कबीरदास जी ने अपने दोहों से लोगों को जागरूक करने की कोशिश की है। कबीरदास जी एक महान व्यक्ति और संत थे। वह समाज की भलाई के हेतु ही सोचा करते थे। वह लोगों को गलत राह पर चलने से भी रोका करते थे। उनको समाज में बुराई को खत्म करके अच्छाई को फैलाना था। वह सभी तरह के धर्म के लोगों को समान दृष्टि से देखा करते थे। वह लोगों के बीच में प्यार का संदेश फैलाना चाहते थे। उनका एक ही नारा था कि ईश्वर और अल्लाह एक ही होते हैं। भगवान में कोई भी भेद नहीं होता है।
कबीरदास की महत्वपूर्ण जानकारी | |
नाम | संत कबीर दास |
अन्य नाम | कबीरदास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहब |
जन्म-स्थान | सन 1398 (विक्रम संवत 1455) लहरतारा, काशी, उत्तर प्रदेश |
पिता और माता | नीरू (जुलाहे) और नीमा (जुलाहे) |
कार्य | संत, कवि, समाज सुधारक, जुलाहा |
कर्मभूमि | काशी, उत्तर प्रदेश |
शिक्षा | निरक्षर |
पत्नी और बच्चे | लोई (पत्नी), कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
विधा | कविता, दोहा, सबद |
विषय | सामाजिक व अध्यात्मिक |
मुख्य रचनाएं | सबद, रमैनी, बीजक, कबीर दोहावली, कबीर शब्दावली, अनुराग सागर, अमर मूल |
भाषा | अवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा |
मृत्यु | सन 1519 (विक्रम संवत 1575) |
कबीरदास का परिचय
जैसे मुस्लिम जुलाहा दंपत्ति नीरू और नीमा की कहानी प्रसिद्ध है ठीक वैसे ही एक विधवा ब्राह्मणी की भी कहानी प्रसिद्ध है। कहते हैं कि कबीरदास जी को जन्म देने वाली एक विधवा महिला थी। यह कहा जाता है कि कबीरदास जी का जन्म सन 1398 (विक्रम संवत 1455) को लहरतारा, काशी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनको जन्म देने वाली माता का नाम क्या था यह कोई नहीं जानता है। उनकी माता को गुरु रामानंद स्वामी से पुत्र प्राप्ति का वरदान मिला था।
सौभाग्यवश उसको पुत्र भी हो गया। लेकिन वह विधवा थी इसलिए उसे लगा कि उसके हाथ में पुत्र को देखते ही लोग नाना प्रकार के लांछन लगाएंगे। इसलिए उसने अपने पुत्र को एक तालाब में कमल के फूल पर छोड़ दिया। बाद में इसी बालक को जुलाहा दंपत्ति नीरू और नीमा ने पाल पोस कर बड़ा किया। बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि उनका जन्म मगहर या कहीं आजमगढ़ जिले के बेलहारा गाँव में हुआ था।
शिक्षा
कबीरदास जी अगर हम शिक्षा की बात करें तो हमें यह पता चलता है कि वह निरक्षर थे। उन्होंने किसी भी गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उनके माता-पिता के पास इतना धन नहीं था कि वह उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय भेज सके। ऐसे तो वह निरक्षर थे। पर ऐसे उन्हें बहुत सी बातों का गूढ़ ज्ञान था। वह पूरे देश घूमा करते थे। ऐसे में उन्हें जब भी कोई वहां कोई महात्मा मिल जाता तो वह उनसे ज्ञान लिए बिना नहीं चूकते थे। उन्होंने वेदांत, उपनिषद और योग जैसे विषयों पर बहुत अच्छी पकड़ हासिल कर ली थी। वह बहुत ज्यादा ज्ञानी हो गए थे।
शिक्षक और गुरु
कबीरदास जी के गुरु प्रसिद्ध महात्मा रामानंद जी माने जाते हैं। वह गोरखनाथ के रहने वाले थे। उनका जन्म वाराणसी में हुआ था। रामानंद जी एक महान संत थे। वह भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संतों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने भारत के हर कोने में ज्ञान की गंगा बहाई थी। महात्मा रामानंद जी की कृतियां हिंदी में होती थी।
उनकी और कबीरदास जी की कहानी थोड़ी अलग ही है। कबीरदास जी ने बहुत से लोगों से रामानंद जी की तारीफ सुनी थी। वह रामानंद जी से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गए थे। उन्होंने कबीरदास जी को अपना गुरु बनाने की ठान ली। वह जब रामानंद जी से मिलने काशी पहुंचे तो उन्होंने कबीरदास जी को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया। इस बात पर कबीरदास जी को बहुत बुरा लगा। पर उन्होंने हार नहीं मानी।
फिर एक दिन वह गंगा घाट पर रामानंद जी से पहले पहुंच गए। वह गंगा घाट की सीढ़ी पर लेट गए। थोड़ी देर बाद जब रामानंद जी आए तो उन्होंने सीढ़ियां उतरते वक्त कबीरदास जी की छाती पर गलती से पैर रख दिया। ऐसा होते ही कबीरदास जी के मुंह से एक ही शब्द निकला और वह था – राम। बस उसी समय रामानंद जी को अपनी गलती का एहसास हो गया। उन्होंने कबीरदास जी को हमेशा के लिए अपना शिष्य बना लिया।
वैवाहिक जीवन
कबीरदास जी का पूरा दिन राम नाम में ही बीत जाता था। उनको भगवान के सिवा कोई आगे पीछे दिखता ही नहीं था। ऐसा होने पर उनके माता-पिता को चिंता सताने लगी कि उनके बेटे की अगर शादी नहीं हुई तो वह हमेशा के लिए संत बन जाएगा।
उनके माता-पिता की दूसरी चिंता यह भी थी कि उनके पास शादी कराने जितने पैसे नहीं थे। फिर एक दिन उनके लिए लोई नाम की कन्या का विवाह प्रस्ताव आया। उनके माता-पिता ने उनका विवाह लोई से करवा दिया। लोई बहुत ही सुंदर और सुशील कन्या थी। उनको और लोई को एक पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। बेटी का नाम कमाली रखा गया था और बेटे का नाम कमाल रखा गया। लोई ने हर परिस्थिति में अपने पति का साथ दिया।
हालांकि ऐसा बहुत बार होता था जब वह कबीरदास जी की आदतों से चिढ़ जाती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि कबीरदास जी धार्मिक प्रकृति के थे इसलिए उनके घर पर हर समय संत महात्माओं का आना जाना लगा रहता था। कबीरदास जी किसी को भी अपने घर से भूखा नहीं भेजते थे। ऐसा होने से बहुत बार उनके बच्चों के लिए कुछ खाने को ही नहीं बचता था।
कबीरदास जी की रचनाएं
अनुराग सागर | अमर मूल |
अर्जनाम कबीर का | उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा |
अगाध मंगल | आरती कबीर कृत |
अठपहरा | अक्षर खंड की रमैनी |
अलिफ़ नामा | कबीर गोरख की गोष्ठी |
उग्र गीता | अक्षर भेद की रमैनी |
कबीर और धर्मंदास की गोष्ठी | कबीर की साखी |
चौका पर की रमैनी | कबीर की वाणी |
कबीर अष्टक | जन्म बोध |
कर्म कांड की रमैनी | कबीर परिचय की साखी |
काया पंजी | चौतीसा कबीर का |
छप्पय कबीर का | तीसा जंत्र |
पुकार कबीर कृत | नाम महातम की साखी |
नाम महातम की साखी | निर्भय ज्ञान |
पिय पहचानवे के अंग | व्रन्हा निरूपण |
बलख की फैज़ | वारामासी |
बीजक | भक्ति के अंग |
मुहम्मद बोध | भाषो षड चौंतीस |
राम रक्षा | मगल बोध |
रमैनी | राम सार |
रेखता | शब्द राग गौरी और राग भैरव |
विचार माला | विवेक सागर |
शब्द अलह टुक | सननामा |
शब्द राग काफी और राग फगुआ | शब्द वंशावली |
शब्दावली | संत कबीर की बंदी छोर |
ज्ञान गुदड़ी | ज्ञान चौतीसी |
सत्संग कौ अग | ज्ञान सरोदय |
ज्ञान सागर | साधो को अंग |
ज्ञान सम्बोध | ज्ञान स्तोश्र |
सुरति सम्वाद | स्वास गुज्झार |
निधन
कबीरदास जी एक महान संत थे। वह हर संप्रदाय को साथ लेकर चलना चाहते थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में हर किसी में खुशियां बांटने का काम किया। वह बहुत ही समझदार व्यक्ति थे। “वह मानते थे कि सभी भगवान एक है। वो बात अलग है कि हम इंसानों ने ही भगवान को बांट दिया है।” उन्होंने अपने जीवन के दिन वाराणसी में ही बिताए। आखिरी दिनों में कबीरदास जी मगहर में रह रहे थे। उनका निधन वर्ष 1518 में मगहर में हुआ।
FAQs
कबीरदास का जन्म सन 1398 (विक्रम संवत 1455) लहरतारा, काशी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
कबीरदास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहब इनके अन्य नाम थे। वह भगवान के परम भक्त थे।
गुरु प्रसिद्ध महात्मा रामानंद