हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपके लिए कक्षा 10वीं हिन्दी स्पर्श अध्याय 1 के एनसीईआरटी समाधान लेकर आए हैं। यह कक्षा 10वीं हिन्दी स्पर्श के प्रश्न उत्तर सरल भाषा में बनाए गए हैं ताकि छात्रों को कक्षा 10वीं स्पर्श अध्याय 1 के प्रश्न उत्तर समझने में आसानी हो। यह सभी प्रश्न उत्तर पूरी तरह से मुफ्त हैं। इसके के लिए छात्रों से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जायेगा। कक्षा 10वीं हिंदी की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए नीचे दिए हुए एनसीईआरटी समाधान देखें।
Ncert Solutions For Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1
कक्षा 10 हिन्दी के एनसीईआरटी समाधान को सीबीएसई सिलेबस को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। यह एनसीईआरटी समाधान छात्रों की परीक्षा में मदद करेगा साथ ही उनके असाइनमेंट कार्यों में भी मदद करेगा। आइये फिर कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श अध्याय 1 साखी के प्रश्न उत्तर (Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 Question Answer) देखते हैं।
कक्षा : 10
विषय : हिंदी (स्पर्श भाग 2)
पाठ : 1 साखी (कबीर)
प्रश्न-अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1 – मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर :- जब एक इंसान मीठी वाणी बोलता है तो उसकी वाणी से दूसरों को सुख की अनुभूति होती है। मीठी वाणी से एक व्यक्ति पूरी दुनिया पर फतह पाने की हिम्मत रखता है। मीठी वाणी बोलने से दंभ टूट जाता है। मीठी वाणी बोलने वाले को सारी दुनिया पसंद करती है। भले ही वह व्यक्ति धनी ना हो। लेकिन फिर भी अपनी मीठी वाणी से वह दूसरों को प्रभावित कर लेता है। मीठी वाणी बोलने से हमारे तन को भी शीतलता प्रदान होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब हम दूसरों से हंसकर और प्रेम से बात करते हैं तो हमारे मन और तन को शीतलता पहुंचती है।
प्रश्न 2 – दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- इस कविता में कवि हमारे मन को दीपक से जोड़कर देख रहे हैं। जब तक हमारे मन में अंधेरा रहता है तब तक हम ईश्वर का दर्शन नहीं कर सकते हैं। हमारे मन में जब तक अंधियारा रहता है तब तक हमारे मन में राग-द्वेष की भावना बनी रहती है। लेकिन हम जैसे ही अपने मन में दीपक प्रज्वलित कर लेते हैं तब उसकी रोशनी हमारे मन के सारे राग-द्वेष खत्म हो जाते हैं। दीपक की रोशनी से हर प्रकार की अज्ञानता का नाश हो जाता है। हमारे मन से अंहकार की समाप्ति हो जाते है। ऐसे में हमें चारों ओर ईश्वर दिखाई देने लग जाता है। हमारे मन में भक्ति की भावना उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 3. ईश्वर कण कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर :- कबीर दास जी बिल्कुल सही कहते हैं कि ईश्वर हम सभी के मन में बसते हैं। ईश्वर कण कण में व्याप्त है। लेकिन भौतिकवाद में लिपटा हुआ मनुष्य इस बात को कैसे समझ सकता है। उसकी आंखों के आगे तो अंधकार छाया रहता है। वह मोह माया में लिपटकर संसार के सभी काम करता है। ऐसे इंसान को हर काम में स्वार्थ दिखाई देता है। लोभ और मोह माया ही उसके जीवन का हिस्सा बन जाता है। लालची आदमी अपना हित साधने के लिए मंदिरों के चक्कर लगाता है। और मंदिर जाकर ईश्वर से धन दौलत प्राप्ति की कामना करता है। लोभी व्यक्ति को दिव्य चक्षु प्राप्त नहीं होते हैं। इसलिए उसको ईश्वर के स्थान पर धन और माया दिखती है। जबकि असल में देखा जाए तो ईश्वर हर पल हमारे आस-पास ही रहते हैं। ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है।
प्रश्न 4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ सोना और जागना किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- इस संसार में दो प्रकार के लोग रहते हैं – सुखी व्यक्ति और दुखी व्यक्ति। इस संसार में दुखी लोगों से ज्यादा सुखी लोग निवास करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जो भोग विलास में लिप्त हैं वह सुखी लोग हैं। ऐसे लोगों को ऐशो आराम की हर एक चीज की चाह रहती है। सुख सुविधाओं को भोगते हुए वह सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं। इस संसार में असल में वह लोग दुखी है जो ईश्वर को प्राप्त करने की राह की ओर निकल पड़े हैं। कबीर के मुताबिक इस संसार में सोना भोग विलासिता का प्रतीक है। और जागना ईश्वर को प्राप्त करने का प्रतीक है। जो सांसारिक मोह माया में लिपटा हुआ है वह हर पल सोया हुआ समान है। अर्थात वह जागृत नहीं। और जो भौतिकवाद से दूर ईश्वर को खोजने के लिए निकल पड़ा है वह हर पल जागता है।
प्रश्न 5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर :- कबीरदास जी कहते हैं कि हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने आसपास रखना चाहिए। कबीरदास ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जब कोई इंसान निंदा करने वाले व्यक्ति से मीठे संबंध रखता है तो यह उसके लिए हितकारी होता है। जो लोग कड़वे वचन बोलते हैं असल में वह मन के साफ होते हैं। उनके मन में मैल नहीं होती है। असल में मीठा बोलना वाला व्यक्ति आपका हितैषी नहीं हो सकता। मीठा बोलने वाला असल में अंदर से कड़वा होगा। इसलिए कबीरदास जी का कहना है कि हर पल ऐसे लोगों के आसपास रहो जो आपको आपकी असलियत से रूबरू करवाए। ऐसा करने पर हमारे स्वभाव को साबुन और पानी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
प्रश्न 6. ऐके अधिर पीव का पढ़े सु पंडित होई ‘ इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :- इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहते हैं कि इस संसार जो कोई भी ज्ञानी व्यक्ति हुआ है उन सभी ने हर प्रकार के ग्रंथ और मोटी से मोटी पुस्तकों को पढ़ डाला। लेकिन क्या वह तब भी एक सच्चा ज्ञानी कहलाए जाएंगे? नहीं, बिल्कुल नहीं। भले ही वह व्यक्ति दुनिया की कोई सी भी लोकप्रिय पुस्तक पढ़ ले। लेकिन वह कभी भी सच्चा ज्ञानी नहीं कहलाया जाएगा। सच्चा ज्ञानी तो वह है जिसने ईश्वर प्रेम का अक्षर अपने रोम रोम में उतार लिया हो। जिसे ईश्वर का ज्ञान हो जाए वही सच्चा पंडित है। वही सच्चा ज्ञानी है। जिस व्यक्ति को ईश्वर का ज्ञान हासिल ना हो वह असल मायने में निरक्षर के समान है।
प्रश्न 7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता प्रकट कीजिए।
उत्तर :- कबीरदास जी की साखियों में अनेक प्रकार की भाषाओं का प्रयोग हुआ है। इन साखियों में अवधि, ब्रज, राजस्थानी और पंजाबी भाषाओं का मिश्रण है। इन साखियों को लिखने का अंदाज सधुक्कड़ी है। यहां हमें अनेक देशी शब्द देखने को मिलते हैं।
(ख) भाव स्पष्ट कीजिए
1. बिरह भुवंगम तन बसे. मंत्र न लागे कोइ ।
उत्तर :- इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति का मन भगवान के प्रेम में नहीं डूब सकता उस व्यक्ति पर दुनिया की किसी भी चीज का असर नहीं पड़ता। अगर कोई ऐसे व्यक्ति पर मंत्र भी पढ़ना चाहे तो वह भी प्रभावहीन हो जाता है। जो इंसान भगवान से दूरी बना लेता है उसपर किसी भी चीज का प्रभाव नहीं पड़ता है।
2. कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग हुँदै बन माँहि ।
उत्तर :- कबीरदास जी कहते हैं कि अगर सही अर्थ में देखा जाए तो ईश्वर का निवास स्थान हमारे दिल में है। लेकिन मोहन माया में लिपटा इंसान इस बात को नहीं जान सकता है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कोई हिरण अपनी नाभि से आती हुई कस्तुरी की महक से आकर्षित तो हो जाता है, लेकिन उस हिरण को यह आभास नहीं हो पाता है कि आखिर यह खुशबू कहां से आ रही है। हिरण इस खुशबू की खोज में इधर उधर भटक रहता है। मनुष्य भी उस नादान हिरण की तरह ही है। मनुष्य सोचता है कि ईश्वर देवालय में बसते हैं। बस इसी सोच में एक मनुष्य एक मंदिर से दूसरे मंदिर का चक्कर निकालता रहता है। लेकिन उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है।
3. जब में था तब हरि नहीं, अब हरि है में नाँहि ।
उत्तर :- इस पंक्ति के माध्यम से कबीरदास जी यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जिस मनुष्य के मन पर अहंकार ने कब्जा कर रखा होता है उस मन पर कभी भी प्रभु का निवास होना संभव नहीं हो सकता है। ऐसा दंभी व्यक्ति स्वयं को ही सर्वश्रेष्ठ मानता है। लेकिन यही जब वह मनुष्य अपने मन से दंभ को उखाड़ फेंकता है तो उस दिन से उसके मन में भगवान स्थापित हो जाते हैं। वह मनुष्य भगवान के ही रंग में रंग जाता है। उसे चारों ओर ईश्वर ही नजर आता है।
4. पोथी पदि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।
उत्तर :- इस पंक्ति के माध्यम से कबीरदास जी यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि चाहे इस दुनिया में कोई भी इंसान हो वह असल रूप में बुद्धिमान तभी बन सकता है जब वह भगवान की शरण में चला जाए। जीवन का सच्चा ज्ञान केवल मोटी पुस्तक या फिर महान ग्रंथ पढ़ने से नहीं बल्कि भगवान को प्राप्त करके ही हासिल किया जा सकता है। मनुष्य का एकमात्र उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति ही होना चाहिए।
भाषा अध्ययन
1. पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए।
उदाहरण जिवै- जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।
उत्तर :-
- जिवै- जीना
- औरन- औरों को, और
- माँहि- के अंदर (में)
- देख्या- देखा
- भुवंगम – साँप
- नेड़ा- निकट
- आँगणि-आँगन
- साबण- साबुन
- मुवा-मुआ
- पीव -प्रेम
- जालों- जलना
- तास- उसका
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