लोहड़ी पर निबंध (Lohri Essay In Hindi)

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लोहड़ी पर निबंध (Essay On Lohri In Hindi)- हमारा देश त्योहारों (Festivals) का देश है और हमारे देश की खास बात यह है कि यहाँ के लोग सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं। हमारे देश के सभी त्योहार हम सभी में एक नई खुशी और उमंग भर देते हैं। साल की शुरुआत लोहड़ी के त्योहार (Lohri Festival) से होती है, यानी कि साल में सबसे पहले लोहड़ी का त्योहार (Celebration Of Lohri) मनाया जाता है। अगर आप जानना चाहते हैं कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है, लोहड़ी कैसे मनाई जाती है, लोहड़ी माता की कथा क्या है, लोहड़ी का इतिहास क्या है, तो आपको हमारा लोहड़ी पर निबंध हिंदी में (Lohri Essay in Hindi) पढ़ना होगा।

Essay On Lohri In Hindi

ये तो हम सभी जानते हैं कि हर साल लोहड़ी का त्योहार (Festival of Lohri) मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन लोहरी (Lohri) के बारे में संपूर्ण जानकारी (About Lohri in Hindi) प्राप्त करने के लिए आप इस पेज पर दिए गए Lohri Essay को पूरा पढ़ सकते हैं। इसके अलावा आप लोहरी त्यौहार से जुड़ी लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं, हैप्पी लोहड़ी विशेज, लोहड़ी कब है, लोहड़ी माता की कहानी भी Lohri Festival Essay in Hindi में पढ़ सकते हैं। Lohri in Hindi में निबंध नीचे से पढ़ें।

लोहड़ी निबंध

हर त्योहार का अपना-अपना महत्त्व होता है और उसको मनाने के पीछे कोई-न-कोई ऐतिहासिक संदर्भ भी जरूर होता है। इसी तरह से लोहड़ी का भी अपना महत्त्व और इतिहास है, जिसे हम सभी को और खासकर बच्चों को जानना बहुत ज़रूरी है ताकि वह हिंदी में लोहड़ी पर निबंध (Essay On Lohri In Hindi) प्रतियोगिता में भाग ले सकें और लोहड़ी पर एक अच्छा निबंध प्रस्तुत कर सकें। ऐसा तभी होगा जब आपके पास लोहड़ी के बारे में पूरी जानकारी होगी। इसीलिए नीचे से लोहड़ी पर हिंदी में निबंध (lohri festival essay in hindi) को पूरा और ध्यानपूर्वक पढ़ें।

लोहड़ी पर निबंध
Lohri Essay in Hindi

प्रस्तावना

लोहड़ी (Lohri) पंजाबियों का मुख्य त्योहार है, जो विशेषकर उत्तर भारत के पंजाब प्रांत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी को मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित है। लोहड़ी के दिन पंजाब में फसल काटी जाती है और नई फसल बोई जाती है। इसे किसानों का नया साल भी कहा जाता है। लोहड़ी के पर्व को मनाने के पीछे धार्मिक कथाओं को भी महत्व दिया जाता है।

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लोहड़ी कैसे मनाई जाती है?

पंजाबियों के लिए लोहड़ी का खास महत्व होता है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी के लिए लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां, मूंगफली आदि इकट्ठा करने लग जाते हैं। फिर जिस दिन लोहड़ी होती है उसकी शाम को आग जलाई जाती है। सभी लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है।

भारत के पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, बंगाल, ओडिशा आदि इन सभी राज्यों में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है की लोहड़ी के पर्व से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। सिखों के इस त्योहार को हिंदू धर्म के लोग भी उतनी ही आस्था और धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह त्योहार अन्य त्योहारों की तरह ही खुशी और उल्लास के साथ भारत में मनाया जाता है। यह ऐसा त्योहार है जिसे परिवार के सभी सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों एक साथ मिलकर मनाते हैं। लोहड़ी के दिन सभी लोग एक-दूसरे मिलते हैं और मिठाई बांटकर आनंद लेते हैं। यह सबसे प्रसिद्ध फसल कटाई का त्योहार है जो किसानों के लिए बहुत महत्व रखता है। लोग इस दिन आलाव जलाते हैं, गाना गाते हैं और उसके चारों ओर नाचते हैं।

लोहड़ी का महत्व बहुत अधिक है। लोहड़ी मनाने के पीछे कई महत्व बातें सुनने को मिलती हैं जैसे सर्दियों की मुख्य फसल गेहूँ है जो अक्टूबर मे बोई जाती है जबकि मार्च के अंत में और अप्रैल की शुरुआत में काटी जाती है। फसल काटने और इकट्ठा करके घर लाने से पहले किसान इस लोहड़ी त्योहार का आनंद मनाते हैं। यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जनवरी के मध्य में पड़ता है, जब सूर्य पृथ्वी से दूर होता है। लोहड़ी का त्योहार सर्दी खत्म होने और वसंत के शुरू होने का भी सूचक है। हर कोई पूरे जीवन में सुख और समृद्धि पाने के लिए इस त्योहार का जश्न मनाते हैं।

लोहड़ी का इतिहास

अब हम जानते हैं कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है और लोहड़ी का इतिहास क्या है? लोहड़ी या लोहरी को पहले तिलोड़ी के नाम से जाना जाता था। यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जिसे अब हम सब लोहड़ी बोलते और लिखते हैं।

एक समय में सुंदरी और मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ करता था। उसने दोनों लड़कियों, सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ाकर उन की शादियां की। इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लड़के वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया।

कहते हैं कि दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया। डाकू होकर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई। यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में भी यह पर्व मनाया जाता है, इसीलिए इसे लोई भी कहते हैं। इस तरह से यह त्योहार पूरे उत्तर भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

लोहड़ी माता की कथा

लोहड़ी माता की कथा जानने से पहले आप सभी को नरवर किले के बारे में जानना जरूरी है। नरवर किला एक ऐतिहासिक किला माना गया है जिसके ऊपर बहुत ही प्राचीन कथाएं हैं जिनमें से एक लोहड़ी माता की कहानी भी है। लोहड़ी माता के बारे में विख्यात रूप से तो कोई भी नहीं बता सका है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि नरवर किला और लोहड़ी माता का इतिहास ग्वालियर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिला शिवपुरी के नरवर शहर से संबंधित है।

नरवर का इतिहास करीब 200 वर्ष पुराना है। उस समय नल नामक एक राजा हुआ करते थे। 19वीं सदी में नरवर राजा ‘नल’ की राजधानी हुआ करती थी। नरवर जोकि बीसवीं शताब्दी में नल पुर निसदपुर नाम से भी जाना जाता था। बताया जाता है कि नरवर का किला समुद्र से 1600 और भू तल से 5 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। नरवर किले का क्षेत्रफल करीब 7 किलोमीटर में फैला हुआ है और इसी नरवर किले के सबसे नीचे वाले हिस्से में लोहड़ी माता का मंदिर है। वहां का लोहड़ी माता का मंदिर बहुत ही विख्यात है और प्रसिद्धि के साथ वहां बहुत लोग दर्शन करने जाते हैं। उत्तर भारत और मध्य भारत में लोहड़ी माता की काफी अधिक प्रसिद्धि है।

नल राजा को जुआ सट्टा खेलने की बहुत ही गंदी लत थी जिसके कारण नरवर राज्य अपने जिले में सारी की सारी संपत्ति हार गया था। बाद में राजा नल के पुत्र मारू ने नरवर को जीता और वहां राजकीय नरम मारू एक बहुत ही अच्छा राजा माना गया था। वहीं पर लोहड़ी माता का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर का इतिहास भी राजा नल के इतिहास से जुड़ा हुआ है। नरवर की स्थानीय कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि लोहड़ी माता समुदाय से ताल्लुक नहीं रखती थीं। बताया जाता है कि लोहड़ी माता को तांत्रिक विद्या में महारत हासिल थी। वह धागे के ऊपर चलने का असंभव सा काम भी किया करती थीं।

जब लोहड़ी माता ने अपना कारनामा राजा नल के भरे दरबार में दिखाया, तो राजा नल के मंत्री ने लोहड़ी माता से जलन के कारण वह धागा काट दिया जिसके कारण लोहड़ी माता की अकाल मृत्यु हो गयी। तभी से लोहड़ी माता के श्राप से नरवर का किला खंडहर में बदल गया। वर्तमान समय में लोहड़ी माता का मंदिर, लोहड़ी माता के भक्तों ने बनवाया है। यहां पूजा करने के लिए साल भर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। लोहड़ी माता की मान्यता बहुत दूर-दूर तक है और प्रत्येक वर्ष हजारों लाखों की तादाद में लोग लोहड़ी माता के दर्शन करने जाते हैं।

निष्कर्ष

लोहड़ी रेवड़ी, मूंगफली, गजक आदि बांटने के साथ-साथ खुशियाँ बांटने का भी त्योहार है। सिख धर्म के इस त्योहार का हम सभी को सम्मान करना चाहिए और आपस में मिलकर खुशी के साथ मनाना चाहिए। साथियों अगर आपको हमारा यह निबंध पढ़ने में अच्छा लगा हो और आपको लोहड़ी के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा जरूर करें, ताकि वह भी जानकारी प्राप्त कर सकें।

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लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं

1. हम आपके दिल में रहते हैं,

इसलिए हर गम सहते हैं,

कोई हम से पहले न कह दे आप को,

इसलिए एक दिन पहले ही आपको

हैप्पी लोहड़ी कहते हैं ॥

2. दिल की ख़ुशी और अपनों का प्यार;

मुबारक हो आपको लोहड़ी का त्यौहार ||

लोहड़ी की शुभकामनाएं!

3. मीठे गुड़ में मिल गया तिल,

उड़ी पतंग और खिल गया दिल,

आपके जीवन में आये हर दिन सुख और शांति,

विश यू अ हैप्पी लोहड़ी॥

4. चाँद को चांदनी मुबारक,

दोस्त को दोस्ती मुबारक,

मुझको आप मुबारक,

मेरी तरफ से आपको लोहड़ी मुबारक॥

5. पॉपकॉर्न की खुशबू, मूंगफली रेवड़ी की बहार,

लोहरी का त्यौहार और अपनों का प्यार,

थोड़ी सी मस्ती, थोड़ा प्यार,

कुछ दिन पहले से आपको मुबारक हो

लोहड़ी का त्यौहार, हैप्पी लोहड़ी ||

FAQs

People also ask

प्रश्न- लोहड़ी क्यों मनाते हैं?

उत्तरः लोहड़ी पारंपरिक तौर पर फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक ख़ास त्योहार है। इस मौके पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन लड़के आग के पास भांगड़ा करते हैं, वहीं लड़कियां गिद्दा करती हैं। लोग दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिलकर धूम-धाम से लोहड़ी का जश्न मनाते हैं।

प्रश्न- लोहड़ी कैसे जलाते हैं?

उत्तरः इस दिन सभी अपने घरों और चौराहों के बाहर लोहड़ी जलाते हैं। आग का घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हुए रेवड़ी, मूंगफली और लावा खाते हैं। लोहड़ी (Lohri) का त्योहार शरद ऋतु के अंत में मनाया जाता है।

प्रश्न- लोहड़ी कब की है?

उत्तरः 13 जनवरी।

प्रश्न- लोहरी कहाँ मनाया जाता है?

उत्तर- यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोलास से मनाया जाता है। यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता है।

प्रश्न- लोहड़ी क्यों मनाई जाती है बताइए?

उत्तर- लोहड़ी पारंपरिक तौर पर फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक ख़ास त्योहार है। इस मौके पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन लड़के आग के पास भांगड़ा करते हैं, वहीं लड़कियां गिद्दा करती हैं।

प्रश्न- लोहड़ी का मतलब क्या होता है?

उत्तर- लोहड़ी शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है ल से लकड़ी, ओह से गोहा यानि जलते हुए उपले व ड़ी से रेवड़ी। लोहड़ी को लाल लाही, लोहिता व खिचड़वार नाम से भी जाना जाता है। सिन्धी समाज भी इसे लाल लाही पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी की लोह मतलब अग्नि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में जलाई जाती है।

प्रश्न- लोहड़ी की पूजा कैसे की जाती है?

उत्तर- इस दिन श्रीकृष्‍ण, आदिशक्ति और अग्निदेव की विशेषतौर पर पूजा की जाती है। लोहड़ी के दिन घर में पश्चिम दिशा में आदिशक्ति की प्रतिमा या फिर चित्र स्‍थापित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर और बेलपत्र चढ़ाएं। भोग में प्रभु को तिल के लड्डू चढ़ाएं।

प्रश्न- पंजाब में लोहड़ी को क्यों और किस प्रकार मनाया जाता है?

उत्तर- पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक विशेष त्यौहार है। इस अवसर पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन चौराहों पर लोहड़ी जलाई जाती है। सभी रिश्तेदार एक साथ मिलकर डांस करते हुए बहुत धूम-धाम से लोहड़ी का जश्न मनाते हैं।

प्रश्न- 13 जनवरी को कौन सा त्यौहार मनाया जाता है?

उत्तर- लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्राय: 12 या 13 जनवरी को पड़ता है।

parikshapoint.com की तरफ से आपको और आपके पूरे परिवार को लोहड़ी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं।

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