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वन महोत्सव पर निबंध (Essay on van Mahotsav in Hindi)

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Ekta Ranga

वन महोत्सव पर निबंध (van mahotsav essay hindi) – जब से औद्योगिकीकरण ने धरती पर अपने पांव पसारे तब से मानो ऐसा लगता है जैसे कि हर जगह इंडस्ट्रीज की बौछार हो गई है। जहां देखो वहां पर पेड़ की जगह इंडस्ट्री जरूर देखने को मिल जाएगी। एक समय था जब पेड़ों की संख्या बहुत अधिक मात्रा में हुआ करती थी। मैं हमेशा इसी ख्याल में डूब जाती हूँ कि पुराने ज़माने में लोग कितने खुशकिस्मत हुआ करते थे जो इतनी हरियाली के बीच रहा करते थे। पहले के लोग वन और पेड़-पौधों को भगवान के रूप में देखते थे। आज के समय और पुराने समय में रात दिन का फर्क़ आ गया है।

वन महोत्सव पर निबंध (Essay on van Mahotsav in Hindi)

आज मौसी के यहां पर नया फर्नीचर आने को था। मौसी और सभी परिवार वाले इस बात से बहुत खुश थे। जैसे ही फर्नीचर घर पर आया, सभी फर्नीचर को देखने के उमड़ पड़े। वह वाकई में बहुत सुंदर था। मेरी मौसी कह रही थी उनके घर का सारा फर्नीचर इको फ्रेंडली है। कि तभी मासी का बेटा तपाक से बोल पड़ा कि यह इको फ्रेंडली जरूर होंगे। परंतु इनको बनाने के लिए कितने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी जो हुई है। मेरे मासी के बेटे ने एकदम सही कहा था। आज के समय में हम घर में जितने भी फर्नीचर देखते हैं उनके लिए पेड़ों ने अपना खूब बड़ा बलिदान दिया है। प्रकृति तो हमेशा से ही मानवों के लिए अपना बलिदान देती आई है। परंतु हमने इसका हमेशा से दोहन ही किया है। तो आज का हमारा विषय वन महोत्सव पर आधारित है। आज हम जानेंगे कि वन महोत्सव का अर्थ क्या होता है। और वन महोत्सव का इतिहास और महत्व क्या है। तो आइये हम वन महोत्सव पर निबंध (Essay on van mahotsav in Hindi) हिंदी में पढ़ना शुरू करते हैं।

प्रस्तावना

बहुत साल पहले भगवान ने पृथ्वी को बनाया था। वह पृथ्वी जब भगवान को खाली सी लगने लगी तो ऐसे में भगवान ने धरती पर पेड़ पौधे और जंगल को बनाया। लेकिन अब भी भगवान को कुछ कमी लग रही थी इसलिए सोचा कि क्यों ना धरती पर मनुष्य भी उतार दिया जाए। भगवान ने ऐसा ही किया। पेड़ पौधे मनुष्य की जरूरत बन गए थे। उन्हें पेड़ों से खाना और फल फूल मिलने लगे। इंसान और पेड़ पौधें जंगलों में मिलजुल कर रह रहे थे।

लेकिन बदलते समय के साथ इंसानों को यह महसूस होने लगा कि उनकी रहने की जगह जंगल की बजाय कहीं और भी हो सकती है। यहां पर उनका लालच जाग उठा। फिर काफी विचार विमर्श के बाद इंसानों ने यह तय किया कि क्यों ना जंगल को काटकर ही आशियाना बनाया जाए। पेड़ पौधों ने इंसानों को जंगल को नष्ट करने से रोका। कहा कि अगर तुम हमसे धोखा करोगे तो एक दिन बहुत बड़ा नुकसान उठाओगे। पेड़ों की बात को अनसुना करके मनुष्य वनों को नुकसान पहुंचाते रहे। फिर एक दिन भंयकर बाढ़ आई जो आधे से ज्यादा मनुष्यों को अपने साथ बहाकर ले गई।

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वन महोत्सव क्या है?

ऊपर दी गई यह कहानी हम इंसानों पर एकदम सटीक बैठती है। वन के बिना हमारा जीवन ही अधूरा है। वन हम मनुष्यों का साथ कभी से निभाते आ रहे हैं। वन के बिना हमारा जीवन ही अधूरा है। वन हमें बिना कोई शिकायत के प्राकृतिक संसाधन प्रदान करते रहते हैं।

वन के चलते ही आज मानव का साँस लेना संभव है। वन से ही हमारा कल है। तो चलिए अब जानते हैं कि वन महोत्सव है क्या? यह हम सबको पता है कि हमारा देश त्यौहारों का देश माना जाता है। यहां पर आए दिन अलग अलग त्यौहार मनाए जाते हैं। हमारे देश में प्रकृति को लेकर भी एक त्यौहार मनाया जाता है। हम बात कर रहे हैं वन महोत्सव की। अन्य दूसरे त्यौहारों की ही तरह वन महोत्सव भी मनाया जाता है।

वन महोत्सव से तात्पर्य ऐसे त्यौहार से है जो वन को समर्पित होता है। हमारे देश में यह त्यौहार जुलाई के महीने में मनाया जाता है। यह उत्सव लगभग एक सप्ताह तक चलता है। मतलब यह 1 जुलाई को शुरू होता है और फिर 7 जुलाई तक लगातार चलता है। इस उत्सव को शुरू करने का श्रेय कन्हैयालाल मानेकलाल मुंशी को जाता है।

वन महोत्सव का महत्व

वन महोत्सव भारत सरकार द्वारा उठाया गया एक सार्थक कदम है। वनों का होना हमारे जीवन के लिए बहुत मायने रखता है। प्राचीनकाल से ही वन हमारे जीवन को कई तरह की चीजें प्रदान करते आए हैं। हमारे देश के जितने भी बड़े बड़े ऋषि मुनि हुए वह सब वन में जाकर ही तपस्या करते थे। वन हमेशा से ही हमारे मित्र की तरह रहे हैं। वन हमारे सुख-दुख में भी साथ खड़े रहते हैं। वन हमें कभी भी धोखा नहीं देते हैं। भले ही हम मानव जंगल को धोखा दे दे।

आज के समय में वन को उजाड़ कर हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। यह हम सभी को पता है कि पेड़ पौधों हमें ऑक्सीजन के रूप में अमृत प्रदान करते हैं। पर आज हम ही इन पेड़ों को खत्म भी कर रहे हैं। आज जिस बाढ़ का हम सामना कर रहे हैं वह सब पेड़ों की कमी के चलते हो रहा है।

वातावरण की ग्रीन हाउस गैस को भी पेड़ अपनी ओर खींच लेते हैं। पेड़ और वन प्रकृति को साफ सुथरा बनाए रखते हैं। हम जितने ज्यादा पेड़ लगाते हैं उतना ही फायदा वह मनुष्य को पहुंचाते हैं। इसलिए प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए वन महोत्सव को मनाना बहुत जरूरी हो जाता है। वन महोत्सव के चलते लोग प्रकृति के प्रति जागरूक बनते हैं।

वन महोत्सव की शुरुआत किसने की थी?

वनों के संरक्षण हेतु कदम मनुष्य कभी से उठाया जा रहा है। यह सदियों से चला आ रहा है। हमारे भारत में जितने भी साम्राज्य हुए उन सभी ने वनों और वन्यजीव के संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाए। हम सभी यह भी हम जानते हैं कि महात्मा बुद्ध ने अपने प्रवचन पेड़ के नीचे ही देते थे। और तपस्या पेड़ के नीचे ही करते थे। वन को लेकर कोई ना कोई हमेशा जागरूक होता आया है।

अब यह सोचने वाली बात है कि आखिर वन महोत्सव की शुरुआत किसने की थी। यह माना जाता है कि वन महोत्सव मनाने की नींव स्व. जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अब्दुल क़लाम आज़ाद और स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1947 में रखी थी। लेकिन वन महोत्सव शुरू करने का असली श्रेय तो कन्हैयालाल मानेकलाल मुंशी को जाता है। वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और एक अच्छे राजनेता थे। वन महोत्सव मनाने का सिलसिला 1950 के दशक में शुरू हुआ था जो आज भी कायम है।

वन का महत्व

हमारे जीवन में जितना धन है उतने ही अहम वन है। वन इंसानों के सबसे सच्चे दोस्त की तरह रहे हैं। जिस दिन वन नहीं रहेंगे समझो हम भी नहीं रहेंगे। वन के बिना हमारा जीवन ही अधूरा है। वन इतने सुंदर होते हैं कि वह किसी का भी मन मोह लेने में सक्षम होते हैं। वन हमें शुद्ध हवा प्रदान करते हैं। यह शुद्ध हवा ऑक्सीजन कहलाती है। वन मनुष्यों को फल-फूल, लकड़ी, जड़ी बूटियां उपलब्ध करवाती है। अधिक वन होने से वातावरण सही बना रहता है। पारिस्थितिकी संतुलन सही रहता है। वन्यजीव भी जंगलों पर ही निर्भर होते हैं। इसलिए जब वन की संख्या अधिक होती है तो वन्यजीव भी सुरक्षित रहते हैं। अधिक संख्या में वन होने से बाढ़ जैसी मुश्किलों का सामना भी नहीं करना पड़ता।

वन महोत्सव मनाने की जरूरत क्यों है?

आज आधुनिकीकरण और जनसंख्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि चारों तरफ अंधाधुंध तरीके से वन और पेड़ काटे जा रहे हैं। आज ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के चलते वातावरण बहुत ज्यादा दूषित होता जा रहा है। यह सब चिंता का विषय बन चुके हैं। जैसे पृथ्वी के महत्व को दर्शाने के लिए हम अर्थ डे मनाते हैं ठीक उसी प्रकार वनों के महत्व को दर्शाने के लिए हम वन महोत्सव मनाते हैं। आज के समय में खूब पेड़ काटे जा रहे हैं। जिसके चलते वन भी बड़ी तेजी से खत्म हो रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ मानव का ही है।

मानवों की बढ़ती जनसंख्या ने पेड़ काटने को मजबूर कर दिया है। मानवों को सिर्फ अपना स्वार्थ दिख रहा है। वह यह नहीं जानते कि भविष्य में इसके कितने दुष्परिणाम होंगे। बस इसी चीज को ध्यान में रखते हुए वन महोत्सव को मनाने की बहुत जरूरत पड़ जाती है। वन महोत्सव को मनाने के पीछे का उद्देश्य यह है कि सभी लोग जागरूक होकर वृक्षारोपण करें। अगर वह एक काटे तो बदले में वह 10-20 पेड़ लगाने की हिम्मत रखें। वन महोत्सव में सक्रिय रूप से भागीदार बनकर हम अपने भविष्य के लिए लाखों के पेड़ बचा सकते हैं।

भवानी प्रसाद मिश्र की वन पर कविता

सतपुड़ा के घने जंगल

सतपुड़ा के घने जंगल।
नींद मे डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

झाड़ ऊंचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आंख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धंसो इनमें,
धंस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊंघते अनमने जंगल।

चलो इनपर चल सको तो

सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढंक रहे-से
पंक-दल में पले पत्ते।
चलो इन पर चल सको तो,
दलो इनको दल सको तो,
ये घिनौने, घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

पैर को पकड़ें अचानक

अटपटी-उलझी लताएं,
डालियों को खींच खाएं,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें कपाएं।
सांप सी काली लताएं
बला की पाली लताएं
लताओं के बने जंगल
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

मकड़ियों के जाल मुंह पर,
और सर के बाल मुंह पर
मच्छरों के दंश वाले,
दाग काले-लाल मुंह पर,
वात-झन्झा वहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

अजगरों से भरे जंगल
अगम, गति से परे जंगल
सात-सात पहाड़ वाले,
बड़े-छोटे झाड़ वाले,
शेर वाले बाघ वाले,
गरज और दहाड़ वाले,
कम्प से कनकने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

इन वनों के खूब भीतर,
चार मुर्गे, चार तीतर
पाल कर निश्चिन्त बैठे,
विजनवन के बीच बैठे,
झोंपड़ी पर फूस डाले
गोंड तगड़े और काले।
जब कि होली पास आती,
सरसराती घास गाती,
और महुए से लपकती,
मत्त करती बास आती,
गूंज उठते ढोल इनके,
गीत इनके, बोल इनके
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
उंघते अनमने जंगल।

जागते अंगड़ाइयों में,
खोह-खड्डों खाइयों में,
घास पागल, कास पागल,
शाल और पलाश पागल,
लता पागल, वात पागल,
डाल पागल, पात पागल
मत्त मुर्गे और तीतर,
इन वनों के खूब भीतर।
क्षितिज तक फ़ैला हुआ-सा,
मृत्यु तक मैला हुआ-सा,
क्षुब्ध, काली लहर वाला मथित,
उत्थित जहर वाला,मेरु वाला,
शेष वालाशम्भु और सुरेश वाला
एक सागर जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे घने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

धंसो इनमें डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है,
उतर कर बहते अनेकों,
कल-कथा कहते अनेकों,
नदी, निर्झर और नाले,
इन वनों ने गोद पाले।
लाख पंछी सौ हिरन-दललाख पंछी सौ हिरन-दल,
चांद के कितने किरण दल,
झूमते बन-फूल,
फलियां,खिल रहीं अज्ञात कलियां,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमयसतपुड़ा के घने जंगल,
लताओं के बने जंगल।

भवानी प्रसाद मिश्र

वन महोत्सव पर 10 लाइनें

1) वन महोत्सव को पेड़ों का त्यौहार माना जाता है।

2) वन महोत्सव मनाने की परंपरा कन्हैयालाल मानेकलाल मुंशी ने की थी।

3) भारत में आज के समय केवल 20% ही वन बचे हैं।

4) प्राचीनकाल से ही वन हमारे दोस्त की तरह रहे हैं।

5) वन ही हमारा भविष्य है। आज वन की वजह से ही हम सभी जिंदा हैं।

6) वन से हमें खाने का भोजन और फर्नीचर का सामान प्राप्त होता है।

7) वन महोत्सव को जुलाई के पहले सप्ताह में मनाया जाता है।

8) वन महोत्सव 1 जुलाई से शुरू होता है और 7 जुलाई तक चलता है।

9) वन को अंग्रेजी में फॉरेस्ट कहते हैं।

10) वन महोत्सव पर लोग खूब पेड़ पौधे लगाते है। वन लगाने से हमारा देश हरा भरा बना रहता है।

वन महोत्सव पर 200 शब्दों में निबंध

वन महोत्सव हर साल जुलाई के महीने में मनाया जाता है। यह महोत्सव पर्यावरण को समर्पित होता है। इस दिन पर खूब सारे पेड़ पौधे उगाए जाते हैं। यह जुलाई के पहले सप्ताह में मनाए जाने वाला उत्सव है। मतलब यह उत्सव 1 जुलाई को शुरू होता है और 7 जुलाई तक चलता है। यह दिवस हमारे लिए बहुत महत्व रखता है। इस दिन लोगों को पेड़ लगाने के लिए जागरूक किया जाता है।

आज के समय की यह मांग है कि हम अधिक से अधिक पेड़ उगाए। क्योंकि आज के समय में खूब पेड़ काटे जा रहे हैं। पेड़ों की घटती संख्या आज मुसीबत का कारण बनी हुई है। इसी कारण के चलते आज ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन बहुत तेजी से फैल रहा है। आज हर जगह प्राकृतिक घटनाएं देखने को मिल रही है।

आज तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। प्रकृति में उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है। आज हम कभी बाढ़ का सामना कर रहे हैं तो कभी भयंकर सूखे का। आज के समय में मौसम के मिजाज का कुछ भी पता नहीं चलता है। इन सबके पीछे किसका हाथ है। इसका सीधा और सरल सा उत्तर है हम मनुष्य।

मनुष्यों की वजह से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। अब समय आ गया है कि हम मनुष्यों को चेत जाना चाहिए। हमारे देश में वन महोत्सव मनाने के पीछे का बड़ा कारण ही यह है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाए और हमारी धरती को नष्ट होने से बचाए।

निष्कर्ष

तो आज के हमारे इस निबंध के माध्यम से हमने यह जाना कि वन महोत्सव क्या होता है। हमने इसी निबंध के माध्यम से यह भी जाना कि वन महोत्सव मनाने के पीछे का महत्व क्या है। वन हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन से ही हमारा कल है। हमें अपने वनों की रक्षा हेतु जागरूक होना बहुत जरूरी है। हम यह आशा करते हैं कि आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह निबंध जरूर पसंद आया होगा।

FAQ’S

Q1. वन महोत्सव क्या है? इसकी शुरुआत किसने की थी?

A1. वन महोत्सव एक प्रकार का उत्सव है जो हर साल जुलाई के महीने में मनाया जाता है। यह दिन प्रकृति को समर्पित होता है। इस उत्सव को मनाने की शुरुआत कन्हैयालाल मानेकलाल मुंशी की थी।

Q2. भारत में कितने प्रकार के वन पाए जाते हैं?

A2. भारत में छह प्रकार के वन पाए जाते हैं जैसे कि आर्द्र उष्णकटिबंधीय वन, शुष्क उष्णकटिबंधीय, पर्वतीय उप-उष्णकटिबंधीय, उप-अल्पाइन, उप शीतोष्ण और शीतोष्ण वन।

Q3. वन महोत्सव कब मनाया जाता है?

A3. वन महोत्सव हर साल जुलाई के महीने में मनाया जाता है। यह एक सप्ताह तक चलने वाला उत्सव होता है। मतलब यह 1 जुलाई से 7 जुलाई तक चलता है।

Q4. वन महोत्सव हमेशा बारिश के मौसम में ही क्यों मनाया जाता है?

A4. वन महोत्सव हर साल बारिश के मौसम में ही मनाया जाता है। इसको मनाने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि बारिश का मौसम पेड़ पौधों के लिए बहुत अच्छा समय होता है।

Q5. फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट कहाँ पर स्थित है?

A5. फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून में स्थित है।

Q6. भारत में फिलहाल कितने प्रतिशत भाग पर वन है?

A6. भारत में फिलहाल 23.81% भाग पर वन है।

Q7. भारत में सबसे अधिक वन किस राज्य में स्थित हैं?

A7. भारत में सबसे अधिक वन मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है।

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