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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 इतिहास अध्याय 2 भारत में राष्ट्रवाद

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Ekta Ranga
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आप इस आर्टिकल से कक्षा 10 इतिहास अध्याय 2 भारत में राष्ट्रवाद के प्रश्न उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। भारत में राष्ट्रवाद के प्रश्न उत्तर परीक्षा की तैयारी करने में बहुत ही लाभदायक साबित होंगे। इन सभी प्रश्न-उत्तर को सीबीएसई सिलेबस को ध्यान में रखकर बनाया गया है। कक्षा 10 इतिहास पाठ 2 के एनसीईआरटी समाधान से आप नोट्स भी तैयार कर सकते हैं, जिससे आप परीक्षा की तैयारी में सहायता ले सकते हैं। हमें बताने में बहुत ख़ुशी हो रही है कि यह सभी एनसीईआरटी समाधान पूरी तरह से मुफ्त हैं। छात्रों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जायेगा।

Ncert Solutions For Class 10 History Chapter 2 In Hindi Medium

हमने आपके लिए भारत में राष्ट्रवाद के प्रश्न उत्तर को संक्षेप में लिखा है। इन समाधान को बनाने में ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ की सहायता ली गई है। भारत में राष्ट्रवाद पाठ बहुत ही रोचक है। इस अध्याय को आपको पढ़कर और समझकर बहुत ही अच्छा ज्ञान मिलेगा। आइये फिर नीचे कक्षा 10 इतिहास अध्याय 2 भारत में राष्ट्रवाद के प्रश्न उत्तर (Class 10 History Chapter 2 Question Answer In Hindi Medium) देखते हैं।

संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1 – व्याख्या करें –

(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?

(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?

(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे?

(घ) गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया?

उत्तर :- (क)

(1) औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे।
(2) उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया था।
(3) चीन, लैटिन, वियतनाम, भारत और बर्मा जैसे देशों में भी राष्ट्रीय आंदोलन की लहर दौड़ पड़ी।

(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में इस प्रकार योगदान दिया –

(1) भारतीयों का विश्व से संपर्क – जिस समय प्रथम विश्वयुद्ध हुआ था उस समय अंग्रेजों ने भारत के अनेकों सैनिकों को युद्ध के लिए भेजा था। यह भारतीय सैनिकों के लिए एकदम ही अलग अनुभव था। सैनिकों ने यह देखा कि कैसे शक्तिशाली देश अपने लिए हक की लड़ाई लड़ रहे थे। सैनिकों को लगा कि क्यों ना भारत भी अंग्रेजों के खिलाफ अपने हक की लड़ाई लड़े।

(2) सांप्रदायिक एकता – महात्मा गांधी ने भारत में सांप्रदायिक एकता बढ़ाने के लिए एक बहुत बड़ा कदम उठाया। दरअसल गांधीजी को लगता था कि पूरा भारत एकजुट तभी हो सकता है जब हिंदू-मुस्लिम मिलकर आजादी की लड़ाई लड़े। क्योंकि ऑटोमन साम्राज्य का पतन हो गया था तो ऐसे में पूरे भारत में यह अफवाह फैल गई कि ऑटोमन सम्राट पर एक सख्त संधि थोपी जाएगी। फिर ख़लीफ़ा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में बंबई में एक ख़िलाफत समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जनकार्रवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी। सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए।

(3) आर्थिक प्रभाव – प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सभी शक्तिशाली देशों का रक्षा बजट बहुत अधिक बढ़ गया था। विश्वयुद्ध का प्रभाव ब्रिटेन पर भी समान रूप से पड़ा। इंग्लैंड का भी भारी खर्चा हुआ। नौबत यह तक आ गई कि उसे अमेरिका से कर्ज लेना पड़ा था। जब इंग्लैंड को कर्ज चुकाने का टाइम आया तो उसने भारतीयों पर जुल्म करने शुरू कर दिया। इंग्लैंड ने किसानों को अतिरिक्त टैक्स से लाद दिया। ऐसे में जनता के बीच आक्रोश फूट पड़ा। इसने राष्ट्रीय आंदोलन में तेजी ला दी थी।

(4) प्राकृतिक संकट – भारत ने एक समय पर प्राकृतिक आपदाओं का संकट भी झेला। बाढ़, सुखा और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाएं भारतीयों पर कहर बनकर बरसी। ऐसे में अंग्रेजों ने भारतीयों की सहायता करने की बजाय उन्हें और लूटा। ऐसी परिस्थिति के चलते भी राष्ट्रीय आंदोलन का विकास हुआ।

(ग) भारत के लोग राॅलट एक्ट के विरोध में इसलिए थे क्योंकि इस एक्ट के चलते भारत के लोगों का दमन हुआ था। 1919 में प्रस्तावित रॉलट एक्ट (1919) के ख़िलाफ़ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन चलाने का फ़ैसला लिया। भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इस कानून को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने बहुत जल्दबाजी में पारित कर दिया था। इस कानून के ज़रिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था। महात्मा गांधी ऐसे अन्यायपूर्ण कानूनों के ख़िलाफ़ अहिंसक ढंग से नागरिक अवज्ञा चाहते थे। इसे 6 अप्रैल को एक हड़ताल से शुरू होना था। विभिन्न शहरों में रैली-जुलूसों का आयोजन किया गया। रेलवे वर्कशॉप्स में कामगार हड़ताल पर चले गए। दुकानें बंद हो गईं। इस व्यापक जन-उभार से चिंतित तथा रेलवे व टेलीग्राफ़ जैसी संचार सुविधाओं के भंग हो जाने की आंशका से भयभीत अंग्रेजों ने राष्ट्रवादियों पर दमन शुरू कर दिया।

(घ) महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापिस इसलिए ले लिया था क्योंकि इसी आंदोलन के चलते एक दिन चौरी-चौरा में एक बहुत बड़ा कांड हो गया था। दरअसल हुआ यूं कि एक दिन लोगों का जुलूस चौरी-चौरा से होते हुए निकल रहा था। वहां लोगों की भीड़ और पुलिस में तनाव पैदा हो गया था। तनाव इतना भयानक हो गया कि आंदोलनकारियों ने पुलिस चौकी को आग में झोंक दिया था। पुलिस वालों की जलने की वजह से मौत हो गई थी। तकरीबन 22 पुलिस वाले इस हादसे में मारे गए थे। जब महात्मा गांधी को आंदोलनकारियों के हिंसात्मक रैवेये के बारे में पता चला तो उन्होंने असहयोग आंदोलन को वापिस लेने के लिए कह दिया।

प्रश्न 2 – सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?

उत्तर :- सत्याग्रह अपने आप में एक बहुत ही ताकतवर शब्द है। इस शब्द को अस्तित्व में लाने का श्रेय महात्मा गांधी को ही जाता है। यह शब्द सच्चाई को बहुत अधिक महत्व देता है। इसके मुताबिक अगर कोई आपका दमन करना चाह रहा है, तो आपको इस अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहिए। पर लड़ाई का अर्थ यह नहीं है कि आप हिंसात्मक रवैया अपनाओ। हम बिना लड़ाई-झगड़े के भी अपने दुश्मनों को बुरी तरह से परास्त कर सकते हैं। बस हमें शानदार सूझबूझ के साथ शांतिपूर्ण तरीके से दुश्मनों को हराना होगा।

प्रश्न 3 – निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें:

(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड

उत्तर :- देश में एक बहुत ही बड़ा हत्याकांड हो गया है। ऐसे हत्याकांड के बारे में किसी ने भी पहले कभी ना सुना ना देखा था। अंग्रेजों ने बर्बरता की सारी हदें तब पार कर दी जब 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। किसी को यह अंदाजा तक नहीं था कि बैसाखी के मेले का जश्न मना रहे लोगों के बीच पल भर में मातम फैल जाएगा। जनरल डायर के आदेश पर जलियाँवाला बाग में हजारों निहत्थे लोगों को गोलियों से भून दिया गया। निर्ममता ऐसी रही कि जलियाँवाला बाग के सभी दरवाजे बंद कर दिए गए। कोई भी लोग भागने में सफल नहीं रहे। इस हत्याकांड में कितने ही तो लोग मारे गए और कितने ही लोग घायल अवस्था में अस्पताल पहुंचाए गए। पूरे देश में इस हत्याकांड की कड़ी आलोचना हो रही है।

(ख) साइमन कमिशन

उत्तर :- वर्ष 1928: ब्रिटिश सरकार साइमन कमीशन नाम से एक अलग प्रकार का कमीशन लेकर आई है। इस कमीशन की कमान सर जाॅन साइमन संभाल रहे हैं। यह कमीशन इन्हीं के ही नाम पर रखा गया है। इस कमीशन को भारतीय संवैधानिक आयोग भी कहा जा रहा है। इस कमीशन की मदद से ब्रिटिश सरकार भारत में संवैधानिक संशोधन पर स्टडी करना चाहती थी। पर ब्रिटिश सरकार ने एक भी भारतीय को इस टीम में शामिल नहीं किया। इस बात को लेकर भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ भड़क उड़े। सभी ने मिलकर साइमन कमिशन का घोर विरोध किया।

प्रश्न 4 – इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।

उत्तर :- इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि में बहुत हद तक समानता है। दरअसल दोनों ही छवियों को शक्तिशाली महिला के रूप में प्रस्तुत किया गया है। दोनों ही छवियों को अपने अपने देश में पूजा जाता है। भारत माता को हमेशा से ही एक देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। और जर्मेनिया को भी पूजनीय रूप में देखा गया है। इन दोनों ही छवियों ने अपने अपने देशों में अनेकों युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया।

चर्चा करें

प्रश्न 1 – 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।

उत्तर :- 1921 के असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले बहुत से सामाजिक समूहों ने इस आंदोलन में सक्रियता से अपनी भागीदारी निभाई थी। इस आंदोलन में शामिल होने वाले मुख्य समूह थे- छात्र, हेडमास्टर, जनजातीय, श्रमिक, वकील और किसान आदि। हम इन में से तीन समूहों के बारे में समझेंगे –

(1) मध्यम वर्ग – इस आंदोलन में मध्यमवर्ग ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। हम उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में बात करते हैं –

आशाएं – इस आंदोलन से मध्यमवर्ग को बहुत आशाएं और उम्मीदें थी। इन सभी को यह उम्मीद थी कि वह इस आंदोलन के जरिए स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर विदेशी वस्तुओं का त्याग कर देंगे। सभी ने विदेशी वस्तुओं को त्याग दिया था।

संघर्ष – लेकिन विदेशी वस्तुओं और विदेशी वस्त्रों का त्याग करके मध्यमवर्ग को ज्यादा फायदा नहीं हुआ। क्योंकि खादी के कपड़े मिलों में बनने वाले कपड़ों से ज्यादा महंगे पड़ रहे थे। इन महंगे कपड़ों को गरीब लोग नहीं खरीद सकते थे। इसलिए मिलों में दूबारा से कपड़ों का उत्पादन होने लगा।

(2) किसान वर्ग – इस देश के किसान भी असहयोग आंदोलन से जुड़े थे। हम उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में बात करते हैं –

आशाएं – किसान वर्ग को इस आंदोलन से यह आशा थी कि उनके ऊपर लागू किया गया लगान कम होगा। वह अंग्रेजों द्वरा थोपी गई बेगारी से बच जाएंगे। उन सभी को यह भी आशा थी कि इस आंदोलन की सहायता से वह जमींदारों की क्रूरता से बच पाएंगे।

संघर्ष – तालुकदारों और व्यापारियों के मकानों पर हमले होने लगे, बाजारों में लूटपाट होने लगी और अनाज के गोदामों पर कब्ज़ा कर लिया गया।

(3) बगानों के मजदूर – महात्मा गांधी के विचारों और स्वराज की अवधारणा के बारे में मज़दूरों की अपनी समझ थी। असम के बागानी मज़दूरों के लिए आज़ादी का मतलब यह था कि वे उन चारदीवारियों से जब चाहे आ-जा सकते हैं जिनमें उनको बंद करके रखा गया था।

आशाएं – जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हज़ारों मज़दूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे। उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए । उनको लगता था कि अब गांधी राज आ रहा है इसलिए अब तो हरेक को गाँव में ज़मीन मिल जाएगी।

संघर्ष – लेकिन असल में मजदूर अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाए । रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे रास्ते में ही फँसे रह गए। उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई हुई।

प्रश्न 2 – नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।

उत्तर :- देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गांधी को नमक एक शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया। नमक यात्रा की शुरुआत 12 मार्च 1930 को हुई थी। इसका नेतृत्व गांधीजी कर रहे थे। महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलेंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में गांधीजी के आश्रम से 240 किलोमीटर दूर दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। गांधीजी की टोली ने 24 दिन तक हर रोज लगभग 10 मील का सफ़र तय किया। गांधीजी जहाँ भी रुकते हजारों लोग उन्हें सुनने आते।

प्रश्न 3 – कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफरमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता।

उत्तर :- सिविल नाफरमानी आंदोलन में मैंने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया। गांधीजी के नमक सत्याग्रह के दौरान मेरे अलावा हज़ारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए घर से बाहर आ जाती थीं। मुझे घायलों की सेवा करने में आनंद की अनुभूति प्राप्त होती थी। उन्होंने जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। बहुत सारी महिलाएँ जेल भी गई।

प्रश्न 4 – राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे?

उत्तर :- राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर अनेकों कारणों से बंटे हुए थे। दरअसल भारत के दलित वर्ग के नेता और मुस्लिम वर्ग के नेता इस बात से चिंतित थे। बहुत सारे दलित नेता अपने समुदाय की समस्याओं का अलग राजनीतिक हल ढूँढ़ना चाहते थे। वे खुद को संगठित करने लगे। उन्होंने शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के लिए आवाज उठाई और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही ताकि वहाँ से विधायी परिषदों के लिए केवल दलितों को ही चुनकर भेजा जा सके। उनका मानना था कि उनकी सामाजिक अपंगता केवल राजनीतिक सशक्तीकरण से ही दूर हो सकती है। इसलिए सविनय अवज्ञा आंदोलन में दलितों की हिस्सेदारी काफ़ी समित थी। डॉ. अंबेडकर ने 1930 में दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन (Depressed Classes Association) में संगठित किया। दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों के सवाल पर दूसरे गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी के साथ उनका काफी विवाद हुआ। जब ब्रिटिश सरकार ने अंबेडकर की माँग मान ली तो गांधीजी आमरण अनशन पर बैठ गए। उनका मत था कि दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था से समाज में उनके एकीकरण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाएगी। तो वहीं दूसरी ओर मुस्लिम नेताओं को लगा कि अगर पृथक निर्वाचिका पद्धति का इस्तेमाल नहीं हुआ तो अल्पसंख्यक समुदाय का दमन हो जाएगा।

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