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Class 10 Economics Ch-2 “भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक” Notes In Hindi

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Mamta Kumari

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की अर्थशास्त्र की पुस्तक यानी “आर्थिक विकास की समझ” के अध्याय- 2 “भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 2 अर्थशास्त्र के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 10 Economics Chapter-2 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय-2 “भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षादसवीं (10वीं)
विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ्यपुस्तकआर्थिक विकास की समझ (अर्थशास्त्र)
अध्याय नंबरदो (2)
अध्याय का नाम“भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- आर्थिक विकास की समझ (अर्थशास्त्र)
अध्याय- 2 “भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक”

आर्थिक कार्यों के प्रमुख क्षेत्रक

  • लोगों की अलग-अलग आर्थिक गतिविधियों के आधार पर उन्हें विभिन्न समूहों में वर्गीकृत किया गया है, जिन्हें क्षेत्रक कहा जाता है।
  • प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके जब वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है तब इसे प्राथमिक क्षेत्रक के कार्यों में शामिल किया जाता है।
  • प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि/सहायक क्षेत्रक भी कहते हैं क्योंकि अधिकतर उत्पाद प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त किए जाते हैं।
  • द्वितीयक क्षेत्र के अंतर्गत कच्चे सामान को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से तैयार वस्तुओं में बदला जाता है।
  • विनिर्माण की प्रक्रिया किसी कारखाने, कार्यशाला या घर में हो सकती है।
  • गन्ने से चीनी एवं गुड़ तैयार करना और मिट्टी से ईंट व ईंटों से भवनों का निर्माण करना, ये सभी कार्य उद्योगों से जुड़े हुए हैं, इसलिए इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहते हैं।
  • अर्थव्यवस्था के दो क्षेत्रों के अलावा एक अन्य क्षेत्र भी है, जिसे तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र कहते हैं।
  • तृतीयक क्षेत्र बाकी दो क्षेत्रों के विकास में सहायक होते हैं।
  • तृतीयक क्षेत्र वस्तुओं का उत्पादन नहीं करते बल्कि विभिन्न प्रकार की सेवाएँ प्रदान कराते हैं, जैसे कि परिवहन, भंडारण, संचार, बैंक और व्यापार जैसी सेवाएँ आदि।
  • तृतीयक क्षेत्र के अंतर्गत इंटरनेट कैफे, ए.टी.एम. बूथ, कॉल सेंटर और सॉफ्टवेयर कंपनी आदि जैसी नवीन सेवाएँ अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान करती हैं।

तीन क्षेत्रों की तुलना

  • अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन एवं रोजगार की दृष्टि से कुछ क्षेत्रक मुख्य होते हैं और बाकी निम्न आकर के होते हैं।
  • तृतीयक क्षेत्र की सहायता से ही सभी क्षेत्रों के कार्य व्यवस्थित रूप से पूरे होते हैं।
  • तीनों क्षेत्रों की वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य की गणना करने के बाद योगफल प्राप्त किया जाता है।
  • गणना के समय उत्पादित तथा बेची गई वस्तुओं के स्थान पर अंतिम वस्तुओं और सेवाओं को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है।
  • तृतीयक क्षेत्र या अंतिम वस्तुओं के मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं (प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्र) का मूल्य पहले से ही जुड़ा होता है इसलिए इनके मूल्य को दोबारा से नहीं जोड़ा जाता।
  • किसी वर्ष में सभी क्षेत्रों द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य, उस वर्ष के कुल उत्पादन की जानकारी देता है।
  • तीनों क्षेत्रों के उत्पादों के कुल जोड़ को देश का सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। यह उत्पाद सभी अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य के बराबर होता है।
  • भारत में सकल घरेलू उत्पाद का मापन केंद्र सरकार के मंत्रालय की देख-रेख में होता है। सभी सूचनाओं को एकत्रित करने के बाद अंत में जी.डी.पी. तैयार की जाती है।

क्षेत्रकों में ऐतिहासिक बदलाव

  • इतिहास में विकास की दृष्टि से प्राथमिक क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया है।
  • तकनीकी बदलाव की वजह से कृषि क्षेत्र में भी बदलाव होने लगा और उत्पादन पहले की तुलना में बढ़ने लगा।
  • व्यापारियों की संख्या बढ़ी, लोगों ने क्रय-विक्रय के तरीकों के लिए नए-नए मापदंडों का उपयोग करना शुरू कर दिया।
  • पहले ज्यातर लोग प्राथमिक क्षेत्र से ही रोजगार प्राप्त करते थे।
  • लगभग सौ वर्ष से भी अधिक समय के बाद कारखानों का निर्माण हुआ जहाँ लोगों ने कार्य करना शुरू कर दिया।
  • इस तरह प्राथमिक क्षेत्र के बाद कुल उत्पाद व रोजगार की दृष्टि से द्वितीयक क्षेत्र का महत्त्व बढ़ गया।
  • वर्तमान में कुल उत्पादन की दृष्टि से सेवा क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है इसलिए आज बहुत से श्रमिक सेवा क्षेत्र में नज़र आते हैं।
  • इतिहास में विकास के साथ क्षेत्रकों का महत्त्व भी बदलता है।

उत्पादन में तृतीयक क्षेत्रक का महत्त्व

  • 40 वर्षों में सभी क्षेत्रों में वृद्धि हुई है लेकिन सबसे अधिक वृद्धि तृतीयक क्षेत्र के उत्पादन में हुई है।
  • वर्ष 2013-14 में भारत में तृतीयक क्षेत्र दोनों क्षेत्रों को पीछे करते हुए प्रमुख उत्पादक क्षेत्र के रूप में उभरा है।
  • देश में उपलब्ध विभिन्न सेवाओं जैसे अस्पताल, शिक्षा संस्थान, नगर निगम, रक्षा, परिवहन आदि बुनियादी सेवाएँ मानी जाती हैं।
  • सेवाओं का प्रबंध देश की सरकार द्वारा किया जाता है।
  • सेवाओं की माँग प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्र के विकास पर निर्भर करती है।
  • जब लोगों की आय बढ़ती है तब वे अपनी सुविधा के लिए अन्य सेवाओं जैसे रेस्तरां, पर्यटन, निजी विद्यालय, निजी अस्पताल आदि की माँग करना शुरू कर देते हैं।
  • पिछले कुछ वर्षों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नई सेवाएँ बेहद जरूरी बन चुकी हैं।
  • सेवाओं में समान रूप से संवृद्धि नहीं होती है। भारत में उन सेवाओं की संख्या कम है जिसमें अधिक कुशल तथा शिक्षित श्रमिकों को नौकरी दी जाती है।
  • सेवा क्षेत्र में कुछ विभागों का महत्त्व अधिक बढ़ रहा है।

अधिकतर लोगों की हिस्सेदारी कौन से क्षेत्र में है?

  • भारत में सकल घरेलू उत्पादन में तीनों क्षेत्रों की हिस्सेदारी में बदलाव हुआ है।
  • वर्तमान में भी प्राथमिक क्षेत्र से सबसे अधिक लोग जुड़े हुए हैं। इसका मुख्य कारण बाकी दो क्षेत्रों में रोजगार की कमी है।
  • एक वर्ष में जहाँ वस्तुओं के औद्योगिक उत्पादन में तीन गुना से अधिक वृद्धि होती है वहीं रोजगार में लगभग 3 गुना तक ही वृद्धि होती है। सेवा क्षेत्र में भी उत्पादन में जहाँ 14 गुना वृद्धि होती है वहीं रोजगार में 5 गुना से भी कम बढ़ोत्तरी होती है।
  • प्रत्येक क्षेत्र में उत्पादन तो बढ़ाए जा रहे हैं लेकिन रोजगार के अवसर समाप्त किए जा रहे हैं।
  • देश में सबसे ज्यादा श्रमिक कृषि क्षेत्र (प्राथमिक क्षेत्र) में कार्य करते हैं लेकिन सकल घरेलू उत्पादन में इनका योगदान लगभग एक-छठा भाग है।
  • अगर कृषि क्षेत्र से कुछ श्रमिकों को हटा भी दिया गया, तो इससे उत्पादन प्रभावित नहीं होगा क्योंकि इस क्षेत्र के श्रमिकों में अल्प बेरोजगारी है।
  • अल्प बरोजगरी उस स्थिति को कहते हैं जब सभी व्यक्ति कार्य कर रहे हों लेकिन किसी को भी पूर्ण रोजगार नहीं मिलता है। इसी वजह से इसे छिपी हुई बेरोजगारी भी कहते हैं।
  • अल्प बेरोजगारी किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। उदाहरण के लिए सेवा क्षेत्र के कुछ श्रमिक अपना पूरा दिन ठेले पर कुछ चीजें बेचने में बिता देते हैं लेकिन बहुत कम पैसे ही कमा पाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन लोगों के पास कोई बेहतर अवसर नहीं होता है।

अतिरिक्त रोजगार का सृजन कैसे करें?

  • असिंचित भूमि का उपयोग कुएँ के निर्माण और बाँध के निर्माण के लिए किया जा सकता है, इससे कृषि क्षेत्र में रोजगार के विभिन्न अवसर प्रदान हो सकते हैं।
  • अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में उन उद्योगों व सेवाओं को स्थापित करना जिसमें अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिल सके।
  • दाल मिल, शहद संग्रह केंद्र, बाहरी बाजारों में सब्जियों को बेचने के लिए प्रसंस्करण उद्योगों आदि की ग्रामीण इलाकों में स्थापना लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार दिला सकता है।
  • भारत में 60% जनसंख्या 5 से 29 वर्ष आयु की है, जिसमें से सिर्फ 51% ही विद्यालय जाते हैं।
  • अगर सभी बच्चे विद्यालय जाने लगें, तो शिक्षा क्षेत्र में लगभग 20 लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है।
  • योजना आयोग के अनुसार अगर पर्यटन क्षेत्र में सुधार किया जाए, तो इसमें भी 35 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल सकता है।
  • भारत सरकार द्वारा लगभग 625 जिलों में ‘काम का अधिकार’ कानून लागू किया गया है, जिसे ‘महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम-2005’ कहते हैं।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत अगर सरकार लोगों को 100 दिन के रोजगार को देने में असमर्थ होती है, तो उसे लोगों को बेरोजगारी भत्ता देना पड़ेगा।
  • सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत उन्हीं कार्यों को महत्व देती है, जिनसे आने वाले समय में भूमि से उत्पादन में वृद्धि हो सके।

संगठित एवं असंगठित के बीच तीनों क्षेत्रकों का विभाजन

  • संगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों को रोजगार-सुरक्षा के लाभ अधिक मिलते हैं। ये श्रमिक एक निश्चित समय तक कार्य करते हैं और अधिक समय तक कार्य करने पर इन्हें वेतन के अलावा अलग से पैसे दिए जाते हैं।
  • संगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों को वेतन के अलावा छुट्टी, अवकाश काल में भुगतान, भविष्य निधि, सेवानुदान इत्यादि सेवाएँ भी प्रदान की जाती हैं।
  • असंगठित क्षेत्रों में छोटी-छोटी इकाइयाँ शामिल होती हैं और इन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता। इन क्षेत्रों में बिना किसी उचित सुविधा के श्रमिकों को कम वेतन पर रोजगार प्रदान किया जाता है।
  • असंगठित क्षेत्रों में रोजगार सुरक्षित नहीं है। नियोक्ता अपनी पसंद से कभी भी किसी भी श्रमिक को कार्य से हटा सकता है और कम कार्य होने पर किसी एक श्रमिक को विशेष छुट्टी प्रदान कर सकता है।

असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों का संरक्षण

  • आज बहुत से श्रमिक को असंगठित क्षेत्रों में कम वेतन पर कार्य करना पड़ रहा है। इसका एक मुख्य कारण संगठित क्षेत्रों में भर्तियों का कम होना है।
  • बहुत से असंगठित क्षेत्रों में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। कम वेतन देना, समय पर वेतन न देना, विभिन्न सुविधाओं से श्रमिकों को वंचित रखना, रोजगार में संरक्षण प्रदान न करना, न ही कोई लाभ देना आदि।
  • वर्तमान में असंगठित क्षेत्र में रोजगार के साथ-साथ श्रमिकों को संरक्षण और सुविधाओं की भी ज़रूरत है।
  • जब श्रमिक को संरक्षण प्रदान किया जाएगा तभी बेहतर क्षेत्र का निर्माण होगा अन्यथा कोई भी श्रमिक खुद को असुरक्षित करके रोजगार प्रदान करना पसंद नहीं कर सकता।
  • भारत में लगभग 80% गाँव में रहने वाले परिवार छोटे व सीमांत किसानों की श्रेणी में आते हैं। इन किसानों को समय पर कृषि करने के लिए उपकरणों और साख, भंडारण व विपणन केंद्र की सुविधा उपलब्ध कराने की जरूरत है।
  • शहरी और ग्रामीण दोनों श्रमिकों को संरक्षण प्रदान करना बेहद ज़रूरी है।
  • असंगठित क्षेत्रक में निम्न जाति के समझे जाने वाले लोग अधिक संख्या में कार्य करते हैं। ये लोग सामाजिक भेदभाव का भी शिकार हैं।
  • पूर्ण आर्थिक व सामाजिक विकास तभी संभव है जब असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों के लिए संरक्षण व महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ अनिवार्य कर दी जाएंगी।

सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक का वर्णन

  • सार्वजनिक क्षेत्रक में अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का अधिकार होता है और सभी सेवाएँ सरकार के नियंत्रण में कार्य करती हैं। उदाहरण के लिए रेलवे व डाकघर।
  • निजी क्षेत्रक में परिसंपत्तियों और सेवाओं को किसी एक व्यक्ति या उद्योग द्वारा नियंत्रित किया जाता है। टाटा आयरन स्टील कंपनी लिमिटेड एवं रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड आदि जैसी कंपनियाँ निजी क्षेत्रक के अंतर्गत आती हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्रक का उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना नहीं होता जबकि निजी क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य अधिक लाभ अर्जित करना होता है।
  • बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिनकी आवश्यकता समाज के हर वर्ग को होती है लेकिन निजी क्षेत्रक उन्हें अपने निर्धारित कीमत से कम कीमत पर उपलब्ध नहीं कराते हैं।
  • सार्वजनिक सेवाओं को उपलब्ध कराने में सारा खर्च सरकार करती है लेकिन उसका लाभ सभी को मिलता है।
  • कुछ ऐसी भी गतिविधियाँ होती हैं, जिन्हें सरकारी सहायता की आवश्यकता होती है और निजी क्षेत्रक उन व्यवसायों को बिना सरकार की अनुमति के शुरू नहीं कर सकती, जैसे कि उत्पादन मूल्य पर बिजली बिक्री।
  • कुछ ऐसी गतिविधियाँ भी हैं जिन पर व्यय करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार की होती है, जैसे कि स्वास्थ्य व शिक्षा संबंधित सुविधाएँ उपलब्ध कराना इत्यादि।
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