इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-2 यानी “भारत का संविधान-सिद्धांत और व्यवहार” के अध्याय-3 “चुनाव और प्रतिनिधित्व” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 3 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Political Science Book-2 Chapter-3 Notes In Hindi
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अध्याय- 3 “चुनाव और प्रतिनिधित्व”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | राजनीति विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | भारत का संविधान- सिद्धांत और व्यवहार |
अध्याय नंबर | तीन (3) |
अध्याय का नाम | चुनाव और प्रतिनिधित्व |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- भारत का संविधान- सिद्धांत और व्यवहार
अध्याय-3 “चुनाव और प्रतिनिधित्व”
देश को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए चुनाव कराया जाना आवश्यक है, जिससे लोकतान्त्रिक देश की जनता अपने लिए सही प्रतिनिधि का चुनाव करती है। किसी भी देश में चुनाव करने के लिए उचित नियमों का होना आवश्यक है, इसे ही चुनाव व्यवस्था कहा जाता है। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सहारे ही निष्पक्ष सरकार का आगमन संभव है, अन्यथा देश का माहौल अव्यवस्थित हो सकता है।
लोकतंत्र में चुनाव
- किसी भी बड़े लोकतान्त्रिक देश में चुनाव अवश्य कराया जाता है, जनता सीधे किसी भी तरह के नियम नहीं बना सकती। जनता अपने कार्य करवाने के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव करती है।
- चुनाव लोकतान्त्रिक राजनीति का अहम अंग है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतंत्र की बात करता है।
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र- इसमें देश के नागरिक सीधे तौर पर सरकार चलाते और निर्णय लेते हैं। इसमें स्थानीय सरकारें, और ग्राम सभाएं आदि सम्मिलित हैं।
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र– जब निर्णयों का संबंध बड़े स्तर से हो, जिसमें लाखों या करोड़ों लोगों के लिए कार्य करना हो, तब जनता अपने एक प्रतिनिधि का चुनाव करती है, जो उनके अभाव में निर्णय करते हैं।
- इन प्रतिनिधियों के चयन की विधि को ही चुनाव कहा जाता है। देश के नागरिक नीति निर्माण और प्रशासन चलाने की कार्यविधि में सीधे सम्मिलित नहीं होते।
- यही कारण है कि जिस प्रतिनिधि को जनता चुन रही है, जो आगे जाकर कई बड़े निर्णय लेगा उसका चुनाव किस प्रक्रिया द्वारा किया जा रहा है, यह जानना भी आवश्यक है।
भारतीय चुनाव व्यवस्था
- भारत में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के चलते चुनावों में वोटों के जरिए जनता अपने पसंदीदा प्रतिनिधि का चुनाव करती है।
- चुनावों में इस्तेमाल किए जाने वाले नियमों से फैसला लिया जाता है कि कौन-सा राजनीतिक दल चुनाव जीतेगा।
भारत में अपनाई जाने वाली चुनाव प्रणाली
- साधारण बहुमत प्रणाली
- इस प्रणाली का इस्तेमाल भारत में चुनाव कराने के लिए किया जाता है। इसके अंतर्गत जिन प्रत्याशियों को (अन्य की तुलना में) वोटों की अधिक संख्या प्राप्त हुई है, वही विजयी घोषित किया जाता है, इसे बहुलवादी व्यवस्था भी कहा जाता है।
- समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
- इसके अंतर्गत पार्टी चुनावों से पूर्व अपने-अपने प्रत्याशियों की सूची प्राथमिकता अनुसार जारी करती है।
- जनता इस प्रणाली में वोट केवल पार्टी को ही दे सकती है, पार्टियों को मिले वोटों के आधार पर ही प्रत्याशियों का चुनाव कर लिया जाता है।
- इस प्रणाली का इस्तेमाल इज़राइल में किया जाता है।
- भारत में केवल राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और राज्य के विधान परिषद के सदस्यों के चुनाव के लिए इस प्रणाली में से एकल संक्रमणीय मत प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।
समानुपातिक प्रतिनिधितत्व प्रणाली और बहुमत प्रणाली में अंतर
समानुपातिक प्रतिनिधितत्व प्रणाली | बहुमत प्रणाली |
किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र को एक निर्वाचन क्षेत्र मान लिया जाता है। | पूरे देश को छोटे-छोटे भौगोलिक इकाइयों में बाँट दिया जाता है जिसे निर्वाचन क्षेत्र या जिला कहा जाता है। |
एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधियों का चुनाव होता है। | हर निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है। |
वोट पार्टी को दिया जाता है। | वोट प्रत्याशी को दिया जाता है। |
हर पार्टी को प्राप्त मतों के अनुपात में विधायिका में सीटें हासिल होती हैं। | पार्टी को प्राप्त वोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधायिका में मिल सकती हैं। |
विजयी उम्मीदवार को वोटों का बहुमत प्राप्त होता है। | विजयी उम्मीदवार को वोटों के बहुमत की आवश्यकता नहीं होती। |
उदाहरण- इज़राइल और नीदरलैंड्स। | उदाहरण- यूके और भारत। |
भारत में साधारण बहुमत प्रणाली अपनाने के कारण
- समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रयोग राज्यसभा जैसे सीमित स्थान के लिए लागू किया जाना संभव है, लेकिन भारत जैसी विशाल जनसंख्या के लिए बहुमत प्रणाली का प्रयोग ही उचित है।
- इसके साथ ही भारतीय आम जनता के लिए बहुमत की प्रणाली को समझ पाना भी बेहद आसान है।
- राजनीति को समझते हुए मतदाता अपने पसंदीदा पार्टी या प्रत्याशी को वोट दे सकते हैं।
- इससे मतदाता दल और उम्मीदवारों का चुनाव अपनी पसंद से करते हैं। समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में ऐसा नहीं है, वहां केवल दल का चुनाव ही जनता के हाथ में है।
- सर्वाधिक मत प्रणाली में छोटे दलों और गठबंधनों को भी कुछ सीटें मिल जाती हैं, जो उन्हें प्राप्त मतों से अधिक ही होती है।
निर्वाचन क्षेत्रों का आरक्षण
- निर्वाचन क्षेत्रों में जिन्हें अधिक वोट प्राप्त होते हैं, वे चुनाव जीत जाते हैं, लेकिन इससे छोटे समूह पीछे रह जाते हैं।
- भारत में जातीय व्यवस्था में छोटे और पिछड़े समूहों के सामने बड़ी जातियाँ जीत जाती हैं। संविधान निर्माता देश की इस स्थिति से भली प्रकार से वाकिफ थे।
- इसके कारण ही स्वतंत्रता से पहले ही ‘पृथक निर्वाचन मण्डल’ की शुरुआत की गई। जो इस बात पर लक्षित था कि किसी समुदाय से आए प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उस समुदाय के सदस्य ही वोट डाल सकेंगे।
- लेकिन बाद में इसको बदलकर आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया, जिसमें प्रत्याशी अपने लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ सकेगा, और वोट सभी लोग डालेंगे।
- इसके अंतर्गत ही संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित किए गए हैं, जिसकी अवधि 2020 तक की है, और आगे चलकर यह बढ़ भी सकती है।
- लोकसभा की 543 निर्वाचित सीटों में से 84 अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।
निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव
देश में कराए जाने वाले चुनावों का निष्पक्ष और पारदर्शी होना आवश्यक है, जो मतदाताओं की आकांक्षाओं को चुनाव परिणामों के रूप में पूर्ण कर सके।
सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार और चुनाव लड़ने का अधिकार
- लोकतान्त्रिक देशों में वह नागरिक जो 18 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं, वोट देने के अधिकारी होते हैं।
- इसे ही सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार कहा जाता है। यह अधिकार वयस्क नागरिकों को चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेने का अधिकार प्रदान करता है।
- चुनाव लड़ने के लिए भी देश के वयस्क नागरिकों के लिए कोई पाबंदी नहीं रखी गई है। देश का नागरिक चुनाव लड़ सकता है, लेकिन इसके लिए भिन्न-भिन्न आयु सीमाओं का निर्धारण किया गया है, जैसे- लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव के लिए उम्मीदवार का 25 वर्ष की आयु का होना आवश्यक है।
- चुनाव लड़ने के लिए नागरिकों पर लिंग, रंग, वर्ण, जाति आदि के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं है, उम्मीदवार के खिलाफ किसी तरह का आपराधिक मुकदमा भी नहीं होना चाहिए।
स्वतंत्र निर्वाचन आयोग
- चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए निर्वाचन आयोग की स्थापना की गई।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324, निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने, चुनावों का संचालन कराने के अधिकार प्रदान करता है।
- देश के स्तर पर निर्वाचन आयोग की सहायता करने के लिए सभी राज्य स्तरों पर भी निर्वाचन आयोग स्थापित किए गए हैं।
- भारत के निर्वाचन आयोग बहुसदस्यीय हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त के द्वारा निर्वाचन आयोग की अध्यक्षता की जाती है, इन दोनों की शक्तियां समान हैं और राष्ट्रपति द्वारा मंत्री परिषद् के कहने पर इनकी नियुक्तियाँ की जाती हैं।
- इनका कार्यकाल 6 वर्ष का या फिर 65 वर्ष की आयु होने तक का होता है, इनके कार्यकाल से पहले केवल राष्ट्रपति द्वारा ही इन्हें हटाया जा सकता है।
निर्वाचन आयोग के कार्य
- मतदाता सूची देख रेख का काम।
- चुनाव कार्यक्रम संबंधित तिथियाँ जारी करना।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करने की जिम्मेदारी।
- नए राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना।
हाल ही के कुछ वर्षों में निर्वाचन आयोग ने स्वतंत्र रुख अपनाया है, जो चुनाव की प्रक्रिया को स्वतंत्र बनाता है। संविधान से प्राप्त शक्तियों का प्रभावी रूप से इस्तेमाल करने के कारण यह हुआ है।
चुनाव सुधार
- विभिन्न चुनावी प्रणालियों में अनेकों कमियाँ रह जाती हैं। भारत ने शुरुआत से ही कई बदलावों से चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने की कोशिश की है।
- पिछले 66 सालों के चुनावों से अनुभव लेने के बाद कई विद्वानों ने इसमें बदलाव के सुझाव दिए।
- दिए गए सुझावों के लागू होने से फायदा तभी होगा जब चुनावों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेने वाले सभी व्यक्ति लोकतान्त्रिक स्पर्धा की भावना से चुनावों में हिस्सा लेंगे।
ईवीएम
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का निर्माण दो उपकरणों के मेल से हुआ- कंट्रोल यूनिट और बैलेटिंग यूनिट।
- बैलेटिंग यूनिट से वोटर ईवीएम मशीन का बटन दबाकर वोट देता है।
- इससे चुनावों में पारदर्शिता बनी रहती है, इसका इस्तेमाल 1982 में केरल राज्य में सबसे पहले हुआ।
- 2004 में सम्पूर्ण भारत में इसका इस्तेमाल चुनावों में किया जाने लगा।
वीवीपीएटी
- वोटिंग वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल का उपयोग मतदाताओं के ईवीएम के इस्तेमाल के बाद यह पुष्टि करने के लिए किया जाता है कि मतदाता का वोट डल चुका है।
- इससे वोट को बदला नहीं जा सकता, इसके साथ एक प्रिंटर भी जुड़ा होता है, जो इवीएम पर वोट डलने के बाद एक रसीद के रूप में उम्मीदवार का ब्योरा निकालती है, यह रसीद इवीएम के कंटेनर में ही जमा हो जाती है।
- अक्तबर 2013 से ही उच्चतम न्यायालय ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए इसके इस्तेमाल पर मंजूरी दी थी।
नन ऑफ दी अबव (नोटा)
- नन ऑफ दी अबव (नोटा) का अर्थ है, यदि चुनाव में मतदान कर रहे मतदाता किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते, तो पार्टियों की लिस्ट के अंत में नोटा के बटन को दबा सकते हैं।
- इससे मतदातों को चुनावों में केवल ईमानदार और सही उम्मीदवार को जिताने का मौका मिलता है।
- 2013 में न्यायालय ने नोटा को मंजूरी प्रदान की थी। 2018 से नोटा का इस्तेमाल केवल प्रत्यक्ष चुनावों में ही किया जाने लगा।
ओपिनियन पोल
- चुनाव प्रक्रिया की समाप्ति के बाद, मतों के सर्वेक्षण के आधार पर प्रत्याशियों की जीत का अनुमान लगाया जाता है।
- इस तरह के सर्वेक्षण निजी कंपनियां करवाती हैं, मीडिया का भी इसमें पूर्ण योगदान देखने को मिलता है।
- चुनाव आयोग 48 घंटे पहले ही ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगा सकता है।
चुनाव खर्च सीमा
- चुनाव आयोग ने 2014 से चुनावों में होने वाले खर्चों को सीमित किया है।
- छोटे राज्यों में 50 लाख और बड़े राज्यों में इसे 70 लाख कर दिया गया है।
- इस सीमा को 2020 के आम चुनावों में 10% बढ़ाया गया।
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