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Class 8 Political Science Ch-4 “न्यायपालिका” Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 8वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III” के अध्याय- 4 “न्यायपालिका” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 4 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 8 Political Science Chapter-4 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय-4 “न्यायपालिका“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाआठवीं (8वीं)
विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ्यपुस्तकसामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान)
अध्याय नंबरचार (4)
अध्याय का नाम“न्यायपालिका”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 8वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान)
अध्याय- 4 “न्यायपालिका”

न्यायपालिका की भूमिका और उसके मुख्य कार्य

  • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 26 जनवरी 1950 को हुई थी।
  • न्यायपालिका अनेक मुद्दों पर फैसला सुनाती है।
  • अदालतें विद्यार्थियों को हिंसा से बचाती हैं, ये राज्यों के बीज के विवादों पर फैस
  • ले सुना सकती हैं साथ ही किसी अपराधी को सजा भी दे सकती हैं।
न्यायपालिका के मुख्य कार्य

विवादों को सुलझाना

  • न्यायपालिका जनता, जनता एवं सरकार, दो राज्यों और राज्य व केंद्र के बीच के विवादों को निपटाने की व्यवस्था कराती है।
  • अदालतें दो राज्यों के बीच नदी के पानी विवाद पर भी फैसले दे सकती हैं।

न्यायिक समीक्षा

  • संविधान की व्याख्या करने का अधिकार न्यायपालिका के पास होता है।
  • अगर न्यायपालिका को लगता है कि कोई कानून संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहा है तो वह उस कानून को रद्द कर सकती है।

कानून की सुरक्षा एवं मौलिक अधिकारों का क्रियान्वयन

  • अपने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर देश का कोई भी नागरिक सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय में जा सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-21 में जीवन का मौलिक अधिकार के अंतर्गत सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य का अधिकार शामिल किया गया है। इसके अनुसार अस्पताल के लापरवाही पर न्यायपालिका फैसले दे सकती है। लापरवाही के लिए अदालत अस्पताल को मुआवजा भरने का आदेश भी दे सकती है।
  • न्यायपालिका जिन विवादों का हल करती है, उसे निम्न तालिका से आसानी से समझा जा सकता है-
क्रम संख्याविवादों के प्रकार
1.केंद्र एवं राज्य के बीच विवाद
2.दो राज्यों के बीच विवाद
3.दो नागरिकों के बीच विवाद
4.जो कानून संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं

स्वतंत्र न्यायपालिका का स्वरूप

  • नेताओं का न्यायाधीश पर नियंत्रण होने के बाद भी वह स्वतंत्र रूप से फैसला सुनाते हैं क्योंकि भारतीय संविधान किसी भी तरह की दखलअंदाजी को स्वीकार नहीं करता है।
  • न्यायपालिका अमीर हो या गरीब किसी के भी साथ पक्षपात नहीं करता है इसलिए संविधान में उसको स्वतंत्र रखा गया है।
  • स्वतंत्रता का एक पहलू ‘शक्तियों का बँटवारा’ है लेकिन फिर भी विधायिका और कार्यपालिका जैसी शक्तियाँ भी न्यायपालिका के कार्यों में दखल नहीं दे सकतीं क्योंकि वे न तो देश के अधीन कार्य करती है और न ही किसी के पक्ष में।
  • उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की किसी भी शाखा का कोई दखल नहीं होता है, इसलिए नियुक्ति के बाद किसी भी न्यायाधीश को हटाना मुश्किल है।
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता अदालतों को ताकत देती है। इसके आधार पर वे विधायिका और कार्यपालिका को गलत दिशा में कार्य करने से रोक सकती है।
  • न्यायपालिका लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में विशेष भूमिका निभाती है।

देश में अदालतों की संरचना

हमारे देश में तीन स्तर की अदालतें हैं-

1. सर्वोच्च न्यायालय

सबसे ऊपरी स्तर की अदालत एक है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय कहते हैं। यह दिल्ली में स्थित देश की सबसे बड़ी अदालत है। भारत का मुख्य न्यायधीश सर्वोच्च न्यायालय का मुखिया होता है और इसके द्वारा लिए गए फैसले बाकी सभी अदालतों को मानने होते हैं।

2. उच्च न्यायालय

सभी राज्य जिलों में बँटे होते हैं और प्रत्येक जिले का एक न्यायधीश होता है। सभी राज्यों का एक उच्च न्यायालय होता है, जोकि अपने राज्य की सबसे ऊँची अदालत होती है।

3. निचली अदालत

तीसरे व सबसे निचले स्तर पर बहुत सारी अदालतें होती हैं।

अदालतों का एक-दूसरे से जुड़ाव

  • भारत में एकीकृत न्यायिक व्यवस्था है इसलिए ऊपरी अदालतों के सभी फैलसे निचली अदालतों को मानने होते हैं।
  • उपरोक्त प्रकार से विभिन्न स्तर की अदालतों का जुड़ाव एक-दूसरे से होता है।
  • अगर निचली अदालत के फैसले से कोई व्यक्ति असंतुष्ट है, तो वह उससे ऊपरी अदालत में जा सकता है।
  • कई बार उच्च न्यायालय गलत फैसले सुना देता है तब विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक चला जाता है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय आरोपियों को सजा देता और निर्दोषों को कानूनी कार्यवाही से स्वतंत्र करता है।

कानूनी व्यवस्था की विभिन्न श्रेणियाँ

  • दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए गए हैं लेकिन आज भी यह पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है।
  • दहेज के कारण हुई हत्या ‘समाज के विरुद्ध अपराध’ की श्रेणी में आता है।
  • दहेज हत्या फौजदारी कानून का उल्लंघन करता है।
  • विधि व्यवस्था फौजदारी कानून के अलावा दीवानी कानून/सिविल लॉ से जुड़े विवादों को भी देखती है।
  • फौजदारी और दीवानी कानून के अंतर को निम्न तालिका से आसानी से समझ सकते हैं-
फौजदारी कानूनदीवानी कानून
ये ऐसे व्यवहार/क्रियाओं से संबंधित है जिन्हें कानून में अपराध माना गया है, जैसे कि चोरी, दहेज के लिए औरत को तंग करना या उसकी हत्या करना इत्यादि।इसका संबंध व्यक्ति विशेष के अधिकारों के उल्लंघन एवं अवहेलना से है। जैसे कि जमीन की बिक्री, चीजों की खरीदारी, किराया, तलाक इत्यादि से संबंधित विवाद।
इसमें सबसे पहले आमतौर पर प्रथम सूचना रिपोर्ट या प्राथमिकी (एफ.आई.आर.) दर्ज कराई जाती है। इसके बाद पुलिस अपराध की जाँच करती है और अदालत में केस फाइल करती है।प्रभावित पक्ष की ओर से न्यायालय में एक याचिका दायर की जाती है। अगर मामला किराये से संबंधित है तो मकान मालिक या किरायेदार मुकदमा दायर कर सकता है।
अगर व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है तथा उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।अदालत राहत की व्यवस्था करती है। उदाहरण के लिए अगर मकान मालिक व किरायेदार के बीच विवाद है तो अदालत यह आदेश दे सकती है कि किरायेदार मकान को खाली करे और बकाया किराया चुकाए।

क्या प्रत्येक व्यक्ति न्याय माँगने अदालत जा सकता है?

  • भारत में न्याय पाना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है, इसके लिए कोई भी व्यक्ति न्यायालयों में जा सकता है।
  • न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में अहम भूमिका निभाते हैं।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने के बाद कोई भी व्यक्ति न्याय के लिए अदालत में जा सकता है।
  • गरीब लोगों के लिए अदालत में न्याय के लिए रोज-रोज जाना कठिन होता है क्योंकि इसमें से अधिकतर दिहाड़ी मजदूर होते हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण भी वही करते हैं।
  • उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1980 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय ने जनहित याचिका को विकसित किया। इस तरह न्यायालय ने कानूनी प्रक्रिया को पहले से सरल बना दिया।
  • वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय को भेजे गए पत्र/तार को भी जनहित याचिका माना जा सकता है।
  • शुरुआत में अनेक लोगों को जनहित याचिका के आधार पर कई मुद्दों पर न्याय दिलाया गया था।
  • बंधुआ मजदूरों को अमानवीय श्रम से आजाद कराने और बिहार में सजा पूरी होने के बाद रिहा नहीं किए गए मजदूरों को रिहा करवाने के लिए जनहित याचिका का उपयोग किया गया था।
  • सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में दोपहर के भोजन की व्यवस्था भी जनहित याचिका के सहयोग से ही हुई थी।
  • आम व्यक्ति का अदालत तक पहुँचना न्याय तक पहुँचने के बराबर माना जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-21 की व्याख्या के आधार पर जीवन के अधिकार में भोजन का अधिकार शामिल किया गया है, इसलिए राज्य सरकार अदालत के आदेश पर लोगों को दोपहर का भोजन उपलब्ध कराने के लिए अनेक प्रयास कर रही है।
  • कभी-कभी अदालत ऐसे फैसले भी लेती है, जिससे आम आदमी संतुष्ट नहीं होते हैं, उदाहरण के लिए पहले झुग्गीवासियों की आजीविका को बचाने के प्रयास किए जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है।
  • कई बार अदलतें किसी मुकदमे पर सही फैसला लेने में कई साल लगा देती हैं, जिसका प्रभाव आम लोगों पर अधिक पड़ता है।
  • उपरोक्त कारणों की वजह से कहा जाता है ‘देर से मिला इंसाफ स्वयं नाइंसाफी है’ और इंसाफ में देरी करने का मतलब इंसाफ का कत्ल करना है।
  • बहुत सी छोटी-बड़ी कमियों के बाद भी लोकतांत्रिक भारत में न्यायपालिका ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • न्यायपालिका लोकतांत्रिक देश का एक बुनियादी पहलू है।
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