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Class 12 History Book-1 Ch-3 “बंधुत्व, जाति तथा वर्ग” (आरंभिक समाज) Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक-1 यानी भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग- 1 के अध्याय- 3 “बंधुत्व, जाति तथा वर्ग” (आरंभिक समाज) के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 3 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 History Book-1 Chapter-3 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 3 “बंधुत्व, जाति तथा वर्ग” (आरंभिक समाज)

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयइतिहास
पाठ्यपुस्तकभारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-1
अध्याय नंबरतीन (3)
अध्याय का नाम“बंधुत्व, जाति तथा वर्ग” (आरंभिक समाज)
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-1
अध्याय- 3 “बंधुत्व, जाति तथा वर्ग” (आरंभिक समाज)

1. पहले बहुविवाह में पुरुष अनेक पत्नियाँ रख सकते थे।

2. महाभारत की रचना साहित्यिक परंपरा के अनुसार ऋषि व्यास ने की थी।

3. ‘हस्तिनापुर का राजा और धृतराष्ट्र का भाई’ महाभारत के पांडु चरित्र को दर्शाता है।

4. राक्षस कुल में जन्म लेने वाली हिडिंबा ने भीम के प्रति अपने प्रेम को प्रकट किया। 

5. द्रोणाचार्य का पसंदीदा शिष्य अर्जुन था।

6. युधिष्ठिर को हस्तिनापुर में चौरस खेलने के लिए चुनौती दी गई।   

7. ब्राह्मणों ने मध्य एशिया से आने वाले विदेशी आक्रांताओं को मलेच्छ कहकर संबोधित किया था। 

8. तकनीकी भाषा में संबंधियों को जाति समूह कहा जाता था।

9. पहले सामाजिक व्यवस्था में ‘कुल’ शब्द परिवार के लिए उपयोग किया गया। 

10. गोत्र से बाहर किए जाने वाले विवाह को बहिर्विवाह पद्धति कहा जाता था।

11. बहुपति प्रथा ब्राह्मणों में अमान्य हो गई थी लेकिन हिमालय क्षेत्र में प्रचलन में थी।

12. वर्ण व्यवस्था का उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है।

13. धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों के अनुसार आदर्श जीविका के लिए समाज को चार वर्गों में बाँटा गया था। 

14. वर्ष 1919 में वी एस सुकथांकर के नेतृत्व में महाभारत से जुड़ी एक महत्वपूर्ण परियोजना की शुरुआत हुई। 

15. शास्त्रों के मुताबिक राजा क्षत्रीय बनते थे। 

16. दक्कन के गौतमी पुत्र सिरी-सातकनि सातवाहन वंश के शक्तिशाली शासक थे।

17. मनुस्मृति में कुल आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया गया है।

18. आरंभिक समाज में यायावर पशुपालकों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था।

19. ब्राह्मणों ने जिन वर्गों को सामाजिक प्रणाली में शामिल नहीं किया, उन वर्गों को उन्होंने अस्पृश्य कहकर संबोधित किया। 

20. चांडाल जाति के लोगों को देखना भी अशुभ माना जाता था।

21. तमिलकम प्राचीन क्षेत्र में दानशीलता की अधिक प्रशंसा की जाती थी।

22. पुरातत्त्ववेत्ता बी. बी. लाल द्वारा उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर नामक गाँव के उत्खनन में प्राप्त किए गए प्रमाण-

पुरातत्त्ववेत्ता बी. बी. लाल को साल 1951-52 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में उत्खनन के दौरान आबादी स्तरों के साक्ष्य मिले जिनमें से दूसरे और तीसरे स्तर को विशेष माना है, जो इस प्रकार हैं-

(क) दूसरे स्तर के बारे में उन्होंने बताया है कि आवास घरों की कोई परियोजना निश्चित रूप से तय नहीं थी। कुछ घरों की दिवारें कच्ची मिट्टी के ईंटों से बनी थी तो कुछ सरकंडे से जिन पर मिट्टी का लेप लगा होता था।   

(ख) तीसरे स्तर के बारे में उन्होंने बताया है कि आवास घर कच्ची और पक्की दोनों प्रकार के ईंटों से बने होते थे। यहाँ गंदे पानी को बाहर निकालने की व्यवस्था भी की गई थी जिसके लिए शोषक-घट और ईंटों की नालियाँ बनाई गईं थीं।  

23. धर्मसूत्रों और शर्मशास्त्रों के अनुसार आदर्श जीविका से जुड़े नियम की व्याख्या-

धर्मसूत्रों और शर्मशास्त्रों में आदर्श जीविका से जुड़े अनेक नियम मिलते हैं। इनमें आदर्श जीविका को जन्म आधारित कुछ इस प्रकार बताया गया है- 

(क) ब्राह्मणों का कार्य वेदों का अध्ययन करना, वेदों की शिक्षा देना, दान देना-लेना और यज्ञ करवाना था।  

(ख) क्षत्रियों का कार्य युद्ध में शामिल होना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, वेद पढ़ना, दान-दक्षिणा देना, यज्ञ करवाना, सत्य का पक्षधर बनना आदि था।   

(ग) वैश्यों का कार्य कृषि करना, पशुपालन करना (गौपालन) तथा व्यापार विनिमय करना था। 

(घ) वहीं शूद्रों का कार्य उपर्युक्त तीनों वर्णों की सेवा करना था। 

इन नियमों को लागू करने के लिए ब्राह्मणों ने तीन नीतियाँ अपनाईं थीं-

पहली नीति के अनुसार ब्राह्मणों ने बताया कि वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति एक दैवीय व्यवस्था है। 

दूसरी नीति के तहत राजाओं पर वर्ण व्यवस्था के नियमों का पालन करवाने के लिए दबाव डाला जाता था।

तीसरी नीति के अनुसार लोगों को विश्वास दिलाया गया कि व्यक्ति की प्रतिष्ठा जन्म आधारित है। 

24. मनुस्मृति में दिए गए चंडालों के कर्तव्यों की आलोचना-

मनुस्मृति में चंडालों के कर्तव्यों के विषय में निम्नलिखित बातें बताई गई हैं-

(क) चंडाल गाँव और नगरों से बाहर रहते थे। वे अपना गुजारा मरे हुए लोगों के वस्त्र, लोहे के आभूषण तथा फेंके हुए बर्तनों का उपयोग करके करते थे।  

(ख) चीनी यात्री ह्वेनसांग का कहना है कि सफाई करने वाले लोग नगर से बाहर रहते थे।

(ग) जिनका कोई नहीं होता था उनका अंतिम संस्कार चंडाल करते थे। रात के समय इनका नगरों तथा गाँवों में जाना वर्जित था। 

(घ) उच्च वर्ग के लोग इनकी परछाई से अपवित्र न हो जाए इसलिए अस्पृश्यों को सड़क पर करताल बजाकर चलना पड़ता था।  

25. महाभारत की भाषा और विषय-वस्तु की व्याख्या-

महाभारत मूल रूप से संस्कृत में रचित है लेकिन यह संस्कृत भाषा वेदों और शास्त्रों की भाषा से बहुत हद तक सरल है। इस महाग्रंथ की विषय-वस्तु मुख्य रूप से दो हैं। पहला है आख्यात्मक विषय-वस्तु जोकि कई कहानियों का संकलन है। ये कहानियाँ समाज के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाती हैं। दूसरा है उपदेशात्मक विषय-वस्तु जिसमें सामाजिक विचार-व्यवहार के पैमाने प्रतिबिंबित किए गए हैं। ये विचार-व्यवहार उस समय के वर्णों और जातियों के लिए बनाए गए थे। यह भाग खुद में सीमित नहीं है क्योंकि इसमें कुछ कहानियाँ भी जुड़ी हुई हैं। 

26. प्राचीनकाल में अछूतों के जीवन का वर्णन-

उस समय अछूतों की स्थिति इतनी दयनीय थी कि मनुष्य आज भी हैरान होते हैं। ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था के मुताबिक समाज को चार वर्णों में विभाजित किया जिसमें स्वयं को सबसे उच्च दर्जा दिया फिर क्षत्रियों को सुरक्षा के लिए चुना और वैश्यों तथा शूद्रों को निम्न श्रेणी का माना और उन्हें सेवा के लिए चुना लेकिन बाद में सिर्फ शूद्रों को अछूत कहा जाने लगा। अंत में उन्हें समाज से धीरे-धीरे दूर कर दिया गया। यज्ञ करने वाले लोग अछूतों का छुआ भोजन नहीं खाते थे। उस समय मरे हुए जानवरों को छूने वाले, यज्ञ न करने वाले और शवों का अंतिम संस्कार करने वाले लोगों को ‘चंडाल’ कहा जाता था। इन चंडालों को गाँव और नगरों के बाहर रहना पड़ता था क्योंकि उच्च वर्ण के लोग उन्हें देखना भी पसंद नहीं करते थे। उच्च वर्ण के लोगों को अपने आने का संदेश देने के लिए ये लोग सड़क पर करताल बजाकर चला करते थे। इस प्रकार उस समय ये लोग दमित जीवन जिया करते थे।       

27. “जाति प्रथा के भीतर आत्मसात होना बहुधा एक जटिल प्रक्रिया” कैसे थी?

आरंभिक समाज में जाति प्रथा एक जटिल प्रक्रिया इसलिए थी क्योंकि उस समय समाज को मुख्य रूप चार वर्णों में बाँटा गया था जिसे परिवर्तित करना आसान नहीं था क्योंकि यह व्यवस्था जन्म आधारित थी कि जो जिस वर्ण या जाति में जन्म लेता वो अंत तक उसी का होकर रहा जाता। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं- सातवाहन शासक ब्राह्मण थे जबकि उस समय केवल क्षत्रीय ही राजा बन सकते थे। राजा बनने के बाद भी सातवाहन शासक ब्राह्मण ही रहे क्षत्रीय नहीं कहलाए। ऐसे ही बौद्ध धर्म के अनुसार मौर्य शासक क्षत्रीय थे लेकिन ब्रह्मणीय वर्ण व्यवस्था के अनुसार वे निम्न कुल के माने गए। इस प्रकार जाति प्रथा के भीतर आत्मसात होना बहुधा एक जटिल प्रक्रिया ही थी।        

28. महाभारत में वर्णित संपत्ति एवं अधिकार-

महाभारत के अनुसार दुर्योधन ने पांडवों की संपत्ति हड़पने के लिए ‘चौसर’ का आयोजन किया जिसमें पांडव अपनी संपूर्ण संपत्ति के साथ-साथ अपनी पत्नी द्रौपदी को भी हार गए। उस दौरान द्रौपदी ने अपने अधिकार से जुड़े कई प्रश्न उठाए थे जिससे यह स्पष्ट होता है कि महाकाव्यों और धर्मसस्त्रों में भी संपत्ति और स्वामित्व को लेकर प्रश्न उठाए गए थे। तत्कालीन समय में स्त्री और पुरुषों के अधिकार निम्नलिखित हैं-    

(क) आरंभिक समय में युवतियों को संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता था लेकिन विवाह के समय उन्हें दिया गया समान (उपहार) ‘स्त्रीधन’ कहलाता था जिसपर सिर्फ महिलाओं का आधिपत्य होता था। अंत में इसे सिर्फ उनकी संतान ही प्राप्त कर सकती थी।    

(ख) मनुस्मृति के अनुसार पैतृक संपत्ति सभी पुत्रों में समान रूप से बाँटी जाती थी लेकिन ज्येष्ट पुत्र को संपत्ति का विशेष हिस्सा प्राप्त होता था।   

(ग) उस समय प्रभावती गुप्त और धनी घर की स्त्रियाँ ही संसाधनों पर अपना स्वामित्व रखती थी लेकिन अन्य स्त्रियाँ अपने पति को बताए बिना धन संचयन नहीं कर सकती थीं।  

(घ) मनुस्मृति में पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए संपत्ति से जुड़े अधिकारों को प्राप्त करने के विभिन्न नियम बताए गए थे जिसमें पुरुषों को विशेष महत्व दिया गया था। पुरुष विरातसत के साथ-साथ जीत द्वारा, निवेश द्वारा, खोज, क्रय, सज्जनों द्वारा दी गई भेंट और कार्यों द्वारा सात तरीके से धन अर्जित कर सकते थे। महिलाओं के साथ ऐसा नहीं था वे सिर्फ स्त्रीधन ही प्राप्त कर पाती थीं।       

29. महाभारत, बंधुता और सामाजिक संबंध-

बंधुता और सामाजिक संबंधों में कई तरह की भिन्नताएँ पाई जाती हैं, इनका वर्णन कुछ इस प्रकार है- 

पारिवरिक व्यवस्था- आरंभिक सामाजिक व्यवस्था में परिवार के लिए ‘कुल’ और बांधवों के एक बड़े समूह के लिए ‘जाति’ शब्द का उपयोग किया जाता था। वहीं परिवार के बड़े समूह को संबंधी कहा जाता था, जिसे तकनीकी भाषा में जाति समूह कहा गया।     

पितृवंशिक व्यवस्था- पिता की तरफ से चलने वाली वंश परंपरा पितृवंशिक व्यवस्था कहलाती है और माता की तरफ से चलने वाली वंश परंपरा मातृवंशिक व्यवस्था कहलाती है। उदारण के लिए महाभार पितृवंशिक व्यवस्था के बदलते स्वरूप की कहानी कहता है, जिसमें कुरु वंश के कौरवों और पांडवों के बीच सत्ता तथा भूमि के लिए रचे गए षड्यंत्र और संघर्ष के साथ-साथ पांडवों की जीत को सत्य की जीत के रूप दर्शाया गया है। इस महाकाव्य में साफ-साफ बताया गया है कि पिता के बाद उसका पुत्र ही संपूर्ण संपत्ति का उत्तराधिकारी बनेगा। फिर भी इस वयस्था में कुछ भिन्नताएँ थीं, जो निम्न प्रकार से हैं- 

(क) तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में कभी-कभी सगे-संबंधी भी उतराधिकारी के रूप में अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते थे। 

(ख) अगर किसी राजा का पुत्र नहीं होता था तो भाई भी राजसिंहासन पर बैठ जाता था। 

(ग) ऐसा नहीं है कि स्त्रियाँ व्यवस्था के खिलाफ नहीं गईं। कई बार ऐसी स्थितियाँ भी आईं जब स्त्रियों ने प्रशासन व्यवस्था को अपने अनुसार संचालित किया। इस श्रेणी में प्रभावती गुप्त को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है  

30. जाति और सामाजिक गतिशीलता तथा एकीकरण-

समय बदलने के साथ-साथ जो पहले चार वर्ण थे वो जातियों में बदल गए। जिसके बाद बहुत सी जातियाँ हो गईं जिन्हें जन्म आधारित रूप में स्वीकार किया गया। जो जिस जाति में जन्म लेता वो अंत तक उसी जाति का होकर रहता है। वहीं कई लोगों को उनके व्यवसाय के आधार पर बाँटा गया। एक अभिलेख में मंदसौर के रेशम बुनकरों का जिक्र भी किया गया है। इस अभिलेख में यह भी बताया गया है कि ये लोग गुजरात से आकर बसे थे। इन व्यापारियों की भी श्रेणियाँ थी जो व्यापार के साथ-साथ धार्मिक मान्यताओं में भी अपने भाईचारे की पहचान कराती थी। 

एकीकरण 

उस दौरान ऐसे समुदाय भी थे जिन्होंने एकता और अखंडता हो महत्व दिया। इसलिए उन पर ब्राह्मणीय विचारों का कोई असर नहीं पड़ा। ऐसे समुदाय के लोगों को वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत शामिल नहीं किया गया। संस्कृत के ज्यातर साहित्यों में ऐसे समुदायों को असभ्य और पशु के समान बताया गया है। इसमें से अधिकतर लोग वनों में रहकर अपना जीवन कंदमूल फल खाकर बिताते थे। एकलव्य निषाद वर्ग से संबंध रखते थे और निषदों को इसी समुदाय का हिस्सा माना जाता था जिन्हें उस समय किसानी के कार्यों में नहीं लगाया जा सकता था। उन्हें हमेशा शक की निगाहों से देखा जाता था जिसमें मुख्य रूप से यायावर पशुपालक शामिल थे। वहीं जो लोग संस्कृत नहीं जानते थे या संस्कृत बोल नहीं पते थे उन्हें मलेच्छ घोषित कर दिया जाता था लेकिन ऐसे में किसी प्रकार के लेन-देन के लिए अन्य भाषा का उपयोग किया जाता था। मध्य एशिया से आने वाले विदेशी आक्रांताओं को ब्राह्मणों ने मलेच्छ कहकर संबोधित किया। 

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