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कबीरदास जी का जीवन परिचय (Kabir Das Biography In Hindi)

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Ekta Ranga

कबीरदास जी का जीवन परिचय (Kabir Das Biography in Hindi)- “ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।” यह कबीर वाणी कितनी ज्यादा सत्य है। यह बात एकदम सच है कि हम अपनी वाणी के जरिए लोगों को पा भी सकते हैं और साथ ही साथ खो भी सकते हैं। आज के समय में वह मधुरता खो गई है जो कि एक ज़माने में हुआ करती थी। आज हर कोई एक दूसरे को वाणी के माध्यम से नीचा दिखाने की कोशिश में ही लगा रहता है। इसी कड़वी वाणी के चलते ही लोग अकेले पड़ जाते हैं। यह कड़वी वाणी रिश्तों को बिगाड़ देती है।

कबीरदास की जीवनी (Biography of Kabir Das In Hindi)

कबीरदास जी ने अपने दोहों से लोगों को जागरूक करने की कोशिश की है। कबीरदास जी एक महान व्यक्ति और संत थे। वह समाज की भलाई के हेतु ही सोचा करते थे। वह लोगों को गलत राह पर चलने से भी रोका करते थे। उनको समाज में बुराई को खत्म करके अच्छाई को फैलाना था। वह सभी तरह के धर्म के लोगों को समान दृष्टि से देखा करते थे। वह लोगों के बीच में प्यार का संदेश फैलाना चाहते थे। उनका एक ही नारा था कि ईश्वर और अल्लाह एक ही होते हैं। भगवान में कोई भी भेद नहीं होता है। तो आज का हमारा विषय कबीरदास जी (Kabir Das ji) के जीवन पर आधारित है। आज हम कबीरदास जी का जीवन परिचय पढ़ेंगे (kabirdas ka jeevan parichay) हिंदी में। तो आइए पढ़ना शुरू करते हैं।

कबीरदास का जीवन परिचय (Kabirdas Ka Jivan Parichay)

एक मुस्लिम जुलाहा दंपत्ति नीरू और नीमा इस बात से बहुत ज्यादा परेशान थे कि उनको संतान प्राप्ति क्यों नहीं हो पा रही थी। उन्होंने बहुत तरह के जतन किए पर उनको कोई हल नहीं मिला। अब उन्होंने हार मानने की ठानी। लेकिन भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था। एक दिन वह हर दिन की ही तरह तालाब के पास से गुजर रहे थे कि अचानक उनकी नजर किसी पर पड़ी। उस तालाब में कमल के फूल पर एक बच्चा पड़ा था। वह जोर से रो रहा था। नीरू और नीमा को को उस बच्चे पर दया आ गई। उन्होंने उसे गोद ले लिया। और ऐसे में उस अनाथ बच्चे को उसके माता-पिता मिल गए। आगे चलकर यही बच्चा कबीरदास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

नामसंत कबीर दास
अन्य नामकबीरदास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहब
जन्मसन 1398 (विक्रम संवत 1455)
जन्म-स्थानलहरतारा, काशी, उत्तर प्रदेश
पितानीरू (जुलाहे)
माता नीमा (जुलाहे
कार्य संत, कवि, समाज सुधारक, जुलाहा
कर्मभूमिकाशी, उत्तर प्रदेश
शिक्षा निरक्षर
पत्नीलोई
बच्चेकमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
गुरुरामानंद जी (गुरु) सिद्ध, गोरखनाथ
विधाकविता, दोहा, सबद
विषयसामाजिक व अध्यात्मिक
मुख्य रचनाएंसबद, रमैनी, बीजक, कबीर दोहावली, कबीर शब्दावली, अनुराग सागर, अमर मूल
भाषाअवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा
मृत्युसन 1519 (विक्रम संवत 1575)

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कबीरदास जी का जीवन परिचय

कबीरदास जी का बचपन

जैसे मुस्लिम जुलाहा दंपत्ति नीरू और नीमा की कहानी प्रसिद्ध है ठीक वैसे ही एक विधवा ब्राह्मणी की भी कहानी प्रसिद्ध है। कहते हैं कि कबीरदास जी को जन्म देने वाली एक विधवा महिला थी। यह कहा जाता है कि कबीरदास जी का जन्म सन 1398 (विक्रम संवत 1455) को लहरतारा, काशी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनको जन्म देने वाली माता का नाम क्या था यह कोई नहीं जानता है। उनकी माता को गुरु रामानंद स्वामी से पुत्र प्राप्ति का वरदान मिला था।

सौभाग्यवश उसको पुत्र भी हो गया। लेकिन वह विधवा थी इसलिए उसे लगा कि उसके हाथ में पुत्र को देखते ही लोग नाना प्रकार के लांछन लगाएंगे। इसलिए उसने अपने पुत्र को एक तालाब में कमल के फूल पर छोड़ दिया। बाद में इसी बालक को जुलाहा दंपत्ति नीरू और नीमा ने पाल पोस कर बड़ा किया। बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि उनका जन्म मगहर या कहीं आजमगढ़ जिले के बेलहारा गाँव में हुआ था।

कबीरदास जी की शिक्षा

कबीरदास जी अगर हम शिक्षा की बात करें तो हमें यह पता चलता है कि वह निरक्षर थे। उन्होंने किसी भी गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उनके माता-पिता के पास इतना धन नहीं था कि वह उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय भेज सके। ऐसे तो वह निरक्षर थे। पर ऐसे उन्हें बहुत सी बातों का गूढ़ ज्ञान था। वह पूरे देश घूमा करते थे। ऐसे में उन्हें जब भी कोई वहां कोई महात्मा मिल जाता तो वह उनसे ज्ञान लिए बिना नहीं चूकते थे। उन्होंने वेदांत, उपनिषद और योग जैसे विषयों पर बहुत अच्छी पकड़ हासिल कर ली थी। वह बहुत ज्यादा ज्ञानी हो गए थे।

कबीरदास जी के गुरु

कबीरदास जी के गुरु प्रसिद्ध महात्मा रामानंद जी माने जाते हैं। वह गोरखनाथ के रहने वाले थे। उनका जन्म वाराणसी में हुआ था। रामानंद जी एक महान संत थे। वह भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संतों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने भारत के हर कोने में ज्ञान की गंगा बहाई थी। महात्मा रामानंद जी की कृतियां हिंदी में होती थी।

उनकी और कबीरदास जी की कहानी थोड़ी अलग ही है। कबीरदास जी ने बहुत से लोगों से रामानंद जी की तारीफ सुनी थी। वह रामानंद जी से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गए थे। उन्होंने कबीरदास जी को अपना गुरु बनाने की ठान ली। वह जब रामानंद जी से मिलने काशी पहुंचे तो उन्होंने कबीरदास जी को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया। इस बात पर कबीरदास जी को बहुत बुरा लगा। पर उन्होंने हार नहीं मानी।

फिर एक दिन वह गंगा घाट पर रामानंद जी से पहले पहुंच गए। वह गंगा घाट की सीढ़ी पर लेट गए। थोड़ी देर बाद जब रामानंद जी आए तो उन्होंने सीढ़ियां उतरते वक्त कबीरदास जी की छाती पर गलती से पैर रख दिया। ऐसा होते ही कबीरदास जी के मुंह से एक ही शब्द निकला और वह था – राम। बस उसी समय रामानंद जी को अपनी गलती का एहसास हो गया। उन्होंने कबीरदास जी को हमेशा के लिए अपना शिष्य बना लिया।

कबीरदास जी का वैवाहिक जीवन

कबीरदास जी का पूरा दिन राम नाम में ही बीत जाता था। उनको भगवान के सिवा कोई आगे पीछे दिखता ही नहीं था। ऐसा होने पर उनके माता-पिता को चिंता सताने लगी कि उनके बेटे की अगर शादी नहीं हुई तो वह हमेशा के लिए संत बन जाएगा।

उनके माता-पिता की दूसरी चिंता यह भी थी कि उनके पास शादी कराने जितने पैसे नहीं थे। फिर एक दिन उनके लिए लोई नाम की कन्या का विवाह प्रस्ताव आया। उनके माता-पिता ने उनका विवाह लोई से करवा दिया। लोई बहुत ही सुंदर और सुशील कन्या थी। उनको और लोई को एक पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। बेटी का नाम कमाली रखा गया था और बेटे का नाम कमाल रखा गया। लोई ने हर परिस्थिति में अपने पति का साथ दिया।

हालांकि ऐसा बहुत बार होता था जब वह कबीरदास जी की आदतों से चिढ़ जाती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि कबीरदास जी धार्मिक प्रकृति के थे इसलिए उनके घर पर हर समय संत महात्माओं का आना जाना लगा रहता था। कबीरदास जी किसी को भी अपने घर से भूखा नहीं भेजते थे। ऐसा होने से बहुत बार उनके बच्चों के लिए कुछ खाने को ही नहीं बचता था।

कबीरदास जी की रचनाएं

अनुराग सागरअमर मूल
अर्जनाम कबीर काउग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा
अगाध मंगलआरती कबीर कृत
अठपहराअक्षर खंड की रमैनी
अलिफ़ नामाकबीर गोरख की गोष्ठी
उग्र गीताअक्षर भेद की रमैनी
कबीर और धर्मंदास की गोष्ठीकबीर की साखी
चौका पर की रमैनीकबीर की वाणी
कबीर अष्टकजन्म बोध
कर्म कांड की रमैनीकबीर परिचय की साखी
काया पंजीचौतीसा कबीर का
छप्पय कबीर कातीसा जंत्र
पुकार कबीर कृतनाम महातम की साखी
नाम महातम की साखीनिर्भय ज्ञान
पिय पहचानवे के अंगव्रन्हा निरूपण
बलख की फैज़वारामासी
बीजकभक्ति के अंग
मुहम्मद बोधभाषो षड चौंतीस
राम रक्षामगल बोध
रमैनीराम सार
रेखताशब्द राग गौरी और राग भैरव
विचार मालाविवेक सागर
शब्द अलह टुकसननामा
शब्द राग काफी और राग फगुआशब्द वंशावली
शब्दावलीसंत कबीर की बंदी छोर
ज्ञान गुदड़ीज्ञान चौतीसी
सत्संग कौ अगज्ञान सरोदय
ज्ञान सागरसाधो को अंग
ज्ञान सम्बोधज्ञान स्तोश्र
सुरति सम्वादस्वास गुज्झार

कबीरदास जी के प्रसिद्ध दोहे

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोयजो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय।

भावार्थ – हम सभी परेशानियों में फंसने के बाद ही ईश्वर को याद करते हैं। सुख में कोई याद नहीं करता। जो यदि सुख में याद किया जाएगा तो फिर परेशानी क्यों आएगी।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोयजो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।

भावार्थ- जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। और जो मैंने खुद के भीतर खोजने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं मिला।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूरपंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।

भावार्थ – इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि सिर्फ बड़ा होने से कुछ नहीं होता। बड़ा होने के लिए विनम्रता जरूरी गुण है। जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और न ही उसके फल ही आसानी से तोड़े जा सकते हैं।

मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्वास। साधु तहाँ लौं भय करे, जौ लौं पिंजर साँस।

भावार्थ- मन को मृतक (शांत) देखकर यह विश्वास न करो कि वह अब धोखा नहीं देगा। असावधान होने पर वह फिर से चंचल हो सकता है इसलिए विवेकी संत मन में तब तक भय रखते हैं, जब तक शरीर में सांस चलती है। 

अजहुँ तेरा सब मिटै, जो जग मानै हार। घर में झजरा होत है, सो घर डारो जार।

भावार्थ- आज भी तेरा संकट मिट सकता है यदि संसार से हार मानकर निरभिमानी हो जा। तुम्हारे अंधकाररूपी घर में को काम, क्रोधा आदि का झगड़ा हो रहा है, उसे ज्ञान की अग्नि से जला डालो। 

कबीरदास की कविता

तेरा मेरा मनुवां

तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे। मैं कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी। मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे॥ मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे। मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे॥ जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे। तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे॥ सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे। कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे॥

कबीरदास जी का निधन

कबीरदास जी एक महान संत थे। वह हर संप्रदाय को साथ लेकर चलना चाहते थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में हर किसी में खुशियां बांटने का काम किया। वह बहुत ही समझदार व्यक्ति थे। “वह मानते थे कि सभी भगवान एक है। वो बात अलग है कि हम इंसानों ने ही भगवान को बांट दिया है।” उन्होंने अपने जीवन के दिन वाराणसी में ही बिताए। आखिरी दिनों में कबीरदास जी मगहर में रह रहे थे। उनका निधन वर्ष 1518 में मगहर में हुआ।

FAQs
Q1. कबीरदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था?

A1. कबीरदास दास जी का जन्म सन 1398 (विक्रम संवत 1455) लहरतारा, काशी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।

Q2. कबीरदास जी के अन्य नाम क्या थे?

A2. कबीरदास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहब इनके अन्य नाम थे। वह भगवान के परम भक्त थे।

Q3. कबीरदास दास जी के गुरु कौन थे?

A3. कबीरदास दास जी के गुरु प्रसिद्ध महात्मा रामानंद जी माने जाते हैं। वह गोरखनाथ के रहने वाले थे। उनका जन्म वाराणसी में हुआ था। रामानंद जी एक महान संत थे। वह भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संतों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने भारत के हर कोने में ज्ञान की गंगा बहाई थी।

Q4. कबीरदास दास जी की शिक्षा कहां हुई थी?

A4. कबीरदास जी ऐसे तो निरक्षर थे। पर उन्होंने अपनी शिक्षा घर पर ही रहकर पूरी की थी। वह किसी भी प्रकार के ढोंग और आडंबर को नहीं मानते थे। उन्होंने वेदांत, उपनिषद और योग जैसे विषयों पर बहुत अच्छी पकड़ हासिल कर ली थी। वह बहुत ज्यादा ज्ञानी हो गए थे।

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