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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय
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नात्सीवाद और हिटलर का उदय
अध्याय 3
प्रश्न 1– वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएं थीं?
उत्तर – साम्राज्यवादी जर्मनी की पराजय और सम्राट के पदत्याग ने वहां की संसदीय पार्टियों को जर्मन राजनीतिक व्यवस्था को एक नए सांचे में ढालने का अच्छा मौका उपलब्ध कराया। वाइमर में एक राष्ट्रीय सभा की बैठक बुलाई गई और संघीय आधार पर एक लोकतांत्रिक संविधान पारित किया गया। लेकिन यह नया गणराज्य खुद जर्मनी के ही बहुत सारे लोगों को रास नहीं आ रहा था। इसकी एक वजह तो यही थी कि पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद विजयी देशों ने उस पर बहुत कठोर शर्तें थोप दी थी।
मित्र राष्ट्रों के साथ वर्साय मैं हुई शांति – संधि जर्मनी की जनता के लिए बहुत कठोर और अपमानजनक थी। इस संधि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े। युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को जिम्मेदार ठहराया गया। बहुत सारे जर्मनों ने ना केवल इस हार के लिए बल्कि वसीय में हुए इस अपमान के लिए भी वाइमर गणराज्य को ही जिम्मेदार ठहराया।
छ: अरब पाउंड का जुर्माना लगाया गया। गणराज्य को युद्ध में पराजय के अपराधबोध और राष्ट्रीय अपमान का बोझ तो ढोना ही पड़ा, हर्जाना चुकाने की वजह से आर्थिक स्तर पर भी वह अपंग हो चुका था। जिसके कारण वाइमर गणराज्य की प्रतिष्ठा को बहुत हानि पहुंची।1929 में आर्थिक मंदी बढ़ी जिसे रोकने में वाइमर गणराज्य पूरी तरह से असफल रहा।
प्रश्न 2– इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?
उत्तर – आर्थिक संकट – राजनीतिक रेडिकलवादी विचारों को 1923 के आर्थिक संकट से और बल मिला। जर्मनी ने पहला विश्व युद्ध मोटे तौर पर कर्ज लेकर लड़ा था और युद्ध के बाद तो उससे स्वर्ण मुद्रा में हर्जाना भी भरना पड़ा। इस दोहरे बोझ से जर्मनी के स्वर्ण भंडार लगभग समाप्त होने की स्थिति में पहुंच गए थे। 1923 में जर्मनी ने कर्ज और हर्जाना ना चुकाने से इनकार कर दिया। इसके जवाब में फ्रांसीसीयों ने जर्मनी के मुख्य औद्योगिक इलाके रूर पर कब्जा कर लिया। जर्मन सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा छाप दी कि उसकी मुद्रा मार्क का मूल्य तेजी से गिरने लगा।
अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24000 मार्क के बराबर थी जो जुलाई में 3,53,000 मार्क, अगस्त में 46,21,0000 मार्क तथा दिसंबर में 9,88,60,000 मार्क हो गई। जैसे-जैसे मार्क की कीमत गिरती गई, वैसे-वैसे जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छूने लगीं।
वर्साय की संधि – जर्मनी को प्रथम विश्व युद्ध में हराने के बाद वर्साय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया।
हिटलर का उदय – हिटलर एक उत्कृष्ट वक्ता था। उसका जोश और उसके शब्द लोगों को हिला कर रख देते थे। वह अपने भाषणों में एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना,वर्साय संधि में हुई नाइंसाफी के प्रतिरोध और जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का आश्वासन देता था। उसका वादा था कि वह बेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा। उसने आश्वासन दिया कि वह देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराएगा और तमाम विदेशी साजिशों का मुंह तोड़ जवाब देगा। हिटलर के प्रति भारी समर्थन दर्शाने और लोगों में परस्पर एकता का भाव पैदा करने के लिए नात्सियों में बड़ी- बड़ी रैलियां और जनसभाएं आयोजित की।
वाइमर गणराज्य की विफलता – राजनीतिक स्तर पर वाइमर गणराज्य एक नाजुक दौर से गुजर रहा था। भाई मैं सविधान में कुछ ऐसी कमियां थी जिनकी वजह से गेराज कभी भी अस्थिरता और तानाशाही का शिकार बन सकता था। इनमें से एक कमी आनुपातिक प्रतिनिधित्व से संबंधित थी। इस प्रावधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना लगभग नामुमकिन बन गया था। दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी। जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने, नागरिक अधिकार रद्द करने और अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था। अपने छोटे से जीवन काल में वाइमर गणराज्य का शासन 20 मंत्रीमंडलों के हाथों में रहा और उनकी औसत अवधि 239 दिन से ज्यादा नहीं रही। इस दौरान अनुच्छेद 48 का भी जमकर इस्तेमाल किया गया। पर इन सारे नुस्खों के बावजूद संकट दूर नहीं हो पाया। लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों का विश्वास खत्म होने लगा क्योंकि वह उनके लिए कोई समाधान नहीं खोज पा रहा था। राजनैतिक उथल-पुथल चारों तरफ छाई हुई थी। जर्मनी की लोकतंत्र में आस्था थी कि सब ठीक हो जाएगा।
प्रश्न 3– नात्सी सोच के खास पहलू कौन से थे?
उत्तर – हिटलर का मानना था कि शासन तानाशाही होना चाहिए। राज्य के लिए हैं, ना कि राज्य लोगों के लिए है। ये समाजवाद जैसी चीजों का जड़ से खत्म कर देना चाहता था। इनका मानना था कि युद्ध सही है और युद्ध में अपनाई जाने वाली शक्तियों का अच्छा प्रदर्शन होने पर यह उनकी प्रशंसा करता था। संसदीय संस्थानों को खत्म करने के विचार में था।
नाजीवाद यहूदियों का विरोधी था। नाजीवाद जर्मनी का विस्तार करना पता था और प्रथम विश्व युद्ध की बस्तियों को पुनः वापस लाना चाहता था।
प्रश्न 4– नातिस्यों का प्रोपेगेंडा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा?
उत्तर – यहूदियों के खिलाफ नातिस्यों के प्रोपेगेंडा के सफल होने के निम्नलिखित कारण हैं-
नात्सी शासन ने भाषा और मीडिया का बड़ी होशियारी से इस्तेमाल किया और उसका जबरदस्त फायदा उठाया। उन्होंने अपने तौर-तरीकों को बयान करने के लिए जो शब्द ईजाद किए थे वे न केवल भ्रामक बल्कि दिल दहला देने वाले शब्द थे।
यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने के लिए फिल्मों का प्रचार किया गया। ‘द एटरनल ज्यु’ इस सूची की सबसे कुख्यात फिल्म थी। परंपराप्रिय यहूदियों को खास तरह की छवियों में पेश किया जाता था। दाढ़ी बढ़ाई और कप्तान पहने दिखाया जाता था। उन्हें केंचुआ युहा जैसे नामों से पुकारा जाता था। हिटलर ने उन जर्मन लोगों के दिमाग में पहले से ही स्थान बना लिया जो उसे अपना मसीहा मानते थे और हिटलर द्वारा कही गई हर बात को मानने के लिए तैयार रहते थे।
प्रश्न 5- नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रांति के बारे में जानने के लिए अध्याय 1 देखें फ्रांसीसी क्रांति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बताएं!
उत्तर – नात्सी जर्मनी में प्रत्येक औरत-मर्द के लिए समान अधिकारों का संघर्ष गलत है। लड़कियों को यह कहा जाता था कि उनका फर्ज एक अच्छी मां बनना और शुद्ध रक्त वाले बच्चों को जन्म देना और उनका पालन – पोषण करना था। जो औरतें नस्ली तौर पर अवांछित बच्चों को जन्म देती थीं उन्हें दंडित किया जाता था। जबकि नस्ली तौर पर वांछित दिखने वाले बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को इनाम दिए जाते थे। निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली औरतों को सार्वजनिक रूप से निंदा की जाती थी। और उन्हें कड़ा दंड दिया जाता था। इस अपराधिक कृति के लिए बहुत सारी औरतों को ना केवल जेल की सजा दी गई बल्कि उनसे तमाम नागरिक सम्मान और उनके पति व परिवार को भी छीन लिए गए।
इसके विपरीत फ्रांसीसी क्रांति ने महिलाओं के जीवन में एक नई लहर लेकर आई। फ्रांसीसी क्रांति में महिलाओं की बराबर भूमिका देखने को मिली। वे राजनीतिक गतिविधियों में भी भाग लेने के लिए बढ़-चढ़कर आगे आने लगी। 1946 में इन्हें वोट देने का भी अधिकार प्राप्त हो गया।
प्रश्न 6– नातिस्यों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?
उत्तर – 28 फरवरी 1933 को जारी किए गए अग्नि अध्यादेश (फायर डिक्री) के जरिए अभिव्यक्ति, प्रेस एवं सभा करने की आजादी जैसे नागरिक अधिकारों को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दिया गया। 3 मार्च 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम पारित किया गया। इस कानून के जरिए जर्मनी में बकायदा तानाशाही स्थापित कर दी गई। नात्सी और ट्रेंड यूनियनो पर पाबंदी लगा दी गई।
अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना, पालिका पर कार्यपालिका का पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया। पूरे समाज को नातिस्यों के हिसाब से नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए। पहले से मौजूद हरि वर्दीधारी पुलिस और स्टॉम ट्पर्स के अलावा गेस्तापो एसएस सुरक्षा सेवा का भी गठन किया गया।
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