इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी मानव भूगोल के मूल सिद्धांत के अध्याय- 2 “विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 2 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 Geography Book-1 Chapter-2 Notes In Hindi
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अध्याय- 2 “विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | मानव भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | दो (2) |
अध्याय का नाम | “विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- मानव भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय- 2 “विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि“
विश्व जनसंख्या वितरण
- जॉर्ज बी. क्रेसी के अनुसार कहा गया है कि “एशिया में बहुत अधिक स्थानों पर कम लोग और कम स्थानों पर बहुत अधिक लोग रहते हैं।” इस कथन को जनसंख्या वितरण को ध्यान में रखते हुए सत्य रूप में स्वीकार भी किया जाता है।
- ‘जनसंख्या वितरण’ शब्द से तात्पर्य धरती पर लोगों के वितरण प्रारूप को समझने या लोग किस प्रकार वितरित हैं इसे समझने से है।
- दुनिया के 90% लोग धरती के सिर्फ 10% भाग पर रहते हैं। लहभग 60% लोग दस सर्वाधिक आबादी वाले देशों में निवास करते है, जिसमें एशिया के छः देश शामिल किए गए हैं। ये छः देश हैं- चीन, भारत, इंडोनेशिया, जापान, पाकिस्तान और बांग्लादेश।
- आप कुछ मुख्य देशों की जनसंख्या को टेबल से देख सकते हैं-
क्रम संख्या | देश का नाम | जनसंख्या |
1. | चीन | 1200 करोड़ से अधिक और 1400 करोड़ के आस-पास |
2. | भारत | 1200 से 1400 करोड़ के बीच |
3. | संयुक्त राज्य अमेरिका | 200 से 400 करोड़ के बीच |
4. | इंडोनेशिया | 200 से 400 करोड़ के बीच |
5. | ब्राजील | 200 से 400 करोड़ के बीच |
6. | पाकिस्तान | 200 से 400 करोड़ के बीच |
7. | नाइजीरिया | 200 करोड़ के बीच |
8. | बांग्लादेश | 200 करोड़ के बीच |
9. | रूस | 200 करोड़ के बीच |
10. | मेक्सिको | 200 करोड़ के बीच |
जनसंख्या का घनत्व
- किसी भी देश या प्रदेश के भूमि के आकार और वहाँ रहने वाले लोगों की संख्या के बीच के अनुपात को ‘जनसंख्या घनत्व’ कहते हैं।
- जनसंख्या घनत्व का सूत्र है= कुल जनसंख्या/कुल क्षेत्रफल
- जनसंख्या घनत्व का मापन प्रति वर्ग किलोमीटर में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में किया जाता है।
- आप इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। मान लीजिए ‘K’ प्रदेश का क्षेत्रफल 200 वर्ग किमी है और वहाँ की जनसंख्या 300000 है। इसका जंसख्य घनत्व होगा= 300000/200 = 1500 प्रति व्यक्ति/वर्ग किमी
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारकों में निम्नलिखित कारक शामिल हैं-
- भूमि का आकार: भूमि का आकार जनसंख्या को सबसे अधिक प्रभावित करता है। समतल मैदानों और कम ढाल वाले क्षेत्रों में जनसंख्या वितरण सबसे अधिक पाया जाता है क्योंकि इन क्षेत्रों में फसलों का उत्पादन, सड़क यातायात उद्योगों की सुविधा के अनुकूल होते हैं। वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक ढाल होने के कारण ये सुविधाएँ नहीं पाई जाती जिसके कारण उन क्षेत्रों में जनसंख्या वितरण कम पाया जाता है। उदाहरण के लिए गंगा का मैदानी क्षेत्र अधिक आबादी वाला क्षेत्र है जबकि हिमालय का पर्वतीय हिस्सा कम आबादी वाला क्षेत्र है।
- जल की उपलब्धता: जल मनुष्य जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कारक है इसलिए किसी भी स्थान पर रहने के लिए इसका होना सबसे ज्यादा जरूरी है। पानी व्यक्ति के दिनचर्या का अहम हिस्सा है और इसके बिना भूमि पर जीवन की कल्पना करना असंभव प्रतीत होता है क्योंकि इसका उपयोग पीने, नहाने, खाने, नौसंचालन और कृषि से लेकर उद्योग धंधों में किया जाता है। इस वजह से ही नदी व घाटियों के आस-पास बसे क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक पाई जाती है।
- जलवायु: जलवायु भी जनसंख्या वितरण को प्रभावित करती है। अत्यधिक ठंडे और उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्र मनुष्य के निवास स्थान या सुविधा के अनुकूल नहीं माने जाते हैं इसलिए इन क्षेत्रों में लोग बसना कम पसंद करते हैं। जहाँ मनुष्य के लिए सुविधाजनक जलवायु होती है वहाँ जनसंख्या अधिक होती है। इस तरह से जिन प्रदेशों या देशों के मौसम में कम बदलाव होता है वहाँ जनसंख्या बाकी प्रदेशों की तुलना में अधिक पाई जाती है।
- मिट्टी (मृदा): कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है क्योंकि ऐसी मिट्टी उत्पादन को बढ़ाती है इसलिए उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेशों (क्षेत्रों) में जनसंख्या अधिक पाई जाती है। एशिया में अधिक जनसंख्या होने का प्रमुख कारण मृदा के उपजाऊपन को माना जाता है। दोमट मिट्टी और नदी घाटियों के आस-पास की मिट्टी को सबसे अधिक उपजाऊ माना जाता है इसलिए यहाँ आबादी आधिक पाई जाती है। ऐसी श्रेष्ठ श्रेणी की मिट्टी बड़े स्तर पर कृषि करने और अधिक उपज प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारक
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारकों में निम्नलिखित कारक शामिल हैं-
- खनिज: जो क्षेत्र खनिज पदार्थों के उत्खनन के लिए प्रसिद्ध होते हैं वो अपनी तरफ उद्योगों को आकर्षित करते है। उद्योग निर्माण के बाद रोजगार के अवसर प्राप्त करने के लिए कुशल और अर्ध-कुशल कर्मचारी इन क्षेत्रों की तरफ जाते हैं और वहाँ की जनसंख्या को बढ़ा देते हैं। अफ्रीका की कटंगा और जांबिया की ताँबा पेटी इसका एक बेहतर उदाहरण है।
- नगरीकरण: शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा की सुविधा के साथ-साथ संचार और परिवहन के लिए नगरीय क्षेत्र में बेहतर साधन उपलब्ध होते हैं। इस तरह की बेहतर सुविधाएँ गाँव के लोगों को अधिक प्रभावित करती है जिसके बाद वे इन स्थानों पर पहुँचने लगते हैं जिसके कारण नगरीय जनसंख्या बढ़ने लगती हैं।
- औद्योगीकरण: मनुष्य वहीं बसते हैं जहाँ से उनकी आर्थिक जरूरते पूरी होती हैं। औद्योगिक क्षेत्र लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करता है इसलिए ऐसे क्षेत्रों में अधिक जंसख्या निवास करती है। यहाँ श्रमिकों के अलावा दुकानदार, अध्यापक, परिवहन चालक, बैंककर्मी और अन्य सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले कर्मचारी भी रहते हैं। कोबे-ओसाका जापान का एक ऐसा प्रदेश है जो औद्योगीकरण की वजह से सघन बसा हुआ है।
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले सामाजिक और सांस्कृतिक कारक
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी कुछ क्षेत्र बेहद शांत और महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ऐसे स्थानों के प्रति भी लोग अधिक आकर्षित होते हैं लेकिन जहाँ राजनीतिक और सामाजिक अशांति होती है उन स्थानों को छोड़कर लोग चले जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की जनसंख्या कम हो जाती है। ऐसी स्थिति के कारण कई बार सरकार कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में लोगों को बसाने के लिए अनेक तरह से प्रोत्साहित करती है।
जनसंख्या परिवर्तन और उसके घटक
- जनसंख्या परिवर्तन का अर्थ एक निश्चित समयावधि में किसी क्षेत्र में लोगों की जनसंख्या में हुआ बदलवा है। यह बदलाव धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी हो सकता है।
- जनसंख्या परिवर्तन या जनसंख्या वृद्धि किसी भी प्रदेश या क्षेत्र के सामाजिक उत्थान, आर्थिक प्रगति, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का सूचक है। जनसंख्या वृद्धि दर को प्रतिशत रूप में दर्ज किया जाता है।
- जनसंख्या वृद्धि को दो भागों में बाँटा गया है- जनसंख्या की धनात्मक वृद्धि और जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्धि।
- जनसंख्या की धनात्मक वृद्धि: जब किसी क्षेत्र में निश्चित समयावधि के समय जन्म दर मृत्यु दर से अधिक होती है तब जनसंख्या में धनात्मक वृद्धि होती है।
- जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्धि: जब किसी क्षेत्र में निश्चित समयावधि के समय जन्म दर मृत्यु दर से कम होती है तब जनसंख्या में ऋणात्मक वृद्धि होती है। ऋणात्मक वृद्धि का कारण किसी दूसरे देश में प्रवास भी हो सकता है।
- भारत की वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर 1.64% है।
जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख तीन घटक निम्नलिखित हैं-
- अशोधित जन्म-दर: इसका तात्पर्य किसी वर्ष विशेष में प्रति हजार महिलाओं द्वारा जन्म दिए गए जीवित बच्चों से है। अशोधित जन्म-दर का गणना सूत्र है, किसी वर्ष विशेष में जीवित बच्चों की संख्या/किसी क्षेत्र विशेष में वर्ष के मध्य जनसंख्या x 1000
- अशोधित मृत्यु-दर: अशोधित मृत्यु-दर से तात्पर्य किसी वर्ष विशेष में प्रति हजार जनसंख्या के अनुपात में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या से है। अशोधित मृत्यु-दर का गणना सूत्र है, किसी वर्ष विशेष में मृतकों की संख्या/उस वर्ष विशेष के मध्य में अनुमानित जनसंख्या x 1000
- प्रवास: अनेक कारणों से लोगों द्वारा अपने आवास स्थान को बदलना या अपने निवास स्थान को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर निवास करना प्रवास कहलाता है। इस दौरान लोग जहाँ से चलते हैं उसे उद्गम स्थान और जहाँ पहुँचते हैं उसे आगमन स्थान कहते हैं। प्रवास कई प्रकार का हो सकता है, जैसे- स्थायी, अस्थायी और मौसमी प्रवास। इस प्रकार व्यक्ति गाँव से गाँव, नगर से नगर, गाँव से नगर और नगर से गाँव की तरफ प्रवास कर सकता है। प्रवासी जब किसी नए स्थान पर जाते हैं तो आप्रवासी कहलाते हैं और जब प्रवासि एक स्थान से बाहर चले जाते हैं तो उत्प्रवासी कहलाते हैं।
प्रवास को प्रभावित करने वाले कारक समूह
प्रवास को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
- प्रतिकर्ष कारक: प्रतिकर्ष कारक में जलवायु, बेरोजगारी, प्राकृतिक आपदाएँ, राजनीतिक उपद्रव, महामारी, सामाजिक रहन-सहन और आर्थिक पिछड़ापन जैसे कारक शामिल है। ये कारक लोगों को बहुत कम आकर्षित करते हैं जिसके कारण व्यक्ति किसी दूसरे स्थान पर जाने को बाध्य हो जाता है।
- अपकर्ष कारक: इसमें शांति, स्वस्थ जीवन, रहन-सहन की अच्छी दशाएँ, रोजगार के अवसर, अनुकूल जलवायु और संपत्ति सुरक्षा जैसे कारक शामिल हैं। ये सभी कारक प्रवास के अनुकूल होने के कारण लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं।
जनसंख्या परिवर्तन (वृद्धि) में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका
- विज्ञान तथा तकनीक की सहायता से भाप इंजन को मानवीय और प्राणी ऊर्जा के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया। इसी ने समय बीतने के साथ-साथ जल व पवन ऊर्जा के लिए यांत्रिक ऊर्जा को भी सुलभ बनाया।
- इन बदलावों ने कृषि और उसके उत्पादन में वृद्धि की।
- महामारी और संक्रमण से जुड़े रोगों के लिए चिकित्सा क्षेत्र में जो नए-नए परिवर्तन हुए उससे बढ़ती मृत्यु-दर में गिरावट आई। गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक ने जंसख्या को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव
जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित स्थितियों के उत्पन्न होने की संभावना बढ़ती हैं-
- जनसंख्या वृद्धि संसाधनों की क्षीणता को बढ़ावा देता है।
- प्रति व्यक्ति के लिए संसाधनों में कमी आना।
- एच.आई.वी./ एड्स जैसी महामारियों के कारण मृत्यु-दर का बढ़ना।
- विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के बेहतर अवसरों में कमी।
- बेहतर पोषण को न प्राप्त करना और उससे पिछड़ते जाना।
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत की अवस्थाएँ
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत किसी क्षेत्र की जंसख्या के वर्णन और भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान को दर्शाता है। यह बताता है कि कैसे जब एक समाज ग्रामीण, खेतिहर तथा अशिक्षित अवस्था से उन्नति करके नगरीय, औद्योगिक और साक्षर बनता है, तब किसी प्रदेश की जनसंख्या उच्च जन्म और उच्च मृत्यु से निम्न जन्म एवं निम्न मृत्यु में परिवर्तित होती है।
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत की तीन अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-
- पहली अवस्था: इसमें अधिकतर लोग कृषि कार्य से जुड़े होते हैं। जिसमें सभी अशिक्षित लोग शामिल होते हैं और बड़े परिवारों को परिसंपत्ति के रूप में स्वीकार करते हैं। इसकी प्रमुख विशेषता उच्च प्रजनन दर एवं उच्च मृत्यु दर है।
- दूसरी अवस्था: यह अवस्था घटी हुई मृत्यु दर के साथ आती है। इस अवस्था में आरंभ में जन्म-दर उच्च होती है लेकिन समय के साथ घटती जाती है। ये अवस्था स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार के कारण उत्पन्न होती है। आधुनिक समय में दुनिया के अधिकतर विकासशील देश इस अवस्था में नजर आते हैं।
- तीसरी अवस्था: इसमें जनसंख्या के पास तकनीकी ज्ञान होता है। इस अवस्था में लोग शिक्षित हो जाते हैं और नगरों में रहने लगते हैं। मनुष्य परिवार के आकार को तय करने लगता है जिसके परिणामस्वरूप जन्म-दर और मृत्यु-दर घटकर स्थिर हो जाती है या फिर बहुत धीमी गति से बढ़ती है।
जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने वाले कुछ उपाय
जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं-
- परिवार नियोजन और बच्चों के जन्म-दर को निश्चित करके बढ़ती जनसंख्या पर रोकथाम किया जा सकता है।
- जन-अभियान और गर्भ-निरोधक के उपयोग को बढ़ावा देना।
- महिलाओं को स्वस्थ रखने और उनकी मृत्यु-दर को कम करने में परिवार नियोजन मुख्य भूमिका निभाता है। इस तरह की जागरूकता के माध्यम से बढ़ती जनसंख्या की स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
जनसंख्या वृद्धि के संदर्भ में ‘थॉमस माल्थस’ ने अपने सिद्धांत में बताया था कि खाद्य आपूर्ति की तुलना में मानव जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ेगी जिसका परिणाम आकाल, महामारी और युद्ध होगा। जिसके कारण जनसंख्या वृद्धि में अचानक ही गिरावट आने लगेगी।
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