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Class 10 Geography Ch-4 “कृषि” Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक यानी “समकालीन भारत-2” के अध्याय- 4 “कृषि” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 4 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 10 Geography Chapter-4 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय-4 “कृषि“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षादसवीं (10वीं)
विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ्यपुस्तकसमकालीन भारत-2 (भूगोल)
अध्याय नंबरचार (4)
अध्याय का नाम“कृषि”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- समकालीन भारत-2 (भूगोल)
अध्याय- 4 “कृषि”

भारत और कृषि

  • कृषि देश की प्राचीन आर्थिक क्रिया है।
  • भारत में दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों पर निर्भर है।
  • यह एक प्राथमिक क्रिया है, जिससे खाद्य की कमी को पूरा किया जाता है।
  • इस क्रिया के माध्यम से उद्योगों के लिए कच्चा समान तैयार किया जाता है।
  • दूसरे देशों में भेजने के लिए चाय, कॉफी, मसाले जैसी वस्तुओं की भी खेती भारत में की जाती है।
  • भारत में आधुनिक तकनीकों के आने से कृषि करने की विधियों में सार्थक बदलाव आया है।

भारत में कृषि के प्रकार

आज भारत में अनेक प्रकार की कृषि की जाती है, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है-

प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि
  • वर्तमान में प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि भारत के कुछ ही भागों में की जाती है।
  • यह कृषि छोटे खेतों पर आदिम कृषि औजारों की मदद से की जाती है, जिसमें श्रम की आवश्यकता अधिक होती है।
  • इस प्रकार की कृषि करने वाले इलाके खेती करने के लिए वर्षा पर निर्भर होते हैं।
  • इस कृषि को ‘कर्तन दहन प्रणाली’ भी कहा जाता है।
  • किसान जमीन के छोटे टुकड़े साफ करके उस पर अपने परिवार के लिए खाद्य फसलें उगाते हैं। जब भूमि का उपजाऊपन खत्म हो जाता है तब खेती करने के लिए जमीन का दूसरा टुकड़ा साफ किया जाता है।
  • किसान आधुनिक व उत्कृष्ठ तकनीकों का प्रयोग नहीं करते हैं इसलिए इस तरह की खेती करने से उपज की मात्रा कम होती है।
  • असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड आदि राज्यों में इस तरह की कृषि को झूम खेती कहा जाता है।
गहन जीविका निर्वाह कृषि
  • यह कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ जनसंख्या अधिक होती है।
  • इस कृषि में अधिक उत्पादन के लिए कठिन श्रम के साथ-साथ रासायनिक खादों और सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • रोजगार का कोई विकल्प न होने की वजह से किसान गहन जीविका कृषि को अधिक महत्त्व देते हैं।
  • इस तरह की कृषि करने वाली जमीनों पर दबाव अधिक होता है।
वाणिज्यिक कृषि
  • इस तरह की कृषि के लिए आधुनिक तकनीकों, उन्नत बीजों, रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।
  • इस कृषि का मुख्य उद्देश्य अत्यधिक पैदावार प्राप्त करना है।
  • हरियाणा एवं पंजाब की वाणिज्यिक फसल चावल है।
  • रोपण कृषि को वाणिज्यिक कृषि के अंतर्गत ही शामिल किया जाता है।
  • रोपण कृषि में एक ही फसल बहुत बड़े क्षेत्र में बोई जाती है।
  • भारत में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला आदि रोपण फसलें हैं।
  • इन फसलों का उत्पादन बिक्री के उद्देश्य से किया जाता है, जिसमें बाजारों व उद्योगों का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है।

देश में कृषि पद्धतियाँ एवं शस्य प्रारूप

  • भारत की भौतिक विविधता एवं विभिन्न संस्कृतियों के बीच संबंध देश में कृषि पद्धतियों तथा शस्य प्रारूपों में नजर आता हैं।
  • भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है-

1. रबी

  • रबी के अंतर्गत आने वाली फसलों को अक्टूबर से दिसंबर के बीच बोया जाता है।
  • इन फसलों की कटाई अप्रैल-जून के बीच में की जाती है।
  • गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों इत्यादि रबी के अंतर्गत आने वाली मुख्य फसलें हैं।
  • पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश आदि इन फसलों के उत्पादित राज्य हैं।
  • हरित क्रांति रबी फसलों की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2. खरीफ

  • इसकी फसलों की बुआई मानसून के आने के साथ शुरू की जाती है और सितंबर-अक्टूबर के मध्य कटाई कर ली जाती है।
  • चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली, सोयाबीन इत्यादि मुख्य खरीफ फसलें हैं।
  • उत्तर प्रदेश, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र खरीफ फसलों के उत्पादक राज्य हैं।

3. जायद

  • जिन फसलों की बुआई ग्रीष्म ऋतु में की जाती है वे फसलें जायद के अंतर्गत आती हैं।
  • इस श्रेणी में तरबूज, खरबूज, खीरे, सब्ज़ियों तथा चारे के लिए उगाई जाने वाली फसलें शामिल हैं।
  • गन्ना एक ऐसी फसल है, जिसकी बुआई-कटाई में पूरा एक साल लगता है।

भारत की मुख्य फसलें

चावल
  • भारत में अधिकतर लोग चावल का सेवन करना पसंद करते हैं।
  • चीन के बाद भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  • चावल के उत्पादन के लिए कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
  • पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि चावल उत्पादक राज्य हैं।
गेहूँ
  • भारत में गेहूँ को चावल के बाद दूसरा मुख्य खाद्यान्न फसल माना जाता है।
  • इस फसल को उगाने के लिए 50% से 75% वार्षिक वर्षा की जरूरत होती है।
  • गेहूँ को पकने के लिए तेज धूप की आवश्यकता होती है।
  • पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि कुछ मुख्य गेहूँ उत्पादक राज्य हैं।
मोटे अनाज
  • भारत में ज्वार, बाजरा एवं रागी प्रमुख मोटे अनाज हैं।
  • इन अनाजों में लोह, कैल्शियम जैसे पोषक तत्व अधिक पाए जाते हैं।
  • ज्वार को भारत की तीसरी महत्त्वपूर्ण फसल के रूप में स्वीकार किया जाता है।
  • महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
  • बाजरा बलुआ व काली मिट्टी पर उगाया जाता है और इसके उत्पादक राज्य राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात तथा हरियाणा हैं।
  • रागी लाल, काली, बलुआ, दोमट मिट्टी पर उगाई जाती है और इसके उत्पादक राज्य कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, झारखंड तथा अरुणाचल प्रदेश हैं।
मक्का
  • इस खरीफ फसल का उपयोग खाद्य और चारा दोनों के लिए होता है।
  • बिहार में यह एक रबी की फसल है।
  • आधुनिकी तकनीकी उपयोग की वजह से मक्के के उत्पादन में वृद्धि हुई है।
  • इसके मुख्य उत्पादक राज्य कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना हैं।
दालें
  • भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के साथ-साथ सबसे बड़ा उपभोक्ता राष्ट्र भी है।
  • अरहर, मूँग, उड़द, चना, मटर आदि मुख्य दलहन फसलें हैं।
  • अरहर के अलावा अन्य सभी दलहन फसलें हवा से नाइट्रोजन प्राप्त करने मिट्टी के उपजाऊपन को बनाये रखने में सहायक होती हैं।
  • मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक इत्यादि मुख्य दाल उत्पादक राज्य हैं।

अन्य खाद्य फसलें

गन्ना
  • गन्ना उष्ण तथा आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में बोया जाता है।
  • ब्राजील के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक गन्ना राष्ट्र है।
  • भारत में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब एवं हरियाणा आदि मुख्य गन्ना उत्पादक राज्य हैं।
तिलहन
  • पहले भारत चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक राष्ट्र था।
  • देश में कुल बोए गए क्षेत्र में से लगभग 12% हिस्से में तिलहन फसलें उगाई जाती हैं।
  • इन फसलों को खाद्य के अलावा साबुन, शृंगार की वस्तुएँ और उबटन बनाने के लिए बड़े स्तर पर उगाया जाता है।
  • मूँगफली से तिलहन फसलों के कुल उत्पादन का आधा भाग प्राप्त होता है।
चाय
  • चाय एक रोपण कृषि है। इसे ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है।
  • चाय को एक औद्योगिक फसल माना जाता है। इस फसल को तैयार करने के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होती है।
  • भारत में असम, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मेघालय, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा इत्यादि मुख्य चाय उत्पादक राज्य हैं।
  • वर्ष 2017 में चीन के बाद भारत संसार में दूसरा चाय का सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र था।
कॉफी
  • भारत का कॉफी संसार में सबसे उत्तम कोटि का माना जाता है।
  • यहाँ अरेबिका किस्म की कॉफी की खेती भी की जाती है।
  • कॉफी की खेती कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु जैसे राज्यों में होती है।
बागान फसलें
  • वर्ष 2017 में चीन के बाद भारत संसार में दूसरा सबसे बड़ा फलों व सब्जियों का उत्पादक राष्ट्र था।
  • भारत में बहुत से राज्यों में बगान फसलें उगाई जाती हैं। ये फसलें विभिन्न बाजारों तक भारी मात्रा में पहुँचाई जाती हैं।
  • भारत में मटर, टमाटर, प्याज, बंदगोभी, बैंगन, आलू जैसी फसलें विशाल भू-भागों में उगाई जाती हैं।
  • तमिलनाडु में केले, उत्तर प्रदेश व बिहार में लीची, मेघालय में अनानास का उत्पादन भारी मात्रा में किया जाता है।

अखाद्य फसलें

रबड़
  • रबड़ की फसल भूमध्य क्षेत्र के साथ-साथ उष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है।
  • इस फसल की खेती के लिए नम एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • यह कच्चे सामान के रूप में प्राप्त होने वाली फसल है, जिसका उपयोग उद्योगों में किया जाता है।
  • इस फसल को केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान निकोबार द्वीप समूह तथा मेघालय जैसे राज्यों में उगाया जाता है।
रेशेदार फसलें
  • कपास, जूट, सन तथा प्राकृतिक रेशम मुख्य चार रेशेदार फसलें हैं।
  • प्राकृतिक रेशम कीड़े के कोकून से प्राप्त होती है।
कपास
  • भारत में ब्रिटिश काल से कपास को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है।
  • सूती कपड़ा उद्योगों के लिए कपास मुख्य आधार माना जाता है।
  • दक्कन के पठारों की काली मिट्टी कपास की खेती के लिए महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
  • गेहूँ की तरह इस फसल को भी पकने के लिए खिली धूप की आवश्यकता होती है।
  • कपास को पककर तैयार होने में 6 से 8 महीने तक का समय लगता है।
  • महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश इत्यादि कपास के मुख्य उत्पादक राज्य माने जाते हैं।
जूट
  • जूट को सुनहरा फसल भी कहा जाता है, इस फसल को बाढ़ वाले क्षेत्रों में अधिक प्रमुखता दी जाती है।
  • जब यह फसल बड़ी होने लगती है तब उस दौरान अधिक तापमान की आवश्यकता होती है।
  • पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और ओडिशा मुख्य जूट उत्पादक राज्य हैं।
  • वर्तमान में नाइलोन की कीमत घटने के कारण जूट की माँग में कमी आई है।

प्रौद्योगिकीय एवं संस्थागत सुधार

  • संस्थागत सुधार के लिए जोतों की चकबंदी, जमींदारी व्यवस्था और सहकारिता को समाप्त करने पर जोर दिया गया।
  • पंच वर्षीय योजनाओं में भूमि सुधार को महत्त्व दिया गया।
  • 1960 व 1970 के दशकों में सरकार द्वारा भूमि सुधार संबंधित अनेक कार्य किए गए थे।
  • नष्ट और खराब फसलों के लिए अनेक प्रकार की फसल बीमाएँ जारी की गईं।
  • किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना की शुरुआत की गई।
  • वर्तमान में प्रत्येक दिन आकाशवाणी और दूरदर्शन पर किसानों के लिए मौसम व कृषि से संबंधित जानकारियाँ उपलब्ध काराई जाती हैं।
  • अब सरकार किसानों से उनकी फसलें खरीदने के लिए न्यूनतम व सहायक मूल्यों की घोषणा करती है। इस प्रक्रिया की वजह से किसानों का शोषण कम हो रहा हैं।

कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था, रोजगार एवं उत्पादन में योगदान

  • कृषि प्राचीन काल से ही भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार बनी हुई है।
  • पहले कृषि कुल जनसंख्या के आधे से भी अधिक जनसंख्या के लिए रोजगार एवं आजीविका का साधन थी।
  • वर्तमान में सकल घरेलू उत्पादन का घटना आने वाले समय में देश में खाद्य संकट का कारण बन सकता है।
  • भारत में कृषि विधियों में सुधार करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विश्वविद्यालयों व पशु प्रजनन केंद्र की स्थापना की गई है।
  • कृषि से जुड़ी अनेक आधुनिक तकनीकी सेवाएँ उपलब्ध कराई गई हैं।

वैश्वीकरण और उसका कृषि पर प्रभाव

  • भारत में वैश्वीकरण की स्थिति बहुत पुरानी है। 19वीं सदी में जब यूरोपीय व्यापारी भारत आए तब भी भारत के मसाले विश्व के अनेक देशों में निर्यात किए जाते थे।
  • वर्तमान में भारत के गर्म मसाले विभिन्न देशों में निर्यात किए जाते हैं।
  • ब्रिटिश काल में भारतीय कपास व नील अधिक मात्रा में ब्रिटेन भेजा जाता था।
  • उस दौरान सूती वस्त्र उद्योग भारत की उच्च कोटी कपास की वजह से ही फली-फूली थी।
  • 1990 के बाद वैश्वीकरण की वजह से भारतीय कृषि दो राहों पर खड़ी हो गई है।
  • हरित क्रांति के दौरान अत्यधिक रासायनों के इस्तेमाल से भूमि का निम्नीकरण हुआ है।
  • बढ़ती जनसंख्या कृषि के कारण कृषि योग्य भूमि का आकार कम हो रहा है।
  • देश में 83.3 करोड़ लोग लगभग 25 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर निर्भर हैं। इस वजह से एक आदमी के हिस्से में औसतन आधे से भी कम हेक्टेयर भूमि आती है।
  • जलवायु विविधता की तरफ ध्यान देते हुए कीमती फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
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