इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत” के अध्याय-7 ”वायुमंडल का संघटन तथा संरचना” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 7 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Geography Book-1 Chapter-7 Notes In Hindi
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अध्याय- 7 “वायुमंडल का संघटन तथा संरचना”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | सात (7) |
अध्याय का नाम | ”वायुमंडल का संघटन तथा संरचना” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय-7 “वायुमंडल का संघटन तथा संरचना”
वायुमंडल
- पृथ्वी को वायु मण्डल ने चारों दिशाओं से घेरा हुआ है, इसका निर्माण विभिन्न प्रकार की गैसों से मिलकर हुआ है।
- मनुष्यों और जानवरों के लिए इसमें ऑक्सीजन और पेड़-पौधों के लिए कार्बन-डाईऑक्साइड है।
- पृथ्वी को सभी ओर से वायु ने घेरा हुआ है, इसके बाहर करीब 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक वायु विद्यमान है।
वायुमंडल का संघटन
- धूलकणों, जलवाष्प और गैसों से मिलकर वायुमंडल का निर्माण हुआ है।
- गैसों के अनुपात में परत दर परत बदलाव आता है, पृथ्वी की ऑक्सीजन 120 किलोमीटर की ऊंचाईं के बाद नहीं मिलती।
- 90 किलोमीटर की ऊंचाई के उपरांत कार्बन-डाईऑक्साइड और जलवाष्प भी नहीं मिल पाता।
गैस, धूलकण, जलवाष्प
- गैस- कार्बन-डाईऑक्साइड एक महत्वपूर्ण गैस है, यह सौर विकिरण को सोख कर पृथ्वी की सतह पर प्रतिबिंबित करती है।
- यह ग्रीन-हाउस के लिए भी जिम्मेदार गैस है, जो जीवाश्म ईंधन को जलाने के कारण और भी ज्यादा बढ़ती है।
- सोर विकिरण में यह पारदर्शी और पार्थिव विकिरण में अपारदर्शी है।
- इसके कारण हवा के ताप में वृद्धि हुई है।
- दूसरा है ओज़ोन जो धरती की बाहरी सतह के 10 से 50 किलोमीटर के मध्य पाया जाता है, यह सूरज से आने वाली हानिकारक किरणों (अल्ट्रावॉइलेट रेज) से रक्षा करता है।
- धूलकण– धरती के वायु मण्डल में महीन और ठोस दोनों तरह के कण मिलते हैं, ये समुद्री नमक, राख, धुएं या अनेकों कारणों से वायुमंडल में विद्यमान रहते हैं।
- इनका जमाव सुखी हवा के कारण ज्यादातर उपोष्ण और शीतोषण क्षेत्रों में होता है। ये जलवाष्प को अपने चारों ओर संगठित करते हैं, जिससे बादलों का निर्माण होता है।
- जलवाष्प– जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती है, यह गैस भी कम होती जाती है। वायु के आयतन का 4% गर्म तथा आर्द्र कटिबन्ध में पाया जाता है, वहीं शुष्क प्रदेशों में इसका 1% हिस्सा होता है।
- ये सूर्य के ताप को अवशोषित और पृथ्वी के ताप को संग्रहित करती है। जो पृथ्वी को अधिक ठंडा या गर्म होने से बचाती है।
वायुमंडल की बनावट
- विभिन्न परतों और तापमान से मिलकर वायुमंडल का निर्माण हुआ है, इसका घनत्व भी भिन्न रहता है।
- यह घनत्व पृथ्वी की सतह के पास अधिक और ऊंचाई बढ़ने पर कम हो जाता है।
- इसे क्षोभमंडल, संतापमंडल, मध्यमण्डल, बाह्यवायुमंड/आयनमंडल और बहिर्मंडल इन 5 भागों में बांटा गया है।
- क्षोभमंडल– यह पृथ्वी के सबसे समीप तथा नीचे का संस्तर है। इसकी धरती से ऊंचाई 13 किलोमीटर, विषुवत् वृत से 18 किलोमीटर और ध्रुवों से 8 किलोमीटर है।
- इसमें धूलकणों और जलवाष्प की मौजूदगी रहती है। लगभग 165 मीटर ऊंचाई होने पर इसका 1 डिग्री सेल्सियस तापमान कम हो जाता है।
- दूसरे वायु मण्डल से पहले आने वाली सीमा को क्षोभसीमा कहा जाता है।
- संतापमंडल– क्षोभ मण्डल के ऊपर के वायुमंडल संतापमंडल है। इसकी ऊंचाई 50 किलोमीटर होती है।
- ओज़ोन परत जो सूरज की हानिकारक किरणों से बचाने का काम करती है, इसी परत में पाई जाती है।
- मध्यमंडल– संतापमंडल के बाद मध्यमण्डल 80 किलोमीटर ऊंचाई रखता है। इसका तापमान 100 डिग्री सेल्सियस तक का होता है।
- बाह्यवायुमंड/आयनमंडल– इसका नाम आयनमंडल होने का बड़ा कारण है कि इसमें विद्युत को अवशोषित करने वाले कण पाए जाते हैं। ये 400 किलोमीटर तक मध्यमण्डल के ऊपर होता है।
- ये रेडियो की तरंगों को वापस पृथ्वी पर भेजता है, इसका तापमान ऊंचाई बढ़ने के साथ बढ़ता है।
- बहिर्मंडल– इस वायुमंडल के सबसे बाहर होने के कारण इसे बहिर्मंडल कहते हैं।
- अंतरिक्ष के सबसे समीप होने के कारण इसके घटक अंतरिक्ष में ही मिल जाते हैं।
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