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Class 12 History Book-1 Ch-1 “ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ” (हड़प्पा सभ्यता) Notes In Hindi

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Mamta Kumari
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इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक-1 यानी भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग- 1 के अध्याय- 1 “ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ” (हड़प्पा सभ्यता) के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 1 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 History Book-1 Chapter-1 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 1 “ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ” (हड़प्पा सभ्यता)

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयइतिहास
पाठ्यपुस्तकभारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-1
अध्याय नंबरएक (1)
अध्याय का नाम“ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ” (हड़प्पा सभ्यता)
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-1
अध्याय- 1 “ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ” (हड़प्पा सभ्यता)

1. वर्ष 1924 में भारतीय पुरातात्विक जनरल जॉन मार्शल ने सिंधु घाटी में एक नवीन सभ्यता के खोज की घोषणा की। 

2. हड़प्पा सभ्यता में खोजे गए प्रमुख स्थल हड़प्पा और मोहनजोदड़ो हैं।

3. ‘लोथल’ गुजरात राज्य का हिस्सा है। 

4. हड़प्पा के स्थलों से प्राप्त जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से हड़प्पवासियों की आहार संबंधी आदतों के विषय में जानकारी प्राप्त करने में विद्वानों का भू-पुरातात्विकविदों वर्ग सफल रहा। 

5. जीवन निर्वाह के लिए हड़प्पा सभ्यता का मुख्य व्यवसाय कृषि था। 

6. हाल की पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि ताँबा संभवतः ओमान से लाया गया।  

7. हड़प्पा सभ्यता में शैल वस्तुएँ बनाने के लिए नागेश्वर प्रसिद्ध है। 

8. ‘अर्ली इंडस सिविलाइजेशन’ पुस्तक अर्नेस्ट मैके द्वारा लिखी गई थी।

9. अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्त्व के पिता के रूप में जाना जाता है।

10. सिंधु घाटी सभ्यता में खोजा गया सबसे पहला स्थल हड़प्पा है।

11. हड़प्पा के खेतड़ी क्षेत्र को ‘गणेश्वर-जोधपुर संस्कृति’ कहा जाता था।

12. परिपक्व हड़प्पा स्थल कलिबंगन और लोथल में अग्नि वेदियाँ पाई गईं।   

13. “यह मुझे आत्मघाती और अक्षम्य नीति प्रतीत होती है कि किसी देश की प्राचीन कला के मूल कार्यों को लूटने की अनुमति दी जाए” यह कथन वाल्टेयर इलियट के द्वारा कहा गया।   

14. हड़प्पा लिपि को रहस्यमय इसलिए कहा गया है क्योंकि इसकी लिखाई आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है।

15. ओमानी ताँबे और हड़प्पा दोनों कलाकृतियों में निकिल के निशान हैं जो एक सामान्य उत्पत्ति का सुझाव देते हैं। 

16. ‘द स्टोरी ऑफ इंडियन आर्कियोलॉजी’ के रचनाकार एस. एन. राव हैं। 

17. नियोजित शहरों का विकास करना हड़प्पा सभ्यता के नगरों का सबसे अनूठा पहलू था।

18. मोहनजोदड़ो 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था।  

19. स्नानागार में ईंटों को जमाकर उनके ऊपर जिप्सम के गारे का लेप लगाया जाता था।

20. मोहनजोदड़ो में कुओं की संख्या लगभग 700 थी।

21. हड़प्पा संस्कृति के समय शिल्प उत्पादन का केंद्र कालीबंगन था।

22. हड़प्पा सभ्यता की जीवन शैली-     

यह सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में एक है। पुरातत्त्वविदों के मुताबिक हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति विभिन्न धर्मों और उनके जीवन शैली का आधार स्तंभ है। हड़प्पा सभ्यता की जीवन शैली को निम्न रूपों में समझ सकते हैं जिसे पुरावस्तुओं के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है- 

(क) साधारण जीवन- इसको प्रतिदिन जीवन में उपयोग आने वाली वस्तुओं से दर्शाया गया है जिन्हें बनाने के लिए किसी विशेष वस्तु की जरूरत न हो जो पत्थर तथा मिट्टी की सहायता से आसानी से बनाई जा सकती है; जैसे कि- मृद्भांड, सुइयाँ, झाँवा, चक्कियाँ इत्यादि।     

(ख) विलासी जीवन- विलासिता जीवन का आधार मूल्यवान और दुष्प्राप्य वस्तुओं को बनाया गया है जिन्हें जटिल तरीकों व तकनीकों और दुर्लभ पदार्थों से बनाया जाता था; जैसे कि फयॉन्स के बने छोटे-छोटे पात्र जोकि इत्र और सुगंधित द्रव्यों के पात्रों के लिए उपयोग में लाए जाते थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में से विलासिता जीवन से जुड़े सबसे अधिक प्रमाण मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा के साथ-साथ कालीबंगन जैसी जगहों से भी विलासी की वस्तुएँ नहीं मिली। यही कारण है कि विद्वान हड़प्पा की जीवन शैली को ग्रामीण जीवन शैली से सबसे पहले जोड़ते हैं।        

23. इतिहासकारों की नई दिशा और हड़प्पा संस्कृति का निर्वाह-

विश्व की प्राचीन हड़प्पा सभ्यता में लोगों द्वारा निम्नलिखित तरीके से जीवन निर्वाह किया जाता था-

(क) गेहूँ, सफेद चना, दाल, जौ और तिल मुख्य रूप से उनके फसलों में शामिल थे जिसकी वे लोग खेती करते थे। इन फसलों के अनाजों के दाने बहुत से हड़प्पा के बहुत से जगहों से मिले हैं।    

(ख) वहाँ के लोग बाजरे का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में ज़्यादा करते थे लेकिन चावल खाना बहुत कम लोग पसंद करते थे, ऐसा इसलिए क्योंकि खोज के दौरान बाजरे की तुलना में चावल के दानों के साक्ष्य बहुत कम मिले हैं।    

(ग) हड़प्पा सभ्यता के लोग अनेक प्रकार की वनस्पतियों से अपना भोजन प्राप्त करते थे। मछलियों और जानवरों के मिले अवशेष इस बात का प्रमाण हैं कि वहाँ के निवासी मांसाहारी थे। 

(घ) उस दौरान दूर भेजी जानी वाली वस्तुओं को रस्सी में बाँधने के बाद उन पर एक से अधिक मुहरे लगाई जाती थी। मुहरों को हड़प्पा सभ्यता का सबसे विशिष्ट पुरावस्तु कहा जाता है। इस तरह से इस सभ्यता के लोगों का जीवन पूर्णरूप से प्रगतिशील और जरूरत के मुताबिक परिवर्तनीय था।  

24. हड़प्पा द्वारा अपनाई गई कृषि विधि-

हड़प्पा निवासियों द्वारा अपनाई जाने वाली चार कृषि विधियाँ निम्नलिखित हैं- 

(क) हड़प्पा के कालीबंगन में जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं जिसकी हल रेखाएँ एक-दूसरे को समकोण काटती हुई दिखाई गई हैं। इससे यह पता चलता है कि राजस्थान में उस समय एक साथ दो फसलें उगाई जाती थीं।  

(ख) पुराततत्त्वविद मुहरों पर मिले रेखाचित्र और जुते हुए खेतों में मिले बीजों के आधार पर मानते हैं कि खेतों में जुताई के लिए उस समय बैलों का प्रयोग किया जाता था।   

(ग) बनावली और चेलिस्तान से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं जो वहाँ की कृषि व्यवस्था की स्पष्ट पुष्टि करते हैं। 

(घ) पुराततत्त्वविदों के मुताबिक हड़प्पा के अधिकतर स्थलों को अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में होने कारण सिंचाई की जरूरत पड़ती थी। अफगानिस्तान के शोर्तुघई स्थल से सिंचाई नहर का अवशेष मिलना इस बात का साक्ष्य है कि उस समय कृषि के लिए सिंचाई विधी का भी प्रयोग किया जाता था।   

25. हड़प्पा लिपि और विद्वानों के विचारों का विश्लेषण-

हड़प्पा के लोग लिखने की कला से भलीभाँति परिचित थे। इसका पता वहाँ मिले ताम्र पट्टियों, कुल्हाड़ियों, आभूषण, मृद्भांड और जगह-जगह सूचनापट्ट पर चिह्नित चिह्नों से चलता है। लेकिन आज तक पढ़ी नहीं जाने के कारण यह लिपि पुराततत्त्वविदों के लिए रहस्यमयी बनी हुई है। इसमें चिह्नों कि संख्या लगभग 375 से 400 के बीच प्रयोग की गई है। इस प्रकार से निश्चित रूप से वर्तमान समय की वर्णमाला की तरह तैयार नहीं की गई थी। जिन मुहरों पर हड़प्पा लिपि के साक्ष्य मिले हैं उनमें से कुछ पर दाईं तरफ चौड़ा अंतराल और बाईं तरफ संकुचित अंतराल है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह लिपि दाईं से बाईं तरफ लिखी जाती थी। इसलिए बाकी लिपियों के मुकाबले इसे पढ़ना और समझना काफी कठिन है। हड़प्पा के लोगों ने अपनी लिपि में सांकेतिक भाषा का उपयोग ज़्यादा किया। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से इस लिपि को आज भी पढ़ने की कोशिश की जा रही है। यहाँ के मुहरों पर एक क्रम में कुछ लिखा हुआ है जिसके बारे में विद्वानों का कहना है कि इनपर बने जानवरों इत्यादि के चित्र अनपढ़ लोगों को सांकेतिक रूप से इनका मतलब बताता था। सभी तथ्यों के आधार पर ये स्पष्ट होता है कि हड़प्पा सभ्यता की लिपि अत्यधिक रहस्यमयी है इसलिए उसे समझना अन्य लिपियों के मुकाबले कठिन है।         

26. आरंभिक हड़प्पा पुरातत्त्वविद (असामान्य और अपरिचित वस्तुएं तथा धार्मिक महत्त्व)-

“आरंभिक हड़प्पा पुरातत्त्वविदों को कुछ वस्तुएँ जो असामान्य और अपरिचित लगती हैं, वहीं संभवतः धार्मिक महत्त्व की होती थी।” यह कथन निम्नलिखित प्रमाणों से सिद्ध किया जा सकता है- 

(क) इन वस्तुओं में आभूषणों को धारण की हुई स्त्रियों की मृण्मूर्तियाँ हैं, जिनमें से कुछ के सिर पर विशेष आभूषण थे जिन्हें हड़प्पा के लोग मातृदेवी या कुलदेवी मानते थे।  

(ख) ज़्यादातर समस्याएँ प्रथाओं के पुनर्निर्माण के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों में आती हैं। इसलिए पुरातत्त्वविदों  को लगता होगा कि जो वस्तुएँ असामान्य और अपरिचित लगती हैं मुख्य रूप से वो धार्मिक महत्त्व रखती हैं। 

(ग) हड़प्पा के आस-पास बसे स्थलों की संचना के मुताबिक अनुष्ठानिक महत्व को भी विशाल स्नानागार और कालीबंगन तथा लोथल से प्राप्त वेदियों के आधार पर स्वीकार किया गया है। 

(घ) एक पुरुष की मूर्ति जिसे दुर्लभ पत्थर से बनाया गया था उसे मनुष्यों की तरह हाथ घुटने पर रखे हुए दिखाया गया था। ऐसी मूर्तियों को पुरोहित राजाओं के रूप में स्वीकार किया गया था। 

27. मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की विशेषताएं-

मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं- 

(क) मोहनजोदड़ो के आवासीय घर निचले शहर में बने थे। उस समय घरों को बनाते समय एकांतप्रियता का विशेष ध्यान रखा जाता था। 

(ख) आँगन घर के बीच में बना होता था और उसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। 

(ग) आँगन का उपयोग मुख्य रूप से खाना बनाने और कताई करने के लिए किया जाता था।   

(घ) भूमि तल यानि सबसे नीचे बने कमरों में खिड़कियाँ नहीं होती थीं।  

(ड़) हर एक कमरे में ईंटों से बना स्नानघर होता था, जिसकी नालियां दीवार के मध्य से निकलती हुई सड़क की नालियों से जुड़ती थीं।  

(च) मोहनजोदड़ो के गृह स्थापत्य की सबसे अद्भुत बात यह है कि कुओं का निर्माण भी घरों में ही होता था। मुख्य रूप से कुआँ ऐसे घर में बना होता था जिसका उपयोग बाहर आने-जाने के लिए ज़्यादा किया जाता था। 

(छ) उस समय घर बहुमंजिला भी हुआ करते थे जिस पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी होती थीं। 

28. सबसे प्राचीन सभ्यता के मुख्य केंद्र-

सबसे प्राचीन सभ्यता के मुख्य केंद्रों का वर्णन इस प्रकार है- 

(क) हड़प्पा-  सबसे प्राचीन सभ्यता में खोजे गए दो मुख्य स्थलों में से एक हड़प्पा है। इसका दिरग क्षेत्र चारों तरफ से सुरक्षा के घिरा हुआ है। यहाँ से प्राप्त अधिकांश मुहरों पर पशुओं की आकृति अंकित है जिससे यह साफ होता है कि यहाँ लोग जीवन निर्वाह के लिए कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते थे। हड़प्पा में शवों को उत्तर से दक्षिण दिशा में दफनाया जाता था। यहाँ शिल्प उत्पादन के लिए कच्चे माल की जरूरत होती थी जिसे विभिन्न स्थानों से सिंधु नदी और उसके उपनदियों के जलमार्गों से लाया जाता था। यहाँ लोग वजन के लिए बाट का उपयोग करते थे।       

(ख) मोहनजोदड़ो- हड़प्पा सभ्यता एक शहरीकरण सभ्यता थी, जिसमें मोहनजोदड़ो मुख्य शहर था। यह 125 हेक्टेयर में फैला एक विशाल शहर था। यहाँ दो प्रकार के नगर बीएसई हुए थे जिन्हें दुरह और निचला शहर कहा जाता था। मोहनजोदड़ो के पश्चिम भाग में बसे दुर्ग टीले को स्तूप टीला भी कहा जाता था। यहाँ अधिकतर साक्ष्य मृत श्ववों, पुरोहित आवास या शवाधान से मिले हैं। यही कारण है कि इसे ‘मृतकों का टीला’ भी कहा जाता है। 

(ग) लोथल- लोथल प्राचीन सभ्यता का एक बंदरगाह नगर था। पुरातत्त्वविदों को यहाँ के एक घर में सेलखड़ी की चार मुहरें, सोने के साक्ष्य, सीप एवं ताँबे से बनी चूड़ियाँ साथ ही एक रंगा हुआ जार भी मिला है। साक्ष्यों से पता चलता है कि यहाँ के लोग अनाज में धान एवं बाजरे का उपयोग भोजन के लिए करते थे और रंगाई के लिए पक्के रंगों का इस्तेमाल करते थे।    

(घ) कालीबंगम- हड़प्पा के कालीबंगन में जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं जिसकी हल रेखाएँ एक-दूसरे को समकोण काटती हुई दिखाई गई हैं। इससे यह पता चलता है कि यहाँ उस समय एक साथ दो फसलें उगाई जाती थीं। यहाँ का नगर-दुर्ग समानांतर एवं चतुर्भुज आकार का था। यहाँ मिली 6 छेद वाली खोपड़ी से पता चलता है कि उस समय भी व्यक्ति मस्तिष्क रोग से पीड़ित रहते थे।   

(ड़) खेतड़ी- खेतड़ी नगर ताँबे की खान के लिए प्रसिद्ध है। ऐसे कुछ क्षेत्रों में अभियान द्वारा कच्चा माल प्राप्त किया जाता था। खेतड़ी में ताँबे के लिए और दक्षिण भारत में स्वर्ण धातु के लिए अभियान किए जाते थे।  

29. हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली और 1900 ई. पू. के बाद आए बदलाव-

हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली यहाँ बीएसई शहरों की प्रमुख विशेषता थी। घरों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए गलियों में बड़ी-बड़ी नालियां बनी थीं जो घरों की दीवारों के मध्य से जुड़ी हुई थीं। लगभग सभी सड़कों, नालियों और गलियों को ग्रिड विधि द्वारा निर्मित किया गया था जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। जिन्हें देखने पर लगता है कि घरों को बाद में बनाया गया होगा पहले नालियों के साथ और गलियों की सड़कों का निर्माण किया गया होगा। मुख्य नाले को गारे से जमाई गई ऐसी ईंटों से बनाया जाता था ताकि भविष्य में इसे साफ-सफाई के लिए हटाया जा सके। इतना ही नहीं नालियों के बीच-बीच में हौद बनाए जाते थे जिनमें नालियों का कूड़ा-कचरा जमा होता था। ऐसा इसलिए करते थे ताकि कचरे को आसानी से निकाला जा सके और नालियों के बहाव में कोई बाधा उत्पन्न न हो। हड़प्पा सभ्यता की जल निकास की ऐसी अद्भुत व्यवस्था हर किसी को चौंका देती है। 

हड़प्पा सभ्यता में 1900 ई. पू. के बाद आए दो बदलाव निम्नलिखित हैं- 

(क) बाट, मुहर और मनके जैसी विशेष वस्तुएँ समाप्त हो गईं। लंबी दूरी के व्यापार, लेखन और शिल्प भी समाप्त हो गए। 

(ख) घरों के निर्माण करने के तरीकों का पतन होने लगा। सामाजिक संरचना तितर-बितर होने लगी। इस प्रकार 1900 ई. पू. के बाद लोगों की जीवन शैली परिवर्तित हो गई।         

30. हड़प्पा सभ्यता का पतन-  

कुछ विद्वानों का हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त प्रमाणों के मुताबिक कहना है कि 1800 ई. पू. तक चेलिस्तान जैसे स्थलों पर इस सभ्यता का अंत हो चुका था। वहीं हरियाणा, गुजरात तथा उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में लोगों की संख्या बढ़ने लगी थी। 1900 ई. पू. के बाद यहाँ निम्नलिखित बदलाव हुए जिसकी वजह से इसे पतनशील हड़प्पा के नाम से जाना जाने लगा-

(क) बाट, मुहर और मनके जैसी विशेष वस्तुएँ समाप्त हो गईं। लंबी दूरी के व्यापार, लेखन और शिल्प भी समाप्त हो गए। 

(ख) घरों के निर्माण करने के तरीकों का पतन होने लगा। सामाजिक संरचना तितर-बितर होने लगी। इस प्रकार 1900 ई. पू. के बाद लोगों की जीवन शैली परिवर्तित हो गई।  

हड़प्पा सभ्यता के पतन के कई कारण विद्वानों द्वारा बताए गए हैं जिनमें से कुछ मुख्य हैं- 

(क) जलवायु परिवर्तन के कारण वनों का विनाश। 

(ख) नदियों के सूखने के कारण व्यापार हेतु मार्ग बदलना। 

(ग) भूमि के अत्यधिक दोहन ने इस सभ्यता के पतन को सबसे ज़्यादा बढ़ावा दिया।  

(घ) विशिष्ट मनको की कमी, मुहरों का न मिलना, माप-तौल की पुरानी प्रणाली को छोड़ना इत्यादि इन सबने नगरों के पतन के लिए मार्ग प्रशस्त किया जोकि हड़प्पा सभ्यता के पतन का मुख्य कारण बना।

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