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Class 12 Geography Book-2 Ch-5 “खनिज तथा ऊर्जा संसाधन” Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-2 यानी भारत लोग और अर्थव्यवस्था के अध्याय- 5 “खनिज तथा ऊर्जा संसाधन” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 5 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 Geography Book-2 Chapter-5 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 5 “खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयभूगोल
पाठ्यपुस्तकभारत लोग और अर्थव्यवस्था
अध्याय नंबरपाँच (5)
अध्याय का नाम“खनिज तथा ऊर्जा संसाधन”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भारत लोग और अर्थव्यवस्था
अध्याय- 5 “खनिज तथा ऊर्जा संसाधन”

खनिज और उनका महत्व

  • खनिज निश्चित रासायनिक और भौतिक विशिष्टाओं के साथ कार्बनिक या अकार्बनिक उत्पत्ति का एक प्राकृतिक पदार्थ है।
  • भारत अपनी विविधतापूर्ण भूगर्भित संरचना के कारण अनेक प्रकार के खनिजों और संसाधनों से संपन्न देश है।
  • यहाँ भारी मात्र में बहुमूल्य खनिजों के होने के प्रमाण पुराने समय से प्राप्त होते हैं।
  • महुमूल्य खनिजों का संबंध आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों से है।
  • किसी देश के औद्योगिक विकास के लिए खनिज संसाधन आवश्यक आधार होते हैं।
  • खनिज का सबसे अधिक महत्व इसलिए भी है क्योंकि किसी भी खनिज के समाप्त होने के बाद उसकी कमी को पूरा नहीं किया जा सकता।

भारत में खनिजों का वितरण

  • ज़्यादातर धात्विक खनिज प्रयद्वीपीय पठारी क्षेत्र की प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों में पाए जाते हैं।
  • कोयले का लगभग 97% भाग दामोदर, सोन, महानदी तथा गोदावरी नदी की घाटियों में पाया जाता है।
  • अधिकांश विशेष खनिज मंगलोर से कानपुर को जोड़ने वाली रेख से पूर्व में पाए जाते हैं।
  • भारत की मुख्य तीन खनिज पट्टियों का वर्णन इस प्रकार है-
    • उत्तर-पूर्वी पठारी प्रदेश
      • इसके अंतर्गत झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्से शामिल हैं।
      • इन हिस्सों में लौह, अयस्क, कोयला, मैंगनीज, बॉक्साइड और अभ्रक जैसे खनिज पाए जाते हैं।
    • दक्षिण-पश्चिम पठारी प्रदेश
      • इन पट्टी में कर्नाटक, गोवा, तमिलनाडु उच्च भूमि और केरल के क्षेत्र शामिल हैं।
      • इस पट्टी में धातु व बॉक्साइड अधिक मात्रा में पाई जाती है।
      • इन क्षेत्रों में निवेली लिगनाइट को छोड़कर कोयला निक्षेप का अभाव है।
    • उत्तर-पश्चिमी प्रदेश
      • यह पट्टी राजस्थान में अरावली और गुजरात के कुछ भागों में विस्तृत है।
      • राजस्थान बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट, संगमरमर, जिप्सम, मुल्तानी मिट्टी, डोलोमाइट, चूना-पत्थर और नमक जबकि गुजरात पेट्रोलियम और नमक के निक्षेपण के लिए जाना जाता है।

खनिज संसाधनों के प्रकार

खनिज एक ऐसा संसाधन है जिसमें रासायनिक और भौतिक गुण होते हैं। खनिजों को दो भागों धात्विक खनिज और अधात्विक खनिज में बाँटा गया है-

  • धात्विक खनिज- धात्विक खनिज को दो वर्गों में बाँटा गया है-
    • लौह-खनिज
      • भारत में लौह-अयस्क के संसधान प्रचुर मात्रा में पाए हैं।
      • जिन खनिजों में लौह अंश पाया जाता है, लौह खनिज कहलाते हैं।
      • लौह-अयस्क और मैंगजीन इसके दो प्रमुख खनिज हैं।
      • भारत में मुख्य रूप से हेमेटाइट और मैग्नेटाइट दो प्रकार के लौह-अयस्क पाए जाते हैं।
      • लौह-अयस्क के कुल आरक्षित भंडारों का लगभग 95% भाग ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोवा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में स्थित है।
      • झारखंड की पहाड़ी शृंखलाओं में सबसे पुरानी लौह-अयस्क की खदानें पाई जाती हैं।
      • लौह अयस्क के प्रगलन के लिए मैंगनीज एक महत्वपूर्ण कच्चा सामान है।
      • मैंगनीज का निक्षेपण लगभग सभी भूगर्भित संरचनाओं में पाया जाता है।
      • मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य ओडिशा है।
      • आंध्र प्रदेश, गोवा और झारखंड में भी मैंगनीज का उत्पादन होता है।
    • अलौह-खनिज
      • इन खनिजों में लौह अंश नहीं पाया जाता।
      • तांबा, बॉक्साइड, सीसा, सोना, चाँदी, टीन आदि अलौह-खनिज के अंतर्गत आते हैं।
      • बॉक्साइड का जुड़ाव लैटेराइट चट्टानों से है। यह पठारी क्षेत्रों के साथ-साथ तटीय क्षेत्रों में भी पाया जाता है।
      • बॉक्साइड का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य ओडिशा है।
      • कर्नाटक, तमिलनाडु और गोवा बॉक्साइड के उत्पादक राज्य हैं।
      • ताँबे का उपयोग मुख्य रूप से बिजली के मोटर, ट्रांसफॉर्मर और जेनरेटर्स इत्यादि को बनाने के लिए किया जाता है।
      • ताँबे को सोने में मिलकर आभूषणों को मजबूती प्रदान की जाती है।
      • मध्य प्रदेश, झारखंड और राजस्थान में ताँबे का निक्षेपण पाया जाता है।
      • ताँबे का गौण उत्पादन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में होता है।
  • अधात्विक खनिज
    • भारत में सबसे महत्वपूर्ण अधात्विक खनिज अभ्रक है।
    • इसका उपयोग मुख्य रूप से विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में किया जाता है।
    • झारखंड, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल एवं मध्य प्रदेश अभ्रक उत्पादक राज्य हैं।
    • झारखंड के हजारी पठार की चौड़ी पट्टी में सबसे श्रेष्ठ किस्म का अभ्रक पाया जाता है।
    • आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में सर्वोत्तम अभ्रक का उत्पादन किया जाता है।
    • कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मदुरई व कन्याकुमारी में भी अभ्रक का निक्षेपण पाया जाता है।

ऊर्जा संसाधन

  • ऊर्जा के उत्पादन के लिए खनिज ईंधन की सबसे अधिक जरूरत होती है।
  • ऊर्जा की आवश्यकता कृषि, उद्योग, परिवहन के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में होती है।
  • ऊर्जा संसाधन के परंपरागत और गैर-परंपरागत मुख्य दो स्त्रोत हैं-
    • ऊर्जा के परंपरागत स्त्रोत
      • कोयला
        • कोयले का उपयोग मुख्य रूप से विद्युत उत्पादन और लौह-अयस्क के प्रगलन के लिए किया जाता है।
        • यह गोंडवाना और टर्शियरी शैल क्रमों में पाया जाता है।
        • भारत में कोयला निक्षेपों का लगभग 80% भाग बिटुमिनस प्रकार का और गैर-कोककारी श्रेणी का है।
        • सबसे अधिक महत्वपूर्ण गोंडवाना कोयला दामोदर घाटी में स्थित है।
        • भूरा कोयला (लिगनाइट) तमिलनाडु, गुजरात और जम्मू-कश्मीर में पाया जाता है।
      • पेट्रोलियम
        • कच्चा पेट्रोलियम द्रव तथा गैसीय अवस्था के हाइड्रोकार्बन से युक्त होता है।
        • पेट्रोलियम वाहनों, रेलवे तथा वायुयानों के अंतर-दहन के लिए ऊर्जा का आवश्यक स्त्रोत है।
        • इसके कई सह-उत्पाद पेट्रोल रसायन उद्योगों जैसे कि उर्वरक, कृत्रिम रबर, कृत्रिम रेशे, दवाइयाँ, वैसलीन, स्नेहक, मोम, साबुन एवं अन्य सौंदर्य सामग्री में प्रक्रमित किए जाते हैं।
        • वर्ष 1956 में तेल व प्राकृतिक गैस आयोग की स्थापना के बाद ही सही रूप में तेल अन्वेषण और उत्पादन शुरू हुआ।
        • असम में डिगबोई, नहारकटिया और मोराना महत्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
        • कृष्णा-गोदावरी और कावेरी के बेसिनो में विशेष प्रकार के अन्वेषणात्मक कूपों में अशुद्ध तेल पाया जाता है।
        • भात में कूपों में पाए जाने वाले अशुद्ध तेल को शुद्ध करने के लिए क्षेत्र आधारित और बाजार आधारित, दो तरह के तेल शोधक कारखाने हैं।
      • प्राकृतिक गैस
        • गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) की स्थापना साल 1984 में हुई थी।
        • गैस सभी तेल क्षेत्रों के साथ ही प्राप्त होता है।
        • ‘द हिंदू’ रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु के रामानाथपुरम जिले में प्राकृतिक गैस भंडारों के संभावित क्षेत्र पाए गए हैं।
        • तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में गैस का भंडारण पाया जाता है।
    • ऊर्जा के गैर-परंपरागत/अपरंपरागत स्त्रोत
      • नाभिकीय ऊर्जा
        • यूरेनियम और थोरीयम नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में उपयोग होने वाले प्रमुख महत्वपूर्ण खनिज हैं।
        • वर्ष 1948 में ‘परमाणु ऊर्जा आयो’ की स्थापना की गई थी लेकिन इससे जुड़ी प्रगति वर्ष 1954 के बाद हुई।
        • वर्ष 1967 में आयोग का नाम बदलकर ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र’ रख दिया गया।
        • महाराष्ट्र में तारापुर, राजस्था में रावतभता, तमिलनाडु में कलपक्कम, उत्तर प्रदेश में नरोरा, कर्नाटक में कैगा और गुजरात में काकरापाड़ा जैसी महत्वपूर्ण नाभिकीय ऊर्जा परियोजनाएँ हैं।
      • सौर ऊर्जा
        • इसके अंतर्गत सूर्य की किरणों का उपयोग ऊर्जा का रूप में किया जाता है।
        • फोटोवोल्टाइक और सौर-तापीय प्रौद्योगिकी सौर ऊर्जा को काम में लाने के लिए सबसे अधिक प्रभावी प्रक्रम माने जाते हैं।
        • कम लागत, पर्यावरण अनुकूल और आसान निर्माण इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं।
        • सौर ऊर्जा कोयला एवं तेल आधारित संयंत्रों की तुलना में 7% अधिक और नाभिकीय ऊर्जा से 10% अधिक प्रभावी है।
        • इस ऊर्जा का उपयोग हीटरों, फसल शुष्कों तथा सौर कुकर्स में अधिक किया जाता है।
      • पवन ऊर्जा
        • यह प्रदूषण मुक्त और कभी खत्म न होने वाला ऊर्जा का स्त्रोत है।
        • इसमें हवा की गति को टरबाइन की सहायता से विद्युत-ऊर्जा में बदला जाता है।
        • स्थानीय, स्थलीय और जलीय हवाओं का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
        • राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में पवन ऊर्जा के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पाई जाती हैं।
      • ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा
        • महासागर के जल में लगातार उठने वाली तरंगें ऊर्जा का भंडार घर मानी जाती हैं।
        • 17वीं और 18वीं शताब्दी के आरंभ से ही तरंगों के सहयोग से ऊर्जा बनाने की कोशिश शुरू कर दी गई थी।
        • भारत के पास आज ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न करने व उसके विकास के लिए अनेक संभावनाएँ उपलब्ध हैं लेकिन अभी इन्हें उपयोग में नहीं लाया गया है।
      • भूतापीय ऊर्जा
        • पृथ्वी के गर्म मेग्मा से निकलने वाली अत्यधिक तेज ऊष्मा को विद्युतीय ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है जिसे ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं।
        • गीजर से निकलने वाले गर्म पानी से भी ताप ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
        • इसे आने वाले समय में एक वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत के रूप में विकसित किया जा सकता है।
        • भारत में ‘भूतापीय ऊर्जा संयंत्र’ हिमाचल प्रदेश के मणिकरण में है।
        • साल 1890 में सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में भूतापीय ऊर्जा का प्रयोग किया गया।
      • जैव ऊर्जा
        • इस ऊर्जा को जैविक उत्पादों से प्राप्त किया जाता है, जिसमें कृषि, नगरपालिका व उद्योगों के अवशेष और अपशिष्ट शामिल होते हैं।
        • जैव ऊर्जा को विद्युत, ताप और खाना पकाने वाली ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
        • इस ऊर्जा के उपयोग से विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक जीवन बेहतर होता है।
        • इसके उपयोग से आत्मनिर्भरता बढ़ती है और पर्यावरण प्रदूषण कम होता है।

भारतीय खनिज संसाधनों का संरक्षण

  • सतत पोषणीय विकास के लिए खनिज संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है।
  • संसधनों के अत्यधिक उपयोग से अपशिष्टों के साथ-साथ पर्यावरण संबंधित कई समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं।
  • आने वाली पीढ़ियों के सतत पोषणीय विकास के लिए भी संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन जरूरी है।
  • अल्प धातुओं का लगातार उपयोग करना हानिकारक साबित हो सकता है क्योंकि ऐसा करना धातु की समाप्ति का कारण बन सकता है।
  • अल्प धातुओं के उपयोग को कम करना चाहिए ताकि इसे भविष्य के लिए बचाया जा सके।
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