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Class 12 Geography Book-2 Ch-9 “भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ” Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-2 यानी भारत लोग और अर्थव्यवस्था के अध्याय- 9 “भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 9 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 Geography Book-2 Chapter-9 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 9 “भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयभूगोल
पाठ्यपुस्तकभारत लोग और अर्थव्यवस्था
अध्याय नंबरनौ (9)
अध्याय का नाम“भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भारत लोग और अर्थव्यवस्था
अध्याय- 9 “भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ”

पर्यावरण प्रदूषण और प्रदूषण के प्रकार

  • मानवीय क्रियाकलापों के अपशिष्टों और उत्पादों के अति उपयोग से प्राकृतिक वस्तुओं के निम्नीकरण को पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं।
  • प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं, जिनमें से मुख्य तीन का वर्णन निम्नलिखित है-
    • जल प्रदूषण
      • लगातार बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिक विस्तार के कारण जल की गुणवत्ता का निम्नीकरण जल प्रदूषण कहलाता है।
      • वर्तमान समय में नदियों, तालाबों, झीलों और नहरों में उपलब्ध जल अशुद्ध हो चुका है।
      • जल प्रदूषण, जल में अल्प मात्रा में निलंबित कण, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थों के मिलने से होता है।
      • प्राकृतिक और मानवीय क्रियाएँ ये दो जल प्रदूषण के मुख्य कारण हैं।
      • अपरदन, भू-स्खलन, पेड़-पौधों एवं मृत पशुओं का सड़ना-गलना आदि जल प्रदूषण के प्राकृतिक स्त्रोत हैं।
      • मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण सबसे अधिका चिंता का कारण बना हुआ हैं।
      • मनुष्य जल को उद्योगों, कृषि और सांस्कृतिक क्रियाकलापों द्वारा प्रदूषित करता है, जिनमें से उद्योगों की भूमिका सबसे अधिक है।
      • उद्योग कई अवांछित उत्पाद एवं अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं जैसे कि कचरा, प्रदूषित जल, जहरीले गैस, रासायनिक अवशेष, धूल, धुआँ इत्यादि।
      • उपरोक्त अपशिष्टों को झीलों और नदियों में विसर्जित कर दिया जाता है, जिसके कारण जल में रहने वाले जीव मरने लगते हैं।
      • चमड़ा, लुगदी, कागज, वस्त्र और रसायन सबसे ज्यादा प्रदूषक उद्योग हैं।
      • भारत में आधुनिक कृषि, तीर्थ यात्रा, धार्मिक मेले, पर्यटन और सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी जल प्रदूषण का कारण है।
      • जल प्रदूषण की वजह से दस्त (डायरिया), आँतों की कृमि, हेपेटाइटिस जैसी जल जनित बीमारियाँ होती हैं।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में लगभग एक-चौथाई बीमारी अशुद्ध जल के कारण उत्पन्न होती है।
    • वायु प्रदूषण
      • धूल, धुआँ, गैस, कुहासा, दुर्गंध तथा वाष्प जैसे संदूषकों की वायु में वृद्धि से वायु प्रदूषण होता है।
      • ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में विभिन्न प्रकार के ईंधनों के प्रयोग से उत्पन्न विषाक्त धुएँ वाली गैसों के उत्सर्जन से वायु प्रदूषण होता है।
      • जीवाश्म ईंधन का दहन, खनन एवं उद्योग वायु प्रदूषण के मुख्य स्त्रोत हैं।
      • इस प्रदूषण से श्वसन तंत्रीय, तंत्रिका तंत्रीय तथा रक्त संचारतंत्र से संबंधित बीमारियाँ होती हैं।
      • नगरों में धूम्र कुहरा वायुमंडलीय प्रदूषण के कारण होता है, जिससे सबसे अधिक मनुष्य का स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
      • वायु प्रदूषण के कारण अम्ल वर्षा भी होती है।
    • ध्वनि प्रदूषण
      • विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न ध्वनि का मनुष्य की सहन सीमा अधिक तथा असहज होना ध्वनि प्रदूषण कहलाता है।
      • वर्तमान में यह एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है।
      • ध्वनि के सत्र को डेसीबल द्वारा मापा जाता है।
      • इस प्रदूषण का मुख्य कारण तीव्र शोर होता है, जिसमें विविध उद्योग, मशीनीकृत निर्माण, तोड़-फोड़ कार्य, तीव्रचालित मोटर वाहन और वायुयान जैसे स्त्रोत शामिल होते हैं।
      • इस प्रदूषण में यातायात द्वारा उत्पन्न शोर की भूमिका मुख्य है।
      • ध्वनि प्रदूषण के कारण सुनने की शक्ति कम हो जाती है।
      • आज भारत के कई शहरों व महानगरों के लिए ध्वनि प्रदूषण हानिकारक बन चुका है।

भारत में नगरीय कचरे का निपटान

  • भारतीय नगरों में कचरे का निपटान एक गंभीर समस्या बन चुका है।
  • मुंबई, कोलकाता, चेन्नई एवं बेंगलुरू जैसे महानगरों में ठोस अपशिष्ट के 90% को एकत्रित करके उसका निपटान किया जाता है लेकिन देश के अधिकतर शहरों में 30 से 50% कचरा बिना एकत्र किए छोड़ दिया जाता है।
  • गलियों, सड़कों और घर के आस-पास कचरा जमा होने के कारण कई लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ जाते हैं।
  • ठोस कचरे से ऊर्जा उत्पन्न किया जा सकता है साथ ही उससे खाद भी बनाया जा सकता है।

ग्रामीण-शहरी प्रवास

  • ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ जनसंख्या प्रवाह नगरीय क्षेत्रों में मजदूरों की अधिक माँग, गाँवों में रोजगार के निम्न अवसर, नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में असंतुलित विकास के कारण होता है।
  • आज विश्व की 6 अरब जनसंख्या में से आधी से अधिक जनसंख्या नगरों में रहती है।
  • भारत में नगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है।
  • गरीब लोग आजीविका के लिए छोटे नगरों व गाँवों को छोड़कर सीधे महानगरों की तरफ बढ़ रहे हैं।

गंदी बस्तियों की समस्याएँ

  • भारत में आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ ग्रामीणों की जनसंख्या अधिक है और वहाँ के लोग प्राथमिक क्रियाओं पर निर्भर हैं।
  • नगरों में जहाँ एक तरफ फार्म हाउस, उच्च आय वर्ग की बस्तियाँ, चौड़ी व पक्की सड़कें, जल-लाइट इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं वहीं दूसरी तरफ इन नगरों में झुग्गी बस्तियाँ, गंदी बस्तियाँ, और पटरियों के किनारे कई ढाँचे भी खड़े हैं।
  • इन गंदी बस्तियों में अनियमीय जल निकासी व्यवस्था, भीड़-भरी संकरी सड़कें और कई स्वास्थ्य व सामाजिक समस्याएँ हैं।
  • स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य उद्देश्य गंदी बस्तियों की स्थिति को सुधारना था।
  • गंदी बस्तियों में रहने वाले मजदूर कम वेतन में भी जोखिम भरा कार्य करते हैं।
  • गंदी बस्तियों में रहने वाले लोग आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण अपने बच्चों के लिए उचित शिक्षा की व्यवस्था नहीं कर पाते।

भारत में भू-निम्नीकरण

  • कृषि योग्य भूमि पर दबाव के कारण भूमि की उपलब्धता और गुणवत्ता में कमी आती है।
  • मृदा अपरदन, लवणता (जलाक्रांतता) और बहु-क्षारता भू-निम्नीकरण के मुख्य कारण हैं।
  • भू-निम्नीकरण के कारण उत्पादकता में कमी आती है।
  • सभी निम्न कोटि की भूमियाँ व्यर्थ भूमि नहीं होती हैं लेकिन अनियंत्रित क्रियाएँ इन्हें व्यर्थ भूमि में परिवर्तित कर देती हैं।
  • भूमि का निम्नीकरण प्राकृतिक और मानवजनित दो प्रक्रियाओं द्वारा होता है।
  • प्राकृतिक खड्ड, मरुस्थलीय व तटीय रेतीली भूमि, बंजर चट्टानी क्षेत्र, तीव्र ढाल वाली भूमि, हिमानी क्षेत्र जैसे भूमि निम्नीकरण मुख्य रूप से प्राकृतिक कारकों द्वारा घटित होते हैं।
  • प्रकृति और मानवजनित व्यर्थ भूमि के बनने में प्रकृति व मानव दोनों की भूमिका होती है। इसमें जलाक्रांत, दलदली क्षेत्र, लवणता तथा क्षारता से प्रभावित भूमियों को सम्मिलित किया जाता है।
  • वहीं स्थानांतरित कृषि जनित क्षेत्र, रोपण कृषि जनित, क्षरित वन, क्षरित चरागाह, खनन और औद्योगिक व्यर्थ क्षेत्र को मानवजनित व्यर्थ भूमि के अंतर्गत शामिल किया जाता है।
  • मानव क्रियाओं द्वारा भूमि का निम्नीकरण सबसे अधिक हुआ है।
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