इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी “भारत और समकालीन विश्व-2” के अध्याय- 5 “मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 5 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 10 History Chapter-5 Notes In Hindi
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अध्याय-5 “मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | दसवीं (10वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | भारत और समकालीन विश्व-2 (इतिहास) |
अध्याय नंबर | पाँच (5) |
अध्याय का नाम | “मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- भारत और समकालीन विश्व-2 (इतिहास)
अध्याय- 5 “मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया”
मुद्रण तकनीक के शुरुआत में छपी किताबें
- सबसे पहले मुद्रण की तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई थी।
- 549 ई. में चीन में स्याही लगी तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापी जाती थीं।
- पारंपरिक चीनी किताब ‘एकॉर्डियन’ शैली में किनारों को मोड़कर बनाई जाती थी।
- किताबों को सुदंर व सही तरीके से लिखने के लिए सुलेखकों को नियुक्त किया जाता था।
- बहुत लंबे समय तक चीन मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा राजतंत्र बना रहा।
- चीन में शहरी संस्कृति के विकास का प्रभाव छपाई पर पड़ने लगा था।
- काल्पनिक किस्से, कहानियाँ, कविताएँ, आत्मकथाएँ, शास्त्रीय संकलन और रूमानी नाटक नए पाठकों के पसंद के मुख्य केंद्र बिंदु थे।
- अमीर महिलाओं ने भी किताबें पढ़नी शुरू कर दीं और वे खुद भी कविताएँ व नाटक लिखने लगीं।
- अंत में हाथ की छपाई का स्थान यांत्रिक छपाई ने ले लिया।
जापान में मुद्रण तकनीक
- लगभग 768-770 ई. में चीनी बौद्ध प्रचारक छपाई की तकनीक जापान लेकर आए थे।
- मध्यकालीन जापान में कवि और गद्यकार की किताबें सस्ती व सुलभ थीं।
- 18वीं सदी के आखिर में एदो (तोक्यो) शहर के चित्रकारी में शालीन शहरी संस्कृति का पता मिलता है।
- हाथ से मुद्रित अनेक प्रकार की किताबों से पुस्तकालय और दुकानें भरी पड़ी थीं।
यूरोप में मुद्रण तकनीक का आगमन
- 11वीं सदी में चीन से रेशम मार्ग के रास्ते कागज यूरोप पहुँचा था।
- 1229 ई. में मार्कोपोलो चीन में काफी कुछ खोज करने के बाद इटली लौटा था। इसने चीन से छपाई की तकनीक का ज्ञान भी प्राप्त किया था।
- कागज ने किताबों और पांडुलिपियों के उत्पादन को संभव व आसान बना दिया।
- काठ की तख्ती बनी किताबों के आने के बाद यह तकनीक पूरे यूरोप में भी फैल गई।
- विलासी संस्करण बेशकीमती वेलम या फिर चर्म-पत्र पर छापे जाते थे।
- यूरोपीय पुस्तकों को पुस्तक-विक्रेता विभिन्न देशों में निर्यात करने लगे।
- पुस्तक विक्रेता सुलेखकों को रोजगार देने लगे। एक पुस्तक विक्रेता के पास उस समय 50 सुलेखक काम करते थे।
- पांडुलिपियाँ बेहद नाजुक होती थीं इसलिए उनके रख-रखाव और एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में अनेक मुश्किलें आती थीं।
- यूरोप में तख्ती छपाई का इस्तेमाल करके कपड़े, ताश के पत्ते और छोटी टिप्पणियों के साथ धार्मिक चित्र छापे जा रहे थे।
- अब किताबों की छपाई के लिए तेज और सस्ती मुद्रण तकनीक की आवश्यकता महसूस हो रही थी।
गुटेन्बर्ग तथा प्रिंटिंग प्रेस
- गुटेन्बर्ग एक व्यापारी की संतान थे। वह संपन्न परिवार में पढ़-लिखकर बड़े हुए थे।
- गुटेन्बर्ग ने 1448 तक छपाई के लिए एक यंत्र को तैयार कर दिया था।
- गुटेन्बर्ग ने 180 प्रतियों की पहली किताब बाइबल छापी थी।
- नई तकनीक ने हाथ से छपाई की जगह पूरी तरह से ले ली।
- शुरुआत में छपी किताबों का स्वरूप पांडुलिपियों जैसा था।
- लगभग सौ साल के बीच में यूरोप के अधिकतर देशों में छापेखाने लग गए थे।
- जर्मनी के प्रिंटर दूसरे देशों में नए छापेखाने खुलवाने जाते थे।
- 15वीं सदी में यूरोप के बाजार में 2 करोड़ मुद्रित किताबें आईं जोकि 16वीं सदी में 20 करोड़ हो गईं।
मुद्रण क्रांति के दौरान नया पाठक वर्ग
- जब किताबें बाजार में पूरी तरह से फैल गईं तब नए पाठकों का एक समूह तैयार हो गया।
- पहले ज्ञान का सिर्फ मौखिक लेन-देन ही होता था लेकिन अब जनता पाठक बन चुकी थी।
- 20वीं सदी तक यूरोप में बहुत कम लोग साक्षर थे इसलिए पाठक वर्ग का संक्रमण आसान नहीं था।
- मुद्रकों ने पाठक बढ़ाने के लिए लोकगीत और लोककथाओं की पुस्तकों को अधिक चित्रों के साथ मुद्रित करना शुरू कर दिया था।
- सजी-धजी किताबों को ग्रामीण सभाओं और शराबघरों में गया-सुनाया जाने लगा।
- इस तरह से छपाई की गई पुस्तकें मौखिक अंदाज में फैलने लग गईं।
धार्मिक विवाद और मुद्रण का प्रतिरोध
- सत्ता के विचारों से परेशान लोग अपनी बातों को छपाई के माध्यम से लोगों तक आसानी से पहुँचा सकते थे।
- मुद्रित किताबों के आने से एक वर्ग नाखुश भी था।
- कुछ धर्म गुरुओं, सम्राटों एवं कलाकारों की चिंता नव-मुद्रिति साहित्य की व्यापक आलोचना का मुख्य आधार बन गई थी।
- मार्टिन लूथर द्वारा धर्म सुधार के लिए 95 स्थापनाएँ लिखी गई थीं।
- लूथर द्वारा लिखे लेख इतने अधिक पसंद किए गए कि इसकी वजह से चर्च में विभाजन हो गया।
- उस समय लूथर के अनुवाद की पूरी 5000 प्रतियाँ बिक गईं, जिसके बाद दूसरा संस्करण निकालना पड़ा था।
- लूथर ने अपने विचारों की प्रसिद्धि देखते हुए कहा था कि “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन और सबसे बड़ा तोहफा है।”
- इस समय कम शिक्षित लोग धर्म की व्याख्या अपने अनुसार कर रहे थे।
- मोनोकियो ने जब बाइबिल के नए अर्थ निकालने शुरू किए थे तब उसे दो बार पकड़ा गया था और आखिर में मौत की सजा दे दी गई थी।
- 1558 ई. से जिन-जिन किताबों पर प्रतिबंध लगाया गया था उनकी सूची तैयार की जाने लगी थी।
16वीं और 18वीं सदी के समय लोगों में पढ़ने का जुनून
- 16वीं और 18वीं सदी के समय यूरोप के अधिकतर हिस्सों में साक्षरता दर 60% से बढ़कर 80% हो गई थी।
- इस दौरान अधिक मात्रा में तरह-तरह की साहित्यिक किताबों की छपाई की जाने लगी थी।
- प्रकाशकों ने किताबों को बेचने के लिए फेरीवालों को भी कार्य पर लगाया था।
- लोककथाओं, लोकगीतों और पंचांग मनोरंजन से जुड़ी पुस्तकें भी लोग पढ़ने लगे थे।
- इंग्लैंड में एकपैसिया किताब बेचने वाले को चैपमैन कहा जाता था।
- 18वीं सदी में पत्रिकाओं का प्रकशन शुरू हो गया था, जिसमें मौजूदा घटनाओं के साथ-साथ मनोरंजन को भी स्थान दिया जाता था।
- विज्ञान के क्षेत्र में न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों के लिए एक पड़ा पाठक वर्ग तैयार हुआ था। इस वजह से तर्क एवं विवेकवाद के विचार भी साहित्य में स्थान बना चुके थे।
मुद्रण संस्कृति एवं फ्रांसीसी क्रांति
मुद्रण संस्कृति एवं फ्रांसीसी क्रांति से जुड़े निम्नलिखित मुख्य तीन तर्क दिए गए-
- छपाई की वजह से नए-नए ज्ञानियों एवं चिंतकों के विचारों का प्रसार हुआ था।
- छपाई ने वाद-विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया था, जिससे सामाजिक क्रांति के नए विचार उत्पन्न हुए।
- 1780 के दशक तक राजशाही एवं उसकी नैतिकता का मजाक उड़ाने वाले पुस्तकों की संख्या बहुत अधिक थी।
19वीं सदी में बच्चे, महिलाएँ और मजदूरों की स्थिति
- 19वीं सदी में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होने के कारण पाठकों की अनेक श्रेणियाँ बन गईं।
- 1857 में फ्रांस में बाल-पुस्तकों को प्रकाशित करने के लिए मुद्रणालय स्थापित किए गए थे।
- लोककथाओं के साथ-साथ परी-कथाओं का भी प्रकाशन किया जाने लगा था।
- महिलाएँ पाठिकाओं के साथ-साथ लेखिकाओं के रूप में भी अहम भूमिका निभाने लगी।
- 19वीं सदी में छपी उपन्यासकारों को पढ़ने वाली महिलाओं की संख्या अधिक थी।
- 19वीं सदी में किराए पर किताब देने वाले पुस्तकालयों का निर्माण मजदूरों व निम्न वर्ग के लोगों को शिक्षित करने के लिए किया गया।
- मजदूरों व निम्न वर्ग के पाठकों ने भी बड़ी संख्या में राजनीतिक पर्चे एवं आत्मकथाएँ लिखी थीं।
- 1920 के दशक में लोकप्रिय किताबों को सस्ते दामों पर बेचा गया।
- 1930 में आर्थिक मंदी आने से प्रकाशकों को किताबों की बिक्री कम होने डर सताने लगा था।
भारत में मुद्रण का इतिहास
- भारत में संस्कृत, अरबी, फारसी जैसी विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में पांडुलिपियाँ लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है।
- 19वीं सदी के आखिर में छपाई तकनीक के आने के बाद भी पांडुलिपियाँ छापी जाती थीं।
- पांडुलिपियों का रख-रखाव आसान नहीं था और न ही उन्हें पढ़ना। इस वजह से दैनिक जीवन में इनका इस्तेमाल बहुत अधिक नहीं किया जाता था।
- पहले लोग किताबें कम पढ़ते थे। लोग ज्ञानियों को सुनकर ही साक्षर बनते थे।
- भारत में प्रिंटिंग प्रेस 16वीं सदी में गोवा में पुर्तगाली धर्म-प्रचारकों के साथ आया था।
- 1579 में कैथलिक पुजारियों ने कोचीन में पहली तमिल किताब छापी थी और मलयालम में पहली किताब भी इन्होंने ही छापी थी।
- अंग्रेजी भाषी प्रेस का विकास भारत में नहीं हो पाया था, जिसके बाद कंपनी से छापेखाने का आयात शुरू कर दिया।
- वर्ष 1780 से जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ नामक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन शुरू किया था।
- बाद में हिंदुस्तानियों ने भी अखबारों को छापना शुरू कर दिया था। इस श्रेणी में सबसे पहले गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा प्रकाशित ‘बंगाल गजट’ को शामिल किया जाता है।
19वीं सदी में धार्मिक सुधार एवं सार्वजनिक बहसें
- 19वीं सदी की शुरुआत में विभिन्न समूह अपने अनुसार धर्म की अलग-अलग व्याख्याएँ पेश करते थे।
- धर्म सुधारकों तथा हिंदू रूढ़िवादियों के बीच एकेश्वरवाद, मूर्तिपूजा जैसे विषयों पर बहस ज्यादा होती थी।
- वर्ष 1821 से राममोहन राय ने ‘संवाद कौमुदी’ का प्रकाशन शुरू किया था।
- उस दौरान उलमाओं को मुस्लिमों के पतन का डर सता रहा था।
- उलमाओं के डर को दूर करने के लिए इस्लामी सिद्धांतों के महत्त्व को समझाने के लिए हजारों फतवें जारी किए गए थे।
- छपाई के आने से हिंदुओं को अपने धर्म के बारे में स्थानीय भाषाओं में जानने का अवसर प्राप्त हुआ।
- वर्ष 1810 में कलकत्ता से रामचरितमानस का पहला संस्कर प्रकाशित हुआ था।
- धार्मिक पुस्तकें बड़ी संख्या में जनता तक पहुँचने लगी थीं।
- प्रिंट ने विभिन्न हिस्सों तथा समुदायों को भारत से जोड़ा था।
प्रकाशन के नए रूप और महिलाओं के जीवन पर मुद्रण का प्रभाव
- यूरोप में शुरू हुई उपन्यास विधा ने लोगों को भोगे हुए जीवन को पढ़ने का अवसर प्रदान किया।
- गीत, कहानियाँ और लेख जैसी विधाएँ पाठकों के जीवन का हिस्सा बन चुकी थीं।
- 19वीं सदी में छपाई के आविष्कार के कारण दृश्य-संस्कृति का विकास होने लगा था।
- चित्रकार राजा रवि वर्मा द्वारा आम जनता के लिए तस्वीरें बनाई गई थीं।
- गरीब लोग सस्ती तस्वीरों को खरीदकर अपने घरों को सजाते थे।
- तस्वीरों को आधुनिकता के साथ-साथ परंपरा के विभिन्न क्षेत्रों से जोड़कर बनाया जाता था।
- 1880 के दशक में पत्र-पत्रिकाओं में कैरिकेचर और कार्टून छपने लगे थे।
- अब महिलाओं की जिंदगी के बारे में बड़ी सटीकता एवं गहराई से लिखा जाने लगा था।
- एक तरफ रूढ़िवादी हिंदू परिवार का मानना था कि पढ़ी-लिखी महिलाएँ विधवा हो जाती हैं, वहीं दूसरी तरफ मुसलमानों का मानना था कि उर्दू की रूमानी कहानियाँ पढ़कर महिलाएँ बिगड़ जाएंगी।
- औरतों की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई लेकिन बहुत सी महिलाओं ने इसका विरोध किया था।
- रूढ़िवादी परिवार में ब्याही गई रससुंदरी देवी ने रसोई में छुपकर पढ़ना सीखा और बाद में उन्होंने ‘आमार जीबन’ नाम की आत्मकथा भी लिखी थी।
- वर्ष 1876 में ‘आमार जीबन’ नामक आत्मकथा बंगाली भाषा में प्रकाशित पहली आत्मकथा थी।
- 1860 के दशक से कैलाशबाशिनी जैसी महिलाओं ने स्त्रियों के जीवन अनुभवों को लिखना शुरू किया था।
- इस समय गंभीर हिंदी का एक हिस्सा नारी-शिक्षण को समर्पित हो गया था।
- महिलाओं ने फुर्सत में फेरीवालों से अपने पसंद की किताबें लेकर पढ़ना शुरू कर दिया था।
19वीं सदी में प्रिंट एवं गरीब जनता
- 19वीं सदी में मद्रास के शहरों में काफी सस्ते दामों पर किताबें बिकने लगी थीं जिसे गरीब लोग भी आसानी से खरीदकर पढ़ने लगे थे।
- ज्योतिबा फुले ने अपनी पुस्तक ‘गुलामगिरी’ में जाति-प्रथा के अत्याचारों का वर्णन किया था।
- बंगलौर के सूती मिल में काम करने वाले मजदूरों ने स्वयं को शिक्षित करने के उद्देश्य से पुस्तकालय का निर्माण करवाया था, जिसकी प्रेणना उन्हें बंबई के मिल मजदूरों से मिली थी।
- साक्षरता के माध्यम से मजदूरों में नशाखोरी को समाप्त करना और राष्ट्र के प्रति प्रेम को बढ़ावा देना, ये दो समाज-सुधारकों की मुख्य कोशिश थी।
प्रिंट पर पाबंदी
- 1820 के दशक में कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेस को नियंत्रित करने हेतु कुछ मुख्य कानून पास किए थे।
- 1857 के विद्रोह से परेशान होकर क्रोधित अंग्रेजों ने प्रेस पर पाबंदी लगाने की माँग शुरू कर दी थी।
- वर्ष 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू किया गया था।
- बागी (विद्रोही) खबरे छापने वाले अखबार को पहले सरकारी चेतावनी दी जाती थी और जब चेतावनी को अनसुना किया जाता था तब अखबार को बंद करवा दिया जाता था या मशीनें छिन ली जाती थीं।
- जब वर्ष 1907 में पंजाब के क्रांतिकारियों को कालापानी भेजा गया। उस दौरान बालगंगाधर तिलक ने अपने मराठी समाचार-पत्र केसरी में उनका वर्णन किया था।
- उपरोक्त घटना के बाद बालगंगाधर तिलक को गिरफ्तार कर लिया गया था।
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