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Class 12 Political Science Book-1 Ch-2 “सत्ता के समकालीन केन्द्र” Notes In Hindi

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Navya Aggarwal
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-1 यानी समकालीन विश्व राजनीति के अध्याय- 2 सत्ता के समकालीन केन्द्र के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 2 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 Political Science Book-1 Chapter-2 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 2 “सत्ता के समकालीन केन्द्र”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयराजनीति विज्ञान
पाठ्यपुस्तक समकालीन विश्व राजनीति
अध्याय नंबरदो (2)
अध्याय का नामसत्ता के समकालीन केन्द्र
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं 
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- समकालीन विश्व राजनीति
अध्याय-2 (सत्ता के समकालीन केन्द्र)

1- भारत ने पूर्व की ओर चलो की नीति वर्ष 1991 में अपनाई।

2- यूरोपीय संघ की स्थापना वर्ष 1992 में की गई। 

3- आसियान का पूर्ण रूप दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्र संगठन है। 

4- आसियान की स्थापना वर्ष 1967 में की गई।

5- यूरोपीय संघ की मुद्रा का नाम यूरो है।

6- व्यापार और आर्थिक सहयोग के लिए पश्चिमी यूरोपीय राज्यों ने यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन के मंच से शुरुआत की।

7- मार्शल लॉ के अंतर्गत अमेरिका ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

8- यूरोपीयन यूनियन की स्थापना के लिए ‘मास्ट्रिस्ट संधि’ पत्र पर हस्ताक्षर किए गए।

9- ब्रिक्स की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी।

10- चीन ने सुधारों के लिए खुले द्वार की नीति अपनाई।

11- डेनमार्क और स्वीडन ने मास्ट्रिस्ट संधि का विरोध किया।

12- चीन की साम्यवादी क्रांति माओ नेता के नेतृत्व में हुई।

13- आसियान की विशेषताएं- 

आसियान की स्थापना आर्थिक गति को तीव्र बनाने तथा इसके द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने के लिए इसकी स्थापना की गई थी। 

  1. दक्षिण-पूर्व एशिया की आर्थिक स्थिति को गति प्रदान करना। 
  2. दक्षिण-पूर्व एशिया के राज्यों में कानूनी नियमों तथा क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देना। 
  3. आसियान आपसी देशों के मध्य सहयोग का वातावरण तैयार करना। 
  4. आसियान देशों की अर्थव्यवस्था यूरोपीयन यूनियन, अमेरिका से छोटी है लेकिन इनके विकास की गति तेज़ है और ये इतनी तेज़ी से विकास करने वाला एक महत्वपूर्ण संगठन बन चुका है। 

14- चीन द्वारा उठाए गए क़दम और उसकी अर्थव्यवस्था का उत्थान-

1970 के दशक से ही चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था के उत्थान हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाए और अपनी नीतियों में परिवर्तन करना प्रारम्भ कर दिया। इसके साथ ही 1972 में चीन ने से अंतराष्ट्रीय संबंधों की शुरुआत की। अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए चीन ने निम्न कदम उठाए-

  1. चीनी प्रधानमंत्री ने वर्ष 1973 में कृषि, उद्योग, सेना, प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के लिए 4 प्रस्तावों की घोषणा की।
  2. चीन के तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने 1978 में खुले द्वार की नीति अपनाई। 
  3. चीन ने बाज़ार मूलक अर्थव्यवस्था को अपनाया तथा इसने अपनी अर्थव्यवस्था को शॉक थेरेपी के हत्थे नहीं चढ़ने दिया। 
  4. चीन ने विदेशी पूंजी में निवेश करके उच्चतर उत्पादों को प्राप्त किया। 

15- ऐसे सामान्य चिह्न जो यूरोपीय संघ को एक राष्ट्-राज्य का रूप देते हैं- 

  1. इस संघ का अपना एक झंडा, गान तथा स्थापना दिवस है। 
  2. यूरोपियन यूनियन ने वर्ष 1993 में एक एकीकृत बाजार का भी गठन किया। 
  3. इसकी अपनी एक अलग मुद्रा भी है जिसे ‘यूरो’ कहा जाता है। 
  4. संघ से सम्बंधित सभी चिह्नों एवं गान आदि का इसके सभी 12 सदस्य सम्मान करते हैं। 
  5. यूरोपीय संघ के देशों ने अन्य देशों के साथ विदेश नीति में भी कई देशो को सहयोग प्रदान किया है। 
  6. यूरोपीय संघ ने एक आर्थिक सहयोग वाली संस्था के बाद राजनैतिक रूप धारण किया। 

16- यूरोपियन यूनियन के आर्थिक और सैन्य प्रभाव- 

आर्थिक प्रभाव- 

  1. 2016 में यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रही है, वहीं यूरो ने डॉलर को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती दी है। 
  2. WTO में यूरोपियन यूनियन की हिस्सेदारी अमेरिका से भी अधिक रही है। 
  3. वहीं इसकी GDP अमेरिकी GDP के समान रही है, जो कि 17000 अरब डॉलर से भी अधिक थी। 
  4. यूरोपियन यूनियन का ही सदस्य देश फ्रांस सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य है। 

सैन्य प्रभाव-

  1. इसकी सैन्य शक्ति अमेरिका के बाद दूसरी बड़ी शक्ति है, वहीं अमेरिका के बाद यूरोपियन यूनियन का सैन्य बजट सबसे अधिक है। 
  2. यूरोपियन यूनियन के ही सदस्य देश फ्रांस, जिसके पास कुल 335 परमाणु हथियार हैं। 
  3. साथ ही विश्व में अंतरिक्ष विज्ञान तथा संचार प्रद्योगिकी के क्षेत्र में यूरोपीय संघ दूसरा स्थान रखता है। 

17- चीन की आर्थिक व्यवस्था में सुधार होने के बाद भी नकारात्मक परिणाम के कारण-

चीन ने नई आर्थिक नीति को अपनाया तथा 1998 में उद्योगों का निजीकरण कर दिया। चीन द्वारा अपनाई गई इस आर्थिक नीति का लाभ प्रत्येक तबके तक नही पंहुचा। इन आर्थिक सुधारों का प्रभाव कुछ समय बाद नकारात्मक दिखाई पड़ने लगा-

  1. ग्रामीण तथा शहरों में रहने वाले लोगों के मध्य आर्थिक दूरी बढ़ती ही जा रही थी। 
  2. आर्थिक सुधारों के बावजूद भी लोगों की बेरोजगारी कम नहीं हो रही थी। 
  3. चीन और ताइवान के बीच की मतभेद के चलते भी चीन को नकारात्मक परिणामों का सामना करना पड़ा।
  4. यह आशा भी की जा रही थी की ताइवान चीन के साथ आपसी मतभेदों को भुला कर इसकी अर्थव्यवस्था के साथ जुड़े, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 
  5. चीन छोटे-छोटे देशो के साथ समन्वय करने लगा, आसियान देशों को भी वित्तीय सहायता प्रदान कर अंतरष्ट्रीय स्तर एक महाशक्ति के रूप में उभरा। 
  6. चीन में व्यापक स्तर पर बेरोजगारी, भ्रष्टाचार तथा पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ने लगीं।  

18- सत्ता के वैकल्पिक केंद्र और विभिन्न देशो में समृद्ध अर्थव्यवस्था के रूप में बदलाव-

सोवियत संघ के विघटन के बाद वैश्विक स्तर पर सत्ता के वैकल्पिक केंद्रों ने अपने पैर जमाना शुरू कर दिया, जैसे- आसियान और यूरोपियन यूनियन, ब्रिकस। 

  1. ऐसे संगठनों का उदय अपने क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए ही किया गया था। जहां यूरोप की आर्थिक सहायता में यूरोपियन यूनियन का उदय हुआ, वहीं दक्षिण-पूर्वी एशिया में आसियान का गठन हुआ। 
  2. इन सगठनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में चले आ रहे आपसी मतभेदों को बातचीत से सुलझाने के प्रयास किए। आसियान ने शांति पूर्ण ढंग से देशों के मध्य चल रहे तनावों को कम करने का प्रयास किया। साथ ही पूर्वी एशिया में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए 1999 के बाद से हर वर्ष बैठक का आयोजन किया जाता है। 
  3. ब्रिक्स का प्रमुख उद्देश्य है, किसी भी देश की आंतरिक नीति में बिना हस्तक्षेप किए आपसी सहयोग और आर्थिक लाभ प्रदान करना। 
  4. हर वर्ष सम्मेलनों के माध्यम से ये संगठन अपने लक्ष्यों पर विचार विमर्श करते हैं। ब्रिक्स की 12वीं बैठक 2020 में रूस में हुई, जिसकी अध्यक्षता ब्लादिमीर पुतिन ने की। 

19- यूरोपियन यूनियन के प्रभाव को सीमित करने वाली घटनाएं-

यूरोपीय संघ अंतराष्ट्रीय स्तर पर, आर्थिक, राजनैतिक और कूटनीतिक तथा सैन्य क्षेत्र में व्यापक प्रभाव रखता है, किन्तु कई स्थानों पर यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों में कुछ मुद्दों पर आपसी सहमति बनते नहीं दिखाई दी-

  1. जैसे यूरोप के ही कुछ भागों में यूरोपियन यूनियन की मुद्रा ‘यूरो’ को लेकर ही कुछ सदस्यों के मध्य मतभेद रहे, जिसके चलते ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमन्त्री ने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के बाजार से दूर रखा। 
  2. इसके साथ ही यूरोप के कुछ सदस्य देश अमेरिका के गठबंधन में शामिल थे। 
  3. इराक पर अमेरिका के हमले के बाद, जर्मनी और फ्रांस ने अमेरिका के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया, वहीं ब्रिटेन के तात्कालिक प्रधानमंत्री अमेरीका के पक्ष में थे। 
  4. यूरोपियन यूनियन के ही सदस्य देश स्वीडेन और डेनमार्क ने मास्ट्रिस्ट संधि को मानने का भी विरोध किया था। 

20- आसियान की स्थापना के कारण एवं उद्देश्य- 

आसियान का पूरा नाम है दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन। यह संगठन उन राष्ट्रों से बना जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय या उससे पहले से उपनिवेशवाद झेल रहे थे। इन राष्ट्रों का आर्थिक और राजनीतिक तौर पर काफी शोषण किया गया और युद्ध की समाप्ति के बाद इन देशों ने भयंकर पिछड़ापन, गरीबी, मंदी का दौर देखा। इन देशों को सहयोग प्रदान करने के लिए तीसरी दुनिया और गुटनिरपेक्ष आंदोलनों से भी कुछ प्राप्त नहीं हुआ। इस सब के चलते 1967 में इंडोनेशिया, थाईलैंड, म्यांमार, फिलीपींस और सिंगापुर इन पाँचों देशों ने बैंकॉक घोषणा पर हस्ताक्षर कर आसियान का गठन किया। 

आसियान के मुख्य उद्देश्य-

  1. दक्षिण पूर्वी एशिया देशों के शांतिपूर्ण आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक विकास के लिए। 
  2. इन देशों में आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए। 
  3. क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का पालन। 
  4. अन्य मौजूद अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ समुचित सहयोग को बढ़ावा। 
  5. अंतररष्ट्रीय स्तर पर इन देशों को आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, प्रशासनिक हितों तथा पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देना। 

21- यूरोपीय संघ की स्थापना और प्रभाव-

दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप के देशों को यह महसूस होने लगा की यूरोप के क्षेत्रीय स्तर पर एक ऐसे संगठन के निर्माण की आवश्यकता है जो एक दूसरे को सहयोग प्रदान करे। यूरोप के देशों ने साझे प्रयासों के चलते समान सुरक्षा नीति तथा एक ही मुद्रा को चलने के लिए सहयोग बनाया। यूरोपियन यूनियन को बनाने के साझा प्रयास पहले से ही चले आ रहे थे, जिन्हें सोवियत संघ के विघटन के बाद गति मिली। इससे पहले 1949 में एक राजनैतिक यूरोपीय परिषद् का गठन हुआ। इसके बाद 1957 में यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी स्थापित की गयी। बाद में आगे चलकर यूरोपीय परिषद् ने राजनैतिक रूप धारण किया जो 1992 में आकर यूरोपीय संघ के रूप में स्थापित किया गया। इस सब के बाद आगे बढ़कर इसकी अपनी मुद्रा, झंडा एवं स्थापना दिवस भी है। 

यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव

  1. 2016 में विश्व में दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरी यूरोपियन यूनियन ने अमेरिका को भी इस मामले में चुनौती दी। 
  2. इसी वर्ष इसका सकल घरेलु उत्पाद 17000 अरब डॉलर से भी अधिक था। 
  3. यूरोपीय संघ का ही देश फ्रांस की सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्यता है। 
  4. इन देशों की आर्थिक शक्ति का प्रभाव केवल यूरोप पर ही नहीं है बल्कि एशिया के देशों पर भी देखा गया है।  

यूरोपीय संघ का सैन्य प्रभाव

  1. यूरोपियन यूनियन के ही सदस्य देश फ्रांस, जिसके पास कुल 335 परमाणु हथियार हैं। 
  2. साथ ही विश्व में अंतरिक्ष विज्ञान तथा संचार प्रद्योगिकी के क्षेत्र में यूरोपीय संघ दूसरा स्थान रखता है। 
  3. इसकी सैन्य शक्ति अमेरिका के बाद दूसरी बड़ी शक्ति है, वहीं अमेरिका के बाद यूरोपियन यूनियन का सैन्य बजट सबसे अधिक है। 

22- आसियान की एक आर्थिक संगठन के रूप में भूमिका- 

दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन का मुख्य उद्देश्य परस्पर आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया राज्यों में कानून प्रशासन को बनाए रखना। आसियान ने संघर्षों की बजाय आपसी बातचीत के माध्यम से राज्यों के मुद्दों को सुलझाने की बात की है। इसी के कारण आसियान ने लम्बे समय से चल रहे पूर्वी तिमोर के संघर्ष का अंत किया, साथ ही कम्बोडिया के विषय को भी सुलझाया। 

आसियान द्वारा पूर्वी एशिया को सहयोग हेतु हर वर्ष बैठकों का आयोजन करता है। हाल ही के कुछ वर्षों में भारत ने भी अपनी विदेश नीति से आसियान की ओर ध्यान दिया है, एशियाई देशों ने आसियान के साथ अपने निवेश को बढ़ाना शुरू कर दिया है, कुछ समय पूर्व ही भारत ने सिंगापुर, मलेशिया के साथ मुक्त व्यापार भी किया है। आसियान का लगातार अपने सदस्य राष्ट्रों, सहभागी राष्ट्रों तथा क्षेत्रीय संगठनों के साथ निरंतर संवाद भी इनकी नीति में ही समाहित है। आसियान एशिया के देशों को एक विस्तृत मंच प्रदान करता है। भारत जैसे बड़े राष्ट्र भी आसियान के साथ जुड़कर मुक्त व्यापार करना चाहते हैं। 

23- क्या जापान को महाशक्ति के रूप में देखा जा सकता है? 

जापान आने वाले समय में महाशक्ति के रूप में देखा जा सकता है-

  • इस समय प्रत्येक देश महाशक्ति बनने की होड़ में शामिल है। कई राज्यों ने अपने आप को इस काबिल बना लिया है कि वे आज महाशक्ति अमेरिका की आँखों में आखें डाल कर बात करते हैं। जापान भी ऐसे ही देशों में से एक है। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हथियार गिरा कर खत्म की गई। उसके बाद से ही जापान ने खुद को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर फिर से खड़ा किया। 
  • एशिया महाद्वीप का प्रमुख देश जापान कुल 6899 छोटे द्वीपों से मिल कर बना है। 
  • कई बड़े ब्रांड जैसे- पेनासोनिक, कैनन, ट्योटा, हौंडा आदि सभी जापानी ब्रांड हैं। 
  • संयुक्त राष्ट्र में जापान का 10% का बजट है। 
  • एशिया में एकलौता जापान ही समूह-7 के देशों में शामिल है। 
  • प्रद्योगिकी के क्षेत्र में जापान में बहुत बड़े पैमाने पर तरक्की हुई है।  

इस लिहाज़ से देखा जाए तो जापान आने वाले समय में अमेरिका जैसे बड़ी शक्ति को महाशक्ति के रूप में चुनौती दे सकता है। 

24- ब्रिक्स की स्थापना और भारत-  

ब्रिक्स (BRICS) शब्द का अर्थ है ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका। सबसे पहले ब्रिक्स का नाम ब्रिक था, जिसमें चार देश शामिल थे। इसकी स्थापना 2006 में रूस में की गई। इसमें 2009 में दक्षिण अफ्रीका के जुड़ने से इसका नाम ब्रिक्स हो गया। ब्रिक्स कोई अंतररष्ट्रीय संगठन नहीं है, यह केवल इन 5 देशों के मध्य परस्पर संधि का ही परिणाम है। इसके तहत ये सभी देश हर वर्ष आयोजित की गयी बैठकों में हिस्सा लेते हैं तथा आपसी हितों एवं सदस्यों के बीच आर्थिक सहयोग करने पर बल देते हैं। ब्रिक्स के सदस्य देशों ने मिलकर 2014 में चीन के शंघाई में न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की। प्रति वर्ष B-R-I-C-S इसी क्रम में ब्रिक्स की बैठक का आयोजन किया जाता है। 

भारत के लिए ब्रिक्स का महत्व-

  1. ब्रिक्स का प्रमुख उद्देश्य सदस्य देशों के मध्य व्यापार के सहयोग को बढ़ावा देना है। इसके द्वारा सदस्य राष्ट्रों के विकास को आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है, जिसमें भारत हर वर्ष हिस्सा लेता है। 
  2. भारत ने ब्रिक्स के मंच पर वैश्विक मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, अंतररष्ट्रीय संस्थानों में सुधार के मामलों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा पर भी अपने आवाज बुलंद कर सदस्य देशों को भी किया, साथ ही सम्पूर्ण विश्व तक अपना सन्देश पहुंचाया है।  
  3. भारत ने वर्ष 2021 में BRICS की मेजबानी की है। 
  4. न्यू डेवलपमेंट बैंक दवरा दिए गए पहले ऋण की मंजूरी से भारत के लिए नवीकरणीय, ऊर्जा फाइनेंसिंग स्कीम के तहत 250 मिलियन डॉलर का ऋण शामिल किया गया है। 
  5. न्यू डेवलपमेंट बैंक भारत की सतत विकास परियोजना के लिए सहायता प्रदान कर सकता है। 

25- भारत-चीन और अमेरिकी वर्चस्व- 

भारत एवं चीन इस समय एशिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्था में से एक है। दोनों ही देशों की अपनी जनसंख्या तथा विशाल भू- क्षेत्र मौजूद है। दोनों ही देशों ने व्यापक स्तर पर विकास किया है तथा आज जरूरतमंद देशों के लिए सहायता भी प्रदान कर रहे हैं। आज ये दोनों देश निम्नलिखित कारणों से विश्वशक्ति बनने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं-

  1. दोनों ही देश उदारीकरण, मुक्त व्यापार नीति और वैश्वीकरण के पक्ष में हैं। 
  2. दोनों की ही जनसँख्या विश्व में सबसे आगे है, जो मानव संसाधन प्रदान करती है। इनका विशाल बाज़ार भी अमेरिका जैसे बड़े पूंजीवादी देशों के सामन की खपत के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। 
  3. ये दोनों देश अपनी प्रौद्योगिकी और विज्ञान से सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करने की ताकत रखते हैं। 
  4. भारत और चीन मिलकर कई देशों को सहयोग प्रदान कर उनकी जरूरतों को पूरा कर उन्हें सहयोग प्रदान कर सकते हैं। 
  5. भारत और चीन दोनों ही देशो के पास आज के समय में अमेरिका के समान ही ताकतवर सैन्य शक्ति है जिसके आधार पर आज वैश्विक पटल पर अपना अलग स्थान बना पाने में सफल रहे हैं। 

इसलिए कहा जा सकता है की चीन तथा भारत दोनों ही देश आने वाले समय में अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देने की ताकत रखते हैं। 

26- यूरोपीय संघ और प्रभावशाली क्षेत्रीय संगठन बनाने वाली इसकी शक्तियां-

1992 में यूरोपीय संघ की स्थापना हुई एवं उसके पश्चात ये सम्पूर्ण विश्व में एक व्यापक संघ के रूप में उभरकर सामने आया, जिसने देखते ही देखते संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को वैश्विक ताकत के रूप में चुनौती दे डाली। निम्नलिखित कारण बताते हैं कि किस प्रकार यूरोपियन यूनियन ने हर क्षेत्र में अपनी ताकत का परिचय दिया-

  1. यूरोपीय संघ का 2017 में सकल घरेलु उत्पादन 17000 अरब डॉलर का रहा, जो अमेरिका के बिल्कुल निकटतम था। यह अंतररष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका के बाद सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा। 
  2. वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन में इसका योगदान अमेरिका से भी तीन गुना ज्यादा रहा। 
  3. वैश्विक स्तर पर यूरोपीय संघ का सैन्य बजट अमेरिका से दूसरे नंबर पर था। यह विश्व में अन्य सैन्य शक्तियों को चुनौती देने की ताकत रखता था। 
  4. इसके सदस्य देशों में से एक फ्रांस के पास कुल 335 परमाणु हथियार मौजूद थे एवं फ्रांस सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य भी है। 
  5. इसके साथ ही कई अन्य सदस्य भी सुरक्षा परिषद् में अस्थाई सदस्य हैं। 
  6. इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव न केवल यूरोप पर है, इसके साथ-साथ अफ्रीका और एशिया के देशों पर भी है। 

इन कारणों से ही यूरोपियन यूनियन ने वैश्विक स्तर पर अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दी है और कहा जा सकता है की यह एक प्रभावकारी क्षेत्रीय संगठन है। 

27- भारत और चीन के विवाद एवं इन्हें सुलझाने के तरीके-

भारत और चीन के मध्य विवादों के कई कारण हैं, जिनकी चर्चा निम्नलिखित है-

  1. सीमा विवाद- भारत चीन के मध्य सीमा को लेकर विवाद बेहद पुराना है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद और अक्साई चीन विवाद शामिल है। अक्साई चीन इस समय चीन के पास है और अरुणाचल प्रदेश भारत के पास। 
  2. दोनों देशों के मध्य जल विवाद भी है। यह विवाद ब्रह्ममपुत्र नदी से सम्बंधित है। 
  3. चीन पकिस्तान के परमाणु हथियारों में आर्थिक सहायता मुहैया करता है। भारत इसे वैश्विक सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं मानता। 
  4. साथ ही दक्षिण एशिया के देशों बांग्लादेश और म्यांमार से चीन के सैन्य संबंधों को भी भारत सही नहीं ठहराता। 
  5. सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य होने के नाते, भारत की स्थाई सदस्यता का मुख्य विरोधी चीन ही है। 

इन सभी विवादों के होते हुए भारत चीन के रिश्तों में सुधार कर पाना कठिन दिखाई पड़ता है, लेकिन द्विपक्षीय वार्ता एवं सैन्य अभ्यासों के द्वारा इन विवादों को सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है। दोनों ही देशों के मध्य शांतिपूर्ण समाधान का रास्ता निकाला जा रहा है। इन मुद्दों को सम्मेलनों में आपसी बातचीत से ही सुलझा पाना संभव है। 

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