Class 11 History Ch-5 “बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ” Notes In Hindi
Mamta Kumari
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इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी विश्व इतिहास के कुछ विषय के अध्याय- 5 “बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 4 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 History Chapter-5 Notes In Hindi
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कक्षा- 11वीं विषय- इतिहास पुस्तक- विश्व इतिहास के कुछ विषय अध्याय- 5 “बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ”
यूरोपीय इतिहास की जानकारी
14वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी के अंत तक यूरोप के अनेक देशों में नगरों व नगरवासियों की संख्या बढ़ रही थी।
दस्तावेज, लिखित पुस्तकें, चित्र, मूर्ति, भवन और वस्त्र यूरोपीय इतिहास की जानकारी के मुख्य स्त्रोत हैं।
यूरोप में हुआ पुनर्जागरण सांस्कृतिक बदलावों का परिणाम था।
19वीं शताब्दी के इतिहासकारों ने पुनर्जागरण के लिए ‘रेनेसाँ’ शब्द का प्रयोग किया था, जिसका शाब्दिक अर्थ पुनर्जन्म है।
बर्कहार्ट के अनुसार किसी भी इतिहास को लिखने के लिए राजनीति ही सब कुछ नहीं है क्योंकि इतिहास का संबंध संस्कृति और राजनीति दोनों से बराबर है।
1860 ई. में ‘द सिविलाइजेशन ऑफ रेनेसाँ इन इटली’ नाम की पुस्तक बर्कहार्ट द्वारा लिखी गई थी।
‘द सिविलाइजेशन ऑफ रेनेसाँ इन इटली’ पुस्तक में लेखक ने बताया है कि 14वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी तक इटली के नगरों में मानवतावादी संस्कृति कैसे पनपी।
इटली के नगरों का पुनरुत्थान
रोमन साम्राज्य के पतन के बाद इटली के राजीनितक और सांस्कृतिक पत्तनों का अंत हो गया।
पश्चिमी यूरोप में सामंतवादी प्रवृति का लातिनी चर्च के नेतृत्व में एकीकरण हो गया।
बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासन में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के कारण मुस्लिम संयुक्त सभ्यता का विकास हुआ।
कई टुकड़ों में बंटे होने के कारण इटली एक कमजोर देश था।
बाइजेंटाइन साम्राज्य एवं मुस्लिम देशों के बीच व्यापार बढ़ने से इटली के बंदरगाह पुनर्जीवित हो गए।
12वीं शताब्दी में जब मंगोलों ने चीन के साथ रेशम-मार्ग से व्यापार शुरू किया, तो इससे पश्चिमी यूरोपीय देशों को बढ़ावा मिला।
वेनिस और जेनेवा शहरों के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों में धर्माधिकारी और सामंत वर्ग का प्रभुत्व था लेकिन ये दो शहर अभि भी राजनीतिक दृष्टि से जीवंत थे।
धनी व्यापारी और महाजन शासन प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे जिसके बाद लोगों में नागरिकता की भावना पनपने लगी।
नगरों में रहने वाले लोग खुद को नगरवासी कहने में गर्व महसूस करते थे।
विश्वविद्यालय और मानवतावाद
यूरोप में सबसे पहले इटली के शहरों में विश्वविद्यालय स्थापित हुए।
11वीं शताब्दी से ही पादुआ और बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन के केंद्र रहे।
लेखकों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया कि प्राचीन रचनाओं को समझकर ही नई संस्कृति के अध्ययन को तैयार किया जाए।
19वीं शताब्दी के इतिहासकारों ने नई संस्कृति को मानवतावाद का नाम दिया।
11वीं शताब्दी में मानवतावाद शब्द का जुड़ाव उन अध्यापकों से था, जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास और नीतिदर्शन के विषय पढ़ाते थे।
मानवतावाद से जुड़े विषय धार्मिक नहीं थे बल्कि ये उन कौशलों पर जोर देते थे जो व्यक्ति में वाद-विवाद की क्षमता को बढ़ा सके।
उस समय के क्रांतिकारी विचारों ने कई विश्वविद्यालयों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया।
13वीं शताब्दी के अंत तक फ्लोरेंस में व्यापार या शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष उपलब्धि नहीं दिखाई दी लेकिन 15वीं शताब्दी में ऐसे बदलाव हुए कि यह एक प्रसिद्ध नगर बन गया।
बाद में फ्लोरेंस इटली के सबसे जीवंत बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाने लगा।
रेनेसाँ शब्द उन व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता था जो कई कलाओं का पूर्ण ज्ञान रखते थे।
इतिहास का मानवतावादी दृष्टिकोण
मानवतावाद में विश्वास करने वाले लोग यह मानते थे कि रोमन साम्राज्य के विनाश के बाद अंधकार युग का आरंभ हुआ था।
मानवतावादियों की तरह बाद के विद्वानों ने भी यही माना कि यूरोप में 14वीं शताब्दी के बाद ‘नए युग’ यानी आधुनिक युग का प्रारंभ हुआ।
मानवतावाद और बाद के विद्वानों द्वारा कालक्रम के अनुसार दिए गए नाम निम्नलिखित हैं-
क्रम संख्या
समयावधि
नामकरण
1.
5-14 शताब्दी
मध्य युग
2.
5-9 शताब्दी
अंधकार युग
3.
9-11 शताब्दी
आरंभिक मध्य युग
4.
11-14 शताब्दी
उत्तर-मध्य युग
5.
15 शताब्दी से
आधुनिक युग
विज्ञान तथा दर्शन में अरबियों का योगदान
14वीं शताब्दी में ईसाई गिरिजाघरों और मठों के विद्वान यूनानी एवं रोमन कृतियों से परिचित थे लेकिन उन्होंने लोगों के बीच इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया।
बहुत से विद्वानों ने मध्य युग में प्लेटो तथा अरस्तू जैसे विद्वानों के ग्रंथों के अनुवाद को पढ़ना शुरू कर दिया था।
कृतियों के अनुवाद साधारण जनता के लिए अति महत्त्वपूर्ण हो गए थे इसलिए वे खुद को अरब के अनुवादकों का ऋणी मानते थे।
‘अलमजेस्ट’ खगोलशास्त्र पर रचित एक ग्रंथ है। इस ग्रंथ की रचना 140 ई. में यूनानी भाषा में की गई थी।
बाद में ‘अलमजेस्ट’ का अनुवाद अरबी भाषा में किया गया।
मुसलमान लेखकों को इतालवी दुनिया में बड़े स्तर का लेखक माना जाता था।
मानवतावादी विषयों को इटली के विद्यालयों के साथ-साथ यूरोप के और भी देशों में पढ़ाया जाने लगा।
कलाकार और यथार्थवाद
मानवतावादियों ने औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ कला, वास्तुकला और ग्रंथों के माध्यम से मानवतावादी विचारों का प्रचार-प्रसार किया।
पहले के चित्रों से नए कलाकारों को कला के विषयों को समझने की प्रेरणा मिली।
1416 ई. में दोनातल्लो ने सजीव मूर्तियों का निर्माण करके नई परंपरा की शुरूआत की।
कलाकारों की चाह थी कि वो मूल आकृति जैसी मूर्तियाँ बनाएं। इस चाह ने वैज्ञानिकों के कार्यों को आसान बनाने में सहायता की।
नर-कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकारों ने आयुर्विज्ञान के कॉलेजों की प्रयोगशालाओं में जाना शुरू कर दिया।
रेखागणित और प्रकाश के परिवर्तित गुणों की जानकारी के आधार पर चित्रों को त्रि-आयामी रूप दिया जा सकता था।
लेपचित्र बनाने के लिए तेल का प्रयोग करके चित्रों को और भी सुंदर और चमकदार बनाया जाने लगा।
लेपचित्रों पर चीन और फारसी चित्रकला का प्रभाव नजर आता था, जोकि उन्हें मंगोलों से मिली थी।
15वीं शताब्दी में वास्तुकला
15वीं शताब्दी में वास्तुकला के आधार पर रोम भव्य रूप से पुनर्जीवित हो गया।
1378 ई. में दो प्रतिस्पर्धा पोप के निर्वाचन से जन्मी दुर्बलता का अंत हो गया।
वास्तुकला की नई शैली को ‘शास्त्रीय शैली’ कहा जाता था।
संपन्न एवं अभिजात वर्ग के लोगों ने अपने भवनों को बनाने के लिए उन वास्तुविदों का चयन किया, जो शास्त्रीय वास्तुकला से परिचित थे।
उस दौरान कुछ ऐसे भी कलाकार हुए, जो कुशल चित्रकार, मूर्तिकार और वास्तुकार भी थे।
माइकल एंजेलो बुआनारोत्ती (1475-1564 ई.) द्वारा ‘दि पाइटा’ नामक प्रतिमा और सेंट पीटर गिरिजाघर का गुंबद बनाया गया। आज ये सभी कलाकृतियाँ रोम में ही हैं।
फिलिप्पो ब्रुनेलेशि द्वारा फ्लोरेंस के भव्य गुंबद का डिजाइन तैयार किया गया।
इस समय कला की प्रसिद्धि के कारण कलाकारों की पहचान उनकी श्रेणी या संघ के नाम पर नहीं बल्कि कलाकार के नाम पर होने लगी।
यूरोपीय क्षेत्र में प्रथम मुद्रित पुस्तकें
यूरोप में छापेखाने के विकास से बौद्धिक विकास को बल मिला।
दूसरे देश के लोगों को कला से जुड़ी चीजों को देखने के लिए यात्राएँ करनी पड़ती थीं लेकिन इटली के साहित्य में जो कुछ लिखा गया वो मुद्रण की वजह से दूसरे देशों तक पहुँचा।
यूरोपीय लोग मुद्रण प्रौद्योगिकी के लिए चीनी तथा मंगोल शासकों के ऋणी थे।
1455 ई. में सबसे पहले छापेखाने का निर्माण जर्मनी के जोहानेस गुटेनबर्ग ने किया।
गुटेनबर्ग के छापेखाने से सबसे पहले 150 बाईबिल की प्रतियाँ छापी गई थीं।
15वीं शताब्दी में कई शास्त्रीय ग्रंथों का मुद्रण इटली में हुआ था।
मुद्रण प्रौद्योगिकी का विकास न होने के कारण बौद्धिक आंदोलन कुछ ही क्षेत्रों तक समिति रहा।
15वीं शताब्दी में मानतावादी संस्कृति का आल्पस पर्वत के पार तेजी से फैलने का मुख्य कारण मुद्रण प्रौद्योगिकी का विकास था।
यूरोप में महिलाओं की आकांक्षाएँ और उनके अधिकार
महिलाओं को वैयक्तिकता तथा नागरिकता के नए विचारों से दूर रखा गया।
उस दौरान शिक्षा लेने की इजाजत सिर्फ लड़कों को दी जाती थी।
घर-परिवार से जुड़े सभी निर्णयों पर पुरुषों का अधिकार था।
विवाह दो परिवारों के बीच संबंध को मजबूत बनाने के लिए किया जाता था।
महिलाओं को अपने पति के व्यवसाय में हस्तक्षेप नहीं करने दिया जाता था।
जो स्त्री कम दहेज लेकर आती थी, उसे ईसाई मठों में भिक्षुणी का जीवन व्यतीत करना पड़ता था।
स्त्रियों को सिर्फ गृहिणी के रूप में देखा जाता था।
दुकानदारों की स्त्रियाँ दुकान चलाने में उनकी सहायता करती थीं इसलिए व्यवसायिक घरों की स्त्रियों की स्थिति कुछ भिन्न थी।
फिर भी महिलाएँ बौद्धिक रूप से बेहद रचनात्मक और मानवतावादी विचारों से शिक्षित थीं।
वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले ने लिखा था “महिलाओं को शिक्षा न तो पुरस्कार देती है न किसी सम्मान का आश्वासन, तथापि हर एक महिला को सभी तरह की शिक्षा को ग्रहण करने की इच्छा रखनी चाहिए।”
उपरोक्त बात से यह स्पष्ट होता है कि उस समय के लोग शिक्षा को अधिक महत्व देते थे।
मंटुआ एक छोटा-सा प्रांत था और उसका राजदरबादर बौद्धिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध था।
उस समय मंटुआ की मार्चिया इसाबेल दि इस्ते ने अपने पति की अनुपस्थिति में राज्य पर शासन किया था।
ईसाई धर्म से जुड़े वाद-विवाद
नई संस्कृति के नए विचार कुछ ही आम आदमियों तक पहुँच पाए क्योंकि अधिकतर लोग साक्षर नहीं थे।
ईसाइयों ने कर्मकांड को त्यागने पर बल दिया।
इनका मानना था कि दूरवर्ती ईश्वर ने मनुष्य को बनाया है और उसने मनुष्य को अपना जीवन मुक्त रूप से चलाने की पूरी आजादी दी है।
उनका कहना था कि मनुष्य को अपनी खुशी वर्तमान में इसी धरती पर खोजनी चाहिए।
ईसाई धर्म के लोग मनुष्य को मुक्त व विवेकपूर्ण कर्ता समझते थे।
इंग्लैंड के टॉमस मोर और हालैंड के इरेस्मस का मानना था कि चर्च लालच के चक्कर में पड़कर लूटने वाली संस्था बन गई है।
1517 ई. में एक-एक जर्मन युवा ने कैथलिक चर्च के खिलाफ अभियान शुरू किया।
स्पेन और इटली में पादरियों ने साधारण जीवन और निर्धनों की सेवा पर जोर देना शुरू कर दिया।
1540 ई. में ‘सोसाइटी ऑफ जीसस’ की स्थापना की गई।
कोपरनिकसीय क्रांति
“मनुष्य पापी है” ईसाइयों की इस धारणा के विरुद्ध वैज्ञानिकों ने एक अलग दृष्टि पेश की।
उस समय यूरोपीय विज्ञान में परिवर्तन मार्टिन लूथर के समकालीन कोपरनिकस क्रांति के कार्यों से आया।
कोपरनिकस द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य के चारों तरफ परिक्रमा करते हैं।
कोपरनिकस को ईसाई होने के बाद भी डर था कि उनकी नई खोज से परंपरावादी ईसाई धर्माधिकारियों में भयंकर विवाद उत्पन्न हो सकता है।
घोर प्रतिक्रिया के डर से कोपरनिकस ने अपनी पांडुलिपि ‘द रिवल्यूशनिबस’ को प्रकाशित नहीं करवाया और उसे जोशिम रिटिक्स को सौंप दिया।
गैलिलियो ने अपने ग्रंथ ‘दि मोशन’ में गतिशील विश्व के सिद्धांतों की पुष्टि की थी।
ब्रह्मांड का अध्ययन
गैलिलियो ने टिप्पणी की थी कि बाईबिल जिस स्वर्ग के मार्ग को आलोकीक करता है, वह स्वर्ग किस प्रकार चलता है, उसके बारे में कोई जानकारी नहीं देता।
विचारकों का मानना था कि ज्ञान विश्वास पर नहीं बल्कि प्रयोग पर आधारित है।
वैज्ञानिकों द्वार प्रस्तुत किए गए ज्ञान के परिणामस्वरूप संदेहवादियों तथा नास्तिकों के मन में प्रकृति ईश्वर का स्थान लेने लगी।
1670 ई. में पेरिस अकादमी और 1662 ई. में लंदन में रॉयल सोसायटी की स्थापना वास्तविक ज्ञान के प्रसार के लिए की गई।
यूरोप में 14वीं सदी में हुआ पुनर्जागरण
पीटर बर्क के अनुसार बर्कहार्ट ने इस काल और पिछले कालों के बीच के अंतर को दर्शाने के लिए पुनर्जागरण शब्द का प्रयोग किया था।
पुनर्जागरण शब्द से स्पष्ट होता है कि यूनानी और रोमन सभ्यताओं का पुनर्जन्म 14वीं शताब्दी में हुआ।
पुनर्जागरण का समय कलात्मक सृजनशीलता और गतिशीलता का काल था।
एशिया के कई देशों में प्रौद्योगिकी एवं कार्यकुशलता यूनान और रोमन साम्राज्य की तुलना में अधिक विकसित थे।
इटली में पुनर्जागरण से जुड़े बहुत से तत्व 12वीं और 13वीं शताब्दी में पाए गए।
नौवीं शताब्दी में फ्रांस में साहित्यिक और कलात्मक रचनाओं के विचार पनपे।
यूरोप में आए सांस्कृतिक बदलवा में यूनान और रोमन की क्लासिक सभ्यता के साथ-साथ पुरातात्विक तथा साहित्यिक पुनरुद्धार का भी महत्त्वपूर्ण योगदान था।
इस काल में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के निजी और सार्वजनिक दो अलग-अलग क्षेत्र बन गए थे।
यूरोप में भाषा के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों ने अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी थी।
18वीं शताब्दी में व्यक्ति को राजनीतिक पहचान मिलने लगी और उन्हें यह समझ आने लगा कि प्रत्येक व्यक्ति के एक समान राजनीतिक अधिकार है।
अब राज्यों के बीच समान भाषा का होना आंतरिक जुड़ाव का कारण था।
समयावधि अनुसार मुख्य घटनाक्रम
क्रम संख्या
काल
घटनाक्रम
1.
1300
इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में मानवतावाद पढ़ाया जाने लगा
2.
1341
पेट्रार्क को रोम में ‘राजकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया गया
3.
1349
फ़्लोरेंस में विश्वविद्यालय की स्थापना
4.
1390
जेफ्री चॉसर की ‘केन्टरबरी टेल्स’ का प्रकाशन
5.
1436
ब्रुनेलेशी ने फ़्लोरेंस में ड्यूमा का परिरूप तैयार किया
6.
1453
कुंस्तुनतुनिया के बाइजेंटाइन शासक को ऑटोमन तुर्कों ने पराजित किया
7.
1454
गुटेनबर्ग ने विभाज्य टाइप से बाईबल का प्रकाशन किया
8.
1484
पुर्तगाली गणितज्ञों ने सूर्य का अध्ययन कर अक्षांश की गणना की
9.
1492
कोलम्बस अमरीका पहुँचे
10.
1495
लियोनार्डो द विंची ने ‘द लास्ट सपर’ (अंतिमभोज) चित्र बनाया
11.
1512
माइकल एन्जिलो ने सिस्टीन चैपल की छत पर चित्र बनाए
12.
1516
टॉमस मोर की यूटोपिया का प्रकाशन
13.
1517
मॉर्टिन लूथर द्वारा नाइन्टी फाईव थिसेज की रचना
14
1522
लूथर द्वारा बाईबल का जर्मन में अनुवाद
15
1525
जर्मनी में किसान विद्रोह
16
1543
एन्ड्रीयास वेसेलियस द्वारा ऑन ऐनॉटमी ग्रंथ की रचना
17.
1559
इंग्लैंड में आँग्ल-चर्च की स्थापना जिसके प्रमुख राजा/रानी थे
18.
1569
गेरहार्डस मरकेटर ने पृथ्वी का पहला बेलनाकार मानचित्र बनाया
19.
1582
पोप ग्रेगरी XIII के द्वारा ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रचलन
20.
1628
विलियम हार्वे ने हृदय को रुधिर-परिसंचरण से जोड़ा
21.
1673
पेरिस में ‘अकादमी ऑफ साइंसेज’ की स्थापना
22.
1687
आइज़क न्यूटन के प्रिन्सिपिया मैथेमेटिका का प्रकाशन