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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
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यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
अध्याय 2
प्रश्न -1 रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1950 से पहले कैसे थे?
उत्तर – बीसवीं सदी की शुरुआत में रूस की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा खेती-बाड़ी से जुड़ा हुआ था। रूसी साम्राज्य की लगभग 85% जनता आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर थी। सामाजिक स्तर पर मजदूर बाटे हुए थे। कुछ मजदूर अपने मूल गांव के साथ अभी भी गहरे संबंध बनाए हुए थे। बहुत सारे मजदूर स्थायी रूप से शहरों में ही बस चुके थे। उनके बीच योग्यता और दक्षता के स्तर पर भी काफी फर्क था। फैक्ट्री में मजदूरों औरतों की संख्या 31% थी। लेकिन उन्हें पुरुष मजदूरों के मुकाबले कम वेतन था। मर्दों की तनख्वाह के मुकाबले आधे से तीन-चौथाई था। मजदूरों के बीच मौजूद फासला उनके पहनावे और व्यवहार में भी साफ दिखाई देता था।
कुछ मजदूरों ने बेरोजगारी या आर्थिक संकट के समय एक-दूसरे की मदद करने के लिए संगठन बना लिए थे। लेकिन ऐसे संगठन बहुत कम थे। शहर में कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को कम वेतन दिया जाता था। उनकी आय कम होने के कारण उनके सामाजिक जीवन को चलाने के लिए काफी नहीं था। कारखाने में मजदूरों को 15 घंटे काम करना पड़ता था।
प्रश्न 2 – 1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थे?
उत्तर – 1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले निम्न स्तरों पर भिन्न थी।
रूसी साम्राज्य की लगभग 85% जनता आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर थी। यूरोप के किसी भी देश में खेती पर आश्रित जनता का प्रतिशत इतना नहीं था। उदाहरण – के तौर पर, फ्रांस और जर्मनी में खेती पर निर्भर आबादी 40 से प्रतिशत से ज्यादा नहीं थी।
रूसी साम्राज्य के किसान अपनी जरूरतों के साथ-साथ बाजार के लिए भी पैदावार करते थे। रूसी किसान यूरोप के बाकी किसानों के मुकाबले एक और लिहाजा से भी भिन्न थे। यहां के किसान समय-समय पर सारी जमीन को अपने कम्यून को सौंप देते थे और फिर कम्यून ही प्रत्येक परिवार की जरूरत के हिसाब से किसानों को जमीन बांटता था। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान ब्रिटेन के किसान ना केवल नवाबों का सम्मान करते थे बल्कि उन्होंने नवाबों को बचाने के लिए बकायदा लड़ाइयां भी लड़ी। इसके विपरीत रूस के किसान चाहते थे कि नवाबों की जमीन छीन कर किसानों के बीच बांट दी जाए। बहुधा वह लगान भी नहीं छुपाते थे।
प्रश्न 3 – 1917 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर – 1917 में जार का शासन निम्नलिखित कारणों से खत्म हो गया –
इस युद्ध को शुरू-शुरू में रूसीयों का काफी समर्थन मिला। जनता ने जार का साथ दिया। लेकिन जैसे-जैसे युद्ध लंबा खींचता गया, जार ने ड्यूमा में मौजूद मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया। उसके प्रति जनसमर्थन कम होने लगा।
👉जार ने अपनी खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने के लिए राजनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। जिसके कारण जनता में असंतोष उत्पन्न हो गया था। प्रथम विश्व युद्ध के ‘ पूर्वी मोर्चे’ पर चल रही लड़ाई ‘ पश्चिमी मोर्चे’ की लड़ाई से भिन्न थी। पश्चिम में सैनिक पूर्वी फ्रांस की सीमा पर बनी खाइयों से लड़ाई लड़ रहे थे जबकि पूर्वी मोर्चे पर सेना ने काफी बड़ा फासला तय कर लिया था। इस मोर्चे पर बहुत सारे सैनिक मौत के मुंह में जा चुके थे।
👉पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फसलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि दुश्मन की सेना वहां टिक ही ना सके।
👉 खाद्य पदार्थ की संकट काफी बढ़ गई थी। इस कारण से भी जार शासन को आलोकप्रिय बना दिया। 2 मार्च को जार गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर हो गया और इस तरह से निरकुशता का अंत हो गया।
प्रश्न – 4 दो सूचियां बनाइए: एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभाव को लिखिए और दूसरी सूची में अक्टूबर क्रांति के प्रमुख घटनाओं और प्रभाव को दर्ज कीजिए।
उत्तर – फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभाव –
- 22 फरवरी को दाएं तट पर स्थित एक फैक्ट्री में तालाबंदी घोषित कर दी गई। अगले दिन इस फैक्ट्री के मजदूरों के समर्थन में 50 फैक्ट्रियों के मजदूरों ने भी हड़ताल का ऐलान कर दिया।
- 24 और 25 तारीख को वह फिर इकट्ठा होने लगे। इसको देखते हुए सरकार ने उन पर नजर रखने के लिए घुड़सवार सैनिकों और पुलिस को तैनात कर दिया।
- रविवार 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया।
- 26 तारीख को प्रदर्शनकारी बहुत बड़ी संख्या में बाएं तट के इलाके में इकट्ठा हो गए।
- 27 तारीख को उन्होंने पुलिस मुख्यालय पर हमला करके उन्हें तहस-नहस कर दिया। रोटी, तनख्वाह, काम के घंटों में कमी और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते भारी संख्या में लोग सड़कों पर जमा हो गए।
- 2 मार्च को जार ने गद्दी छोड़ दी। जार के शासन का इस तरह से अंत हो गया।
अक्टूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभाव –
(i) 16 अक्टूबर 1917 को लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर कब्जा करने के लिए राजी कर लिया।
(ii) 24 अक्टूबर को विद्रोह शुरू हो गया। संकट की आशंका को देखते हुए प्रधानमंत्री केरेस्की सैनिक टुकड़ियों को इकट्ठा करने शहर से बाहर चले गए। दो बोल्शेविक अखबारों के दफ्तरों पर घेरा डाल दिया। टेलीफोन और टेलीग्राफ दफ्तरों पर नियंत्रण प्राप्त करने और विंटर पैलेस की रक्षा करने के लिए सरकार समर्थन सैनिकों को रवाना कर दिया गया। आरेरा नामक युद्धपोत ने विंटर पैलेस बमबारी शुरू कर दी। नेवा के रास्ते से आगे बढ़ते हुए विभिन्न सैनिक ठिकानों को अपने नियंत्रण में ले लिया। शाम ढलते-ढलते पूरा शहर क्रांतिकारी समिति के नियंत्रण में आ चुका था।
(iii) दिसंबर तक मास्को – पेत्रोग्राद इलाकों पर बोल्शेविक का नियंत्रण स्थापित हो चुका था। फरवरी क्रांति के कारण राजवंश का अंत हुआ। अक्टूबर में क्रांति के बाद बोल्शेविको ने सत्ता पर अपना नियंत्रण कर लिया और इस तरह से रूस में साम्यवादी दौर का आरंभ हुआ।
प्रश्न 5 – बोल्शेविको ने अक्टूबर क्रांति के फौरन बाद कौन – कौन से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर – बोल्शेविको ने उद्योगों और बैंकों के राष्ट्रीयकरण को जारी रखा। शासन के लिए केंद्रीकृत नियोजन की व्यवस्था लागू की गई।
- निजी संपत्ति को खत्म कर दिया गया।
- किसानों को उस जमीन पर खेती करने की छूट दे दी गई जिसका समाजीकरण किया जा चुका था।
- सस्ती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराई गई।
- मजदूरों के लिए आदर्श रिहायशी मकान बनाए गए।
प्रश्न 6- निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए :
- कुलक।
- ड्यूमा।
- 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार।
- उदारवादी।
- स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
उत्तर – कुलक – रूस में बड़े किसानों को कुलक कहा जाता था। कुलकों को खेतों में अनाज उगाने एवं उसको इकट्ठा करने के साथ-साथ निरीक्षण का भी काम करते थे।
ड्यूमा – प्रथम ड्यूमा 75 दिनों के अंदर स्थगित कर दिया गया था। निर्वाचित परामर्शी संसद को ड्यूमा कहते हैं।
1900 से 1930 के बीच महिला कामगार – महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम मजदूरी दी जाती थी। 22 फरवरी 1971 को महिलाओं ने हड़ताल की। इस दिन को ‘ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है।
उदारवादी – उदारवादी रूस में सामाजिक परिवर्तन के पक्ष में थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए। वो पुरुषों को वोट देने के मत में थे लेकिन महिलाओं के वोट देने के अधिकार विरुद्ध थे। उनका मानना था कि सिर्फ पुरुषों को ही वोट देने का अधिकार होना चाहिए। उदारवादी लोगों के अधिकारों की रक्षा के समर्थन में थे।
स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम – सामूहिक खेत करने के लिए उन्हें बाध्य किया जाता था। छोटे-छोटे खेतों को जोड़कर एक विशाल जमीन को बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा था। छोटे जमीन के टुकड़ों को इकट्ठा करके एक बड़ी जमीन जमा कर लिया गया और इसी को स्तालिन का सामूहिकीकरण की प्रक्रिया कहा गया।
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