‘साखी’ शब्द का अर्थ है “साक्षी” या “गवाही”। इस पाठ में संत कबीर की कई साखियाँ संकलित हैं, जिनमें उन्होंने मानव जीवन, भक्ति, प्रेम, अहंकार, आत्म-चिंतन, गुरु-भक्ति, और समाज सुधार जैसे विषयों पर अपने विचार दोहे (द्विपदी छंद) के रूप में प्रस्तुत किए हैं।
कबीर की वाणी बहुत सरल, लेकिन गहरी होती है। वे सीधे और सटीक शब्दों में जीवन की सच्चाइयाँ कह जाते हैं। इन साखियों के माध्यम से उन्होंने यह बताया है कि :-
- ईश्वर को बाहर नहीं, अपने भीतर खोजो,
- गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है,
- प्रेम, सेवा और आत्म-निरीक्षण ही सच्ची भक्ति है,
- और मीठी वाणी, धैर्य, आलोचना का स्वागत जैसी बातें व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाती हैं।
कक्षा 10 कबीर की साखी पाठ का मुख्य विषय
- भक्ति का मार्ग
- आत्मज्ञान और ईश्वर की खोज
- गुरु की महिमा
- सच्चा प्रेम और व्यवहार
- सांसारिक मोह से मुक्ति
- आलोचना को सकारात्मक रूप में लेना
कक्षा 10 कबीर की साखी पाठ सार
इस पाठ में महान संत और समाज-सुधारक कबीरदास की आठ प्रमुख साखियाँ (दोहा रूप में) दी गई हैं। इन साखियों के माध्यम से कबीर ने मनुष्य को सच्चा जीवन जीने की राह दिखाई है।
इन साखियों में भक्ति, आत्मचिंतन, व्यवहार, प्रेम, गुरु की महिमा, ईश्वर की खोज, और ज्ञान जैसे विषयों को सरल भाषा में समझाया गया है। कबीर मानते हैं कि ईश्वर को मंदिरों या तीर्थों में नहीं, बल्कि हर मनुष्य के भीतर खोजा जाना चाहिए। उनका मानना है कि जब तक अहंकार है, तब तक ईश्वर की अनुभूति नहीं हो सकती। जब मनुष्य “मैं” को छोड़ता है, तभी उसे “राम” (ईश्वर) की अनुभूति होती है।
कबीर ने यह भी कहा है कि मीठी वाणी बोलना चाहिए, जिससे दूसरों को भी सुख मिले और खुद का मन भी शांत रहे। उन्होंने निंदक (आलोचक) को भी मूल्यवान बताया है, क्योंकि निंदक हमारे दोष दिखाकर हमारे स्वभाव को सुधारते हैं।
एक साखी में कबीर यह कहते हैं कि किताबी ज्ञान (पोथियाँ पढ़ने) से कोई सच्चा ज्ञानी नहीं बनता, बल्कि जिसने प्रेम को समझा, वही असली पंडित (ज्ञानी) होता है।
उन्होंने यह भी कहा है कि ईश्वर से अलग होकर जीवित रहना कठिन है, क्योंकि राम का वियोग बहुत पीड़ादायक होता है। अंत में कबीर कहते हैं कि उन्होंने अपनी मोह-माया की झोपड़ी जला दी और अब वे उसी को अपने साथ चलने को तैयार हैं, जो ईश्वर की राह पर साथ चले।
कक्षा 10 साखी पाठ का उद्देश्य
“साखी” का उद्देश्य आध्यात्मिक शिक्षाएँ देना, प्रेम और ध्यान के महत्व को समझाना, और स्वयं के भीतर ईश्वर को पहचानने की प्रेरणा देना है। कबीर जी ने अपने इस काव्य के माध्यम से, जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को सरल और असरदार भाषा में व्यक्त किया है। इस रचना में कबीर जी ने वाणी के माधुर्य, अहंकार की समाप्ति, धैर्य, और आध्यात्मिक जागृति की आवश्यकता पर बल दिया है।
कक्षा 10 साखी की व्याख्या
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करे, औरन को सुख होइ।।
व्याख्या : कबीर कहते हैं कि हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिसमें अहंकार न हो। हमारी बातों से न केवल दूसरों को सुख मिले, बल्कि हमारा मन भी शांत रहे। मीठी और नम्र वाणी मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण है।
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे बन माहिं।
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनियां देखे नाहिं।।
व्याख्या: कस्तूरी मृग के नाभि में होती है, लेकिन वह उसे जंगल में ढूंढता है। उसी तरह ईश्वर हमारे भीतर ही है, लेकिन हम उसे बाहर खोजते हैं। कबीर आत्मचिंतन की प्रेरणा देते हैं।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देखा माहिं।।
व्याख्या: जब तक अहंकार था, तब तक ईश्वर का अनुभव नहीं था। जब अहंकार समाप्त हुआ, तो ईश्वर का प्रकाश प्रकट हो गया। जैसे दीप जलने से अंधकार मिट जाता है, वैसे ही अहंकार मिटाने से आत्मा में ईश्वर प्रकट होता है।
सुखिया सब संसार है, खायै और सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै और रोवै।।
व्याख्या: संसार के लोग खाने-पीने और सोने में सुख मानते हैं। लेकिन कबीर कहते हैं कि मैं दुखी हूँ क्योंकि मैं संसार की भूल-भुलैय्या को देख कर जाग रहा हूँ और मनुष्यों की अज्ञानता पर रोता हूँ।
बिरह भुवंगम तन बसे, मंत्र न लागे कोय।
राम बियोगी ना जिए, जिए तो बौरा होय।।
व्याख्या : ईश्वर से बिछड़ने का दुख (वियोग) ऐसा है जैसे शरीर में सांप घुस गया हो। उस पर कोई मंत्र काम नहीं करता। कबीर कहते हैं कि जो राम से बिछड़ा है, वह या तो मर जाता है या पागल हो जाता है।
निंदक नेड़ा राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
व्याख्या: जो हमारी बुराई करता है (निंदक), उसे पास ही रखना चाहिए। जैसे वह बिना साबुन और पानी के ही हमारे स्वभाव को सुधारने में मदद करता है। आलोचक से हमें सीख मिलती है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
व्याख्या: दुनिया भर के लोग किताबें पढ़-पढ़कर भी सच्चे ज्ञानी नहीं बन पाए। सच्चा ज्ञानी वह है जो “प्रेम” का मर्म समझ ले। केवल किताबी ज्ञान से कुछ नहीं होता।
हम घर जाल्या आपना, लिया मुरारा हाथ।
अब घर जालौं तास का, जे चले हमारे साथ।।
व्याख्या: कबीर कहते हैं कि मैंने अपने सांसारिक मोह का घर जला दिया और भगवान का हाथ थाम लिया। अब मैं उस व्यक्ति के मोह-माया का घर जलाने को तैयार हूँ जो मेरे साथ इस ईश्वर के मार्ग पर चलने को तैयार है।
सारांश – कबीर की इन साखियों में जीवन के गहरे सत्य छुपे हैं – जैसे कि वाणी की मिठास, आत्मा में ईश्वर की उपस्थिति, अहंकार का त्याग, सच्चा प्रेम, और वैराग्य। वे लोगों को बाहरी दिखावे से हटकर अंदर की खोज करने की प्रेरणा देते हैं।
कक्षा 10 साखी पाठ के शब्दार्थ
बानी (वाणी) | भाषा, बोल |
आपा | अहंकार, घमंड |
सीतल | शांत, ठंडा |
औरन | दूसरों |
सुख | आनंद, शांति |
कस्तूरी | एक प्रकार की सुगंधित वस्तु |
कुंडल | नाभि (कस्तूरी की थैली) |
मृग | हिरण |
बन माहिं | जंगल में |
घट-घटि | हर एक शरीर में |
राम | ईश्वर |
नाहिं | नहीं |
हरि | भगवान |
अंधियारा | अज्ञान रूपी अंधकार |
दीपक | प्रकाश, आत्मज्ञान |
माहिं | भीतर |
सुखिया | सुखी |
संसार | दुनिया |
खायै | खाता है |
सोवै | सोता है |
दुखिया | दुखी |
दास | सेवक (यहाँ: कबीर) |
जागै | जागता है (आध्यात्मिक रूप से) |
रोवै | रोता है |
बिरह | वियोग (ईश्वर से) |
भुवंगम | सांप |
तन | शरीर |
मंत्र | औषधि, उपचार |
बियोगी | वियोग में रहने वाला |
बौरा | पागल |
निंदक | आलोचक, बुराई करने वाला |
नेड़ा | पास |
आंगन | घर का खुला स्थान |
कुटी | झोपड़ी |
छवाय | बनवाना |
निर्मल | शुद्ध |
सुभाय | स्वभाव |
पोथी | ग्रंथ, किताबें |
पढ़ि पढ़ि | पढ़ते पढ़ते |
जग मुआ | दुनिया मर गई (ज्ञान के बिना) |
पंडित | ज्ञानी व्यक्ति |
ढाई आखर | “प्रेम” (ढाई अक्षरों का शब्द) |
घर जाल्या | मोह-माया का त्याग |
मुरारा | भगवान श्रीकृष्ण (यहाँ ईश्वर का रूप) |
हाथ लिया | साथ लिया |
तास | उसका |
हमारे साथ | जो आध्यात्मिक पथ पर चले |