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पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Environmental Pollution Essay In Hindi)

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PP Team
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इस पृथ्वी पर जो सबसे अनमोल और बेशकीमती चीज़ से है, वो है हमारा पर्यावरण। ईश्वर और कुदरत दोनों ने ही मिलकर हमारे पर्यावरण और प्रकृति को इस ढंग से रचा है कि इसका अनुमान लगा पाना मनुष्य के लिए शायद नामुमकिन है। हम मनुष्यों के ऊपर प्रकृति का जो एहसान है, उसे तो शायद हम कभी चुका नहीं पाएंगे लेकिन प्रकृति से जो कुछ भी हमें मिला है उसमें से कुछ अंश अगर हम प्रकृति को लौटा सकते हैं, तो यह हमारा सौभाग्य होगा। लौटाने से हमारा तात्पर्य है प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना, जिसकी प्रकृति को आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

प्रस्तावना

दुनिया के शुरू होने के साथ ही प्रकृति के अद्भुत संतुलन की वजह से ही इस धरती पर जीवन बना हुआ है लेकिन आज के इस आधुनिक युग में टेक्नोलॉजी की वजह से यह पूरी तरह से खतरे में है। वायु, जल और धरती ये सभी धीरे-धीरे दूषित हो रहे हैं। इस बढ़ते हुए प्रदूषण को कम करने के लिए और इसे रोकने के लिए विभिन्न प्रयास भी किए जा रहे हैं। यह प्रयास हम चार भागों में विभाजित कर सकते हैं, जैसे- प्रकृति के पूरे चक्र को समझना, प्रदूषण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना, प्रकृति की खूबसूरती को कायम रखना और उन तरीकों से काम करना जिससे धरती का पर्यावरण साफ, शुद्ध और ताजा बना रहे तथा पर्यावरण में किसी भी तरह की कोई मिलावट न हो।

पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ

पर्यावरण प्रदूषण के अर्थ को तो हम समझेंगे ही, लेकिन साथ में यह भी जानेंगे कि पर्यावरण क्या है और हमें कैसे प्रभावित करता है? सबसे पहले पर्यावरण प्रदूषण के अर्थ को समझते हैं कि जिसमें किसी भी घटको में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिसका हमारे जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो, वह पर्यावरण कहलाता है। इस पर्यावरण में उद्योग, नगर और मानव विकास की जो प्रक्रिया होती है, उसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।

पर्यावरण प्रदूषण को हम कई अलग-अलग रूपों में बांटकर देख सकते हैं। आसान शब्दों में समझें तो पर्यावरण प्रदूषण का सीधा सा अर्थ है पर्यावरण का विनाश। ऐसे कई कारण हैं जिनसे हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है पर्यावरण प्रदूषण की समस्या दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है। जिस पर्यावरण को हम देखते हैं वह प्रकृति और मानव द्वारा निर्मित चीजों से बना हुआ है और इन्हीं में से कुछ तत्व ऐसे हैं जो हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं जोकि भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।

पर्यावरण प्रदूषण क्या है?

पर्यावरण प्रदूषण के अर्थ को समझने के बाद अब हम जानेंगे कि पर्यावरण प्रदूषण क्या है? या पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते हैं? पर्यावरण प्रदूषण उस स्थिति को कहते हैं जब हमारे द्वारा की गई अलग-अलग गतिविधियों से दूषित सामग्री पर्यावरण में मिल जाती है। यह हमारी दिनचर्या की प्रक्रिया को मुख्य रूप से बाधा पहुँचाती है और इस वजह से पर्यावरण में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है।

जो पर्यावरण में प्रदूषण फैलाने का काम करते हैं उन्हें प्रदूषक तत्व कहा जाता है। यह प्रदूषक तत्व प्रकृति में होने वाले पदार्थ भी होते हैं और मानव द्वारा की गई बाहरी गतिविधियों से भी निर्मित हो जाते हैं। यह प्रदूषक तत्व पर्यावरण में ऊर्जा की कमी के रूप में भी शामिल हो सकते हैं। इसे हम वायु प्रदुषण, जल प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि कई अलग-अलग प्रदूषण के प्रकार में बांट सकते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण

प्रकृति से हमें जीवन यापन के लिए, हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए तथा अपना विकास तेज गति से करने के लिए बहुत से प्राकृतिक संसाधन मुफ्त में मिले हैं। परंतु समय के साथ-साथ हम इतने स्वार्थी और लालची होते जा रहे हैं कि अपने उसी पर्यावरण को प्रदूषित करते हुए उसे नष्ट करने पर तुले हुए हैं।

इस बात को समझे बिना ही कि अगर हमारा पर्यावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो जाएगा, तो फिर ये आने वाले समय में हमें और हमारी आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य और भविष्य पर गंभीर रूप से अपना प्रभाव डालेगा। फिर एक समय ऐसा आएगा जब हम सभी के पास पृथ्वी पर जिंदा रहने के लिए कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं बचेंगे। इसीलिए हमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण को गंभीरता से लेना होगा और जल्द से जल्द इन कारणों को दूर करना होगा। पर्यावरण प्रदूषण के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं, जैसे-

  • औद्योगिक गतिविधियों का तेज होगा
  • वाहन का ज़्यादा इस्तेमाल 
  • तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण का बढ़ना 
  • जनसंख्या अतिवृद्धि 
  • जीवाश्म ईधन दहन 
  • कृषि अपशिष्ट 
  • कल-कारखाने 
  • वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग 
  • प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना 
  • वृक्षों को अंधा-धुंध काटना 
  • घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होना
  • खनिज पदार्थों क दोहन
  • सड़को का निर्माण 
  • बांधो का निर्माण 

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार

वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि सभी पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार हैं। इन सभी का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। लेकिन पर्यारवण प्रदूषण के मुख्य तीन प्रकार हैं, जिनकी चर्चा नीचे की गई है, जैसे-

वायु प्रदूषण- हवा मानव, जानवर, पेड़-पौधे आदि सभी के जीवित रहने के लिए बहुत जरूरी है। हमारे इस वायुमंडल में अलग-अलग तरह की गैसें एक निश्चित मात्रा में मौजूद होती हैं और सभी जीव अपनी क्रियाओं और सांसों के माध्यम से ऑक्सीजन और कार्बनडाइऑक्साइड में संतुलन बनाए रखते हैं परंतु अब ऐसा हो रहा कि मनुष्य अपनी भौतिक आवश्यकताओं की आड़ में इन सभी गैसों के संतुलन को नष्ट करने में लगा हुआ है।

अगर हम शहर की वायु की तुलना, गांव की वायु से करें, तो हमें एक बहुत बड़ा अंतर दिखाई देगा। एक ओर जहाँ गांव की शुद्ध और ताजा हवा हमारे तन-मन को प्रसन्न कर देती है, तो वहीं दूसरी ओर हम शहर की जहरीली हवा में घुटन महसूस करने लगते हैं। इसके पीछ सबसे बड़ा कारण है शहरों में ऐसे संसाधनों की मात्रा में लगातार वृद्धि होना जो प्रदूषण को जन्म देते हैं।

जल प्रदूषण- जल ही जीवन है और हम सभी के जीवन के लिए जल मुख्य घटकों में से एक है। जल के बिना हम में से कोई भी जीव जैसे मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि जिंदा रहने की कल्पना तक नहीं सकते। प्रकृति के जल में अनुचित पदार्थों या तत्वों के मिल जाने से जल की शुद्धता कम हो जाती है, जिसे हम जल प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण की वजह से गंभीर रोग पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है और कई तरह के जीवाणु तथा वायरस पनपने लगते हैं।

पानी में अलग-अलग प्रकार के खनिज, तत्व, पदार्थ और गैसें मिल जाती हैं, जिनकी मात्रा काफी होती है। अगर इन सभी की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, तो यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा हानिकारक साबित हो सकता है। एक ओर तो हमने नदियों को माँ का दर्जा दिया हुआ है और उनकी पूजा करते हैं, लेकिन वहीं दूसरी ओर हम इसमें प्रदूषित तत्वों को घोलकर कर जल की शुद्धता को नष्ट कर रहे हैं और माँ समान उन नदियों का अपमान भी कर रहे हैं।

ध्वनि प्रदूषण- गैर ज़रूरी और ज़रूरत से ज़्यादा आवाज़ जिसे हम शोर कहते हैं, ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। अगर कोई आवाज़ हमारे लिए मनोरंजन का साधन बनती है, तो हो सकता है कि वही आवाज़ किसी दूसरे व्यक्ति के लिए शोर हो। बहुत ज़्यादा आवाज़ ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती है, जिससे मनुष्य की सुनने की शक्ति धीरे-धीरे कम होती चली जाती है और अगर इसपर ध्यान न दिया जाए, तो व्यक्ति अपनी सुनने की शक्ति को पूरी तरह से भी खो सकता है। किसी भी आवाज़ को अगर एक सीमित मात्रा मैं सुना जाए, तो हमारी सेहत पर उसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा लेकिन वही आवाज़ ज़रूरत से ज्यादा तेज हो, तो फिर उसे सहन कर पाना मुश्किल हो जाता है। ध्वनि प्रदूषण से इंसान की एकाग्रता भंग होती है और फिर वह अपने किसी भी काम को पूरी तरह से एकाग्र होकर नहीं कर पाता।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव

पर्यावरण प्रदूषण भारत में धीरे-धीरे एक चुनौती बनता जा रहा है। प्रदूषण की वजह से हम सभी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा है। वायु प्रदूषण के कारण वातावरण में ओजोन परतों का विनाश हो रहा है। जल प्रदूषण होने की वजह से जलीय जीवन और अम्लीयता की मृत्यु हो रही है। मृदा प्रदूषण के होना का मतलब ऐसी मिट्टी से है जो अस्वास्थ्यकर या असंतुलित हो और जिससे पेड़-पौधे, खेत, फसल आदि की वृद्धि होने में कठिनाई हो।

मृदा प्रदूषण से हरी-भरी ज़मीन भी बंजर हो जाती है। आज भारत एक नहीं बल्कि पर्यावरण प्रदूषण की तमाम चुनौतियों से जूझ रहा है और उनका सामना कर रहा है। वक़्त रहते इसका समाधान मिलना बहुत ज़रूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो फिर पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव से होने वाली हानि का अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा।

पर्यावरण प्रदूषण का मानव जीवन पर प्रभाव

पर्यावरण प्रदूषण का मानव जीवन पर कई तरह से प्रभाव पड़ रहा है। यह बताना ज़रूरी नहीं है कि पर्यावरण प्रदूषण ने मानव की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे जल, भोजन, वायु और मिट्टी के अंदर अपने विषैले तंतुओं को फैला दिया है। यह हमारे रहने, पीने और खाने को प्रभावित करता है। यह इंसानों के साथ जानवरों, पक्षियों, पेड़-पौधों के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है।

अलग-अलग चीजें हवा को प्रदूषित करती हैं जैसे मोटर वाहन और उद्योगों से निकलने वाली गैस, हवा के अंदर जीवाश्म ईंधन जलाना, ठोस औद्योगिक अपशिष्ट, तेल फैलना, प्लास्टिक डंप और पानी में फेंकने वाले शहर का कचरा नदी और महासागरों को प्रदूषित करता है। इसी तरह कृषि की अकार्बनिक प्रक्रियाएं मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर देती हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि पानी पीने के लिए उपयोग किया जाता है, भोजन बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली मिट्टी और साँस लेने के लिए हवा का उपयोग किया जाता है। अगर ये तीनों तत्व ही दूषित होंगे, तो मानव शरीर के अंदर अपने प्रदूषकों को डालेंगे जिससे गंभीर रोग पैदा होंगे।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, अस्थमा, लंग कैंसर, स्किन कैंसर, लेड पॉइजनिंग, कार्डियोवस्कुलर डिजीज एंड स्ट्रोक, रेडिएशन इनेबल्ड कैंसर, मरकरी पॉइजनिंग, जन्मजात डिसएबिलिटी, एलर्जी, फेफड़े की बीमारियां हैं, जो ऑक्यूपेशनल एक्सपोजर के कारण होती हैं। इसलिए हमें समझना होगा कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से कैसे बचा जाए और कैसे इसका समाधान ढूंढा जाए।

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान

ये तो हम सभी देख रहे हैं कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या दिन पर दिन किस कदर बढ़ती जा रही है और इसके जिम्मेदार भी सिर्फ और सिर्फ हम इंसान ही हैं। इसीलिए अब ये जिम्मेदारी भी हमारी ही बनती है कि इस समस्या का जल्द-से-जल्द ऐसा समाधान निकालें जिससे पर्यावरण प्रदूषण की समस्या जड़ से ही खत्म हो जाए।

बढ़ते हुए मीलों, कारखानों, मोटर वाहनों, रासायनिक उर्वरकों, कार्बन-मोनो-आक्साइड गैस से निकलने वाला अपशिष्ट और धुआँ, नालियों का गंदा पानी और वनों की अंधाधुन कटाई के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या तेजी से बढ़ रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो आने वाला समय हम सभी के लिए दुःख और अशांति लेकर आएगा।

यह समस्या अगर ऐसे ही बढ़ती रही, तो इससे सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि पूरा देश प्रभावित होगा और हम सभी को एक ऐसी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा, जिसके बारे में हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। दुनिया के जितने भी विकसित देश हैं वहाँ पर इस तरह की समस्या का होना बहुत ही आम बात है। भारत का हर व्यक्ति आज प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या की मार तो झेल रहा है लेकिन इसे दूर करने के लिए ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो कोशिश में लगे हुए हैं। पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभाव बहुत ही गंभीर और हानिकारक साबित होते हैं। पर्यावरण प्रदूषण के कारण हमारी सामाजिक स्थिति भी खंडित हो जाती है।

विश्व में जितनी भी प्राकृतिक गैसें मौजूद हैं उन सभी में संतुलन का बना रहना बहुत ही आवश्यक है, परन्तु आज इंसान अपने स्वार्थ और ज़रूरत के लिए पेड़ों और वनों को काटने में लगा हुआ है। आप ज़रा सोचिए अगर धरती पर एक भी पेड़ ही बचेगा, तो क्या हम ऑक्सीजन ले पाएंगे। जब हमें ऑक्सीजन ही नहीं मिलेगी, तो हमारा जीवित रहना मुश्किल है। पेड़ों की कमी से कार्बन-डाईआक्साइड की मात्रा ज्यादा हो जाएगी जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या अधिक बढ़ जाएगी।

यदि हम प्राकृतिक संसाधनों के साथ में कोई छेड़छाड़ करते हैं, तो फिर वह प्राकृतिक आपदाओं का रूप लेकर धरती पर विनाश करते हैं। यह विनाश बाढ़, आँधी, तूफान, ज्वालामुखी आदि के रूप में होता है। हम औद्योगिक विकास के लालच में प्रकृति के साथ अपने व्यवहार को भूल चुके हैं, जिस कारण हमें पर्यावरण प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाओं, महामहारियों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अगर हम सही में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करना चाहते हैं, तो हमें निम्नलिखित समाधानों का प्रयोग अपने जीवन में करना होगा।

  • प्रकृति और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए जल्द ही हमें इस पर नियंत्रण करना होगा। हमें ज्यादा से ज्यादा वनीकरण की तरफ ध्यान देना होगा। हमें कम से कम पेड़ों की कटाई की कोशिश करनी होगी। पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे और इसके खिलाफ जाने वाले को सख्त से सख्त सजा देनी होगी।
  • सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि राजनेताओं, अभिनेताओं, विचारकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और भारत के हर नागरिक को पर्यावरण प्रदूषण दूर करने के प्रति ज़्यादा से ज़्यादा जागरूकता फैलानी होगी। जागरूकता फैलाने के लिए जनसंचार माध्यमों की मदद ली जा सकती है। आज के आधुनिक युग के वैज्ञानिकों को भी प्रदूषण को खत्म करने के लिए और भी ज़्यादा प्रयास करने होंगे।
  • हम सभी को इस बारे में सोच-विचार करना होगा कि हमारे आसपास कूड़े के ढेर और गंदगी जमा न होगा। हमें कोयला और पेट्रोलियम जैसे उत्पादों का बहुत कम प्रयोग करना सीखना होगा और ऐसे विकल्प चुननें होंगे जो प्रदूषण मुक्त हों। हमें सौर ऊर्जा, सीएनजी, वायु ऊर्जा, बायोगैस, रसोई गैस, पनबिजली का ज़्यादा इस्तेमाल करना होगा। अगर हम ऐसा करते हैं, तो वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को कम करने में बहुत मदद मिल सकती है।
  • जिन कारखानों का निर्माण पहले हो चुका है अब तो उन्हें हटा पाना मुश्किल है लेकिन अब सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि जो भविष्य में बनने वाले कारखाने हैं, उन्हें शहर से दूर बनाया जाए। हम यातायात के ऐसे साधनों प्रयोग करें जिनमें से धुआं कम निकलता हो और जो वायु प्रदूषण को रोकने में मदद करें। सरकार को पेड़-पौधों और जंगलों को काटने पर पूरी तरह से रोक लगा देनी चाहिए।
  • हमें नदियों में कचरे को फैकने से बचाना चाहिए। हमें यह भी कोशिश करनी चाहिए कि पानी को रिसाइक्लिंग की मदद से पीने योग्य बनाएं। अगर हो सके तो प्लास्टिक के बैगों और थैलियों का इस्तेमाल करना बंद करके कपड़े और जूट के बने बैगों को प्रयोग में लाएं। पर्यावरण प्रदूषण को खत्म करने के लिए जागरूक नागरिक बने और सरकार तथा कानून द्वारा सुझाए गए नियमों का पालन करते हुए इस नेक काम में अपनी भागीदारी दें।

निष्कर्ष

इतिहास इस बात का साक्षी है कि पिछले कई लाखों-करोड़ों वर्षों से धरती पर आज भी शुद्ध हवा और स्वच्छ बहता पानी मौजूद है, लेकिन हम कहीं न कहीं इसकी कद्र करना भूलते जा रहे हैं। हमारे दुरुपयोग के कारण ही आज सभी प्राकृतिक संसाधन प्रदूषण की चपेट में आ चुके हैं। जिन वैज्ञानिकों ने अपना जीवन पर्यावरण की रक्षा करने में समर्पित कर दिया है अब वह हमें समझा रहे हैं कि कैसे हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए उसकी शुद्धता को बचाना है। वह हम मनुष्यों को जागरूक कर रहे हैं कि हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना है जो प्रकृति का संतुलन बिगड़ने या वातावरण प्रदूषित होने का कारण बने। सबसे पहले हमें किसी भी हाल में अपने गांवों को प्रदूषित होने से रोकना होगा और इस बात का भी पूरा ख्याल रखना होगा कि शहरों का प्रदूषण गांवों के पर्यावरण को प्रदूषित न कर दे।

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