इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक- 3 यानी भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग- 3 के अध्याय- 11 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन (सविनय अवज्ञा और उससे आगे) के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 11 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 History Book-3 Chapter-11 Notes In Hindi
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अध्याय- 11 “महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन” (सविनय अवज्ञा और उससे आगे)
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | इतिहास |
पाठ्यपुस्तक | भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-3 |
अध्याय नंबर | ग्यारह (11) |
अध्याय का नाम | महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन (सविनय अवज्ञा और उससे आगे) |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-3
अध्याय- 11 “महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन” (सविनय अवज्ञा और उससे आगे)
एक युग के उद्घोषक के रूप में गाँधी
- गाँधी स्वतंत्रता संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाने वाले सर्वाधिक प्रभावशाली तथा सम्मानित नेताओं में से एक थे। इसलिए इन्हें राष्ट्र पिता भी कहा गया।
- मोहनदास करमचंद गाँधी दो दशक दक्षिणी अफ्रीका में रहने के बाद अपनी जन्मभूमि जनवरी 1915 में वापस लौटे थे।
- दक्षिण अफ्रीका वे एक वकील के रूप में गए थे लेकिन कुछ समय बाद वे दक्षिण अफ्रीका के भारतीय समुदाय के नेता बन गए।
- जब वे 1915 में भारत आए तो उन्हें 1893 ई. की तुलना में अब का भारत राजनीतिक दृष्टि से अधिक सक्रिय लगा।
- 1905-07 में स्वदेशी आंदोलन ने व्यापक रूप से मध्य वर्गों के बीच विस्तार किया। इस आंदोलन ने लाल, बाल और पाल के नाम से प्रसिद्ध नेताओं को जन्म दिया। इन तीनों नेताओं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का समर्थन किया।
- गाँधी जी के राजनीतिक गुरु उस दौरान गोपालकृष्ण गोखले थे जोकि कांग्रेस के ‘उदारवादी’ समूह का हिस्सा थे। इन्हीं की सलाह पर गाँधी जी ने ब्रिटिश भारत की भूमि और यहाँ के लोगों को समझने के लिए एक साल तक भारत का भ्रमण किया था।
- उन्हें ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ के उद्घाटन समारोह में दक्षिण अफ्रीका में किए गए कार्यों के आधार पर फरवरी 1916 में आमंत्रित किया गया था। इस समारोह में ऐनी बेसेंट जैसे कांग्रेस के कुछ नेता भी शामिल थे।
- उन्होंने कहा कि “हमारे लिए स्वशासन का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक हम किसानों से उनके श्रम का लगभग सम्पूर्ण लाभ स्वयं और अन्य लोगों को लेने की अनुमति देते रहेंगे। हमारी मुक्ति सिर्फ किसानों के द्वारा ही हो सकती है..।”
- दिसंबर 1916 में कांग्रेस के हुए वार्षिक अधिवेशन में आए एक किसान ने गाँधी जी को अंग्रेजी नील उत्पादकों द्वारा किसानों के प्रति किए जाने वाले अन्याय और शोषण के बारे में बताया।
जन नेता रूप में गाँधीजी
- गाँधी जी ने किसानों, गरीबों और मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए अनेक प्रयास किए। उनके इन्हीं कठिन प्रयासों के कारण उन्हें लोग ‘गाँधी बाबा’, ‘गाँधी महाराज’ और ‘महात्मा’ कहने लगे।
- आम लोग उनके प्रशंसक इसलिए बन गए थे क्योंकि वे उन्हीं की तरह वस्त्र धारण करते थे, उन्हीं की तरह साधारण जीवन जीते थे और उन्हीं की भाषा में बात करते थे।
- उन्होंने राष्ट्रीयवादी संदेश का संचार औपनिवेशिक अंग्रेजी भाषा के स्थान पर मातृ भाषा के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
- उनकी खुद की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी लेकिन फिर भी गाँधीवादी राष्ट्रवाद का विकास बहुत हद तक उनके अनुयायियों पर निर्भर था।
- 1917 और 1922 के बीच गाँधी से एक बहुत ही प्रतिभाशाली वर्ग जुड़ा था, जिसमें मुख्य रूप से महादेव देसाई, वल्लभ भाई पटेल, जे. बी. कृपलानी, सुभाष चंद्र बोस, अबुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, गोविंद वल्लभ पंत और सी. राजगोपालाचारी शामिल थे।
- उनका मत था कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए पहले भारतीयों को बाल विवाह और छूआ-छूत जैसी बुराइयों से मुक्त होना पड़ेगा।
- उन्होंने विदेशी वस्त्रों के स्थान पर देशी वस्त्रों (खादी) को महत्व दिया। इन्हीं सब कारणों ने उन्हें जनता का नेता बना दिया।
राष्ट्रीय आंदोलनों की शुरुआत
असहयोग आंदोलन की शुरुआत
- 1918 में गाँधी ने गुजरात में दो अभियान शुरू किए, पहला उन्होंने अहमदाबाद की कपड़ा मीलों में कामगारों के लिए कार्य करने हेतु बेहतर स्थिततियों की माँग की और दूसरा खेड़ा में फसल नष्ट हो जाने पर राज्य के किसानों का लगान (कर) माफ करने की माँग की।
- उस दौरान 1914-18 के प्रथम विश्व युद्ध के कारण अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था वहीं 1919 में ‘रॉलेट एक्ट’ के तहत बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी। उस समय पंजाब जाते समय गाँधी जी को कैद कर लिया गया।
- 1919 में ही जलियाँवाला बाग में लोगों की एक भीड़ पर अंग्रेजी अधिकारी ‘जनरल डायर’ के आदेश पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवा दीं, जिसमें 400 से भी अधिक लोग मारे गए थे। इस नरसंहार को ‘जलियाँवाला बाग हत्याकांड’ के नाम से जाना जाता है।
- इस तरह रॉलेट सत्याग्रह से ही गाँधी जी एक सच्चे नेता बन गए और इसकी सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने भारतीयों से अंग्रेजी शासन के खिलाफ असहयोग करने की माँग की।
- अपने संघर्ष को एक विस्तृत रूप देने के लिए उन्होंने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और इसे असहयोग आंदोलन में मिलाने की कोशिश भी की।
- विद्यार्थियों ने अंग्रेजी सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया, वकीलों ने वकालत करनी छोड़ दी थी, वहीं कई कस्बों-नगरों में मजदूरों द्वारा हड़ताल की जा रहा थी।
- सरकारी आकड़ों के अनुसार साल 1921 में लगभग 396 हड़तालें हुई थीं जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्य दिवसों की हानी हुई थी।
असहयोग आंदोलन की समाप्ति और नमक सत्याग्रह
- 1857 के विद्रोह के बाद ये वो समय था जब भारत में पहली बार असहयोग आंदोलन की वजह से अंग्रेजी शासन की नींव हिली थी।
- जहाँ अवध के किसानों ने कर देने से मना कर दिया वहीं कुमाऊँ के किसानों ने अंग्रेजी अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया।
- फरवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत (जिसे आज उत्तर प्रदेश कहा जाता है) के चौरी-चौरा में एक पुलिस स्टेशन पर हमला कर उसमें आग लगा दी, जिसमें कई पुलिस वाले जलकर मर गए। इस हिंसात्मक कार्यवाही के कारण गाँधी जी को असहयोग आंदोलन वापस लेना पड़ा।
- उस दौरान हजारों लोगों की गिरफ्तारियाँ की गईं। गाँधी जी को भी 1922 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
- फरवरी 1924 में जेल से छूटने के बाद उन्होंने समाज में खादी के प्रचार को बढ़ावा दिया ताकि किसानों को आर्थिक मजबूती प्रदान कर उन्हें स्वावलंबी बनाया जा सके।
- असहयोग आंदोलन समाप्त होने के बाद गाँधी जी ने लंबे समय तक समाज सुधार कार्यों पर ध्यान दिया था लेकिन साल 1928 के बाद उन्होंने पुनः भारतीय राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया।
- दिसंबर के आखिर समय, 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में नेहरू को अध्यक्ष बनाकर पहली बार युवा पीढ़ी का नेतृत्व सौंपा गया था और ‘पूर्ण स्वराज’ तथा ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ की घोषणा की गई थी।
- 26 जनवरी 1930 के दिन अनेक स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया और देशभक्ति के गीत गाकर ‘स्वतंत्रता दिवस’ मनाया गया।
दांडी यात्रा
- सभी भारतीयों के लिए भोजन बनाने के लिए नमक का उपयोग अनिवार्य था लेकिन फिर भी घरेलू प्रयोग के लिए नमक बनाने से रोका गया और दुकानों से ऊँचे दामों पर नमक खरीदने के लिए विवश किया जाने लगा।
- अंत में महात्मा गाँधी ने नमक के इस अलोकप्रिय कानून को तोड़ने के लिए एक यात्रा करने का विचार कर उसकी घोषणा कर दी। ‘नमक यात्रा’ की सूचना उन्होंने वाइसराय लार्ड इर्विन को पहले ही दे दी थी।
- 12 मार्च 1930 को महात्मा गाँधी ने अपने आश्रम साबरमती से अपने अनुयायियों के साथ समुद्र की तरफ चलना आरंभ किया था और लगभग तीन हफ्ते में दांडी पहुँचकर इस यात्रा को पूरा किया। वहाँ उन्होंने नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा।
- भारत के और भागों में भी इसी तरह नमक यात्राएँ आयोजित की गईं।
- गाँधी जी की नमक यात्रा निम्नलिखित तीन कारणों से प्रभावशाली थी-
- नमक यात्रा की घटना के कारण महात्मा गाँधी की वैश्विक छवि उभरी। इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज प्रदान किया।
- यह पहली ऐसी राष्ट्रीय गतिविधि थी जिसमें महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
- इस यात्रा के कारण अंग्रेजों को यह मालूम चला कि उनका राज अब ज़्यादा दिनों तक नहीं टीक पाएगा।
गोल मेज सम्मेलन (1930)
- भारतीय को सत्ता में भागीदार बनाने के डर से ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया।
- ‘पहला गोलमेज सम्मेलन’ नवंबर 1930 में आयोजित किया गया, जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं थे।
- जेल से छूटने के बाद वायसराय के साथ उनकी लंबी बैठक हुई जिसे ‘गाँधी-इर्विन समझौता’ कहा जाता है।
- गाँधी-इर्विन समझौते में सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस लेने, सभी कैदियों की रिहाई देने और नमक बनाने की अनुमति जैसे प्रमुख शर्तें शामिल थीं।
- दूसरा गोलमेज सम्मेलन 1931 में लंदन में हुआ जिसमें महात्मा गाँधी ने कॉंग्रेस का नेतृत्व किया।
- 1953 में भारत लौटने के बाद गाँधी जी ने वायसराय लॉर्ड विलिंग्टन से मिलने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से जवाब न मिलने के कारण उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया।
- कांग्रेस मंत्रिमंडलों के सत्ता में आने के दो साल बाद सितंबर 1939 को दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया।
- मार्च 1940 में मुस्लिम लीग ने ‘पकिस्तान’ के नाम से एक पृथक राष्ट्र की माँग की थी।
- 1942 में चर्चिल ने एक अपने मंत्री सर स्टेफर्ड क्रिप्स को गाँधी और कांग्रेस के साथ समौता करने के लिए भारत भेजा था जिसे क्रिप्स मिशन के नाम से जाना जाता है।
भारत छोड़ो आंदोलन
- गाँधी ने तीसरा बड़ा आंदोलन ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ अगस्त 1942 में शुरू किया।
- 1945 में लेबर पार्टी की सरकार बनी थी जिसने भारत की आजादी का पक्ष लिया था।
- 1946 में प्रांतीय विधानसभा के लिए नए सिरे से चुनाव पूरे हुए, जिसमें ‘सामान्य श्रेणी’ में कांग्रेस को भारी सफलता मिली। मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। इसी वर्ष कैबिनेट मिशन भी भारत आया।
- 16 अगस्त 1946 को पाकिस्तान की स्थापना के लिए ‘प्रत्यकाश कार्यवाही दिवस’ का आह्वान किया गया।
- फरवरी 1947 को ‘लॉर्ड माउंटेबन’ को वायसराय नियुक्त किया गया। इन्होंने एक अंतिम प्रयास के रूप में वार्ताओं का दौरा किया। जब समझौते के लिए उनका ये प्रयास असफल हो गया, तो उन्होंने घोषणा कर दी कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी लेकिन विभाजन के साथ।
- 15 अगस्त को भारत पूर्ण रूप से ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हो गया और उस दौरान भारत के लोगों में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी।
- संविधान सभा में आयोजित की गई बैठक में सभा के अध्यक्ष ने गाँधी जी को राष्ट्रपिता के नाम से सम्मानित किया।
विभाजन की स्थिति और भारत
- विभाजन के शर्त पर मिली आजादी के कारण गाँधी जी 24 घंटे के उपास पर थे और वे किसी भी उत्सव में शामिल नहीं हुए थे।
- विभाजन जैसी फूट के कारण हिंदू-मुस्लिम हिंसा पूरी तरह से फैल चुकी थी।
- बंगाल में हुए दंगे को शांत करने के बाद गाँधी पुनः दिल्ली आ गए। 20 जनवरी को गाँधी जी पर हमला हुआ लेकिन फिर भी वे अपने कार्यपथ पर अडिग रहे।
- 26 जनवरी को एक ‘प्रार्थना सभा’ का आयोजन किया गया जिसमें बताया गया कि महात्मा गाँधी ने स्वतंत्रता दिवस कैसे मनाया था।
- दैनिक प्रार्थना सभा में 30 जनवरी की शाम को नाथूराम गोडसे नामक ब्राह्मण युवक ने गोली मारकर गाँधी जी की हत्या कर दी। उनकी मौत का समाचार सुनकर भारत ही नहीं बल्कि गैर-भारतीय भी हैरान थे।
गाँधी को समझना
- समकालीन राष्ट्रीय आंदोलन को समझने के लिए महात्मा गाँधी के अनुयायियों, सहयोगियों और प्रतिद्वंदीयों के लेखन और भाषण को महत्वपूर्ण स्त्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है।
- गाँधी जी के हरिजन समाचार-पत्र में प्रकाशित लोगों के पत्र और ‘ए-बंच-ऑफ-ओल्ड लेटर्स’ (नेहरू के पत्रों का एक संकलन) का भी स्त्रोत रूप में विशेष महत्व है।
- इसके अलावा अन्य स्त्रोत के रूप में आत्मकथाओं, गुप्त रिपोर्ट और समाचार-पत्रों को भी शामिल किया जाता है। इन स्त्रोतों के माध्यम से पूरे गाँधी युग और समकालीन राष्ट्रीय आंदोलन को विस्तृत रूप से समझा जा सकता है।
समयावधि अनुसार मुख्य घटनाक्रम
क्रम संख्या | काल | घटनाक्रम |
1. | 1915 | महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से लौटते हैं |
2. | 1917 | चंपारन आंदोलन |
3. | 1918 | खेड़ा (गुजरात) में किसान आंदोलन तथा अहमदाबाद में मजदूर आंदोलन |
4. | 1919 | रॉलट सत्याग्रह (मार्च-अप्रैल) |
5. | 1919 | जलियांवाला बाग हत्याकांड (अप्रैल) |
6. | 1921 | असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन |
7. | 1928 | बारदोली में किसान आंदोलन |
8. | 1929 | लाहौर अधिवेशन (दिसंबर) में “पूर्ण स्वराज” को कांग्रेस का लक्ष्य घोषित किया जाता है |
9. | 1930 | सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू; दांडी यात्रा (मार्च-अप्रैल) |
10. | 1931 | गाँधी-इर्विन समझौता (मार्च); दूसरा गोल मेज सम्मेलन (दिसंबर) |
11. | 1935 | गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में सीमित प्रातिनिधिक सरकार के गठन का आश्वासन |
12. | 1939 | कांग्रेस मंत्रिमंडलों का त्यागपत्र |
13. | 1942 | भारत छोड़ो आंदोलन शुरू (अगस्त) |
14. | 1946 | महात्मा गाँधी साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए नोआखली तथा अन्य हिंसाग्रस्त इलाकों का दौरा करते हैं |
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