इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी मानव भूगोल के मूल सिद्धांत के अध्याय- 3 “मानव विकास” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 3 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 Geography Book-1 Chapter-3 Notes In Hindi
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अध्याय- 3 “मानव विकास“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | मानव भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | तीन (3) |
अध्याय का नाम | “मानव विकास” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- मानव भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय- 3 “मानव विकास”
मानव विकास की विचारधारा
- पृथ्वी पर पौधे, नगर, राष्ट्र एवं विचार के साथ-साथ मनुष्य भी बढ़ते और विकसित होते हैं। यही वृद्धि व विकास परिवर्तन को दर्शाता है।
- साधारण जीवन से सार्थक जीवन अलग होता है क्योंकि सार्थक जीवन में बढ़ती आयु के साथ-साथ उद्देश्य जुड़े होते हैं। जिन्हें मनुष्य समाज के समक्ष प्रतिभाशाली बनकर स्वस्थ बुद्धि और विचारधारा के साथ पूर्ण करते हैं।
- मानव विकास में होने वाला परिवर्तन धनात्मक और ऋणात्मक दोनों तरह का हो सकता है।
- विकास तभी संभव है जब वर्तमान स्थितियों में सकारात्मक वृद्धि हो अन्यथा वृद्धि अनेक तरह की समस्याओं से बाधित हो जाती है।
- डॉ. महबूब-उल-हक द्वारा ‘मानव विकास’ की अवधारणा का प्रतिपादन किया गया था।
- मानव विकास की अवधारणा के अनुसार मानव विकास जुड़ाव मानव के सर्वांगीण व पूर्ण विकास से है। स्वास्थ्य व संसाधनों तक पहुँच और शिक्षा, सामाजिक, राजनीतिक स्वतंत्रता मानव विकास के मुख्य केंद्र बिंदु हैं।
- मानव विकास से जुड़े विचारों को पहली बार वर्ष 1980 के दशक के अंत और वर्ष 1990 के दशक में प्रारंभ में स्पष्ट किया गया था।
- वर्ष 1990 से पहले मानव विकास को देश की आर्थिक समृद्धि के मात्रात्मक परिवर्तन के साथ देखा जाता था लेकिन वर्ष 1990 के बाद मानव विकास के गुणात्मक पक्षों को अधिक महत्व दिया जाने लगा और उसे ही केंद्र बिंदु बनाकर विकास के प्रत्येक पहलू पर बल देते हुए अवसरों के साथ परिवर्तनशील बनाने की कोशिश की गई।
- संसाधनों तक लोगों की पहुँच को सरल बनाने के लिए मनुष्य की क्षमता निर्माण पर विशेष रूप से जोर दिया गया।
- डॉ. हक ने मानव विकास को व्यक्त करते हुए कहा कि “जो विकास मनुष्य के विकल्पों में वृद्धि करे और उनके जीवन को श्रेष्ठ बनाने में मदद करे।”
- मानव विकास के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रो. अमर्त्य सेन ने ‘स्वतंत्रताओ में वृद्धि’ को सबसे अधिक प्रभवशाली माध्यम बताया है।
- इन अर्थशास्त्रियों की अवधारणाएँ मानव विकास के संदर्भ मील का पत्थर साबित हुई है।
मानव विकास के मुख्य चार स्तंभ
मानव विकास के मुख्य चार स्तंभ निम्नलिखित हैं-
- समता: समता का अर्थ सभी लोगों के लिए उपलब्ध अवसरों की समान व्यवस्था करना है। यह स्तंभ लोगों के लिए उपलब्ध अवसरों की उपलब्धता के लिए लिंग, जाति, आय इत्यादि के संबंध में भेद-भाव रहित विचारों को उजागर करता है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है जैसे कि किसी विद्यालय से वितर अधिकांश छात्र किस वर्ग से है? इसके उत्तर से पता चलेगा कि किसी वर्ग विशेष तक शिक्षा की पहुँच न होना उनके विकल्पों को सीमित करता है।
- सतत पोषणीयता: यह स्तंभ मानव विकास के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है ताकि आने वाली प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिल सके। इसका संबंध पर्यावरणीय, वित्तीय और मानव संसाधनों का उपयोग आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखकर करने से है। ऐसा करने के पीछे उद्देश्य यह है कि भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों की कमी न हो और वो भी पूर्ण विकास का हिस्सा बन सके।
- उत्पादकता: उत्पादकता से अभिप्राय मनुष्य की श्रम और कार्य के संदर्भ में उत्पादकता है। किसी भी राष्ट्र का वास्तविक धन वहाँ की जनता होती है। ऐसे में लोगों की कार्यक्षमता को उनके ज्ञान में वृद्धि करके और स्वास्थ्य व शिक्षा के लिए बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध कराके बढ़ाया जा सकता है। ऐसा करने से व्यक्ति की आय बढ़ने के साथ-साथ देश का आर्थिक विकास भी होता है।
- सशक्तिकरण: इसका जुड़ाव मानव शक्ति से है। मनुष्य द्वार अपने अनुसार अपने विकल्प चुनने की शक्ति प्राप्त करना सशक्तिकरण कहलाता है। मनुष्यों में यह शक्ति स्वतंत्रता और क्षमता से विकसित होती है और लोगों में इन्हें विकसित करने के लिए सुशासन के साथ-साथ लोकोन्मुखी नीतियों की जरूरत होती है। सशक्तिकरण का सबसे ज्यादा महत्व सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के लिए होता है।
मानव विकास के प्रमुख चार उपागम
मानव विकास में बाधा बनने वाली अनेक समस्याओं को भिन्न-भिन्न उपागमों द्वारा व्यक्त किया जाता है। जिनमें सुधार करके मानव विकास को पहले से अधिक मजबूत व श्रेष्ठ बनाया जा सकता है। ये उपागम किसी न किसी रूप में मनुष्य और देश के विकास में मददगार साबित होते हैं। मानव विकास के चार महत्वपूर्ण उपागम निम्नलिखित हैं-
- आय उपागम: इसमें मानव विकास को आय से जोड़कर देखा जाता है। इस उपागम को मानव विकास के सबसे पुराने उपगमों में शामिल किया गया है। इसके मुताबिक जिस व्यक्ति की आय जितनी अधिक होगी उसके लिए स्वतंत्रता का स्तर भी उतना ही उच्च होगा। इस प्रकार आय अधिक होने से मानव विकास का स्तर भी स्वतः बढ़ जाएगा।
- क्षमता उपागम: इस उपागम का सबंधन प्रो. अमर्त्य सेन के कथन से है। उनके अनुसार “संसाधनों तक पहुँच के लिए मनुष्य की क्षमताओं का निर्माण बढ़ते मानव विकास की कुंजी है।” इस उपागम में मनुष्य की कार्यक्षमता को अधिक महत्व दिया गया है।
- कल्याण उपागम: यह मान के सभी लाभार्थी एवं विकासात्मक गतिविधियों के लक्ष्य को व्यक्त करता है। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, भौतिक संसाधनों पर अधिक सरकारी व्यय जैसे विषय शामिल होते हैं। इनके माध्यम से व्यक्तियों को विकास का हिस्सा बनाकर विकास के स्तर को बढ़ाया जा सकता है।
- मूल (बुनियादी) आवश्यकता उपागम: इसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा प्रस्तावित किया गया था जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, जलापूर्ति, आवास और स्वच्छता जैसे छः बुनियादी जरूरतों की पहचान की गई और मानव विकल्पों की उपेक्षा करते हुए बुनियादी जरूरतों को पूर्ण करने पर बल दिया गया।
मानव विकास का मापन और मानव विकास सूचकांक
मानव विकास सूचकांक को HDI (Human Development Index) द्वारा दर्शाया जाता है। मानव विकास सूचकांक विश्व के अनेक देशों का शिक्षा, स्वास्थ्य और संसाधनों तक लोगों की पहुँच के आधार पर क्रम तैयार करता है। यह क्रम 0 से 1 स्कोर के बीच होता है। कोई भी देश यह स्कोर मानव विकास के महत्वपूर्ण सूचकों में अपने रिकॉर्ड से प्राप्त करता है। मानव विकास के मापन का वर्णन इस प्रकार है-
- स्वास्थ्य: इसका संबंध बच्चों के जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा से है। इस संदर्भ में उच्चतर जीवन-प्रत्याशा का मतलब लोगों के दीर्घायु होने और स्वस्थ्य जीवन जीने के लिए उपलब्ध बेहतर अवसर से है।
- साक्षरता: इसमें प्रौढ़ साक्षरता दर और विद्यालय के सभी नामांकित विद्यार्थियों को शामिल किया जाता है जिससे पता चलता है कि किसी विशेष देश में ज्ञान तक पहुँच बनाना कितना कठिन या सरल है।
- लोगों की संसाधनों तक पहुँच: संसाधनों तक पहुँच को ‘क्रय शक्ति’ (भारतीय रुपए) के संदर्भ में मापा जाता है। क्रय शक्ति लोगों तक संसाधनों की पहुँच को दर्शाता है।
ऊपर दिए गए तीनों आयाम को 1/3 की भारिता दी जाती है और मानव विकास सूचकांक इन सभी आयामों को दिए गए भारों का कुल योग है। ऐसे में जो देश स्कोर 1 के जितना पास होगा, वहाँ मानव विकास का स्तर उतना ही उच्च होगा।
मानव निर्धनता सूचकांक
- मानव गरीबी सूचकांक का संबंध मानव विकास सूचकांक से है। यह बिना आय वाला माप होता है जो मानव विकास सूचकांक की कमी की माप करता है।
- इसमें अशिक्षित, स्वच्छ पानी तक पहुँच न रखने वाले, कम वजन वाले और 40 वर्ष तक जीवित न रह पाने की संभावना वाले लोग शामिल होते हैं।
- यह मानव विकास सूचकांक की तुलना में अधिक कमी को व्यक्त करता है इसलिए मानव गरीबी सूचकांक को अधिक महत्व दिया जाता है।
- आधुनिक समय में मानव विकास को मापने की विधियों में लगातार सुधार किए जा रहे हैं और राजनीतिक स्वतंत्रता सूचकांक एवं सबसे अधिक भ्रष्ट देशों की सूचीकरण तैयार करने की कोशिश भी की जा रही है।
मानव विकास की अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ
हमेशा से यही देखा गया है कि वैश्विक स्तर पर बड़े या आर्थिक रूप से संपन्न देशों की अपेक्षा छोटे या गरीब देशों में मानव विकास का कार्य स्तर बेहतर होता है। उदारहरण के लिए अर्थव्यवस्था की दृष्टि से छोटे होते हुए भी श्रीलंका, ट्रीनिडाड टोबैगो जैसे राष्ट्र का मानव विकास सूचकांक भारत से बेहतर है। ठीक इसी तरह कम प्रति व्यक्ति आय होने के बाद भी मानव विकास में केरल का प्रदर्शन गुजरात और पंजाब से अधिक अच्छा है। मानव विकास स्कोर के आधार पर देशों को निम्नलिखित चार समूहों में बाँटा गया है-
- अत्यधिक उच्च सूचकांक वाले देश: इस सूचकांक में उन देशों को स्थान दिया गया है जिनका मानव विकास सूचकांक/स्कोर 0.800 से ऊपर है। वर्ष 2020 के अनुसार इस सूचकांक के अंतर्गत 66 देशों को शामिल किया गया जिसमें टॉप-10 में सबसे पहले स्थान पर नॉर्वे और दसवें स्थान पर डेनमार्क था। इसके अलावा आठ देश आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हाँग-काँग, चीन, आइसलैंड, जर्मनी, स्वीडन, आस्ट्रेलिया और नीदरलैंड शामिल थे।
- उच्च सूचकांक वाले देश: इसमें उन देशों को शामिल किया जाता है जिनका मानव विकास सूचकांक/स्कोर 0.700 से 0.799 के अंतर्गत होता है। वर्ष 2020 के अनुसार इस सूचकांक के अंतर्गत 53 देशों को शामिल किया गया था। इन देशों ने मानव विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्रों में बाकी क्षेत्र के मुकाबले अधिक निवेश किया है। इस श्रेणी में यूरोपीय देशों के अलावा कुछ गैर-यूरोपीय देश भी सम्मिलित हैं।
- मध्यम सूचकांक वाले देश: इस सूचकांक में उन देशों को शामिल किया जाता है जिनका मानव विकास सूचकांक/स्कोर 0.550 से 0.699 के मध्य होता है। वर्ष 2020 के अनुसार इस सूचकांक में कुल 37 देशों को शामिल किया गया जिनमें ज़्यादातर देशों का विकास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ तो कुछ देशों का विकास सोवियत संघ के विघटन के बाद हुआ।
- निम्न सूचकांक वाले देश: निम्न सूचकांक के अंतर्गत उन देशों को सम्मिलित किया जाता है जिनका मानव विकास सूचकांक/स्कोर 0.549 से कम होता है। इस सूचकांक में वर्ष 2020 के मुताबिक 33 देशों को शामिल किया गया था। इसमें ज़्यादातर वे देश शामिल होते है जो राजनीतिक उपद्रव, सामाजिक अस्थिरता, गृहयुद्ध, महामारी/बीमारियाँ, पाकृतिक आपदा (सुनामी, बाढ़, भूकंप, भूस्खलन आदि) इत्यादि भयंकर संकटों का सामना करते हैं। यही कारण है कि इन देशों को प्रभावित नीतियों के माध्यम से सामाजिक व अच्छी शासन वयस्था के लिए तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता होती है। ये देश अन्य क्षेत्रों की तुलना में प्रतिरक्षा पर सबसे अधिक धन खर्च करते हैं।
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