आजादी से पहले भारत में जो नजारा था वह एकदम अलग था। लोगों में आजादी पाने का जुनून चढ़ा हुआ था। बहुत से लोगों ने बलिदान भी दिया। बहुत से ऐसे लेखक और कवि भी थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी हिस्सेदारी दिखाई थी। वह स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका भी निभाना चाहते थे। वह हर समय आजादी का जुनून पाले रखते थे। ऐसे कम ही लेखक हुए जिन्होंने भारत की आजादी से पहले की सच्ची तस्वीर दिखाई। ऐसे ही एक कवि ने गोपाल चंद्र के घर पर जन्म लिया। आगे चलकर वह कवि पूरे भारत में विख्यात हो गया।
हाँ तो हम बात कर रहे थे एक ऐसे कवि की जिसे भारत देश से अत्यंत लगाव था। हम यहां पर भारतेंदु हरिश्चंद्र की बात कर रहे हैं। महान कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र को कौन नहीं जानता है। हम सभी इस नाम से अच्छी तरह परिचित हैं। हम सभी ने बचपन के दिनों में भारतेंदु हरिश्चंद्र के बारे में अपनी हिंदी विषय की पुस्तक में हरिश्चंद्र के बारे में काफी पढ़ा है। हम सभी इनकी कई तरह की कविताओं से परिचित हैं। लेकिन क्या आप इनके जीवन के बारे में अच्छे से जानते हैं? नहीं, हम में से बहुत से लोग उनके बारे में नहीं जानते हैं। तो आज हम भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन के सफर पर चलेंगे। आज हम पढ़ेंगे भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी हिंदी में पढ़ेंगे।
जन्म और बचपन
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 में हुआ था। उनका जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता का नाम गोपाल चन्द्र था। गोपाल चन्द्र खुद भी एक महान लेखक और कवि थे। गोपाल चन्द्र भी खूब कविताएं लिखते थे। वह अपनी कल्पनाओं को गुरु हरदास क़लमी के नाम से काग़ज़ के पन्नों पर उतारते थे। इनकी माता का नाम पार्वती देवी था। वह एक कुशल गृहिणी थी।
लेकिन कहते हैं कि हमेशा अच्छे लोगों के साथ ही हमेशा बुरा होता है। पहले माताजी का निधन हो गया। उसके बाद उनके पिता जी का भी निधन हो गया। उनके पिता को नशा करने की बुरी आदत पड़ गई थी। और यही एक बड़ा कारण था कि वह जल्दी चल बसे। उनके माता-पिता के गुजरने के बाद तो मानो जैसे उनके सिर पर बड़ा पहाड़ टूट पड़ा। उनकी सौतेली माँ उनको बहुत ज्यादा परेशान किया करती थी। उनका बचपन बहुत अभावों में बीता।
दोहा लिखा
भारतेंदु हरिश्चंद्र अपने पिता से बेहद प्रभावित थे। जब वह अपने पिताजी को लिखते हुए देखते थे तो उनको बहुत अच्छा लगता था। धीरे-धीरे भारतेंदु हरिश्चंद्र भी अपने पिता के समान ही लिखने का अभ्यास करने लगे। लिखने के अभ्यास के दौरान उन्होंने एक दोहा भी लिखा। लेकिन क्या आपको पता है कि वह दोहा उन्होंने कितनी उम्र में लिखा था? आपको यकीन नहीं होगा। पर भारतेंदु ने केवल पांच वर्ष की बेहद कम आयु में एक दोहा लिख दिया था। ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो उनको माता सरस्वती ने ही आशीर्वाद दे दिया था।
शिक्षा
भारतेंदु हरिश्चंद्र पढ़ाई को लेकर बहुत ज्यादा सजग हो गए थे। वह मानते थे कि पढ़ाई करके ही एक मनुष्य का उद्धार हो सकता है। उनके माता-पिता के गुजरने के बाद तो उनको इस बात का बहुत ज्यादा एहसास हो गया। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद क्वींस कॉलेज, बनारस में दाखिला लेने का सोचा।
आखिरकार उन्होंने दाखिला ले ही लिया। उनकी बुद्धि बहुत ज्यादा तेज थी। उन्होंने तीन साल तक वहां लगातार पढ़ाई की। तीन साल बाद पैसों की कमी के चलते उन्होंने कॉलेज से ड्रॉप आउट कर दिया। लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्होंने पूर्ण रूप से पढ़ाई का त्याग कर दिया।
कॉलेज से निकलने के बाद वह महान लेखक राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द के पास कई सारी भाषाओं का ज्ञान लेने जाते रहे। उनकी अंग्रेजी, उर्दू, मराठी, बंगाली, गुजराती और संस्कृत भाषा पर पकड़ बहुत अच्छी हो गई। वह बचपन से ही अच्छी कविताएं लिखने लगे थे। यह विरासत उनको अपने पिताजी से मिली थी।
विवाह
माता-पिता के चले जाने के बाद भारतेंदु हरिश्चंद्र बहुत दुखी रहने लगे थे। उनकी सौतेली माँ उनको बहुत सताती थी। वह अकेलेपन का शिकार होने लग गए थे। उनकी सौतेली माँ लालची थी। सौतेली माँ ने धन के लोभ में उनका विवाह सेठ लाल गुलाब राय की बेटी मन्ना देवी से करवा दिया।
मन्ना देवी समझदार थी इसलिए उन्होंने भारतेंदु हरिश्चंद्र को संभाल लिया। मन्ना देवी और भारतेंदु हरिश्चंद्र की तीन संताने भी हुई। उनको दो बेटे और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। जिसमें दोनों बेटे जल्दी ही इस दुनिया से चल बसे। बस एक पुत्री ही जिंदा रही।
गुरु की शिक्षा
महान लेखक राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द को भारतेंदु हरिश्चंद्र का गुरु माना जाता है। वह ही एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने मुश्किल समय में भी भारतेंदु का साथ निभाया। राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द ने भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रतिभा को समझा और उसे निखारा भी। हालांकि बहुत से लोग राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द के लिखने की शैली का विरोध करते थे।
भारत से प्रेम
भारतेंदु हरिश्चंद्र को अपने देश से बहुत ज्यादा प्यार था। उनका देश के प्रति प्यार बचपन से ही पनपने लगा। वह अपने पिता को अंग्रेजों के खिलाफ लिखते और बोलते हुए सुना करते थे। अपने पिता के बदौलत ही उनके मन में देश प्रेम के लिए भाव जगा। बाद में जब वह बड़े हुए तो उन्हें सब अच्छे से समझ आ गया।
वह अपनी आंखों से अंग्रेजों को भारत के ऊपर अत्याचार करते हुए देखा करते थे। उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत की भावना पैदा हो गई थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में अंग्रेजों के खिलाफ अपने कविताओं के जरिए आवाज उठाई। उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। वह अपनी कविताओं में साफ़ तौर पर दर्शाया करते थे कि कैसे भारत की आम जनता गरीबी से दबे जा रही है।
इस गरीबी के पीछे उन्होंने अंग्रेजी सरकार को ही दोषी ठहराया। भारतेंदु बेधड़क होकर कविताएं लिखा करते थे। उनको अंग्रेजों से कोई भी प्रकार का खौफ नहीं था। इसी बिंदास मिजाज के चलते उनको कई बार जेल की हवा भी खानी पड़ी। पर भारतेंदु पर इन सबका कोई असर नहीं हुआ।
यात्रा से प्रेम
भारतेंदु हरिश्चंद्र को यात्राओं से खूब लगाव था। उनको यात्रा करना बहुत अच्छा लगता था। वह कॉलेज के दिनों से ही घूमने फिरने लग गए थे। धीरे-धीरे उनका यह प्रेम बढ़ता ही गया। उनकी यात्रा प्रेम उनके कुछ लेख और कविताओं के माध्यम से साफ़ झलकती है। सरयू पार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा आदि इसका अच्छा उदाहरण है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की उदारता
भारतेंदु हरिश्चंद्र की उदारता के बारे में बहुत कुछ सुना है। हरिश्चंद्र अपने दिल से बहुत उदार थे। वह लोगों पर खूब प्यार लुटाते थे। वह लोगों की खूब सहायता करते हैं। जब भी कोई व्यक्ति उनके घर पर अपनी परेशानियों को लेकर जाता था तो वह उनकी समस्याओं का समाधान कर देते थे। उनसे गरीबी नहीं देखी जाती थी।
गरीब लोगों को देखकर उनका मन विचलित हो उठता था। वह गरीबी को नहीं देख सकते थे। यही एक वजह है कि वह अपनी कविताओं और कहानियों में गरीबी को दर्शाते थे। वह सभी की मदद करते थे। उनकी उदारता के चलते उन्होंने गरीब लोगों पर अपना सारा धन लूटा दिया। इसी के चलते उनको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ गया था। वह कर्जे में आ गए थे।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं
नाटक
- वैदिक हिंसा हिंसा न भवति (1873)
- भारत दुर्दशा (1875)
- सत्य हरिश्चंद्र (1876)
- श्री चंद्रावली (1876)
- नीलदेवी (1881)
- अँधेर नगरी (1881)
काव्य-कृतियाँ
- भक्त-सर्वस्व (1870)
- प्रेम-मालिका (1871)
- प्रेम-माधुरी (1875)
- प्रेम-तरंग (1877)
- उत्तरार्द्ध-भक्तमाल (1876-77)
- प्रेम-प्रलाप (1877)
- गीत-गोविंदानंद (1877-78)
- होली (1879)
- मधु-मुकुल (1881)
- राग-संग्रह (1880)
- वर्षा-विनोद (1880)
- विनय प्रेम पचासा (1881)
- फूलों का गुच्छा (1882)
- प्रेम-फुलवारी (1883)
- कृष्णचरित्र (1883)
निबंध संग्रह
- नाटक
- कश्मीरी कुसुम
- कालचक्र
- लेवी प्राण लेवी
- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?
- जातीय संगम
- हिंदी भाषा
- संगीत सार
- स्वर्ग में विचार सभा
पुरातत्व संबंधी निबंध
- रामायण का समय
- काशी
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की यात्रा रचनाएं
- लखनऊ
- सरयूपार की यात्रा
उपन्यास
- चंद्रप्रभा
- पूर्ण प्रकाश
हिंदी से प्रेम भावना
भारतेंदु हरिश्चंद्र यूं तो कई भाषाओं पर अपनी पकड़ बहुत मजबूत बना चुके थे। पर जो आनंद उनको हिंदी में लिखने में आता था वह किसी भी अन्य भाषा में नहीं आता था। उनको हिंदी भाषा से अत्यंत लगाव था। उनके इसी प्रेम के चलते ही उनको हिंदी का जनक कहा जाता है। उनकी जितनी भी कविताएं या कोई कहानियां होती थी तो वह सब हिंदी में ही हुआ करती थी। वह ही भारत के पहले ऐसे कवि थे जिन्होंने हिंदी भाषा को आम जन तक पहुंचाने में बहुत बड़ा योगदान दिया। वह लोगों को हिंदी में लिखने के लिए प्रेरित करते थे।
निधन
भारतेंदु हरिश्चंद्र इतने उदार थे कि उन्होंने अपना सारा धन जरूरतमंद लोगों को लूटा दिया था। इसके चलते उनके खुद के पास एक कौडी भी नहीं बची। इसी वजह से वह चिंता में रहने लगे थे। उनको इसी चिंता के चलते कई बीमारियों ने घेर लिया था। वह अवसाद में घिर गए थे। उनके जीवन में नीरसता आ गई थी। इससे पहले कि एक युवा सितारा और ज्यादा चमकता, वह टूट कर गिर पड़ा। आखिरकार 6 जनवरी 1885 को वाराणसी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने दम तोड़ दिया।
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FAQs
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म कब हुआ था?
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 में हुआ था। उनका जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के माता-पिता का नाम क्या था?
भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता का नाम गोपाल चन्द्र था। गोपाल चन्द्र खुद भी एक महान लेखक और कवि थे। गोपाल चन्द्र भी खूब कविताएं लिखते थे। वह अपनी कल्पनाओं को गुरु हरदास क़लमी के नाम से काग़ज़ के पन्नों पर उतारते थे। इनकी माता का नाम पार्वती देवी था। वह एक कुशल गृहिणी थी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र को भारतेंदु की उपाधि किसने दी?
भारतेंदु हरिश्चंद्र को भारतेंदु की उपाधि काशी के विद्वानों ने दी थी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के गुरु का नाम क्या था?
भारतेंदु हरिश्चंद्र के गुरु महान लेखक राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द थे।