इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत” के अध्याय-10 ”वायुमंडल में जल” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 10 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Geography Book-1 Chapter-10 Notes In Hindi
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अध्याय- 10 “वायुमंडल में जल”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | दस (10) |
अध्याय का नाम | ”वायुमंडल में जल” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय-10 “वायुमंडल में जल”
वायुमंडल
- वायुमंडल में जलवाष्प की उपस्थिति गैस, द्रव और ठोस के रूप में होती है। यह आर्द्रता वायुमंडल में जलाशयों से होने वाले वाष्पीकरण और पौधों के वाष्पोत्सर्जन से मिलती है।
- वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन, संघनन और वर्षा द्वारा पृथ्वी का जल चक्र चलता है।
आर्द्रता
- यह वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प है। इसे निरपेक्ष और सापेक्ष आर्द्रता के रूप में विभाजित किया गया है।
- निरपेक्ष आर्द्रता– जलवाष्प की वह वास्तविक मात्रा जो वायुमंडल में उपस्थित है, निरपेक्ष आर्द्रता कहलाती है। जलवाष्प का हवा में मौजूद होना किसी भी स्थान के तापमान पर निर्भर करता है।
- यह धरातल पर भिन्न स्थानों पर भिन्न हो सकता है।
- सापेक्ष आर्द्रता– दिए गए तापमान पर अपनी पूरी क्षमता की तुलना में वायुमंडल में मौजूद आर्द्रता का प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता कहलाता है।
- जैसे जैसे तापमान में परिवर्तन होता है, आर्द्रता को ग्रहण करने की क्षमता में भी परिवर्तन आता है और इससे सापेक्ष आर्द्रता पर भी प्रभाव होता है।
- महासागरों पर यह सबसे ज्यादा और महाद्वीपों पर सबसे कम होती है।
वाष्पीकरण और संघनन
- जल का द्रव से गैसीय अवस्था में पहुंचना ही वाष्पीकरण कहलाता है, ताप इसका मुख्य कारण है।
- जल को वायु में अवशोषित होने के लिए तापमान में बढ़ोत्तरी होना अनिवार्य है। हवा की गति बढ़ने पर वाष्पीकरण की गति भी बढ़ जाती है।
- जब जलवाष्प जल के रूप में बदल जाता है, तो यह संघनन कहलाता है। आर्द्र हवा के ठंडा हो जाने पर हवा जलवाष्प को रखने के लिए असक्षम हो जाती है और जलवाष्प तरल में परिवर्तित हो जाता है।
- लेकिन जलवाष्प का ठोस से सीधे गैस में बदलने को उर्ध्वपातन कहा जाता है।
- संघनन होने के अन्य कारण- आर्द्र हवा के ठंडी वस्तुओं के संपर्क में आने से हो सकता है और जब तापमान ओशांक के करीब हो तब भी।
संघनन के प्रकार
- ओस– जब आर्द्रता ठोस वस्तुओं पर पानी की बूँद के रूप में एकत्रित हो जाती है, तो उसे ओस कहा जाता है।
- तुषार– जब संघनन की प्रक्रिया बेहद कम तापमान पर होती है, तब तुषार बनता है, तापमान इतना कम होता है कि अतिरिक्त नमी का जमाव बर्फ के कणों के रूप में होता है।
- कोहरा एवं कुहासा– कोहरा एक बादल है, जिसकी उपस्थिति धरती की सतह के नजदीक होती है, जलवाष्प से भारी हुई वायु संहति जब नीचे गिरती है, तो छोटे-छोटे धूल कणों पर ही संघनन प्रक्रिया होती है, इससे कोहरा दिखता है, जब 2 किलोमीटर दूरी पर रखी वस्तु दृष्टव्य हो तो उसे कुहासा कहा जाता है।
- बादल– छोटी बर्फ या बूंदों के संग्रह से बादल बनता है, इनका निर्माण जलवाष्प की संघनन प्रक्रिया के बाद होता है। ये आकाश में स्वतंत्र प्रवाह करते हैं। इनके आकार छोटे अथवा बड़े हो सकते हैं।
बादलों के प्रकार
- पक्षाभ मेघ- इस तरह के बादल बिखरे हुए तथा सफेद रंग के होते हैं।
- स्तरी मेघ- ये आकाश में बड़े स्तर पर परत के रूप में देखे जा सकते हैं, इनका निर्माण हवा के मिलने से होता है।
- कपासी मेघ- इनका आकार चपटा हुआ होता है, ये रुई के समान दिखाई देते हैं।
- वर्षा मेघ- ये बादल पृथ्वी के काफी नजदीक, काले घने होते हैं, इनसे पार होकर सूर्य की किरनें धरती पर नहीं आ पातीं।
वर्षण
- लगातार संघनन की प्रक्रिया संघनित कणों की आकृति को बड़ा कर देती है। जब ये कण वायु प्रतिरोध के बाद भी, धरती पर गिर जाते हैं, इसे ही वर्षण कहते हैं।
- जब वर्षा की प्रक्रिया जल के रूप में होती है, तो यह बारिश और जब यह कम तापमान (0 डिग्री सेन्टीग्रेड या इससे कम) होने के बाद बर्फ के गोलों के रूप में होती है, तो इसे हिमपात की संज्ञा दी जाती है।
- बादलों से स्वतंत्र होने के बाद वर्षा की बूंदें ठंडी परतों से गुजरने के परिणामस्वरूप ठोस बर्फ में बदल जाती हैं, पृथ्वी की सतह पर पहुँच कर ये गोलों के रूप में बरसतीं हैं, इन्हें ही ओलापत्थर कहा जाता है।
वर्षा के प्रकार
- संवहनीय वर्षा– गरम हवा हल्की होकर संवहन धाराओं की तरह ऊपर की ओर उठती है, वायुमंडल की परतों में जाकर इसका तापमान ठंडा होता है, संघनन की क्रिया द्वारा कपासी बादलों का निर्माण होता है। इससे होने वाली बारिश ज्यादा समय तक नहीं रहती। ये गर्मियों में होने वाली वर्षा है।
- पर्वतीय वर्षा– संतृप्त वायु की संहति ढाल पर आकर ऊपर की ओर उठती है। इसके फैलने से तापमान गिरने लगता है और आर्द्रता संघनित हो जाती है। ये वर्षा पवनाभिमुख ढाल पर ज्यादा होती हैं, इस तरह की वर्षा पर्वतीय क्षेत्रों में ही देखने को मिलती हैं।
वर्षा वितरण
- साल भर में विश्व में होने वाली वर्षा का अनुपात भिन्न होता है, अलग भागों में होने वाली वर्षा की मात्रा भी अलग होती है।
- वर्षा की मात्रा में कमी देखने को जब मिलती है जब हम विषुवत् वृत से ध्रुव की ओर जाते हैं।
- स्थलीय भागों की बजाय महासागरों के ऊपर बारिश अधिक होती है, ऐसा इसलिए है क्योंकि जल की अधिकता के कारण वहां वाष्पीकरण की क्रिया चलती रहती है।
- सबसे पहले पछुआ पवनों के कारण विषुवत् वृत से 45 से 65 डिग्री उत्तर और दक्षिण के बीच महाद्वीप के पश्चिमी किनारों पर बारिश होती है।
- महाद्वीपों के आंतरीक भागों में हर साल 100 से 200 सेमी बारिश होती है। उष्णकटिबंधों के केन्द्रीय भागों और शीतोष्ण के पूर्व और आंतरिक भागों में हर साल 50 से 100 सेमी के बीच बारिश होती है।
- कुछ क्षेत्रों जिसमें विषुवत् पट्टियाँ और ठंडे समशीतोष्ण प्रदेश आते हैं, में पूरे वर्ष बारिश होती रहती है।
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