इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 8वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III” के अध्याय- 2 “धर्मनिरपेक्षता की समझ” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 2 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 8 Political Science Chapter-2 Notes In Hindi
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अध्याय-2 “धर्मनिरपेक्षता की समझ“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | आठवीं (8वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान) |
अध्याय नंबर | दो (2) |
अध्याय का नाम | “धर्मनिरपेक्षता की समझ” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 8वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान)
अध्याय- 2 “धर्मनिरपेक्षता की समझ”
इतिहास में धर्म का स्वरूप
- इतिहास में धर्म से संबंधित भेदभाव, बेदखली तथा अत्याचार की कई घटनाएँ मिलती हैं।
- हिटलर ने यहूदियों पर अत्याचार किया और उसने कई लाख लोगों को धर्म के नाम पर मरवा दिया था।
- इजरायल में मुसलमान और ईसाई अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किया जा रहा है।
- आज भी अरब में गैर-मुसलमानों को मंदिर/गिरजाघर बनाने पर पाबंदी है।
- अरब में गैर-मुस्लिम लोग सार्वजनिक स्थल पर पूजा-पाठ के लिए एकत्रित भी नहीं हो सकते हैं।
- जब राज्य में किसी एक धर्म को अन्य धर्मों से अधिक मान्यता प्रदान कर दी जाती है तब भेदभाव से जुड़ी घटनाएँ बढ़ने लगती हैं।
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ
- भारतीय संविधान हर नागरिक को कोई भी धर्म अपनाने और उसका प्रसार करने की स्वतंत्रता देता है। इसे ही धर्मनिरपेक्षता कहते हैं।
- धार्मिक स्वतंत्रता सभी धर्मों पर समान रूप से कार्य करती है।
- धर्म तथा राज्य की शक्तियों को एक-दूसरे से अलग रखा गया है।
- धर्म और राज्य को एक-दूसरे अलग रखने की अवधारणा ही धर्मनिरपेक्षता कहलाती है।
धर्म को राजसत्ता से अलग रखना आवश्यक क्यों है?
- अगर बहुमत धर्म के लोग सत्ता पर कब्जा कर लेंगे, तो देश के नागरिकों के साथ-साथ देश की संपत्ति भी खतरे में पड़ सकती है।
- बहुमत धर्म वाले लोग दूसरे धर्म के लोगों के साथ भेदभाव कर सकते हैं।
- कोई एक धर्म बाकी धर्मों के प्रति निरंकुश हो सकता है। ऐसी स्थिति में अल्पसंख्यकों पर दबाव बनाया जा सकता है या उनके साथ जोर-जबरदस्ती की जा सकती है।
- धर्म के नाम पर किया गया भेदभाव लोकतांत्रिक सामाज को प्राप्त अधिकारों का खंडन करता है।
- लोगों को मिली धार्मिक चयन की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए धर्म को राज्य से अलग रखना जरूरी है।
- प्रभुत्वशाली धार्मिक समुदाय के अत्याचार से लोगों को बचाने के लिए धर्म को राज्य से अलग रखना महत्वपूर्ण है।
- किसी एक धर्म को निरंकुश शक्ति के रूप में उभरने से रोकने के लिए भी यह दूरी आवश्यक है।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का वर्णन
संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य धोषित किया गया है। धर्मनिरपेक्ष राज्य अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए मुख्य तीन बातों का ध्यान रखता है, जो निम्न प्रकार से हैं-
- कोई धार्मिक समुदाय अन्य धार्मिक समुदाय पर अपना दबदबा कायम न करे।
- प्रभुत्वशाली धर्म के लोग खुद को सबसे बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए अपने ही समुदाय के सदस्यों को न दबाए।
- देश अपने नागरिकों पर किसी भी धर्म को नहीं थोपेगा और न उनसे धार्मिक स्वतंत्रता छीनेगा।
- उपरोक्त तीनों दबदबे पर रोकथाम करने के लिए भारत सरकार अनेक प्रयास करती है।
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता के कुछ मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं-
- राज्य स्वयं को धर्म से दूर रखता है और वह किसी धर्म को समर्थन प्रदान नहीं करता है।
- राज्य सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करता है और धार्मिक क्रियाकलापों में दखल को रोकने के लिए वह कुछ धार्मिक समूहों को महत्वपूर्ण छूट प्रदान करता है।
- भारतीय संविधान ने जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए छुआछूत पर रोक लगाई है। राज्य किसी भी वर्ग या समुदाय की रक्षा करने के लिए ‘निजी कानूनों’ में हस्तक्षेप कर सकता है।
- दुनिया के अन्य धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देशों के संविधान में दिए गए उद्देश्य व तरीके भारत से मिलते-जुलते हैं।
- संविधान ने धार्मिक समुदाय को निजी स्कूल/कॉलेज बनाने का अधिकार दिया है। इसके लिए राज्य से नव निर्माण हेतु आर्थिक सहायता भी प्राप्त होती है।
- भारत में विधायिका किसी भी एक धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं कर सकती और न ही किसी एक धर्म को सबसे अधिक समर्थन दे सकती है।
- भारत धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है, इसलिए धर्म से राज्य का फासला सैद्धांतिक है।
- राज्य धार्मिक वर्चस्व को समाप्त करने के लिए अनेक प्रयास करता है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करता है।
- वर्तमान में मौलिक अधिकारो का उल्लंघन पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है इसलिए आज भी देश में संवैधानिक व्यवस्था की आवश्यकता बनी हुई है।
- जब किसी नागरिक के साथ गलत होता है, तो उसे गलत कार्यों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत अपने अधिकारों की वजह से ही मिलती है।
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