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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 2 व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है
कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान पाठ 2 के प्रश्न उत्तर छात्रों की सहायता के लिए बनाए गए हैं। सीबीएसई सिलेबस को ध्यान में रखकर samajik vigyan class 8 के प्रश्न उत्तर बनाए गए हैं। बता दें कि class 8 samajik vigyan chapter 2 question answer को राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के सहायता से बनाया गया हैं। एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास हमारे अतीत -3 का उदेश्य केवल अच्छी शिक्षा देना हैं।
कक्षा : 8
विषय : सामाजिक विज्ञान (इतिहास हमारे अतीत -3)
पाठ:-2. (व्यापार से साम्राज्य तक कम्पनी की सत्ता स्थापित होती है)
1 .निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ:-
दीवानी टीपू सुल्तान
शेर – ए – मैसूर भूराजस्व वसूल करने का अधिकार
फ़ौजीदारी अदालत सिपॉय
रानी चेन्नम्मा भारत का पहला गवर्नर जनरल
सिपाही फ़ौजदारी अदालत
वॉरन हेस्टिंग्स कित्तूर में अंग्रेज -विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया
उत्तर:-
दीवानी भूराजस्व वसूल करने का अधिकार
शेर – ए – मैसूर टीपू सुल्तान
फ़ौजीदारी अदालत फ़ौजदारी अदालत
रानी चेन्नम्मा कित्तूर में अंग्रेज -विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया
सिपाही सिपॉय
वॉरन हेस्टिंग्स भारत का पहला गवर्नर जनरल
प्रश्न 2 – रिक्त स्थान भरें :-
(क) बंगाल पर अंग्रेजों की जीत ____ की जंग से शुरू हुई थी।
(ख) हैदर अली और टीपू सुल्तान ____ के शासक थे।
(ग) डलहौजी ने ____ का सिद्धांत लागू किया।
(घ) मराठा रियासतें मुख्य रूप से भारत के ____ भाग में स्थित थी।
उत्तर:- (क) बंगाल पर अंग्रेजों की जीत प्लासी की जंग से शुरू हुई थी।
(ख) हैदर अली और टीपू सुल्तान मैसूर के शासक थे।
(ग) डलहौजी ने लैप्स तथा विलय का सिद्धांत लागू किया।
(घ) मराठा रियासतें मुख्य रूप से भारत के मध्य तथा पश्चिमी भाग में स्थित थी।
प्रश्न -3 सही या गलत बताएँ:-
(क) मुगल साम्राज्य अठारहवीं सदी में मजबूत होता गया।
उत्तर:- गलत
(ख) इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के साथ व्यापार करने वाली एकमात्र यूरोपीय कंपनी थी।
उत्तर :- गलत
(ग) महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के राजा थे।
उत्तर:- सही
(घ) अंग्रेजों ने अपने कब्जे वाले इलाकों में कोई शासकीय बदलाव नहीं किए।
उत्तर :- गलत
आइए विचार करें:-
प्रश्न 4 – यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों भारत की तरफ क्यों आकर्षित हो रही थी ?
उत्तर :- यूरोप के बाजारों में भारत के बने बारीक सूती कपड़े और रेशम की जबरदस्त माँग थी। इनके अलावा काली मिर्च, लौंग, इलायची और दालचीनी की भी जबरदस्त माँग रहती थी। यूरोपीय कंपनियों के बीच इस बढ़ती प्रतिस्पर्धा से भारतीय बाजारों में इन चीजों की कीमतें बढ़ने लगीं और उनसे मिलने वाला मुनाफा गिरने लगा। अब इन व्यापारिक कंपनियों के फलने–फूलने का यही एक रास्ता था कि वे अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनियों को खत्म कर दे। इसी कारण यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों भारत की तरफ आकर्षित हो रही थी।
प्रश्न 5 – बंगाल के नवाबों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच किन बातों पर विवाद थे ?
उत्तर :- बंगाल के नवाबों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच निम्नलिखित बातों पर विवाद थे:-
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद बंगाल के नवाब अपनी ताकत दिखाने लगे थे। उन्होंने कंपनी को रियायतें देने से मना कर दिया। व्यापार का अधिकार देने के बदले कंपनी से नज़राने माँगे, उसे सिक्के ढालने का अधिकार नहीं दिया और उसकी किलेबंदी को बढ़ाने से रोक दिया। कंपनी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए उन्होंने दलील दी कि उसकी वजह से बंगाल सरकार की राजस्व वसूली कम होती जा रही है और नवाबों की ताकत कमज़ोर पड़ रही है। उसके अफसरों ने अपमानजनक चिट्ठियाँ लिखीं और नवाबों व उनके अधिकारियों को अपमानित करने का प्रयास किया। कंपनी का कहना था कि स्थानीय अधिकारियों की बेतुकी माँगों से कंपनी का व्यापार तबाह हो रहा है। व्यापार तभी फल – फूल सकता है जब सरकार शुल्क हटा ले।
प्रश्न 6 – दीवानी मिलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को किस तरह फायदा पहुंचा ?
उत्तर:- दीवानी का अर्थ है:- राजस्व वसूली का अधिकार। 1765 में मुग़ल सम्राट ने कंपनी को ही बंगाल प्रांत का दीवान नियुक्त कर दिया। दीवानी मिलने के कारण कंपनी को बंगाल के विशाल राजस्व संसाधनों पर नियंत्रण मिल गया था। इस तरह कंपनी की एक पुरानी समस्या हल हो गयी थी। अठारहवीं सदी की शुरुआत से ही भारत के साथ उसका व्यापार बढ़ता जा रहा था। लेकिन उसे भारत में ज़्यादातर चीजें ब्रिटेन से लाए गए सोने और चाँदी के बदले में खरीदनी पड़ती थीं। इसकी वजह ये थी कि उस समय ब्रिटेन के पास भारत में बेचने के लिए कोई चीज़ नहीं थी। प्लासी की जंग के बाद ब्रिटेन से सोने की निकासी कम होने लगी और बंगाल की दीवानी मिलने के बाद तो ब्रिटेन से सोना लाने की ज़रूरत ही नहीं रही। अब भारत से होने वाली आमदनी के सहारे ही कंपनी अपने खर्चे चला सकती थी। इस कमाई से कंपनी भारत में सूती और रेशमी कपड़ा ख़रीद सकती थी। अपनी फौजों को सँभाल सकती थी और कलकत्ते में किलों और दफ्तरों के निर्माण की लागत उठा सकती थी।
प्रश्न 7 – ईस्ट इंडिया कंपनी टीपू सुल्तान को खतरा क्यों मानती थी ?
उत्तर:- ईस्ट इंडिया कंपनी टीपू सुल्तान को निम्नलिखित कारणों से खतरा मानती थी :-
(क) टीपू सुल्तान एक शक्तिशाली शासक था। उसके नेतृत्व में मैसूर राज्य काफ़ी शक्तिशाली हो चुका था।
(ख) मालाबार तट से होने वाला व्यापार मैसूर राज्य के नियंत्रण में था जहाँ से कंपनी काली मिर्च और इलायची ख़रीदती थी। 1785 में टीपू सुल्तान ने अपने राज्य में पड़ने वाले बंदरगाहों से चंदन की मे लकड़ी काली मिर्च और इलायची का निर्यात रोक दिया। उसने स्थानीय सौदागरों को भी कंपनी के साथ कारोबार करने से मना कर दिया।
(ग) टीपू सुल्तान ने भारत में रहने वाले फ्रांसीसी व्यापारियों से घनिष्ठ संबंध विकसित किए और उनकी सहायता से अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया। सुल्तान के इन कदमों से अंग्रेज (ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी) आग – बबूला हो गए। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों में खलबली मच गई थी।
प्रश्न 8 – “सब्सिडियरी एलायंस“ (सहायक संधि) व्यवस्था की व्याख्या करें।
उत्तर :- उस समय भारत में सहायक संधि लॉर्ड वैल्जली ने चलाई थी। संधि केवल अंग्रेज कंपनी और देशी राजाओं के बीच हुआ करती थी। संधि को मानने वाले देशी राजा को निम्नलिखित शर्तों का पालन करना पड़ता था:-
(क) अपने राज्य में अपने खर्च पर एक अंग्रेज़ी सेना रखना। इसे सहायक सेना कहा जाता था।
(ख) अपने दरबार में एक अंग्रेज प्रतिनिधि रखना।
(ग) अपने दरबार में अंग्रेजों की आज्ञा के बिना किसी विदेशी को नौकरी न देना।
(घ) किसी अन्य राज्य से युद्ध हो जाने एक अंग्रेजों का निर्णय मानना।
राजाओं की स्थिति :- सहायक संधि को मानने वाला देशी राजा यदि सहायक सेना का खर्चा नहीं दे पाता था। कंपनी जुर्माने के रूप में उसके किसी प्रदेश पर अधिकार कर लेती थी। उदाहरण के लिए उस समय अवध के नवाब को 1801 में अपना आधा इलाका कंपनी को सौंपने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि नवाब ” सहायक सेना” के लिए पैसा अदा करने में चूक गए थे। इसी आधार पर हैदराबाद के भी कई इलाके छीन लिए गए।
प्रश्न 9 – कंपनी का शासन भारतीय राजाओं के शासन में किस तरह अलग था।
उत्तर :- (क) भारत में ज्यादा तर राजा निरंकुश हुआ करते थे। उन्हें किसी जनता द्वारा नहीं चुना जाता था। उनका पद पैतृक होता था। मतलब कि उनके पिता के बाद उन्हें राजा घोषित कर दिया जाता था। वही दूसरी तरफ कंपनी का शासन कंपनी के अधिकारियों द्वारा नियुक्त प्रशासक चलाते थे। उन्हें शासन चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता था।
(ख) भारतीय राजाओं कोई भी अपना कानून नहीं हुआ करता था। कोई भी फैसला राजाओं द्वारा ही लिया जाता था। मतलब कि राजा ही सबसे बड़ा न्यायाधीश होता था। राजाओं के कानून लिखित नहीं थे। वही दूसरी तरफ कंपनी के सभी कानून लिखें हुए थे। इन कानून की समस्या के लिए अदालत भी बनाई गई थी। इन सबके ऊपर सर्वोच्च न्यायालय भी होता था।
(ग) कंपनी तथा भारतीय राजाओं के सैनिकों में अंतर होता था। राजाओं की सेना थोड़ी कम प्रशिक्षित थी। लेकिन वही कंपनी के सैनिक काफी प्रशिक्षित थे। उनको हर मुश्किलों से लड़ना सिखाया गया था।
प्रश्न 10 – कंपनी की सेना की संरचना में आए बदलावों का वर्णन करें।
उत्तर :- ईस्ट इंडिया कंपनी आरंभ में एक व्यापारिक कंपनी ही थी। परंतु बंगाल की विजय के बाद यह एक प्रशासनिक कंपनी भी बन गई। इसी बीच कंपनी ने बंबई तथा मद्रास पर भी अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी। अपनी सत्ता की रक्षा तथा मजबूती के लिए कंपनी की सेना को नया रूप देना आवश्यक हो गया।
सैनिक संरचना में परिवर्तन :- सैनिक संगठन में समय के अनुसार आवश्यक परिवर्तन किए गए। अठारहवीं शताब्दी में अवध और बनारस जैसी रियासतों में किसानों को भर्ती करके उन्हें पेशेवर सैनिक प्रशिक्षण दिया जाने लगा। ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब अपनी सेना के लिए भर्ती शुरू की तो उसने भी यही तरीका अपनाया। अंग्रेज़ अपनी सेना को सिपॉय आर्मी कहते थे। 1820 के दशक से युद्ध तकनीक के बदलने से कंपनी की सेना में घुड़सवार टुकड़ियों का महत्त्व कम हो गया। इसका कारण यह था कि ब्रिटिश शासन वर्मा, अफ़गानिस्तान और मिस्र में भी लड़ रहा था जहाँ सिपाही मस्केट (तोड़ेदार बंदूक) और मैचलॉक से लैस होते थे। अतः कंपनी की पैदल टुकड़ी अधिक महत्त्वपूर्ण होती जा रही थी। इस प्रकार 19 वीं शताब्दी के आरंभ तक सिपाहियों को यूरोपीय ढंग का प्रशिक्षण, अभ्यास और अनुशासन सिखाया जाने लगा। अब उनका जीवन पहले से भी कहीं अधिक नियंत्रित था।
आइए करके देखें :-
प्रश्न 11 – बंगाल में अंग्रेजों के बाद कलकत्ता एक छोटे से गाँव से बड़े शहर में तब्दील हो गया। औपनिवेशिक काल के दौरान शहर के यूरोपीय और भारतीय निवासियों को संस्कृति, शिल्प और जीवन के बारे में पता लगाएँ।
उत्तर :- कलकत्ता को पहले कालिकाता के नाम से जाना जाता था। जब मुगल साम्राज्य ने कालिकाता पर जमींदारी का अधिकार दिया तो यह एक छोटे से गाँव से बड़े शहर में उभरने लगा। कलकत्ता प्रशासन का केंद्र बन गया। अंग्रेज बंगलौर में पानी की आपूर्ति, बिजली की आपूर्ति, उद्यान आदि जैसी सुविधाओं के साथ अच्छी तरह से विकसित क्षेत्रों में रह रहे थे। अधिकांश भारतीय खराब परिस्थितियों वाले भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में रहते थे। उस समय के दौरान शहर सांस्कृतिक रूप से भी विकसित हुआ। नाटकों, थिएटरों, संगीत ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध किया। औपनिवेशिक काल में कई शिक्षण संस्थान स्थापित हुए।
प्रश्न 12 – निम्नलिखित में से किसी के बारे में तस्वीरें, कहानियाँ, कविताएँ और जानकारियाँ इकट्ठा करें :- झाँसी की रानी, महादजी सिंधिया, हैदर अली, महाराजा रणजीत सिंह, लॉर्ड डलहौजी या आपके इलाके का कोई पुराना शासक।
उत्तर :- महाराजा रणजीत सिंह :– महाराजा रणजीत एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते – जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं भटकने दिया। रणजीत सिंह का जन्म सन् 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) संधावालिया महाराजा महा सिंह के घर हुआ था। रणजीत सिंह में सैनिक नेतृत्व के बहुत सारे गुण थे। वे दूरदर्शी थे। वे साँवले रंग का नाटे कद के मनुष्य थे। उनकी एक आँख शीतला के प्रकोप से चली गई थी। परन्तु यह होते हुए भी वह तेजस्वी थे। इसलिए जब तक वह जीवित थे, सभी मिस्लें दबी थीं। उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफ़ग़ानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी चली गई थी। वे महज़ 12 वर्ष के थे जब उनके पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर आ गया। 12 अप्रैल 1801 को रणजीत सिंह ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक जी के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया।
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अध्याय की संख्या | अध्याय के नाम |
अध्याय 1 | कैसे, कब और कहाँ |
अध्याय 2 | व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है |
अध्याय 3 | ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना |
अध्याय 4 | आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना |
अध्याय 5 | जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद |
अध्याय 6 | बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक |
अध्याय 7 | “देशी जनता” को सभ्य बनाना राष्ट्र को शिक्षित करना |
अध्याय 8 | महिलाएँ, जाति एवं सुधार |
अध्याय 9 | राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक |
अध्याय 10 | स्वतंत्रता के बाद |
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