Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

Class 11 History Ch-3 “यायावर साम्राज्य” Notes In Hindi

Photo of author
Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी विश्व इतिहास के कुछ विषय के अध्याय- 3 “यायावर साम्राज्य” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 3 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 11 History Chapter-3 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 3 “यायावर साम्राज्य“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाग्यारहवीं (11वीं)
विषयइतिहास
पाठ्यपुस्तकविश्व इतिहास के कुछ विषय
अध्याय नंबरतीन (3)
अध्याय का नाम“यायावर साम्राज्य”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 11वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- विश्व इतिहास के कुछ विषय
अध्याय- 3 “यायावर साम्राज्य”

यायावर साम्राज्य

  • यायावर लोग घुमक्कड़ होते थे।
  • यायावर साम्राज्य की शुरूआत 13वीं और 14वीं शताब्दी के बीच मध्य एशिया में चंगेज खान के नेतृत्व में हुई थी।
  • पारमहाद्वीपीय साम्राज्य की स्थापना भी चंगेज खान ने की थी जिसका विस्तार यूरोप और एशिया तक था।
  • यायावर लोग दीन-हीन व जटिल जीवन से अलग सामान्य सामाजिक और आर्थिक परिवेश में जीवन व्यतीत कर रहे थे।
  • यायावन साम्राज्य को स्थापित करने में मंगोल सफल तो हुए लेकिन उन्हें बहुत से समझौते करने पड़े थे।

यायावर साम्राज्य के मुख्य ऐतिहासिक स्त्रोत

  • यायावर साम्राज्य के इतिहास को जानने के लिए मुख्य स्त्रोत इतिवृत्त, यात्रा वृत्तांत और नगरीय साहित्यकारों के दस्तावेज हैं।
  • इन्होंने अपना कोई साहित्य नहीं रचा इसलिए इन स्त्रोतों पर पूर्णतः विश्वास नहीं किया जा सकता है। दरअसल ये स्त्रोत अज्ञात सूचनाओं व पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं।
  • मंगोल साम्राज्य की सफलताओं ने जिन विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया उनमें से कुछ ने अपनी यात्रावृतांत के रूप में सहानुभूतिपरक विवरण और प्रशस्तियाँ लिखी।
  • उस समय ज्यादातर विद्वानों ने मंगोलों की प्रशंसा में प्रशस्तियाँ लिखी थीं।

मंगोलों पर बहुमूल्य शोध कार्य

  • मंगोलों पर सबसे महत्वपूर्ण शोध कार्य 18वीं और 19वीं शताब्दी में रूसी विद्वानों द्वारा किया गया था।
  • शोध कार्य के दौरान जार शासक मध्य एशिया में अपनी शक्ति को सदृश करने की कोशिश कर रहे थे।
  • 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में सोवियत गणराज्य के बाद मार्क्सवादी इतिहास लेखन के माध्यम से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रचलित उत्पादन प्रणाली सामाजिक संबंधों का निर्धारण करती है।
  • वैसिली व्लैदिमिरोविच बारटोल्ड की रचनाएँ चंगेज खान के विकास के उभरते हुए रूप को प्रस्तुत करती है।
  • बारटोल्ड द्वारा सकारात्मक और सहानुभूतिपरक विवरण देने के कारण सेंसर बोर्ड ने अपने रोष को प्रकट करते हुए उनकी रचनाओं पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • 1960 के दशक के बाद बारटोल्ड की रचनाओं को ख्रुश्चेव युग में नौ खंडों में प्रकाशित किया गया।
  • इस साम्राज्य के विस्तार से संबंधित जानकारियाँ अनेक भाषाओं से प्राप्त होती हैं।
  • इंगोर दे रखेविल्ट्स की कृति ‘मंगोल का गोपनीय इतिहास’ और गरेहार्ड डोरफर की कृति ‘मंगोल एंड टरकिश टर्मिनोलॉजीज’ आदि जैसे ग्रंथों में कहीं-कहीं तकनीकी फारसी भाषा का प्रयोग यायावर साम्राज्य के इतिहास को जानने में कठिनाई उत्पन्न करता है।

मंगोल साम्राज्य की भूमिका

  • मंगोलों को चंगेज खान द्वारा संगठित किया गया था।
  • चंगेज खान के आदर्शों को रखते हुए उसके पोते मोन्के ने लुई नौवे को चेतावनी देते हुए कहा था कि “स्वर्ग में केवल एक शाश्वत आकाश है और पृथ्वी का केवल एक अधिपति, चंगेज खान..।”
  • मंगोलों ने अपने साम्राज्य का निर्माण करके दूसरे ‘विश्व-विजेता’ सिकंदर की उपलब्धियों को छोटा बना दिया।
  • दुनिया में सबसे विशाल मंगोल साम्राज्य के निर्माण में चंगेज खान की भूमिका अहम थी।

मंगोलों की सामाजिक पृष्ठभूमि

  • मंगोल विभिन्न जनसमुदायों का एक निकाय था।
  • कुछ मंगोल पशुपालन करते थे। ये लोग मुख्य रूप से भेड़, बकरी, ऊँट और घोड़ों का पालन करते थे।
  • पशुपालक समुदाय का उदय मध्य-एशिया की चारण भूमि के कारण हुआ था।
  • शिकारी-संग्राहक लोग पशुपालक कबीलों के उत्तर में साइबेरियाई वनों में रहते थे।
  • पशुपालकों की तुलना में अधिक गरीब होने के कारण शिकारी लोग जानवरों की खाल का व्यापार करके जीवन निर्वाह करते थे।
  • पशुपालकों और शिकारी संग्राहकों के लिए क्षेत्र अनुकूल नहीं था। इसी वजह से मंगोलों ने कृषि कार्य को नहीं अपनाया।
  • मंगोल लोग तंबुओं या जरों में रहते थे और जरूरत पड़ने पर अपने पशुओं के साथ निवास स्थान से दूर भी चले जाते थे।
  • ये लोग नृजातीय और भाषा की वजह से आपस में जुड़े हुए थे।
  • आगे चलकर आर्थिक संसाधनों में कमी होने के कारण समाज पितृपक्षीय वंशों में विभाजित हो गया।
  • जिन वंशों में अधिक संख्या में पशु और चारण भूमि होती थी उस वंश के लोग अधिक धनी माने जाते थे।
  • स्थानीय राजनीति में धनी वंशों का बोलबाला होता था।
  • भीषण शीत ऋतु, शिकार सामग्री या अन्न भंडार का समाप्त होना, चरागाहों की खोज में भटकना और मैदानी क्षेत्रों का सूख जाना इत्यादि प्राकृतिक आपदाओं की वजह से मंगोल लोगों को संघर्ष करना पड़ता था।
  • इस समाज के लोग कई बार पशुधन को प्राप्त करने के लिए लूटपाट करते थे। कई बार ये लोग कमजोर परिवारों पर भी आक्रमण करते थे।
  • मंगोलीय समाज के लोग अपनी रक्षा करने के लिए संपन्न लोगों का एक समूह का तैयार करते थे।

मंगोलों की राजनैतिक पृष्ठभूमि

  • यायावरी सामाजिक और राजनैतिक संघठन कृषि अर्थव्यवस्था से अधिक अलग थे।
  • संसाधनों की कमी के कारण यायावरी और मंगोलीय समाज को व्यापार तथा वस्तु-विनिमय के लिए अपने पड़ोसी देश चीन के पास जाना पड़ता था।
  • यायावर कबीले के लोग चीन से प्राप्त कृषि उत्पाद और लोहे के उपकरणों के बदले में घोड़े, फर व शिकार का विनिमय करते थे।
  • जब व्यापार में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी तब अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए सैनिक कार्यवाही को भी सम्मिलित कर लिया जाता था।
  • मंगोल कबीले के लोग चीन के साथ व्यापार करते समय कभी-कभी व्यापारिक संबंधों को त्यागकर लूटपाट करने लगते थे।
  • चीन के शासकों ने अपनी प्रजा को ध्यान में रखते हुए और यायावरी समूह के आक्रमण से बचने के लिए 8वीं शताब्दी में किलेबंदी करवा दी।
  • तीसरी शताब्दी ई. पू. से कीलेबंदियों का एकीकरण सामान्य रक्षात्मक ढाँचे के रूप में किया गया, जिसे आज ‘चीन की महान दीवार’ के नाम से जाना जाता है।

चंगेज खान का जीवन

  • महान मंगोल शासक चंगेज खान का जन्म 1162 ई. के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग ओनोन नदी के निकट हुआ था।
  • चंगेज खान के बचपन का नाम तेमुजिन था और उसके पिता येसूजेई कियात कबीले के मुखिया थे।
  • कियात कबीले का संबंध परिवार के एक समूह अर्थात् बोरजिगिद कुल से था।
  • उसके पिता की मृत्यु बहुत कम आयु में हो गई, जिसके बाद उसकी माता ओलुन-इके ने उसके सगे और सौतेले भाइयों का पालन-पोषण किया था।
  • चंगेज खान ने 1170 ई. में सबसे ज्यादा कठिनाइयों का सामना किया था। तेमुजिन का अपहरण कर उसे दास बना लिया और विवाह के बाद उसकी पत्नी बोरटे का भी अपहरण कर लिया गया।
  • 1180 और 1190 के दशकों में तेमुजिन ओंग खान का मित्र रहा और उसने अपनी मित्रता के बल पर जमूका को परास्त किया था।
  • 1206 ई. में जमूका एवं नेमन जैसी शक्तियों को पराजित करने के बाद चंगेज खान स्टेपी क्षेत्र की राजनीति में अधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरा।
  • प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरने के बाद खुश होकर कुरिलताई ने चंगेज खान को समुद्री खान या सार्वभौम शासक की उपाधि देकर मंगोलों का ‘महानायक’ घोषित कर दिया।
  • तेमुजिन ने 1206 ई. में उपाधि लेने से पहले मंगोलों की एक सशक्त एवं अनुशासित सैन्य-शक्ति का गठन किया था।
  • इसने 1209 ई. में सी-सिआ लोगों को हराया। 1213 ई. में चीन की महान दीवार पर आक्रमण किया उसके बाद 1215 ई. में पेकिंग नगर को लूट लिया।
  • मंगोलों ने 1218 ई. में करा खिता को पराजित किया था।
  • जब खवारज्म के सुल्तान मुहम्मद ने मंगोल दूतों का वध कर दिया तब चंगेज खान ने क्रोध में आकर खवारज्म के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया।
  • उसके क्रोध को देखकर अभियान में खड़े ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बल्ख, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हैरात जैसे नगरों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
  • उसकी सैनिक उपलब्धियाँ आज भी लोगों को चौका देती हैं।
  • मंगोलों और तुर्कों के घुड़सवारी कौशल ने उसकी सैना को मजबूती प्रदान की थी।
  • जीवन के अधिकांश भाग को युद्ध में बिताने वाले चंगेज खान की मृत्यु 1227 ई. में हो गई।

चंगेज खान के बाद मंगोल साम्राज्य

  • चंगेज खान की मृत्यु के बाद साम्राज्य की परिसीमाओं में स्थिरता आ गई।
  • 1960 के दशक के बाद अभियानों के शुरुआती आवेग को जारी रखना संभव नहीं हो पाया।
  • स्टेपी-क्षेत्र से पीछे हट जाने के बाद नवीन राजनीतिक प्रवृतियों के उदय होने के संकेत मिलने लगे।
  • मंगोल साम्राज्य में यायावर व स्थानीय समुदायों के संबंधों में सुधार होने लगा था।
  • 1950 ई. के दशक में ईरान शक्तिशाली बन चुका था।
  • पश्चिम में मंगोलों का विस्तार रुक गया और शासक-परिवार के सदस्यों के बीच आंतरिक विक्षोभ दिखाई देने लगे।
  • चीन का एकीकृत रूप सामने आया।
  • जिन कारकों की वजह से मंगोलों को महान राजनैतिक सफलताएँ प्राप्त हुईं, उन्हीं वजहों से उनकी प्रगति में बाधाएँ भी आईं।

चंगेज खान का सामाजिक, राजनैतिक और सैनिक संगठन

  • मंगोल और यायावर समाजों में वयस्क सदस्य हथियारबंध होते थे।
  • कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर हथियारबंध लोगों से ही सशस्त्र सेना बनती थी।
  • चंगेज खान योजनाबद्ध तरीके से अपने महासंघ के सदस्यों की पहचान मिटाने के लिए कृत-संकल्प था।
  • पहले कुल, कबीले, दशमलव इकाइयाँ एक साथ अस्तित्व में थी। चंगेज खान ने इसे समाप्त कर दिया।
  • नयी श्रेणी बनने के बाद इसने लोगों पर शासन करने का उत्तरदायित्व अपने चार पुत्रों को सौंप दिया।
  • इस शासक के पास पहले से ही फुर्तीली हरकारा पद्धति थी, जिसकी सहायता से दूर के राज्य के साथ संपर्क रखा जाता था।
  • उस समय हरकारा पद्धति संचार का मुख्य माध्यम था।
  • हरकारा पद्धति की व्यवस्था करने के लिए मंगोल अपने घोड़े एवं अन्य पशुओं का दसवाँ हिस्सा प्रदान करते थे, जिसे ‘कुबकुर कर’ कहा जाता था।
  • विजित लोगों को अपने नए यायावर शासकों से कोई लगाव नहीं था।
  • 13वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए युद्ध के कारण बहुत से नगर नष्ट हो गए, जिनमें से कुछ ऐसे भी थे जो कभी पुनः नहीं विकसित हो पाए।
  • मंगोल शासन में सामंजस्य स्थापित करने के लिए, संचार और यात्रियों के लिए सुलभ यात्रा के लिए पैजा जारी किए गए थे जिसे मंगोल में जेरेज कहा जाता था।
  • चंगेज खान द्वारा बनाई गई परिसंघ की राजनैतिक व्यवस्था अत्यधिक व्यापक एवं स्थायी थी, जोकि विशाल सेना का मुकाबला करने का सामर्थ्य रखती थी।

चंगेज खान एवं मंगोलों का विश्व इतिहास में स्थान

  • 13वीं सदी में चीन, यूरोप, ईरान सहित पूर्वी यूरोप में मंगोलों को भय और घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा।
  • साम्राज्य का प्रभुत्व समाप्त होने के बाद भी चंगेज खान मंगोल लोगों के लिए सबसे महान शासक बना रहा।
  • उस शासक ने विभिन्न मत और आस्था वाले लोगों को साम्राज्य के अंतर्गत शामिल किया था।
  • इस साम्राज्य के शासकों ने ऐसी शासन-प्रणाली का निर्माण किया, जो पूरे राष्ट्र में आदर्श प्रस्तुत कर सके।
  • चौदहवीं शताब्दी के अंत में तैमूर खुद को राजा घोषित करना चाहता था लेकिन चंगेज खान का वंश न होने के कारण संकोचवश वो ऐसा नहीं पाता था।
  • अंत में तैमूर ने अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता की घोषणा करते हुए स्वयं को चंगेज खान के परिवार का दामाद बताया दिया।
  • रूसी नियंत्रण के बाद मंगोलिया एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है।
  • मंगोल साम्राज्य में चंगेज खान को एक महान राष्ट्र-नायक के रूप में दर्शाया गया है।

समयावधि अनुसार मुख्य घटनाक्रम

क्रम संख्याकालघटनाक्रम
1.लगभग 1167तेमुजिन का जन्म।
2.1160 और 70 के दशकदासता और संघर्ष के वर्ष।
3.1180 और 90 के दशकसंधि संबंधों का काल।
4.1203-27विस्तार और विजय।
5.1206तेमुजिन को चंगेज़ खान यानी मंगोलो का ‘सार्वभौम शासक’ घोषित किया।
6.1227चंगेज़ खान की मृत्यु।
7.1227-41चंगेज़ खान के पुत्र ओगोदेई का शासन काल।
8.1227-60तीन महान खानों का शासन और मंगोल-एकता की स्थापना।
9.1236-42बाटू के अधीन रूस, हंगरी, पोलैंड और आस्ट्रिया पर आक्रमण। बाटू, चंगेज़ खान के सबसे बड़े पुत्र जोची का पुत्र था।
10.1246-49ओगोदेई के पुत्र गुयूक का काल।
11.1251-60मोंके, चंगेज़ खान के पौत्र और टलूई के पुत्र का काल।
12.1253-55मोंके के अधीन ईरान और चीन में पुनः आक्रमण।
13.1257-67बातू के पुत्र बर्के का राज्यकाल। सुनहरा गिरोह का नेस्टोरियन ईसाई धर्म से इस्लाम धर्म की ओर पुनः प्रवृत्त होना।
14.1295-1304ईरान में इल-खानी शासक गज़न खान का शासन-काल। उसके बौद्ध धर्म से इस्लाम में धर्मांतरण के बाद धीरे-धीरे अन्य इल-खानी सरदारों का भी धर्मांतरण होने लगा
15.1368चीन में यूआन राजवंश का अंत।
16.1500जोची के कनिष्ठ पुत्र शिबान का वंशज शयबानी खान द्वारा तूरान पर आधिपत्य। तूरान में शयबानी सत्ता (शयबानियों को उज्बेग भी कहा जाता था, जिनके नाम से ही वर्तमान उज्बेकिस्तान का नाम पड़ा) को सुदृढ़ किया और इस क्षेत्र से बाबर और तैमूर के वंशजों को खदेड़ दिया।
17.1759चीन के मंचुओं ने मंगोलिया पर विजय प्राप्त कर ली।
18.1921मंगोलिया का गणराज्य।
PDF Download Link
कक्षा 11 इतिहास के अन्य अध्याय के नोट्सयहाँ से प्राप्त करें

Leave a Reply