इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 8वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III” के अध्याय- 1 “भारतीय संविधान” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 1 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 8 Political Science Chapter-1 Notes In Hindi
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अध्याय-1 “भारतीय संविधान“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | आठवीं (8वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान) |
अध्याय नंबर | एक (1) |
अध्याय का नाम | “भारतीय संविधान” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 8वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान)
अध्याय- 1 “भारतीय संविधान”
राष्ट्र को संविधान की आवश्यकता क्यों है?
- संविधान देश के वास्तविक स्वरूप को तय करता है।
- संविधान नियमों का एक समूह है जिसकी आवश्यकता देश के लोगों को देश को चलाने के लिए होती है।
- नियमित व्यवस्था की वजह से लोगों में देश की सरकार चुनने की तथा देश के प्रति आदर्श की भावना विकसित होती है।
- संविधान लोकतंत्र को संचालित करने का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता है।
- तानाशाह और राजतंत्र के बिगड़ते स्वरूप को समाप्त करने के लिए नए संविधान की आवश्यकता पड़ती है।
- नियमों का यह समूह देश की राजनीतिक व्यवस्था को सुनिश्चित करता है।
- देश में किसी भी निर्णय प्रक्रिया में संविधान अहम भूमिका निभाता है।
- लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेताओं का चयन जनता द्वारा होता है लेकिन वे नेता देश की संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाएंगे यह तय करने में संविधान अहम भूमिका निभाता है।
- संविधान की मदद से देश को अनेक विकृतियों से बचाया जा सकता है।
- बिना नियमित व्यवस्था के राजा प्रजा के साथ अन्याय भी कर सकता है या लोगों पर अपने नियम कानून थोप सकता है।
- भारतीय संविधान धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के साथ कोई भी भेद-भाव करने की अनुमति नहीं देता है।
- संविधान ताकतवर वर्ग की शक्ति को किसी अन्य कमजोर समूह पर लागू नहीं होने देता है।
- नियमित व्यवस्था के द्वारा अल्पसंख्यकों के हितों का ध्यान रखा जाता है और बहुसंख्यकों की निरंकुशता तथा दबदबे पर रोक लगाई जाती है।
- संवैधानिक व्यवस्था से हम खुद को खुद से बचा सकते हैं अर्थात् हम कोई भी ऐसा कदम नहीं उठा सकते जिससे हमारी भवनाओं को चोट पहुँचे। इस तरह नियमित व्यवस्था मानव स्वतंत्रता व उसके हितों की रक्षा करता है।
- वर्ष 1934 में कांग्रेस द्वारा संविधान सभा के गठन की माँग को प्रथम बार अधिकृत नीति में शामिल किया गया था।
- वर्ष 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया था और दिसंबर 1946 से लेकर 1949 के बीच स्वतंत्र भारत के लिए नए संविधान का एक प्रारूप तैयार किया गया।
20वीं सदी तक भारतीय संविधान और लोगों की स्थिति
- 20वीं सदी आते-आते भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन अनेक वर्ष पुराना हो चुका है।
- स्वतंत्रता के बाद भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप स्थापित करना अधिक जरूरी था।
- लोकतांत्रिक सरकार का गठन करने और उसके कामकाज को सुनिश्चित करने में लगभग 300 लोगों ने योगदान दिया था। ये सभी 1946 में गठित की गई संविधान सभा के सदस्य थे।
- संविधान निर्माताओं के सामने अनेक चुनौतियाँ थीं क्योंकि देश में भाषा, धर्म तथा संस्कृति में समानता नहीं थी।
- भारत विभाजन के दौरान बहुत से राज्यों (रजवाड़ों) और लोगों को यह नहीं पता था कि वे पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगे या भारत का।
- लोगों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति पूरी तरह से खराब हो चुकी थी।
- संविधान के निर्माण ने लोगों को एकता के बंधन में बांधने के साथ उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थितियों को सुधारने पर भी जोर दिया।
भारतीय संविधान के कुछ मुख्य आयाम
भारतीय संविधान के कुछ मुख्य आयामों का वर्णन निम्न प्रकार है-
संघवाद
- संघवाद का तात्पर्य किसी देश में एक से अधिक स्तर की सरकारों से है।
- भारत में राज्य, केंद्र और पंचायत तीन स्तर की सरकारें हैं।
- सभी शक्तियों को किसी एक के हाथ यानी केंद्र को सौंप कर, उसके अनुसार देश के लिए फैसले लेना लाभकारी नहीं हो सकता है।
- भारत में राज्य को भी कुछ फैसले लेने का अधिकार दिया गया है।
- देश के महत्व को बढ़ाने के लिए बनाए गए सभी कानूनों का पालन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
- संघवाद के अंतर्गत राज्य सरकार सिर्फ केंद्र के अधीन नहीं होती है बल्कि उसे भी कानूनी रूप से कुछ अधिकार व शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
- भारत की जनता सभी स्तरों की सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करती है।
संसदीय शासन पद्धति
- प्रत्येक स्तर पर कार्य करने वाले प्रतिनिधियों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है।
- संविधान में 18 वर्ष से ऊपर सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार दिया गया है। इस अधिकार को स्वतंत्रता संघर्ष का परिणाम माना जाता है।
- संविधान सभा के सदस्यों को विश्वास था कि उपरोक्त अधिकार के मिलने से समाज में फैली सभी रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ा जा सकता है।
- सार्वभौमिक मताधिकार का अर्थ है अपने राष्ट्र के प्रतिनिधियों को चुनने में जनता की प्रत्यक्ष भूमिका का होना और देश में किसी भी वर्ग के व्यक्ति द्वारा चुनाव लड़ा जाना।
- चुने हुए सदस्य लोगों के प्रति जवाबदेह होते हैं।
शक्तियों का बँटवारा
- संविधान में सरकार के तीन अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का वर्णन किया गया है।
- विधायिका में चुने हुए प्रतिनिधि शामिल होते है, कार्यपालिका के सदस्यों का कार्य कानून लागू करना और उसे संचालित करना है तथा न्यायालयों की व्यवस्था को न्यायपालिका देखती है।
- सत्ता की शक्तियों का गलत उपयोग न हो इसलिए तीनों अंगों के अधिकारों को एक-दूसरे से भिन्न रखा गया है।
- तीनों अंग एक-दूसरे पर अंकुश लगा सकते हैं इसलिए तीनों अंगों के बीच सत्ता का संतुलन बनाए रखना आसान है।
मौलिक अधिकार
- मौलिक अधिकारों को संविधान की ‘आत्मा’ कहा जाता है।
- सत्ता के दुरुपयोग से बचने के लिए लोगों के लिए लिखित अधिकारों का होना सबसे आवश्यक था।
- अधिकार देश के राज्यों व नागरिकों को सत्ता के मनमाने तथा निरंकुश व्यवस्था से सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करता है।
- संविधान बहुसंख्यकों से अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा करता है।
- डॉ. अंबेडकर द्वारा कहा गया था कि “मौलिक अधिकारों का दोहरा उद्देश्य है। पहला, प्रत्येक नागरिक उस स्थिति में हो कि वह अपने अधिकारों के लिए दावेदारी कर सके और दूसरा ये कि अधिकार उस सत्ता एवं संस्था के लिए बाध्यकारी हो, जिसे कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है।”
- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के अतिरिक्त एक भाग में नीति-निर्देशक तत्वों का भी उल्लेख किया गया।
- उपरोक्त भाग को इसलिए संविधान में जोड़ा गया ताकि बड़े स्तर पर सामाजिक व आर्थिक बदलाव देश में लाया जा सके।
- भारतीय संविधान में कुछ मुख्य मौलिक अधिकार निम्न प्रकार हैं-
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध का अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार
- संवैधानिक उपचार का अधिकार
धर्मनिरपेक्षता
- धर्मनिरपेक्ष सरकार उसे कहते हैं जो किसी भी एक धर्म को राज्य धर्म के रूप में बढ़ावा नहीं देती है।
- संविधान उन आदर्शों को लागू करता है, जो देश तथा प्रतिनिधियों के माध्यम से पूरा हो सकता है।
- संविधान में अधिक बदलाव होने से देश का आरंभिक स्वरूप बदल जाता है, उदाहरण के लिए नेपाल के संविधान में हुआ बदलाव।
- संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में स्वीकार किया गया है, जिसके तहत हर एक नागरिक को कोई भी धर्म अपनाने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता है।
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