इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक- 3 यानी भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग- 3 के अध्याय- 12 संविधान का निर्माण (एक नए युग की शुरुआत) के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 12 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 History Book-3 Chapter-12 Notes In Hindi
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अध्याय- 12 “संविधान का निर्माण” (एक नए युग की शुरुआत)
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | इतिहास |
पाठ्यपुस्तक | भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-3 |
अध्याय नंबर | बारह (12) |
अध्याय का नाम | “संविधान का निर्माण” (एक नए युग की शुरुआत) |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-3
अध्याय- 12 “संविधान का निर्माण” (एक नए युग की शुरुआत)
संविधान निर्माण का दौर
- संविधान निर्माण से पूर्व का समय काफी उथल-पुथल वाला था।
- मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार कर दिया था। लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग की जा रही थी।
- 15 अगस्त 1947 को भारत सिर्फ औपनिवेशिक गुलामी से आजाद नहीं हुआ था बल्कि हिंदुओं और सिखों को दो क्षेत्रों हिंदुस्तान और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनने का समय भी था।
- स्वतंत्र भारत के सामने एक गंभीर समस्या देशी रियासतों को लेकर भी थी।
संविधान सभा का गठन
- 1946 में संपन्न हुए चुनाव के आधार पर संविधान सभा का गठन किया गया था।
- मुस्लिम लीग ने संविधान सभा के प्रारंभिक बैठकों का बहिष्कार किया जिसके परिणामस्वरूप संविधान सभा एकल पार्टी की समूह बन गई।
- उस दौरान 82% सदस्य सिर्फ कांग्रेस के थे लेकिन इनके विचारों में मतभेद था। कुछ सदस्य समाजवाद के पक्षधर थे और कुछ धर्मनिरपेक्ष थे।
- संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से प्रभावित होती थीं। कई भाषाई अल्पसंख्यकों ने मातृभाषा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग की।
- धर्मिक अल्पसंख्यक अपने विशेष हितों को सुरक्षित करवाने की माँग कर रहे थे वहीं दलितों की माँग थी कि शोषण को समाप्त कर आरक्षण को लागू किया जाए।
- उस समय सभी सांस्कृतिक अधिकारों एवं सामाजिक न्याय के कई महत्वपूर्ण विषयों पर सामूहिक चर्चाएँ हुईं।
- संविधान सभा में 300 सदस्य थे जिनमें से तीन सदस्यों जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल एवं राजेंद्र प्रसाद की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही।
- जवाहर लाल नेहरू द्वारा ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पेश किया गया साथ ही उन्होंने यह प्रस्ताव भी पेश किया कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज “केसरिया, सफेद और गहरे हरे रंग का तीन बराबर चौड़ाई वाली पट्टियों का तिरंगा” झंडा होगा जिसके बीच में नीले रंग का चक्र बना होगा।
- राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। बी. आर. अंबेडकर भी सभा के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे।
- अंबेडकर ने प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और उनके साथ दो वकीलों गुजरात के. एम. मुंशी एवं मद्रास के अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर ने सहयोगी रूप में कार्य किया।
- बी. एन. राव भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे और एस. एन. मुखर्जी मुख्य योजनाकार।
- संविधान सभा में संविधान के प्रारूप को पारित करने में 3 वर्ष का समय लगा और इस पर की गई चर्चाओं के मुद्रित रिकॉर्ड 11 विस्तृत खंडों में प्रकाशित किए गए।
संविधान की दृष्टि (स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य)
- संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव को 13 दिसंबर 1946 को प्रस्तुत किया गया जिसमें भारत को ‘स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य’ घोषित किया गया था।
- उद्देश्य प्रस्ताव में देश के नागरिकों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता का वचन दिया गया था साथ ही जनजातियों, अल्पसंख्यकों, दमित और पिछड़े वर्गों के लिए भी पर्याप्त अधिकार प्राप्त किए गए थे।
- सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी संविधान सभा को अंग्रेजों से प्रभावित संस्था मानते थे।
- नेहरू मानते थे कि संविधान सभा का गठन अंग्रेजों के सहयोग से हुआ और उसने सभा के कामकाज पर कुछ शर्ते भी लगा दी थी।
लोगों की आकांक्षाएँ
- लोगों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का साधन संविधान सभा थी।
- लोकतंत्र, समानता और न्याय जैसे आदर्श भारत में सामाजिक संघर्षों के साथ जुड़ने लगे थे।
- उस दौरान कुछ समाज सुधारकों जैसे विवेकानंद (हिंदू धर्म में सुधार) और ज्योतिबा फुले (जातियों की पीड़ा से जुड़े प्रश्न) द्वारा समाज में चेतना जागृत की गई।
- ये प्रयास सामाजिक संघर्ष को कम करने और राष्ट्रीय आंदोलन को बल प्रदान करने में सहायक बनी।
- प्रांतीय सरकारों में भारतीयों की भागीदारी बढ़ाने के लिए 1909, 1919 और 1935 से जुड़े विधेयक पारित किए गए।
- 1937 में हुए चुनाव के मुताबिक 11 में से 8 प्रांतों में कांग्रेस की सरकार बनी।
संविधान सभा में अधिकारों का निर्धारण
- संविधान सभा में अधिकारों से जुड़ी कई भिन्नताएँ थीं जैस कि नागरिकों के अधिकार, पीड़ित व अल्पसंख्यक समूहों के अधिकार और उससे जुड़े मतभेद भी।
- 27 अगस्त 1947 को मद्रास के बी पोकर बहादुर ने पृथक निर्वाचिका के पक्ष में भाषण दिया था।
पृथक निर्वाचिका और उसकी समस्याएँ
- बहादुर को लगता था कि मुसलमानों की आवश्यकताओं को गैर-मुसलमान अच्छी तरह से नहीं समझ सकते थे।
- अधिकतर राष्ट्रीयवादियों को लग रहा था कि पृथक निर्वाचिका की व्यवस्था लोगों को बाँटने के लिए अंग्रेजों की चाल थी।
- सरदार वल्लभभाई पटेल ने पृथक निर्वाचिका को दो समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ करने वाली अव्यवहारिक माँग बताया वहीं बल्लभ पंत ने इसे राष्ट्र और अल्पसंख्यक दोनों के लिए खतरनाक बताया।
- एन जी रंगा का मानना था कि अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या आर्थिक स्तर पर होनी चाहिए।
- अंबेडकर ने दमित जातियों के लिए पृथक निर्वाचिका की माँग की थी लेकिन गाँधी जी ने इसे नकारते हुए कहा कि ऐसा करने से ये समुदाय स्थायी रूप से शेष समाज से कट जाएगा।
- कुछ दमित समुदायों का मानना था कि उनकी अपंगता के पीछे सामाजिक कानून और नैतिक मान्यताएँ जिम्मेदार थीं।
- अंत में संविधान सभा द्वारा सुझाव दिया गया कि अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाए और हिंदू मंदिरों में निम्न वर्ग के लोगों को भी स्थान दिया जाए।
संविधान सभा: राज्य की शक्तियाँ
- केंद्र और राज्य को ध्यान में रखते हुए शक्ति विभाजन के लिए तीन सूचियाँ तैयार की गईं-
- केंद्रीय सूची- इसके विषय केंद्र सरकार के अधीन थे।
- राज्य सूची- इसके विषय सिर्फ राज्य सरकारों के अंतर्गत आते थे।
- समवर्ती सूची- केंद्र और राज्य दोनों की साझा जिम्मेदारी थी।
- अनुच्छेद 356 में गवर्नर की सिफारिश पर केंद्र सरकार को सारे अधिकार अपने हाथ में लेने की मंजूरी दे दी गई।
- करों पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य दोनों को दे दी गई।
संविधान सभा में शक्तिशाली केंद्र की आवश्यकता
- सभा में प्रांतों के लिए अधिक शक्तिशाली केंद्र आवश्यकता महसूस होने लगी थी। उस समय भीम राव अंबेडकर भी पहले से अधिक शक्तिशाली और एकीकृत केंद्र चाहते थे।
- केंद्र को अधिक मजबूती प्रदान करना इसलिए भी आवश्यक था ताकि विभाजन के बाद होने वाली सांप्रदायिक हिंसा को रोका जा सके।
- बालकृष्ण शर्मा के मुताबिक देश के हित में योजना बनाने, आर्थिक संसाधनों को जुटाने, एक उचित शासन व्यवस्था स्थापित करने और देश को विदेशी आक्रमण से बचाने के लिए एक शक्तिशाली केंद्र की जरूरत थी।
राष्ट्र की भाषा
- संविधान सभा में भाषा से जुड़े मुद्दे को लेकर कई महीनों तक बहस और खींचातानी की स्थिति बनी रही।
- उस समय एक ऐसी भाषा की आवश्यकता थी जो लगभग सभी समुदायों के बीच बातचीत के लिए आदर्श भाषा बन सके।
- उस दौरान हिंदुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए चुना गया क्योंकि ये हिंदी और उर्दू के मेल और विभिन्न संस्कृतियों से समृद्ध व साझी भाषा थी।
- गाँधी जी को हिंदुस्तानी भाषा में वे सभी गुण दिखाई दे रहे थे जो भारत को एकता के सूत्र में बांध सकती थी। जब हिंदी और उर्दू का स्वरूप बदलने लगा तब भी सरकार का झुकाव हिंदुस्तानी भाषा की तरफ ही रहा।
हिंदी भाषा की आवश्यकता और सुरक्षा पर बल
- आर. वी. धुलेकर ने संविधान सभा के प्रारंभिक सत्र हिंदी को संविधान निर्माण की भाषा के रूप में स्वीकार करने पर बल दिया था।
- 1947 में 12 सितंबर के दिन सभा की भाषा समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी जिसमें लिखा था कि देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी देश की राजकीय भाषा होगी।
- इसके अलावा रिपोर्ट में ये भी शामिल किया गया था कि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए, 15 साल तक सरकारी कार्य अंग्रेजी में जारी रहेगा और हर राज्य अपने कार्य को किसी एक क्षेत्रीय भाषा में कर सकेगा।
- उस समय जी दुर्गाभाई, शंकरराव देव और टी. ए. रामलिंगम चेट्टियार ने संविधान सभा के कई सत्रों में हिंदी के महत्व को उजागर किया था।
- श्रीमती दुर्गाबाई ने सदन को बताया था कि दक्षिण में अधिक संख्या में लोग हिंदी का विरोध करते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए हिंदी के स्कूल भी दक्षिण में खोले गए जिनमें हिंदी की कक्षाएँ भी चलाई गईं।
संविधान के कुछ महत्वपूर्ण अभिलक्षण
- भारतीय संविधान कई विवादों और परिचर्चाओं के बाद तैयार किया गया था। इसके कई प्रावधानों को दो विरोधी विचारों के बीच सहमति कराने के बाद बनाया गया।
- सहमति ‘वयस्क मताधिकार’ पर आधारित होती थी और इसमें धर्मनिरपेक्षता पर विशेष रूप से बल दिया गया था।
- भारत के मुख्य अभिलक्षणों का वर्णन आदर्श रूप में किया गया था जिसमें निम्नलिखित अधिकार शामिल थे-
- सांस्कृतिक/शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29 और 30)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
- समानता का अधिकार (14, 16, 17)
- राज्य को सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार और उन्हें कल्याणकारी संस्थाएँ बनाए रखने का भी अधिकार दिया गया।
- सभा द्वारा राज्य और धर्म दोनों के बीच विवेकपूर्ण दूरी बनाने की कोशिश की गई है।
- सरकार द्वारा रोजगार में धार्मिक भेद-भाव को समाप्त किया गया।
समयावधि अनुसार संविधान निर्माण से जुड़े घटनाक्रम
क्रम संख्या | काल | घटनाक्रम |
1. | 1945 26 जुलाई | ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में आती है |
2. | दिसंबर-जनवरी | भारत में आम चुनाव |
3. | 1946 16 मई | कैबिनेट मिशन अपनी संवैधानिक योजना की घोषणा करता है |
4. | 16 जून | मुस्लिम लीग कैबिनेट मिशन की संवैधानिक योजना पर स्वीकृति देती है |
5. | 16 जून | कैबिनेट मिशन केंद्र में अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव पेश करता है |
6. | 2 सितंबर | कांग्रेस अंतरिम सरकार का गठन करती है जिसमें नेहरू को उपराष्ट्रपति बनाया जाता है |
7. | 13 अक्तूबर | मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल होने का फैसला लेती है |
8. | 3-6 दिसंबर | ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली कुछ भारतीय नेताओं से मिलते हैं। इन वार्ताओं का कोई नतीजा नहीं निकलता। |
9. | 9 दिसंबर | संविधान सभा के अधिवेशन शुरू हो जाते हैं |
10. | 1947 29 जनवरी | मुस्लिम लीग संविधान सभा को भंग करने की माँग करती है |
11. | 16 जुलाई | अंतरिम सरकार की आखिरी बैठक |
12. | 11 अगस्त | जिन्ना को पाकिस्तान की संविधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है |
13. | 14 अगस्त | पाकिस्तान की स्वतंत्रता: कराची में जश्न |
14. | 14-15 अगस्त मध्यरात्रि | भारत में स्वतंत्रता का जश्न |
15. | 1949 दिसबंर | संविधान पर हस्ताक्षर |
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