इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी विश्व इतिहास के कुछ विषय के अध्याय- 4 “तीन वर्ग” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 4 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 History Chapter-4 Notes In Hindi
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अध्याय-4 “तीन वर्ग“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | इतिहास |
पाठ्यपुस्तक | विश्व इतिहास के कुछ विषय |
अध्याय नंबर | चार (4) |
अध्याय का नाम | “तीन वर्ग” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- विश्व इतिहास के कुछ विषय
अध्याय- 4 “तीन वर्ग”
यूरोप और उसके ऐतिहासिक स्त्रोत
- यूरोपीय इतिहासकारों ने पिछले 100 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों और हर एक गाँव के इतिहास पर विस्तृत कार्य किया है।
- इतिहास को जानने के लिए भू-स्वामित्व के विवरण, मूल्य तथा कानूनी मुकदमों से जुड़े दस्तावेज मुख्य स्त्रोत हैं।
- यूरोपीय इतिहास को जानने के लिए चर्चों में मिलने वाले जन्म-मृत्यु और विवाह संबंधित अभिलेख सहायक साबित होते हैं।
- अभिलेखों से विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों की जानकारी मिलती है।
- मार्क ब्लॉक ने रिसर्च कार्य के लिए सबसे पहले सामंतवाद को चुना था।
- मार्क ब्लॉक का मनना था कि इतिहास की विषयवस्तु राजनीतिक इतिहास, अंतर्राष्ट्रीय संबंध तथा महान लोगों की जीवनी से कुछ अधिक है।
- भूगोल के माध्यम से लोगों के सामूहिक व्यवहार को समझा जा सकता है।
इतिहासकारों द्वारा सामंतवाद का परिचय
- इतिहासकारों द्वारा ‘सामंतवाद’ शब्द का उपयोग मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक, कानूनी एवं राजनीतिक संबंधों का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
- जीवन के सुनिश्चित तरीके के रूप में सामंतवाद की उत्पत्ति 11वीं सदी के उत्तरार्ध में हुई थी।
- सामंतवाद शब्द का प्रयोग जो समाज मध्य फ्रांस, बाद में इंग्लैंड और दक्षिणी इटली में विकसित हुए, उनको इंगित करने के लिए किया गया।
- आर्थिक दृष्टि से सामंतवाद शब्द कृषि उत्पादन को दर्शाता है।
- कृषि उत्पादन सामंत और किसानों के संबंधों पर आधारित होता था।
- उस समय किसान अपने खेतों में खेती करने के अलावा लॉर्ड के खेतों में भी कार्य करते थे, जिसके बदले में उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान की जाती थी।
- श्रम सेवा प्रदान करने वाले किसानों को न्यायिक अधिकार भी प्राप्त थे।
- सामंतवाद ने आर्थिक और सामाजिक पहलुओं के साथ-साथ राजनीतिक पहलुओं पर भी अपना अधिकार जमा लिया।
फ्रांस और इंग्लैंड का ऐतिहासिक परिचय
- गॉल रोमन साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पादक प्रांत था।
- जर्मन की एक जनजाति फ्रैंक ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया।
- छठी सदी में यह प्रांत फ्रैंकिश और फ्रांस के ईसाई राजाओं द्वारा शासित राज्य था।
- फ्रांसीसियों के चर्च के साथ अच्छे संबंध थे। बाद में पोप द्वारा राजा शॉर्लमैन से समर्थन प्राप्त करने का बाद ये संबंध और मधुर हो गए।
- पोप चर्च के अध्यक्ष को कहा जाता था।
- 11वीं सदी में इंग्लैंड में सामंतवाद का विकास हुआ।
- मध्य यूरोप से आने वाले एंजिल और सैक्सन छठी सदी में इंग्लैंड में आकर बस गए।
- यूरोप से आकर बसे दोनों व्यक्तियों के नाम पर इंग्लैंड का नाम ‘एंजिल लैंड’ में रूपांतरित कर दिया गया।
- विलियम प्रथम ने इंग्लैंड की भूमि को नपवाया, उसके नक्शे तैयार करवाए फिर संपूर्ण भूमि को 180 भागों में नॉरमन अभिजातों में विभाजित कर दिया।
- अभिजात राजा के मुख्य काश्तकार बन गए और राजा उनसे सैन्य सहायता एवं नाइट की उम्मीद रखने लगे।
- राजा नाइटों का प्रयोग अपने निजी युद्ध में नहीं कर सकते थे क्योंकि ऐसा इस पर इंग्लैंड में प्रतिबंध था।
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के तीन वर्ग
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के मुख्य तीन पादरी, अभिजात और कृषक वर्गों का वर्णन निम्नलिखित है-
- प्रथम वर्ग (पादरी वर्ग)
- इस वर्ग का जुड़ाव मुख्य रूप से चर्च से था। मध्यकाल में पादरियों को यूरोप में पहले वर्ग में शामिल किया जाता था।
- उस दौरान चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी जोकि राजा पर निर्भर थी।
- यूरोप में ईसाई धर्म का मार्गदर्शन प्रथम वर्ग के अंतर्गत आने वाले बिशपों या पादरियों द्वारा किया जाता था।
- पादरी बनने का अधिकार प्रारंभ में कृषक, स्त्रियों, दासों और विकलांग लोगों को नहीं दिया गया था।
- सामंत और बिशप शानदार महलों में रहते थे तथा ये विशाल पूँजी के अधिकारी होते थे।
- चर्च को किसानों पर ‘टिथ’ नामक कर लगाने का अधिकार था।
- टिथ कर लगने पर किसानों को वर्ष में एक बार अपनी उपज का 10वाँ हिस्सा चर्च को देना पड़ता था।
- चर्च के कुछ अपने रीति-रिवाज थे और कुछ सामंती कुलीनों की नकल थी।
- प्रार्थना करते समय हाथ जोड़ना, घुटनों के बल झुकना और नाइटों द्वारा अपने अनुभवी लॉर्ड की वफादारी करना इत्यादि अपनाए गए तरीकों की नकल थी।
- अनेक सामंती व सांस्कृतिक रीति-रिवाजों को चर्चों में नकल करके ही अपना गया।
- भिक्षु समुदाय और उनके महत्वपूर्ण कार्य
- मध्यकालीन यूरोप में कुछ अत्यधिक धार्मिक ईसाई (भिक्षु) एकांत में जीवन जीना पसंद करते थे।
- ये लोग आम लोगों से दूर धार्मिक लोगों के बीच रहना पसंद करते थे।
- भिक्षु लोग ऐबी या मोनैस्ट्री मठों में रहा करते थे।
- उस समय सबसे पहला मठ 529 ई. में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट और 910 ई. में बरगंडी में स्थापित क्लूनी मठ था।
- भिक्षु ईसाई मठों में रहते थे और अध्ययन या कृषि संबंधित किसी भी कार्य को करने के लिए व्रत लेते थे।
- इस तरह के जीवन को स्त्री और पुरुष दोनों ही अपना सकते थे।
- लगातार बढ़ते हुए भिक्षुओं की संख्या के कारण बीस के स्थान पर सैकड़ों की संख्या वाले स्त्री एवं पुरुषों के समुदाय बनने लगे।
- इन लोगों ने कला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- प्रतिभाशाली संगीतज्ञ आबेस हिल्डेगार्ड ने चर्च की प्रार्थनाओं में समुदायिक गायन के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- कुछ समय बाद ये लोग घूम-घूमकर लोगों को उपदेश देने लगे और दान में मिली चीजों से जीवन यापन करने लगे। उस दौरान ऐसे लोगों को फ्रायर कहा जाता था।
- 14वीं सदी तक आते-आते भिक्षुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय होने लगी।
- इंग्लैंड में लैंग्लैंड की कविता पियर्स प्लाउमैन में भिक्षुओं की तुलना कृषकों, गड़रियों और मजदूरों के ‘विशुद्ध विश्वास’ से की गई है।
- चर्च और समाज का स्वरूप
- मध्यकालीन यूरोप में चर्च ने समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया था।
- 25 दिसंबर को मनाए जाने वाले ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक पूर्व रोमन त्योहार का स्थान ले लिया।
- परंपरागत रूप से 25 दिसंबर को सभी गाँव के व्यक्ति अपने-अपने गाँव की भूमि का दौरा करते थे।
- यह परंपरा ईसाई धर्म आने के बाद में चलती रही लेकिन अब लोग इस परंपरा को गाँव के स्थान पर ‘पैरिश’ कहने लगे।
- काम के दबाव के कारण किसान इस पवित्र दिन का स्वागत बड़ी खुशी से करते थे। इस दिन उन्हें कोई कार्य नहीं करना पड़ता था।
- लोग इस दिन को मौज-मस्ती करने और दवातों में बिताते थे।
- दूसरा वर्ग (अभिजात वर्ग)
- पादरी प्रथम वर्ग में आते थे लेकिन सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण होती थी।
- फ्रांस के लोगों का शासकों के साथ जुड़ाव वैसलेज प्रथा के कारण था।
- अभिजात वर्ग के लोग राजा को अपना स्वामी मानते थे और ये लॉर्ड के माध्यम से आपस में वचनबद्ध होते थे।
- दासों की रक्षा का उत्तरदायित्व लॉर्ड (सेन्योर) पर होता था।
- अभिजात वर्ग का समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान था।
- ये लोग कभी अपनी सेना को बढ़ा-घटा सकते थे साथ ही स्वयं न्यायालय लगा सकते और अपनी मुद्रा भी जारी कर सकते थे।
- यह वर्ग भूमि पर रहने वाले व्यक्तियों और विस्तृत क्षेत्रों का स्वामी होता था।
- मेनर की जागीर का वर्णन
- लॉर्ड के निजी भवन को मेनर की जागीर कहते थे।
- कुछ लॉर्ड कई गाँवों के मालिक होते थे। इनका कार्य गाँवों पर नियंत्रण रखना होता था।
- छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर और बड़ी जागीर में 50 या 60 परिवार रहते थे।
- जागीरों में दैनिक जीवन से जुड़ी हर सुविधा विद्यमान थी।
- मेनर की जागीर में शिकार के लिए वन, चर्च और सैन्य-शक्ति केंद्र हुआ करते थे।
- 13वीं सदी के बाद बड़े दुर्ग बनाए जाने लगे, जिसे नाइटों के परिवार के निवास स्थान के रूप में उपयोग किया जा सके।
- मेनर कभी आत्मनिर्भर नहीं बन पाए इसलिए ये महँगे साजो-सामान, वाद्य यंत्र और आभूषण बाहरी क्षेत्रों से आयात करते थे।
- नाइट और उनकी वीरता
- कुशल अश्व सेना की आवश्यकता ने नाइट समुदाय को बढ़ावा दिया।
- 12वीं सदी के गायक फ्रांस के मेनरों में वीर राजाओं और नाइट्स की वीरता की कहानियों को गाकर सुनाते थे।
- इस सदी में बहुत कम लोग पढ़े-लिखे थे। इसी वजह से पाण्डुलिपियों की संख्या बहुत कम थी।
- कई मेनर लोग भोजन के लिए एक विशेष जगह पर एकत्रित होते थे, जोकि मुख्य कक्ष के ऊपर एक संकरा छज्जा होता था।
- ये संकरा छज्जा मुख्य रूप से गायन और मनोरंजन के लिए बना होता था।
- तीसरा वर्ग (कृषक वर्ग)
- किसान प्रथम और द्वितीयक वर्ग का भरण-पोषण करते थे।
- काश्तकारों की दो श्रेणियाँ थीं स्वतंत्र किसान और सर्फ जिन्हें कृषि-दास कहा जाता था।
- किसानों को लॉर्ड की जागीरों में एक हफ्ते में तीन दिन या इससे अधिक दिन कार्य करना पड़ता था।
- किसानों द्वारा दी जाने वाली सेवा को श्रम-अधिशेष कहा जाता था।
- कभी-कभी कृषक वर्ग को प्रत्यक्ष कर का भी भुगतान करना पड़ता था, जिसे ‘टैली’ कहा जाता था।
- किसानों को गड्ढे खोदना, सड़कें एवं इमारतों की मरम्मत करना, सूत कातना, मोमबत्ती बनाना, अंगूर से मदिरा तैयार करना इत्यादि जैसे कार्य भी करने पड़ते थे।
- कृषिदास अपने गुजारे के लिए जिन जमीनों पर कृषि करते थे उन पर लॉर्ड का स्वामित्व होता था।
- कृषि करने के बदले में कृषिदास को कोई मजदूरी नहीं मिलती थी और उपज का अधिकतम हिस्सा लॉर्ड को देना पड़ता था।
- लॉर्ड अनेक प्रकार के एकाधिकार का दावा करते थे जिससे कृषिदासों को सबसे अधिक हानि होती थी।
- लॉर्ड कृषिदास को अपनी पसंद से विवाह करने की छूट देता था लेकिन इसके बदले में उनसे शुल्क लेता था।
चौथे वर्ग का उदय
- कृषि के विस्तार के साथ-साथ जनसंख्या, व्यापार और नगरों का भी विस्तार हुआ।
- यूरोप की जनसंख्या 1000 ई. में 420 लाख थी जोकि 1300 ई. में बढ़कर 730 लाख हो गई।
- 11वीं सदी में कृषि के विस्तार से उत्पादन बढ़ा जिसके कारण नगरों का पुनः विकास होने लगा।
- आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने की वजह से किसानों द्वारा बिक्री केंद्र के रूप में हाट-मेलों और छोटे विपरणन केंद्रों का विकास किया जाने लगा।
- आगे चलकर ये केंद्र नगरों के रूप में विकसित होने लगे।
- नगर जागीरों और चर्चों के चारों तरफ बसने लगे।
- जो नगर लॉर्ड की भूमि पर बसे होते थे, लोग लॉर्ड को सेवा के स्थान पर कर देने लगे।
- नगरों में बसे अधिकतर लोग भागे हुए स्वतंत्र कृषिदास या स्वतंत्र किसान होते थे।
- इन नगरों की सुरक्षा के लिए पहरेदार रखे जाने लगे।
- सभी नगरों में अनुष्ठानिक समारोहों के लिए एक श्रेणी सभागार होता था। यहाँ गिल्डों के प्रधान औपचारिक रूप से मिलते थे।
- 11वीं सदी में फ्रांस में पश्चिम एशिया के साथ नए व्यापार केंद्र विकसित होने लगे।
- 12वीं सदी के आते-आते फ्रांस में वाणिज्य और शिल्प व्यापार का विकास व विस्तार शुरू हो गया।
- अपने धन को खर्च करने के उद्देश्य से व्यापारी अपने धन को दान रूप में चर्च को देते थे।
- दान में मिले धन से 12वीं सदी में यूरोप में बड़े-बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा, जिन्हें कथीड्रल कहा जाता था।
- कथीड्रल को बनाने में एक वर्ष से भी अधिक समय लगता था, इनकी बनावट इस तरह से होती थी कि कथीड्रल में खड़े हर व्यक्ति को पादरी की आवाज और भिक्षुओं का मधुर गायन स्पष्ट रूप से सुनाई पड़े।
- प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घंटियों को इस तरह निर्मित करके लगाया जाता था कि दूर-दूर के लोगों तक आवाज पहुँच जाती थी।
- खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग किया जाता था।
- अभिरंजित काँच पर बाईबिल की कथाओं को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया था, जिसे कोई भी अनपढ़ व्यक्ति समझ सकता था।
सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक
- पर्यावरण
- 5वीं से 10वीं सदी तक यूरोप में कृषि योग्य बहुत कम भूमि उपलब्ध थी।
- लंबे समय तक सर्दी रहने के कारण फसल की पैदावार कम हो जाती थी।
- 11वीं सदी में यूरोप में तापमान बढ़ने से कृषि भूमि का विस्तार हुआ।
- तापमान के बढ़ते ही कृषि के लिए किसानों को लंबा समय मिलने लगा, जिससे कृषि करना आसान हो गया।
- भूमि का उपयोग
- प्रारंभ में किसान कृषि बैलों की जोड़ी और लकड़ी के हल की सहायता से करते थे क्योंकि उस समय कृषि प्रौद्योगिकी अत्यधिक आदिम थी।
- कृषि योग्य भूमि पर चार सालों में एक बार हाथ से खुदाई की जाती थी, जिसके बाद उस भूमि पर कृषि करने के लिए अधिक मानव श्रम की जरूरत पड़ती थी।
- मिट्टी की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए दो तरह की फसलों को उगाया जाता था। सर्दी में गेहूँ और परती भूमि में राई की खेती की जाती थी।
- अनेक कठिनाइयों के बाद भी लॉर्ड किसानों से हमेशा अधिक लाभ प्राप्त करने की चाह रखते थे।
- किसान कृषि कार्य में अधिक समय लगाने लगे और उपज का ज्यादातर हिस्सा अपने पास रखने लगे।
- चारागाहों और वनों को लॉर्ड अपनी जागीर समझते थे, जिसके कारण किसानों और लॉर्ड के बीच संबंध खराब होने लगे।
- भूमि के एक भाग को खाली रखने के कारण मिट्टी की उर्वरता का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा।
- नई कृषि प्रोद्योगिकी
- 11वीं सदी में लकड़ी के हल के स्थाप पर भारी नोक वाले हल और साँचेदार पटरे का उपयोग किया जाने लगा।
- पशुओं द्वारा हल की सहायता से खेतों को जोतने के तरीके को सरल बना दिया गया।
- नई कृषि प्रोद्योगिकी ने पशुओं को पहले से अधिक शक्ति प्रदान की।
- कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए और प्रोद्योगिकी को अपनाने के लिए अधिक धन की आवश्यकता पड़ती थी।
- अधिक धन लगने के कारण पन चक्की और पवन चक्की सिर्फ लॉर्डों द्वारा ही स्थापित की गई।
- 11वीं सदी में धीरे-धीरे व्यक्तिगत-संबंध बिगड़ने लगे।
- 13वीं सदी तक एक कृषक के खेत का औसत आकार 100 एकड़ से घटकर 20 और 30 एकड़ हो गया।
- आर्थिक लेन-देन में मुद्रा का इस्तेमाल अधिक होने लगा और लॉर्ड भी अपनी सेवा के बदले मुद्रा प्राप्त करने लगे।
- किसानों ने व्यापारियों को अपनी फसल बेचकर उनसे मुद्रा लेनी शुरू कर दी।
- वस्तुविनिमय पूर्ण रूप से समाप्त होने के कगार पर था।
- इंग्लैंड में 1270 से 1320 ई. के बीच कृषि मूल्य दोगुने हो गए थे।
चौदहवीं सदी का संकट
- चौदहवीं सदी की शुरुआत में यूरोप का आर्थिक विकास धीमा पड़ गया।
- यूरोप का आर्थिक विकास मौसम में बदलाव, मुद्रा संकट और प्लेग जैसी महामारी के कारण स्थगित हो गया था।
- 13वीं सदी के अंत तक तीव्र ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठंडी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया।
- तीन चक्रीय फसल के कारण भूमि की उर्वरता शक्ति मे कमी आ गई।
- चारागाह क्षेत्र में कमी के कारण पशुओं की संख्या कम हो गई।
- मुद्रा संकट का कारण चाँदी की खानों का कम होना था। उस समय सरकार को चाँदी में अन्य धातुओं को मिश्रित करके मुद्रा जारी करनी पड़ी।
- प्लेग महामारी से 1347 से 1359 ई. के बीच यूरोपीय लोग बुरी तरह प्रभावित हुए।
- महामारी के कारण यूरोप की आबादी के लगभग 20% लोग मृत्यु का शिकार हो गए।
- प्लेग महामारी से सबसे अधिक बच्चे, बूढ़े और युवा प्रभावित हुए।
- महामारी ने अर्थव्यवस्था की जड़ों को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया।
- जनसंख्या की कमी की वजह से मजदूरों और उत्पादकों के मूल्य में कमी आ गई।
- प्लेग ने सामंतों की आय को भी प्रभावित किया।
सामाजिक असंतोष के मुख्य कारण
- कृषि संबंधित मूल्यों की गिरावट ने अभिजात वर्ग की आमदनी को घटा दिया।
- पुरानी मजदूरी सेवाओं को फिर दे चालू कर दिया गया।
- पढ़े-लिखे और धनी किसानों द्वारा कुशासन के खिलाफ हिंसक विरोध किया जाने लगा।
- किसानों ने 1323 ई. में फ्लैंडर्स में, 1358 ई. में फ्रांस में और 1381 ई. में इंग्लैंड में विद्रोह किया।
- किसानों द्वारा तय कर लिया गया था कि कृषिदास जैसी पुरानी व्यवस्था फिर से नहीं लौटने देंगे।
- किसान लोग पिछली शताब्दियों में हुए लाभों को बचाने की कोशिश कर रहे थे।
समयावधि अनुसार फ्रांस का प्रारंभिक इतिहास
क्रम संख्या | काल (ई. में) | घटनाक्रम |
1. | 481 | क्लोविस फ्रैंक लोगों का राजा बना |
2. | 486 | क्लोविस और फ्रैंक ने उत्तरी गॉल का विजय अभियान प्रारंभ किया |
3. | 496 | क्लोविस और फ्रैंक लोग धर्म परिवर्तन करके ईसाई बने |
4. | 714 | चॉर्ल्स मारटल राजमहल का मेयर बना |
5. | 751 | मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। |
6. | 768 | पेपिन का स्थान उसके पुत्र शॉर्लमेन/चार्ल्स महान द्वारा लिया गया |
7. | 800 | पोप लियो III ने शार्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट का ताज पहनाया गया |
8. | 840 | नार्वे से वाइकिंग लोगों के हमले |
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