इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी “भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत” के अध्याय-2 “पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 2 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Geography Book-1 Chapter-2 Notes In Hindi
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अध्याय- 2 “पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | दो (2) |
अध्याय का नाम | “पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय- 2 “पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास“
आरंभिक सिद्धांत
- मानव जीवन की उत्पत्ति एवं विकास ही पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण रहा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पृथ्वी का आरंभिक वायु मण्डल जीव निर्वाह के अनुकूल नहीं था।
- पृथ्वी की उत्पत्ति के लिए कई दार्शनिकों ने अपने मत प्रस्तुत किए हैं। जर्मन दार्शनिक इमैनुअल कांट की परिकल्पना में कहा गया है कि- ‘ग्रहों का निर्माण धीरे-धीरे घूमते हुए पदार्थों के बादलों से हुआ, जिसका संबंध सूर्य की युवा अवस्था से है।’
- इस सिद्धांत को सन् 1796 में गणितज्ञ लाप्लेस ने संशोधित किया, जिसे नीहारिका परिकल्पना के नाम से जाना जाता है। आगे चलकर 1950 के दशक में रूस के ऑटो शिमिड और जर्मन के कार्ल वाइजास्कर ने इस परिकल्पना में संशोधन किए।
- जिसमें कहा गया कि सूर्य जो कि सौर नीहारिका से घिरा हुआ था, जिसमें मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलियम और धूलिकरण शामिल है। इनके घर्षण करने या टकराने से एक चपटी आकृति (बादल) का निर्माण होता है और इस संवृद्धि द्वारा ही ग्रहों का निर्माण हुआ।
आधुनिक सिद्धांत: ब्रह्माण की उत्पत्ति
- ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वर्तमान समय में सर्वमान्य सिद्धांत बिग-बैंग सिद्धांत है, इसे विस्तृत ब्रह्मांड परिकल्पना भी कहते हैं। एड़विन हब्बल ने 1920 में यह प्रमाण प्रस्तुत किए कि समय बीतने के साथ-साथ आकाशगंगाएं दूर हो रही हैं।
- बाद में वैज्ञानिकों ने यह तर्क दिया कि यह सिद्ध करना मुमकिन नहीं है कि आकाशगंगाओं का विस्तार हो रहा है। बिग-बैंग सिद्धांत की मुख्य अवस्थाएं इस प्रकार हैं-
- शुरुआत में वे सभी पदार्थ जिनसे ब्रह्मांड बना है, एक बहुत छोटे गोलक के रूप में थे। जिसका आयतन बहुत छोटा और तापमान अनंत था।
- इस सिद्धांत के अनुसार इन छोटे गोलकों में विस्फोट हुआ, जिसके कारण वृहत विस्तार हुआ। बिग-बैंग की घटना 13.7 अरब वर्षों पहले की बताई जाती है। इसी विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। एक सेकंड के अल्पांश के बाद ही वृहत विकास हुआ, जिसकी गति धीमी पड़ गई। इसके तीन मिनट में ही परमाणु का निर्माण हुआ।
- बिग-बैंग की घटना के कारण 3 लाख वर्षों के समय में 4500 डिग्री (केल्विन) में तापमान में गिरावट हुई, जिसने परमाणु का निर्माण किया।
- ब्रह्मांड़ का निर्माण आज भी जारी है और इसके विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार होना।
- स्थिर अवस्था संकल्पना– हॉयल ने एक परिकल्पना प्रस्तुत की जिसमें कहा गया कि ब्रह्मांड किसी भी समय में एक समान रहा है। वैज्ञानिक ब्रह्मांड के विस्तार के कई प्रमाण मिलने के कारण ब्रह्माण विस्तार सिद्धांत को ही मानते हैं।
तारों का निर्माण
- तारों का निर्माण आज से करीब 5-6 अरब वर्षों पहले हुआ। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है, आकाशगंगाओं का इतना अधिक विस्तार होता है कि इनकी दूरी कई हजार वर्षों में मापी जाती है।
- आकाशगंगा का निर्माण हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होता है, जिसे नीहारिका कहा जाता है।
- एक आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार वर्ष के बीच हो सकता है।
ग्रहों का निर्माण
- नीहारिका के अंदर गैस से गुथित झुंड को तारा कहा जाता है। गरुत्वाकर्षण बल के कारण गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ, इसी क्रोड के चारों तरफ गैस और धूल के कणों की घूमती हुई तश्तरी का निर्माण हुआ।
- अगली अवस्था में इस बादलों में दबाव आरंभ हुआ और छोटे गोले के रूप में क्रोड को ढकने वाला पदार्थ विकसित हुआ। अणुओं में पारस्परिक आकर्षण प्रक्रिया द्वारा ये छोटे गोले आगे चलकर ग्रहाणुओं में परिवर्तित हुए, जो संघट्टन और गरुत्वाकर्षण के कारण ये पूर्ण ग्रहाणु बन गए।
- ये छोटे ग्रहाणु ही सहवर्धन होने के बाद कुछ बड़े पिंड बने।
सौरमण्डल का विकास
- नीहारिका को सौर मण्डल का जनक माना जाता है। ग्रहों का निर्माण लगभग 4.6 से 4.56 अरब वर्षों पहले हुआ। हमारे सौरमण्डल में सूर्य, 8 ग्रह, 63 उपग्रह और लाखों छोटे पिंड मौजूद हैं।
चंद्रमा
- यह पृथ्वी का अकेला ही प्राकृतिक उपग्रह है, इसकी उत्पत्ति के लिए भी कई मत दिए गए हैं। सर जॉर्ज डार्विन ने 1838 ई. में सुझाया कि पहले पृथ्वी और चंद्रमा एक ही पिंड थे। बाद में यह पिंड डंबल की आकृति में परिवर्तित हुआ।
- इसके टूट जाने के बाद चंद्रमा का निर्माण उसी पदार्थ से हुआ जहां प्रशांत महासागर एक गर्त के रूप में है।
- कई वैज्ञानिक ऐसा नहीं मानते, उनके अनुसार चंद्रमा का निर्माण एक बड़े टकराव का परिणाम है। इसे ‘द बिग सप्लैट’ कहा गया है।
पृथ्वी का उद्भव
- पृथ्वी नाम का यह ग्रह पहले वीरान गर्म चट्टान था, जिसका वायु मण्डल वीरान, हीलियम और हाईड्रोजन गैसों से बना था। इस ग्रह पर आज से 460 करोड़ साल पहले जीवन प्रारंभ हुआ।
- इसकी संरचना परतदार है, इसके आंतरिक क्रोड से लेकर ऊपरी वातावरण तक पदार्थों में भिन्नता पाई जाती है।
- पृथ्वी की सतह से लेकर इसके अंदरूनी भागों तक भिन्न मण्डल होते हैं, जिनकी अलग विशेषताएं हैं।
स्थलमण्डल का विकास
- ग्रहाणु और अन्य खगोलीय पिंड ज्यादातर एक ही प्रकार के गहने और हल्के पदार्थों से मिलकर बने हैं। कई ग्रहाणुओं के एकत्रित होने से ग्रह बनते हैं। पृथ्वी के अत्यधिक तापमान के कारण इसकी अवस्था द्रव रूप में रह गई, अधिकतम तापमान के कारण ही भारी और हल्के घनत्व के मिश्रण वाले पदार्थ घनत्व में अंतर के कारण पृथक होने लगे, जिसके कारण भारी पदार्थ पृथ्वी के केंद्र में चले गए और हल्के पदार्थ इसकी सतह की ओर आ गए जो आगे चलकर भू-पपर्टी के रूप में विकसित हुए। इस पृथक्करण को विभेदन की प्रक्रिया कहा गया।
- जब चंद्रमा की उत्पत्ति हुई, तब कई भीषण टकरावों के कारण पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी के कारण विभेदन की प्रक्रिया फिर से हुई, जिसके कारण पृथ्वी पपर्टी, बाह्य क्रोड, आंतरिक क्रोड और प्रवाह में विभक्त हो गई।
वायुमंडल व जलमंडल का विकास
- पृथ्वी का वायुमण्डल कई प्रकार की गैसों से मिलकर बना है, जिसमें नाइट्रोजन और ऑक्सीजन मुख्य हैं। वायुमंडल के विकास की तीन अवस्थाएं हैं, पहला- जिसमें आदिकालीन वायुमंडलीय गैसों का ह्रास, दूसरी- पृथ्वी के भीतर से निकली जलवाष्प और भाप ने वायुमंडल का विकास किया और तीसरी- इसकी संरचना को जैवमंडल की प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया ने प्रभावित किया।
- प्रारम्भिक वायुमंडल से सौर पवन के कारण हाइड्रोजन और हीलियम की मात्रा कम होने लगी। इसका असर केवल पृथ्वी पर न होकर अन्य पार्थिव ग्रहों पर भी देखा गया। वायुमंडल के विकास की यह पहली अवस्था थी।
- विभेदन की प्रक्रिया और पृथ्वी के ठंडा होने के पश्चात इसके आंतरिक भागों से गैसें और जलवाष्प का रिसाव हुआ जिससे आज के वायुमण्डल का विकास हुआ।
- इसकी आरंभिक अवस्था में जलवाष्प, नाइट्रोजन, अमोनिया और मीथेन आदि की मात्रा अधिक और ऑक्सीजन की मात्रा कम थी। जब पृथ्वी के भीतरी भागों से गैस धरती पर आई, इसी प्रक्रिया को ‘गैस उत्सर्जन’ कहा गया।
- जलमंडल का विकास– पृथ्वी के ठंडा होने के कारण वायुमंडल में जलवाष्प संघनन शुरू हुआ, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड बारिश के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई। भारी बारिश के चलते जल धरती की गर्तों में एकत्रित हुआ, जिससे महासागर बने।
- लगभग 50 करोड़ सालों के बाद महासागरों का निर्माण हुआ, शुरुआत में जीवन इन्हीं महासागरों पर निर्भर था। जीवन का विकास लगभग 380 वर्ष पहले का माना जाता है।
जीवन की उत्पत्ति
- जीवन की उत्पत्ति और विकास की पृथ्वी उत्पत्ति का अंतिम चरण माना जाता है। आरंभ में पृथ्वी का वायुमंडल जीवन के लिए अनुकूल नहीं था। वैज्ञानिक जीवन की उत्पत्ति को एक रासायनिक प्रक्रिया बताते हैं। उनके अनुसार पहले जटिल अणुओं का निर्माण हुआ, समूहन हुआ। यह समूहन स्वयं को दोहराकर निर्जीव पदार्थ को जीवित कर देता।
- हमारे ग्रह पर जीवन के चिन्ह अलग-अलग समय की चट्टनों पर जीवाश्म के रूप में देखे जा सकते हैं। आज की शैवाल की संरचना 300 करोड़ वर्षों पुरानी भू-गर्भीक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना से मिलती है।
- जिससे यह माना जा सकता है कि जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले ही आरंभ हो चुका था।
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