मेरा बचपन थोड़ा अलग ही रहा है। आमतौर पर हमें यही देखने को मिलता है कि मां-बाप अपने बच्चों को लेकर कुछ सुनहरे भविष्य बुनते हैं। सभी माता-पिता अपने बच्चों को डाॅक्टर, इंजीनियर, बैंकर आदि बनते हुए देखना चाहते हैं। और यह भावना स्वाभाविक है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। मेरे पापा मुझे एक सफल बैंकर के रूप में देखना चाहते थे। पर मेरा मन तो किताबों की दुनिया में बसता था। मेरे हाथ में अकाउंट्स की किताब हुआ करती थी पर दिमाग दौड़ता था रस्किन बॉन्ड की कहानियों में। खाता-बही के लिए मन नहीं मानता था मेरा।
तो उपर बताई गई मेरी वास्तविक जीवन की कहानी को मैं जारी रखते हुए आगे की कहानी बताती हूं। मेरा मन ना जाने क्यों उपन्यास की कहानियों में डूबकी लगाता था। स्कूल के दिनों में क्लास में जब बच्चे गणित के हल कर रहे होते थे तो मैं अपने दिमाग में कहानियों को गढ़ा करती थी।
कहानियों और कविताओं से मेरा एक अलग प्रकार का रिश्ता जुड़ गया था। कलम और कागज को उठाने के बाद तो मानो ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि मैं दूसरी अमृता प्रीतम बन गई हूं। मेरे प्रिय लेखकों (lekhak) की सूची में शामिल हो गए थे मुंशी प्रेमचंद, रस्किन बॉन्ड और शरत चंद्र चट्टोपाध्याय। तो आज का विषय बहुत ही दिलचस्प होने वाला है। खासकर के पुस्तक प्रेमियों के लिए। तो आइए आज हम पढ़ते हैं मेरा प्रिय लेखक पर निबंध।
प्रस्तावना
शब्दों और विचारों में इतनी ताकत होती है कि वह अपने माध्यम से लोगों के ह्रदय और दिमाग में जोश फूंक देते हैं। जी हां, एक सच्चा लेखक वाकई में यह कर सकता है। पर आज के लेखकों में यह बात कहां? आज के लेखक केवल पैसा और शोहरत कमाने की लालसा से लिखते हैं। आज के समय में हिंदी साहित्य के वह फनकार नहीं बचे जो अपने विचारों के माध्यम से लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में कूदने के लिए प्रेरित कर देते थे। आज की जेनरेशन गहराइयों तक डूबकर नहीं लिख सकती। आज का हमारा विषय लेखक पर आधारित है। आज हम मेरे आदर्श और प्रिय लेखक मुंशी प्रेमचंद पर निबंध पढ़ेंगे।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
वाराणसी शहर पूरी दुनिया में आध्यात्म के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर एक और कारण से भी प्रसिद्ध रहा है। दरअसल वह 31 जुलाई, सन् 1880 का समय था जब वाराणसी के लमही गांव में अजायब राय के घर एक बालक ने जन्म लिया। उसे धनपत राय नाम दिया गया। अजायब राय डाक विभाग में पोस्ट मास्टर के तौर पर काम किया करते थे। जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा था। परंतु होनी को कौन टाल सकता था।
जब वह मात्र सात साल के थे तब उनकी माता आनंदी देवी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। और फिर केवल दो साल बाद ही धनपत राय के घर एक और बड़ी घटना कहर बनकर टूटी। उनकी माताजी के गिरने के मात्र दो साल बाद धनपत राय के पिता अजायब राय भी इस दुनिया से चल बसे। अब धनपत राय के सिर पर अनेकों जिम्मेदारियां आ गई थी।
9 साल के धनपत राय को इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि जिंदगी आगे चलकर और क्या क्या रंग दिखाएगी। धनपत राय के दो विवाह हुए थे। उनकी पहली पत्नी का नाम किसी को ज्ञात नहीं। परंतु उनकी दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था। यही धनपत राय आगे चलकर मुंशी प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।
मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा
मां-बाप गुजर जाने के वाबजूद भी मुंशी प्रेमचंद ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने चुनौतियों से मुंह मोड़ने की बजाय उनसे डटकर मुकाबला किया। वह शिक्षा के महत्व को समझते थे। इसलिए पढ़ाई को छोड़ने की बजाय वह जमकर पढ़ते रहे। वह स्कूल और काॅलेज के दिनों में होनहार छात्रों में गिने जाते थे।
1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। प्रेमचंद ने 1919 में बी.ए में प्रवेश लिया। वहां पर उनका विषय अंग्रेजी, फारसी और इतिहास था। फिर जैसे ही उन्होंने बी.ए उत्तीर्ण की तो वह शिक्षा विभाग में सब-डिप्टी-इंस्पेक्टर के तौर पर नौकरी करने लग गए। कठिनाइयों के वाबजूद भी वह शिक्षा के क्षेत्र में निडरता के साथ काम करते रहे।
मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली
मुंशी प्रेमचंद की भाषा बड़ी ही सुंदर और दिल को छू जाने वाली थी। वह सरल भाषा में लिखने के लिए जाने जाते थे। वह अपनी कृतियों के माध्यम से लोगों की अंतरात्मा तक पहुंच जाते थे। वह भारत के पहले ऐसे स्वतंत्र लेखक थे जो दिल खोलकर भ्रष्टाचार, घूसखोरी, गरीबी, और संप्रदायिकता जैसे विषयों पर अपने विचार लिखते थे।
उनकी भाषा बड़ी ही सरल हुआ करती थी। अपने करियर के शुरुआती दौर में वह उर्दू भाषा में लिखा करते थे। उन्होंने अपनी किताबों को सबसे पहले उर्दू भाषा में लिखा। बाद में वह हिंदी लेखन में भी उतर गए। उनके द्वारा लिखी गई कृतियों में लोकोक्तियां, मुहावरे एवं सुक्तियों की प्रचुरता मिलती है।
मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं
मुंशी प्रेमचंद की कलम से निकले शब्द बहुत ही ताकतवर होते थे। वह किसी के हृदय को बदलने में सक्षम थे। उनके द्वारा लिखी गई कृतियां कुछ इस प्रकार है –
प्रेमचंद के उपन्यास
- गोदान
- गबन
- सेवासदन
- रंगभूमि
- कर्मभूमि
- प्रतिज्ञा
- कायाकल्प
- प्रेम आश्रम
- रूठी रानी
- मंगलसूत्र
- देवस्थान रहस्य़
- कृष्ण
- प्रेम
- वरदान
प्रेमचंद की कहानियां
दो बैलों की कथा | बड़े घर की बेटी |
पंच परमेश्वर | बूढ़ी काकी |
कफन | ईदगाह |
जुलूस | ज्वालामुखी |
नादान दोस्त | देवी |
बलिदान | घमंड का पुतला |
प्रतिशोध | आखिरी मंजिल |
दूसरी शादी | गुल्ली डंडा |
यह मेरी मातृभूमि है | शराब की दुकान |
ठाकुर का कुआं | ईश्वरीय न्याय |
कर्मों का फल | नेकी |
नमक का दरोगा | राष्ट्र का सेवक |
इज्जत का खून | कप्तान साहब |
शादी की वजह | नरक का मार्ग |
मुफ्त का यश | वफा का खंजर |
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध पुस्तकें
1) गोदान- गोदान नाम की यह पुस्तक सबसे सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में से एक आती है। इस कहानी का मुख्य पात्र होरी एक गरीब किसान है। यह कहानी होरी और गाय के इर्द-गिर्द घूमती है। इस कहानी में अंधविश्वास, घूसखोरी और समाज की अमीरी-गरीबी के बारे में अच्छे से बताया गया है। यह समाज में फ़ैली कुरीतियों को दर्शाती है।
2) गबन- जब लालच आदमी के सिर पर चढ़कर नाचने लगता है तो इंसान हर प्रकार के बुरे से बुरे काम भी कर लेता है। यह कहानी भी कुछ ऐसा ही बयां करती है। इस कहानी के मुख्य पात्र दो पति-पत्नी रामा और जालपा है। यह कहानी उन दोनों के लालच को दिखाती है। वह दोनों सोना-चांदी की चाहत में भ्रष्टाचारी पर उतर आते हैं।
3) ईदगाह- जिम्मेदार कोई भी इंसान हो सकता है चाहे इंसान छोटा हो या बड़ा। इसी चीज को दर्शाती है प्रेमचंद की भावनात्मक कहानी ईदगाह। इस कहानी का नायक है पांच साल का प्यारा सा बच्चा हामिद। वह ईद पर लगने वाले मेले में जाने को उत्सुक भी है तो दूसरी तरफ वह पैसों की कमी वजह से अपने आप को वहां जाने से रोकता भी है। यह कहानी एक छोटे बच्चे के त्याग और समझदारी को बयां करती है।
4) निर्मला- महिला सशक्तिकरण बहुत पहले ही प्रचलन में आ गया था। पुराने समय में भी बड़े से बड़े लेखकों ने महिलाओं के पक्ष में खुलकर लिखा। मुंशी प्रेमचंद भी उन्हीं लेखकों में से एक थे। निर्मला कहानी में प्रेमचंद ने समाज महिलाओं की स्थिति को अच्छे से दर्शाया है। निर्मला कहानी बड़ी ही हृदय विदारक है। यह आपको अवश्य ही रोने पर मजबूर कर देती है।
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