Class 11 History Ch-1 “लेखन कला और शहरी जीवन” Notes In Hindi
Mamta Kumari
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Class 11 History Chapter-1 Notes In Hindi
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कक्षा- 11वीं विषय- इतिहास पुस्तक- विश्व इतिहास के कुछ विषय अध्याय- 1 “लेखन कला और शहरी जीवन”
मेसोपोटामिया का भूगोल
दजला और फरात नदियों के बीच स्थित मेसोपोटामिया प्रदेश आज इराक गणराज्य का हिस्सा है।
वर्ष 1873 में ब्रिटिश म्यूजिय द्वारा एक खोज शुरू की गई थी जिसका उद्देश्य मेसोपोटामिया में एक ऐसी पट्टी की खोज करना था, जिस पर बाइबिल में वर्णित जलप्लावन की कहानी का अंकन था।
मेसोपोटामिया पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदानों में फैला भौगोलिक विविधता से संपन्न देश है।
यहाँ खेती की शुरुआत लगभग 7000 से 6000 ई. पू. के बीच हुई थी।
दलजा की सहायक नदियाँ ईरान के पहाड़ी प्रदेशों में जाने के लिए परिवहन का बेहतर साधन है।
रेगिस्तान में प्रवेश करते ही फरात नदी कई धाराओं में बहने लगती है। पुराने समय में ये धाराएँ सिंचाई के उपयोग में लाई जाती थीं।
इस प्रदेश की खेती से सबसे अधिक उपज प्राप्त होती थी।
यहाँ के लोग खेती के अलावा पशु पालन (भेड़-बकरियाँ) भी करते थे, जिनसे वे भारी मात्रा में दूध और ऊन जैसी वस्तुएँ प्राप्त करते थे।
उस समय यहाँ नदी में मछलियों की कोई कमी नहीं थी और गर्मी के दिनों पेड़ खजूर के फल लदे रहते थे।
मेसोपोटामिया में शहरीकरण का महत्व
शहरीकरण के बाद मेसोपोटामिया में लोग बड़ी संख्या में रहने लगे।
खाद्य उत्पादन के साथ-साथ अनेक आर्थिक गतिविधियाँ विकसित होने लगीं।
लोग कस्बों में बसने लगे जिसके परिणामस्वरूप उन्हें व्यापार के साथ-साथ अन्य सेवाओं में भाग लेने का अवसर मिलने लगा।
शहरीकरण के कारण मेसोपोटामिया के लोगों को श्रम-विभाजन का हिस्सा बनने का मौका मिला। आज भी श्रम-विभाजन शहरी जीवन की एक मुख्य विशेषता है।
विभिन्न जगहों से शहरी विनिर्माताओं के लिए ईंधन, धातु, कीमती पत्थर, लकड़ी इत्यादि जरूरत की चीजें आने लगीं।
अर्थव्यवस्था को सार्थक रूप देने के लिए सामाजिक संगठन का निर्माण शहरीकरण के कारण ही मुमकिन हुआ।
शहरों में खाद्य पदार्थ गाँवों से पहुँचने लगा और पूरा हिसाब-किताब लिखित रूप में रखा जाने लगा।
मेसोपोटामिया के शहरों में माल की आवाजाही
यह शहर खाद्य पदार्थों से समृद्ध तो था लेकिन यहाँ उस समय खनिज संसाधन का अभाव था।
मेसोपोटामिया के लोग ताँबा, राँगा, सोना, चाँदी, सीपी और कीमती पत्थरों को तुर्की और ईरान से आयात करते थे और बदले में यहाँ से कपड़ा व अन्य कृषि-उत्पाद उन्हें निर्यात करते थे।
पहले पशुओं के माध्यम से वस्तुओं का आवागमन बहुत खर्चीला व कठिन होता था। इसमें समय भी अधिक लगता था।
अंत में लोगों ने सस्ते और हर जगह उपलब्ध संसाधन के रूप में परिवहन के लिए जलमार्ग का चुनाव किया।
हवा के वेग से चलती नावों में सामानों का आयात-निर्यात न के बराबर खर्च के साथ होने लगा।
लेखन कला का विकास
प्रत्येक सामाज के पास एक ऐसी भाषा होती है जिसके माध्यम से उच्चारित ध्वनियाँ अपना अर्थ प्रकट करती हैं।
लेखन या लिपि का अर्थ है उच्चारित ध्वनियाँ, जो दृश्य संकेतों या चिह्नों के रूप में प्रकट की जाती हैं।
मेसोपोटामिया में लगभग 3200 ई. पू. में ऐसी पट्टियाँ प्राप्त की गई थीं, जिन पर बैलों, मछलियों और रोटियों की लगभग 5000 सूचियाँ थीं।
समाज में लेन-देन का स्थायी हिसाब-किताब रखने के लिए लेखन कार्य की शुरुआत की गई।
इस प्रदेश के लोग लेखन कार्य के लिए चिकनी मिट्टी की पट्टियों का उपयोग करते थे।
सरकंडे की तीली की तीखी नोंक बनाकर कीलाकार चिह्न में लेखन कार्य को पूरा किया जाता था।
प्रत्येक लेन-देन के कार्य को एक नई पट्टी पर लिखा जाता था। यही कारण है कि मेसोपोटामिया की खुदाई में सैंकड़ों पट्टिकाएँ मिली हैं।
लेखन प्रणाली और साक्षरता
जिस ध्वनि के लिए कीलाकार चिह्न का प्रयोग किया जाता था वह एक अकेला व्यंजन या स्वर नहीं होता था।
लिखने वाले व्यक्ति (लिपिक) को लेखन कार्य में कुशल बनने के लिए पहले सैकड़ों चिह्न सीखने पड़ते थे और पट्टियों के सूखने से पहले उसे लिखना पड़ता था।
मेसोपोटामिया में पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया अधिक पेचीदा थी इसलिए यहाँ बहुत कम लोग पढ़े-लिखे थे।
उस समय की लिखावट बोलने के तरीके को दर्शाती थी।
लगभग 2600 ई. पू. के आसपास वर्ण कीलाकार हो गए।
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी भाषा सुमेरियन का स्थान 2400 ई. पू. के बाद धीरे-धीरे अक्कदी भाषा ने ले लिया।
लेखन का प्रयोग
मेसोपोटामिया की परंपरागत कथाओं में उरुक को एक अत्यंत सुंदर शहर बताया गया है और इसे सिर्फ ‘शहर’ कहकर संबोधित किया गया है।
इस प्रदेश के परंपरागत कथाओं से पता चलता है कि सबसे पहले राजा ने ही व्यापार और लेखन कार्य की शुरुआत की थी।
लेखन कार्य ने सूचनाओं को सुरक्षित रखने, संदेशों को दूर तक भेजने और मेसोपोटामिया की शहरी संस्कृति की उत्कृष्टता को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दक्षणिनी मेसोपोटामिया का शहरीकरण: मंदिर व राजा
लगभग 5000 ई. पू. के आस-पास मेसोपोटामिया के दक्षिणी भागों में बस्तियों का विकास होने लगा था।
बाद में कुछ बस्तियों ने प्राचीन शहरों का रूप ले लिया।
मुख्य रूप से शहर तीन तरह से विकसित हुए थे-
पहले मंदिर के चारों ओर विकसित हुए।
दूसरे व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित हुए।
तीसरे शाही शहर के रूप में विकसित हुए।
बाहरी लोगों ने कुछ चुने हुए स्थानों पर मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया।
उस समय लोग चंद्र देवता, प्रेम और युद्ध की देवी इन्नाना की पूजा करते थे।
मंदिरों को देवी-देवताओं का घर माना जाता था इसलिए मंदिरों के आँगन के चारों तरफ आम घरों की तरह कमरे बनाए जाते थे।
इस प्रदेश से मिले साक्ष्य के अनुसार लोग देवी-देवताओं को दही और अनाज के साथ-साथ मछली भी चढ़ाते थे।
प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित आपदाओं के कारण मेसोपोटामिया के गाँवों को समय-समय पर पुनःस्थापित किया जाता था।
किसी क्षेत्र में लड़ाई के दौरान जो मुखिया जीतते थे वे हारे हुए लोगों को बंदी बना लेते थे और बाद में आवश्यकता पड़ने पर उन्हें अपनी सेना में शामिल करते थे।
लड़ाई में जीतने वाला मुखिया लूट के सामान को अपने साथियों व अनुयायियों में बाटता था।
उन दिनों सबसे पुराने मंदिर-नगरों में से एक उरुक नगर था।
पुरातत्त्वीय सर्वेक्षणों से पता चलता है कि उरुक नगर का विस्तार 250 हेक्टेयर भूमि में हुआ है।
स्थानीय लोग और युद्ध बंदी कृषि कर से भले ही बच जाते थे लेकिन उन्हें मंदिर और शासकों के कार्य अनिवार्य रूप से करने पड़ते थे।
शासकों के कहे अनुसार आम लोग सुदूर देशों से व्यावसायिक कार्यों के लिए जुड़े होते थे जिसके कारण 3000 ई. पू. के आस-पास उरुक में अत्यधिक तकनीकी प्रगति हुई।
बड़े-बड़े कमरों की छतों के बोझ को संभालने के लिए वास्तुविदों ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया।
बहुत से लोग चिकनी मिट्टी से शंकु बनाने का कार्य करते थे, इन शंकुओं को रंगने के बाद मंदिरों की दीवारों में लगाया जाता था।
कला के विकास के साथ मूर्तियों को चिकनी मिट्टी की तुलना में अधिकतर आयातित पत्थरों से तैयार किया जाने लगा।
कुम्हार के चाक का निर्माण शहरी अर्थव्यवस्था के लिए लाभकरी साबित हुआ। इससे आसानी से बड़े पैमाने पर बर्तनों को बनाना आसान हो गया।
मेसोपोटामिया के लोगों का शहरी जीवन
उर में राजाओं और रानियों के कब्रों में मिले बहुमूल्य रत्न इस बात का प्रमाण हैं कि नगरों में उच्च या संभ्रांत वर्ग का उदय हो चुका था।
कानूनी दस्तावेज के अनुसार मेसोपोटामिया में एकल परिवार को अधिक महत्व दिया जाता था, जिसमें पति-पत्नी और उनके बच्चे शामिल होते थे।
सबसे पहले खुदाई उर नगर में की गई थी। ये मेसोपोटामिया का एक ऐसा नगर था, जिसके साधारण घरों की खुदाई 1930 के दशक में सुव्यवस्थित ढंग से की गई थी।
उस दौरान गलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी व संकरी होती थीं, जिसके कारण पहिए वाली गाड़ियों की पहुँच मकानों तक संभव नहीं थी, इसलिए ईंधन एवं अनाजों को घरों तक गधों की सहायता से पहुँचाया जाता था।
मेसोपोटामिया में जल-निकासी के लिए नालियाँ मोहनजोदड़ों से बिल्कुल अलग थीं।
जल-निकासी के लिए नालियाँ या मिट्टी की नलिकाएँ घरों के आँगन में बनीं होती थीं जिससे स्पष्ट होता है कि घरों का ढलान भीतर की तरफ होता था।
वर्षा का जल निकास नालियों के माध्यम से आँगन में बने हौज तक ले जाया जाता था ताकि तेज वर्षा होने पर बाहर गलियों में कीचड़ न हो।
घरों की दहलीजों को ऊँचा उठाकर बनाया जाता था ताकि बाहर का कीचड़ घरों में प्रवेश न कर सके।
परिवार में गोपनीयता बनाए रखने के लिए घरों का निर्माण इस तरह से किया जाता था कि रोशनी खिड़कियों से न आकर दरवाजे से आँगन तक आती थी।
साक्ष्यों के मुताबिक उर नगर में रहने वाले लोग शकुन और अपशकुन जैसी बातों पर विश्वास करते थे।
एक व्यापारिक नगर के रूप में मारी नगर
मारी नगर ने 2000 ई. पू. के बाद शाही राजधानी के रूप में खूब विकास किया।
यह नगर फरात नदी की ऊर्ध्वधारा पर स्थित है इसलिए यहाँ कृषि अच्छी होती है।
मारी नगर में पशुचारक और किसान दोनों साथ में रहते थे।
पशुचारक पनीर, मांस, चमड़ा इत्यादि के बदले में अनाज और धातु के औजार प्राप्त करते थे।
कई बार गड़रिए किसानों के गाँवों पर हमला करके उनका जमा किया हुआ सामान लूट लिया करते थे।
कभी-कभी बस्तियों में रहने वाले लोग गड़रिओं के पशुओं को नदी-नहरों तक नहीं ले जाने देते थे।
उपरोक्त दो के अलावा और भी ऐसे कई कारण थे जिसकी वजह से किसानों और गड़रिओं के बीच झगड़े हुआ करते थे।
महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थल पर बसे होने के कारण मारी नगर से लकड़ी, राँगा, तेल, ताँबा जैसी और भी कई वस्तुएँ फरात नदी के रास्ते तुर्की, सीरिया और लेबनान के बीच आयात-निर्यात की जाती थीं।
मारी के अधिकारी बाहर जाने वाले सामान को आगे बढ़ने की अनुमति देने से पहले लदे हुए सामान की कीमत का लगभग 10% प्रभार वसूल करते थे।
यहाँ अलाशिया द्वीप से आने वाले ताँबे के प्रमाण मिले हैं। उस समय यह द्वीप ताँबे और टीन के व्यापार के लिए अधिक प्रसिद्ध था।
मारी भले ही सैनिक दृष्टि से मजबूत नहीं था लेकिन व्यापारिक और आर्थिक दृष्टि से संपन्न था।
मेसोपोटामिया संस्कृति में शहरों का महत्व
मेसोपोटामिया के लोग शहरी जीवन को अधिक महत्व देते थे।
शहरों में अनेक संस्कृतियों तथा समुदायों के लोग मिल-जुलकर रहा करते थे।
जब युद्ध में कोई शहर नष्ट हो जाता, तो उसे काव्य के जरिए याद रखा जाता था। उदाहरण के रूप में ‘गिल्गेमिश’ महाकाव्य के अंत को देखा जा सकता है।
गिल्गेमिश महाकाव्य 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था।
मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था।
कुछ शादीशुदा बेटे और उनका परिवार अपने माता-पिता के साथ ही रहा करते थे।
विवाह करने की इच्छा की घोषणा की जाती थी उसके बाद वधू के माता-पिता उसके विवाह के लिए अपनी सहमति देते थे।
विवाह धार्मिक रीतिरिवाजों के साथ संपन्न किए जाते थे।
पिता का घर और धन-संपत्ति आदि बेटों को मिलती थी।
समयावधि अनुसार मुख्य घटनाक्रम
क्रम संख्या
काल
घटनाक्रम
1.
7000-6000 ई.पू.
उत्तरी मेसोपोटामिया के मैदानों में खेती की शुरुआत
2.
5000 ई.पू.
दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पुराने मंदिरों का बनना
3.
3200 ई.पू.
मेसोपोटामिया में लेखन कार्य की शुरुआत
4.
3000 ई.पू.
उरुक का एक विशाल नगर के रूप में विकास: कांसे के औज़ारों के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी
5.
2700-2500 ई.पू.
आरंभिक राजाओं का शासनकाल जिनमें गिल्गेमिश जैसे पौराणिक राजा भी शामिल हैं।
6.
2600 ई.पू.
कीलाकार लिपि का विकास
7.
2400 ई.पू.
सुमेरियन के स्थान पर अक्कदी भाषा का प्रयोग
8.
2370 ई.पू.
सारगोन, अक्कद सम्राट
9.
2000 ई.पू.
सीरिया, तुर्की और मिस्र तक कीलाकार लिपि का प्रसार; महत्त्वपूर्ण शहरी केन्द्रों के रूप में मारी और बेबीलोन का उद्भव
10.
1800 ई.पू.
गणितीय मूलपाठों की रचना; अब सुमेरियन बोलचाल की भाषा नहीं रही