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Class 11 Geography Book-2 Ch-2 “संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान” Notes In Hindi

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Navya Aggarwal
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-2 यानी “भारत भौतिक पर्यावरण” के अध्याय-2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 2 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 11 Geography Book-2 Chapter-2 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 2 “संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाग्यारहवीं (11वीं)
विषयभूगोल
पाठ्यपुस्तकभारत भौतिक पर्यारवण
अध्याय नंबरदो (2)
अध्याय का नामसंरचना तथा भू-आकृति विज्ञान
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भारत भौतिक पर्यावरण
अध्याय-2 “संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान”
  • देश-दुनिया में विभिन्न स्थानों के आधार पर चट्टानों में अंतर पाया जाता है। धरातल का स्वरूप मिट्टी और चट्टानों की भिन्नता को सुनिश्चित करता है।
  • पृथ्वी की आयु का अनुमान लगभग 46 करोड़ वर्ष का लगाया गया है, इतने वर्षों में कई प्रकार के बाह्य और आंतरिक बल के कारण इसमें परिवर्तन देखे गए।
  • इसका असर ‘इंडियन प्लेट’ पर भी पड़ा, पहले ये भूमध्य रेखा के दक्षिण में मौजूद थी, जिसका विशाल आकार अपने में ‘ऑस्ट्रेलियन प्लेट’ को भी समाए हुए था।
  • वर्षों पश्चात यह प्लेटे टूटीं और ‘ऑस्ट्रेलियन प्लेट’ दक्षिण-पूर्व और ‘इंडियन प्लेट’ उत्तर में खिसकी, इंडियन प्लेट का खिसकना आज भी जारी है।

भारतीय भू-वैज्ञानिक खंड

  • भारत के भू-वैज्ञानिक खंडों का विभाजन तीन भागों में किया गया है-
    • प्रायद्वीपीय खंड
      • इन खंडों की उत्तरी सीमा अस्त-व्यस्त हैं। इनकी शुरुआत कच्छ से होती है, और भारत के पश्चिम से होती हुई, कई नदियों के साथ समानांतर चलती हुई गंगा डेल्टा तक जाती है।
      • इनकी रचना मुख्य रूप से ग्रेनाइड और प्राचीन नाइस से बनी होती है। यह भू-खंड कैम्ब्रियन में कठोर रूप में खड़ा है।
      • इसके वास्तविक आधार तल पर, इसके पश्चिमी तट का समुद्र में डूब होने और टेक्टाॉनिक बदलावों का असर नहीं होता।
      • इस तरह के क्षेत्रों की नदियां और घाटियां उथली हुई होती हैं।
      • नर्मदा और तापी की रिफ्ट घाटियां और इसके साथ ही सतपुड़ा ब्लॉक के पर्वत इसके कुछ उदाहरण हैं।
    • हिमालय और अन्य अतिरिक्त-प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएं
      • इनकी भू-वैज्ञानिक संरचना लचीली और तरुण होती है।
      • इनपर बाह्य और आंतरिक बलों का प्रभाव होता है। इनसे वलन, भ्रंश और क्षेप आदि निर्मित होते हैं।
      • विवर्तनिक हलचल के करण ही इनकी उत्पत्ति होती है।
      • नदियों के तेज बहाव के कारण ये पर्वत अलग-अलग हो जाते हैं, जो अभी भी युवावस्था में होते हैं।
    • सिंधु-गंगा-ब्रह्यमपुत्र मैदान
      • इन भू-वैज्ञानिक खंडों का निर्माण 6.4 करोड़ वर्ष पहले हिमालय पर्वतमाला के निर्माण के तीसरे चरण में हुआ।
      • ये खंड सिंधु गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों का मैदान है।
  • भारत की भू-वैज्ञानिक संरचना में अंतर पाया जाता है, इसका प्रभाव धरातल और भू-आकृतियों पर भी पड़ता है।

भू-आकृति

  • संरचना, प्रक्रिया और विकास की प्रक्रिया का परिणाम किसी स्थान की भू-आकृति पर देखा जाता है।
  • भारत में धरातल के आधार पर भिन्नताऐं पाई जाती हैं, जैसे- उत्तर में हिमालय पर्वत की शृंखलाएं, जिसमें घाटियां और चोटियाँ आदि शामिल हैं।
  • भारत के दक्षिण हिस्सों में पठार, अपरदित चट्टानों की भरमार है।
  • भारत को इस तरह से भू-आकृतिक खंडों में बांटा जा सकता है-
    • उत्तर तथा उत्तर पूर्वी पर्वत माला-
      • इनमें हिमालय पर्वत और उत्तर-पूर्वी पहाड़ियाँ आतीं हैं, इसमें मध्य हिमालय, पार हिमालय और शिवालिका कई प्रमुख श्रेणियाँ सम्मिलित हैं। हिमालय की श्रेणियाँ उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर फैली हैं।
      • वृहत हिमालय शृंखला को केन्द्रीय अक्षीय श्रेणी भी कहा जाता है। पूर्व से पश्चिम इसकी लंबाई 2500 किलोमीटर है और उत्तर से दक्षिण इसकी चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है।
      • मध्य, पूर्वी एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच हिमालय एक दीवार की तरह खड़ा है।
      • ये हिमालय रोधक न होकर जलवायु, अपवाह और संस्कृतियों के विभाजन का स्त्रोत है, इसे आगे इन खंडों में विभाजित किया जाता है-
        • कश्मीर या उत्तर पश्चिमी हिमालय
        • हिमाचल और उत्तरांचल हिमालय
        • दार्जलिङ्ग और सिक्किम हिमालय
        • अरुणाचल हिमालय
        • पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत
    • उत्तरी भारत का मैदान
      • ये मैदान ऐसे जलोढ़ निक्षेप से बनते हैं, जो गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदियों द्वारा बहा कर लाए गए होते हैं। इसकी पूर्व से पश्चिम की लंबाई 3200 किलोमीटर, और चौड़ाई 150 से 300 किलोमीटर है।
      • इन्हें उत्तर से दक्षिण दिशा में तीन भागों अर्थात भाभर, तराई, जलोढ़ में बांटा जाता है।
      • जलोढ़ को आगे खादर और बांगर में विभाजित किया जाता है।
    • प्रायद्वीपीय पठार
      • ये नदियों के मैदानों से करीब 150 मीटर ऊपर उठता है, ये 600 से 900 मीटर तक ऊंचे होते हैं। इस तरह के भू-भागों की ऊंचाई पश्चिम से पूर्व की ओर कम होती जाती है। इसके पश्चिम और उत्तर पश्चिम भागों में काली मिट्टी पाई जाती है।
      • नदी खड्ड और महाखड्ड जो इनके उत्तर पश्चिमी भागों में पाए जाते हैं, इन्हें जटिल बना देते हैं, इसके उदाहरण हैं- चम्बल, भिंड और मोरेन। इन पठारों को तीन भागों में बांटा गया है-
        • दक्कन पठार
        • मध्य-उच्च भू-भाग
        • उत्तरी-पूर्वी पठार
    • भारतीय मरुस्थल-
      • ये अरावली पहाड़ियों से उत्तर में स्थित हैं, यह एक ऊबड़-खाबड़ भूतल है। यहाँ की वार्षिक वर्षा 150 किलोंमीटर से कम ही दर्ज की जाती है। इसी कारण ये शुष्क और वनस्पति रहित होते हैं, इसलिए इन्हें ‘मरुस्थल’ कहा जाता है।
      • इन्हें ढाल के आधार पर दो भागों में बांटा जाता है- उत्तरी भाग जिसकी ढाल सिंध की ओर होती है, और दक्षिणी भाग जिसकी ढाल कच्छ के रन की ओर होती है।
    • तटीय मैदान- इनके दो भाग हैं-
      • पश्चिमी तटीय मैदान-
        • ये जलमग्न मैदान होते हैं, ये मध्य में संकीर्ण और उत्तर तथा दक्षिण में चौड़े होते जाते हैं। यहाँ बहने वाली नदियां डेल्टा का निर्माण नहीं करतीं।
        • गुजरात का धार्मिक स्थल ‘द्वारका’, इसका उदाहरण है, जो कि जलमग्न हो गया है।
        • ‘कयाल’ स्थलाकृति जिसे मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति है, केरल में हर साल ‘नेहरू ट्रॉफी वलामकाली’ (नोका दौड़) का आयोजन किया जाता है, जो ‘पुन्नामदा कयाल’ पर आयोजित होता है।
      • पूर्वी तटीय मैदान-
        • ये उभरे हुए तट होते हैं, यहाँ बहने वाली नदियां डेल्टा का निर्माण करतीं हैं, इसमें महानदी, कावेरी का डेल्टा सम्मिलित हैं।
        • इन क्षेत्रों में महाद्वीपीय शेल्फ़ों की चौड़ाई 500 किलोमीटर है।
      • द्वीप समूह- भारत में दो द्वीप समूह हैं-
        • बंगाल की खड़ी के द्वीप समूह
          • इसमें 572 द्वीप हैं, इनकी स्थिति 6 से 14 डिग्री उत्तर, 92 से 94 डिग्री पूर्व के बीच है। इसके दो द्वीप समूह हैं, उत्तर में अंडमान और दक्षिण में निकोबार
          • भारत का बैरन आइलैण्ड एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी भी निकोबार द्वीप समूह पर स्थित है।
        • अरब सागर के द्वीप समूह
          • इन द्वीपों पर लक्षद्वीप और मिनीकॉय मिलते हैं। इनकी स्थिति 80 से 12 डिग्री उत्तर 71 से 74 डिग्री पूर्व के बीच है। इनपर 36 द्वीप हैं, जिनमें से 11 पर मानव रहते हैं।
          • मिनीकॉय 453 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल के साथ सबसे बड़ा द्वीप है।
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