इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “लोकतांत्रिक राजनीति-2” के अध्याय- 4 “राजनीतिक दल” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 4 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 10 Political Science Chapter-4 Notes In Hindi
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अध्याय-4 “राजनीतिक दल“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | दसवीं (10वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | लोकतांत्रिक राजनीति-2 (राजनीति विज्ञान) |
अध्याय नंबर | चार (4) |
अध्याय का नाम | “राजनीतिक दल” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- लोकतांत्रिक राजनीति-2 (राजनीति विज्ञान)
अध्याय- 4 “राजनीतिक दल”
राजनीतिक दलों की आवश्यकता क्यों है?
- आम नागरिक लोकतंत्र का मतलब राजनीतिक दल को समझते हैं।
- लोकतांत्रिक व्यवस्था और राजनीतिक जीवन में दलों की भूमिका को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- सामाजिक और राजनीतिक विभाजन के लिए भी दलों को ही जिम्मेदार माना जाता है।
- दलों का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ग्रामीण लोग राजनीति में दलों के स्वरूप की जानकारी रखते हैं।
रानीतिक दल का अर्थ और उसके मुख्य भाग
- चुनाव लड़ने एवं सरकार में सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से संगठित किए गए समूह को राजनीतिक दल कहते हैं।
- दल समाज के हित को ध्यान में रखकर कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम तैयार करता है।
- दल अपनी नीतियों को बाकी समूहों से बेहतर बनाकर जनता के सामने पेश करता है।
- राजनीतिक दल चुनाव जीतने के बाद अपनी विभिन्न नीतियों पर कार्य करते हैं।
- प्रत्येक दल की पहचान उसकी नीतियों तथा उसके सामाजिक आधार से होती है।
- राजनीतिक दल के मुख्य तीन भाग हैं, जिनके नाम निम्न प्रकार हैं-
- नेता
- सक्रिय सदस्य
- अनुयायी (समर्थक)
राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख कार्य
राजनीतिक पार्टियों के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
- राजनीतिक पार्टियाँ चुनाव लड़ती हैं। भारत में पार्टियों के नेता ही उम्मीदवार चुनते हैं।
- राजनीतिक दल जनता की पसंद को ध्यान में रखकर अलग-अलग नीतियों एवं कार्यक्रमों को तैयार करते हैं।
- विधायिका के अधिकतर सदस्य किसी न किसी दल के सदस्य होते हैं। यही कारण है कि पार्टियाँ भी देश के कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाती हैं।
- दल ही सरकार बनाने और उन्हीं की इच्छा के अनुसार सरकारें चलती हैं।
- जीतने वाले दल के लिए हारने वाले समूह विपक्ष की भूमिका निभाते हैं।
- जनता के विकास से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और उस पर बहस करने में दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- राजनीतिक दल ही मशीनरी और सरकार द्वारा चलाए गए कल्याणकारी कार्यक्रमों तक जनता की पहुँच को संभव बनाते हैं।
दलों की जरूरत क्यों है?
- राजनीतिक दलों के बिना आधुनिक लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती है।
- दल के बिना उम्मीदवार स्वतंत्र एवं निर्दलीय हो जाएंगे और देश कैसे चलेगा इसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं होगा।
- राजनीतिक दलों का उदय प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था के विस्तार से जुड़ा हुआ है।
- जब सामाजिक ढाँचा जटिल हो जाता है तब विभिन्न मुद्दों के विचारों को सरकार की नजर में लाने के लिए एक माध्यम की जरूरत होती है।
- दलों की जरूरत एक जिम्मेदार सरकार के गठन के लिए होती है।
- सरकार की कुछ ऐसी भी जरूरतें होती हैं, जिन्हें राजनीतिक दलों द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।
- राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए एक अनिवार्य शर्त है।
राजनीति में दलों की संख्या
- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में नागरिकों का कोई भी समूह राजनीतिक दल का निर्माण कर सकता है।
- भारत में दलों की संख्या 750 से भी अधिक है।
- चुनाव के समय बहुत कम पार्टियाँ ही सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
- लोकतंत्र के लिए एकदलीय व्यवस्था को अच्छा विकल्प नहीं माना जा सकता है।
- चुनाव में प्रतिद्वंद्वीता की भूमिका निभाने के लिए दूसरे दल का होना बेहद जरूरी है।
- सरकार बनाने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन में दो दलीय व्यवस्था स्थापित की गई है।
- जब सत्ता में आने के लिए अनेक पार्टियाँ चुनाव में भाग लेती हैं, तो इसे बहुदलीय व्यवस्था कहते हैं।
- भारत में बहुदलीय व्यवस्था है।
- बहुदलीय के अंतर्गत कई दल गठबंधन बनाकर भी सरकार बना सकते हैं।
- वर्ष 2004 में संसदीय चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और वाम मोर्चा ये तीन मुख्य गठबंधन थे।
राष्ट्रीय दलों का वर्णन
- संघीय व्यवस्था वाले लोकतंत्र में राष्ट्र और राज्य दो तरह के राजनीतिक दल हैं।
- पार्टी बनाने के लिए प्रत्येक समूह को निर्वाचन आयोग में अपना पंजीकरण करवाना पड़ता है।
- विशेषाधिकार पाने वाली पार्टियों को मान्यता प्राप्त दल कहते हैं।
- यदि कोई पार्टी राज्य विधानसभा चुनाव में पड़े कुछ मतों का 6% या इससे अधिक मत हासिल करती है और दो सीटों पर जीत दर्ज करती है, तो उसे अपने राज्य में राजनीतिक दल के रूप में मान्यता मिल जाती है।
- राष्ट्र दल के रूप में मन्यता प्राप्त करने के लिए भी लोकसभा चुनाव में कुल मतों का 6% हासिल करना होता है लेकिन इसके लिए चार सीटों पर जीत दर्ज करनी होती है।
- वर्ष 2019 में निम्नलिखित सात दलों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई थी-
1. ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस
- यह पार्टी 1 जनवरी 1998 को ममता बनर्जी के नेतृत्व में बनी थी।
- वर्ष 2016 में इस पार्टी को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई थी।
2. बहुजन समाज पार्टी
- बहुजन समाज पार्टी का गठन वर्ष 1984 में हुआ था।
- दलितों और कमजोर वर्गों की रक्षा करना इस दल का मुख्य उद्देश्य था।
3. भारतीय जनता पार्टी
- वर्ष 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक पार्टी का गठन किया था, जिसे पुनर्जीवित करके वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी को बनाया गया।
- वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में 303 सीटों के आधार पर जीत हासिल करके यह सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई।
4. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सी पी आई)
- सी पी आई का गठन वर्ष 1925 में किया गया था।
- इस पार्टी को अलगाववादी और सांप्रदायिक ताकतों की विरोधी पार्टी माना जाता है।
5. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-मार्क्ससिस्ट (सी पी आई-एम)
- इस पार्टी को 1964 में स्थापित किया गया था।
- यह पार्टी पूँजी और सामानों की मुक्त आयात-निर्यात की अनुमति देने वाली नयी आर्थिक नीतियों की आलोचक है।
- इस पार्टी का शासन पश्चिम बंगाल में लगातार 34 सालों तक था।
6. इंडियन नेशनल कांग्रेस
- इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन 1885 में हुआ लेकिन इसमें कई बार विभाजन हुए।
- इस पार्टी ने वर्ष 1971 तक लगातार और 1980 से 1989 तक देश पर शासन किया था।
7. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
- कांग्रेस पार्टी में हुए विभाजन के बाद वर्ष 1999 में यह पार्टी बनी थी।
- नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी वर्ष 2004 से संयुक्त प्रगतिशील गठबंध में साझीदार बनी।
क्षेत्रीय दलों का वर्णन
- सात दलों के अलावा बाकी सभी दलों को निर्वाचन आयोग ने क्षेत्रीय दल/ राज्यीय दल के रूप में मान्यता दी है।
- कुछ पार्टियाँ अखिल भारतीय दल भी होती हैं।
- पिछले तीन दशकों में क्षेत्रीय दलों की संख्या के साथ उनकी ताकतों में भी वृद्धि हुई है।
- 2014 तक किसी भी एक राष्ट्रीय दल का लोकसभा में बहुमत नहीं था।
- वर्ष 1996 के बाद सभी पार्टियों को गठबंध सरकार का हिस्सा बनने का अवसर मिल गया।
राजनीतिक दलों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ
- सबसे पहली चुनौती है पार्टी के अंदर आपसी सहमति का न होना।
- पार्टी के नाम पर फैसला लेने का अधिकार नेता हथियाने लगते हैं।
- जिन नेताओं के पास ताकत होती है उनसे असहमत रहने वाले ज़्यादा समय तक पार्टी में नहीं रह पाते।
- दूसरी बड़ी चुनौती वंशवाद से जुड़ी है।
- ज्यादातर दल अपने कार्य में पारदर्शिता नहीं रखते हैं। ऐसे दल अपने लोगों के लाभ पर अधिक ध्यान देते हैं।
- राजनीतिक दलों में पैसा एवं आपराधिक मामलों की बढ़ती घुसपैठ तीसरी सबसे बड़ी चुनौती है।
- सत्ता में आने के लिए बेहतर पार्टी के विकल्प की कमी भी दलों के समक्ष एक चुनौती है।
- एक ही दल का सत्ता में वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करना।
दलों को सुधारने हेतु किए गए प्रयास
दलों को सुधारने हेतु किए गए प्रयास निम्नलिखित हैं-
- दल-बदल को रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया।
- उच्च न्यायालय ने दलों में पैसा एवं आपराधिक मामलों की बढ़ती घुसपैठ को समाप्त करने के लिए, चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिए संपत्ति एवं सभी आपराधिक मामलों का ब्यौरा एक शपथपत्र के माध्यम से देना अनिवार्य कर दिया है।
- चुनाव आयोग ने संगठित चुनाव कराना और आयकर का रिटर्न करना जरूरी कर दिया है।
- राजनीतिक दलों के आंतरिक कार्यों पर नजर रखने के लिए कानून बनाने की आवश्यकता है।
- राजनीतिक दल में महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई सीटें आरक्षित होनी चाहिए।
- चुनाव के खर्च और दलों को चुनाव लड़ने के लिए सरकार को आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए।
- आम जनता का दबाव भी राजनीतिक दलों में सुधार लाने के लिए कारगर साबित हो सकता है।
- सुधार चाहने वाले खुद भी दलों में शामिल हो सकते हैं।
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