग्रह के समय बहुत सी औरतें सड़कों पर चलने वाली रैलियों में शामिल हुई थीं।
  • शहरों में ऊँची जातियों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में संपन्न किसान परिवारों की महिलाओं ने आंदोलन में हिस्सा लिया।
  • अभी तक औरतों की स्थिति में कोई बड़ा और सकारात्मक बदलाव नहीं आया था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की कमियाँ

  • अछूतों का समूह स्वराज की अमूर्त अवधारणा से प्रभावित नहीं था।
  • रूढ़िवादियों के डर के कारण कांग्रेस ने अछूतों पर ध्यान नहीं दिया था, जिसके कारण वे खुद को 1930 के बाद दलित (उत्पीड़ित) समझने लगे थे।
  • गाँधी जी ने अछूतो को हरिजन यानी ईश्वर की संतान कहकर संबोधित किया।
  • दलितों ने विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण के लिए माँग करनी शुरू कर दी।
  • उपरोक्त वजहों से ही उस समय सविनय अवज्ञा आंदोलन में दलितों की भागीदारी बहुत कम थी।
  • दलित समूह के लोगों का मानना था कि सामाजिक अपंगता को सिर्फ राजनीतिक सशक्तिकरण से ही समाप्त किया जा सकता है।
  • वर्ष 1930 में दलित वर्ग एसोसिएशन का गठन किया गया।
  • जब अंबेडकर द्वारा पेश की गई दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की माँग अंग्रेजी सरकार ने मान ली तब गाँधी जी आमरण अनशन पर बैठ गए।
  • अंबेकर, गाँधी जी के पक्ष में हो गए और वर्ष 1932 में पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर कर दिया।
  • जब हिंदू-मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे होने गले तब दोनों धर्मों के बीच फासला बढ़ने लगा।
  • कांग्रेस और मुस्लिम लीग गठबंध बनाने का प्रयास करने लगी।
  • मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमानों को केंद्रीय सभा में आरक्षित सीटें दिलाना चाहते थे।
  • अल्पसंख्यों को भय था कि बहुसंख्यकों के वर्चस्व की वजह से उनकी संस्कृति तथा पहचान विलुप्त हो जाएगी।

देश में सामूहिक अपनेपन का भाव

  • जब किसी देश के लोग यह महसूस करने लगें कि वो एक ही राष्ट्र के अंग हैं तभी राष्ट्रवाद की भावना का जन्म होता है।
  • भारत में अपनेपन की भावना संयुक्त संघर्षों के कारण उत्पन्न हुई थी।
  • उस समय इतिहास, साहित्य और कला इत्यादि ने भी राष्ट्रवाद की भावना को तीव्र करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • 20वीं सदी में भारत को माता की छवि के रूप में चित्रित किया जाने लगा।
  • 1870 के दशक में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा मातृभूमि की स्तुति के लिए ‘वंदे मातरम्’ गीत की रचना की गई थी।
  • ‘वंदे मातरम्’ गीत बंगाल में स्वदेशी आंदोलन के दौरान लोगों द्वारा खूब गाया गया।
  • 19वीं सदी में राष्ट्रवादियों ने लोक कथाओं और लोक गीतों को सुरक्षित करना शुरू कर दिया।
  • राष्ट्रवादियों का मानना था कि लोक कथाएँ उस परंपरागत संस्कृति के सही रूप को पेश करती हैं, जिसे बाहरी ताकतों द्वारा भ्रष्ट एवं दूषित किया जा चुका है।
  • राष्ट्रवादी परंपरा को पुनर्जीवित करने वाले आंदोलनों का नेतृत्व करने लगे।
  • बंगाल में स्वदेशी आंदोलन के समय राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा हरा, पीला और लाल रंग का एक झंडा तैयार किया गया।
  • गाँधी जी द्वारा 1921 में स्वराज का तिरंगा झंडा तैयार किया गया था। इसका रंग सफेद, हरा और लाल था।
  • झंडे के बीच में बना चरखा स्वावलंबन का प्रतीक था।
  • इतिहास की दोबारा से व्याख्या करना, राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाला एक साधन था।
  • हिंदुओं के अतीत और हिंदू प्रतीकों का सहारा राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ाने के लिए लिया जा रहा था।
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