इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी “भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत” के अध्याय-11 “विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 11 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Geography Book-1 Chapter-11 Notes In Hindi
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अध्याय- 11 “विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | ग्यारह (11) |
अध्याय का नाम | “विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय- 11 “विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन“
जलवायु
- विश्व की जलवायु के अध्ययन से संबंधित आकड़ों को छोटी इकाई में एकत्रित किया जाता है।
- तीन भागों में जलवायु का वर्गीकरण किया जाता है- आनुभविक, जननिक और अनुप्रयुक्त।
- आनुभविक में प्रेषित किए गए तापमान और वर्षण के आंकड़ों को रखा जाता है, जननिक के अंतर्गत जलवायु के कारणों के आधार को संगठित करता है और अनुप्रयुक्त वर्गीकरण में विशिष्ट उद्देश्यों को रखा जाता है।
कोपेन: जलवायु वर्गीकरण की पद्धति
- वी.कोपेन की आनुभविक पद्धति का ज्यादा उपयोग होता है। वनस्पति के वितरण और जलवायु के बीच संबंध की पहचान इनके द्वारा की गई।
- इन्होंने अंग्रेजी के छोटे बड़े अक्षरों का प्रयोग करके जलवायु के समूहों और प्रकारों को पहचानने में मदद की, इनकी यह पद्धति आज भी प्रयोग की जाती है।
- इन्होंने 4 तापमान आधारित और 1 वर्षण आधारित जलवायु समूहों की तलाश की।
कोपेन द्वारा बताए गए जलवायु समूह
समूह | लक्षण | |
A | उष्णकटिबंधीय | सभी महीनों का ओसात तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा |
B | शुष्क जलवायु | वर्षण की तुलना में वाष्पीकरण की अधिकता |
C | कोष्ण शीतोषण | सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक किन्तु 18 डिग्री सेल्सियस से कम मध्य अक्षांशीय जलवायु |
D | शीतल हिमवान जलवायु | वर्ष के सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान 0 अंश तापमान से 3 डिग्री नीचे |
E | शीत | सभी महीनों का औसत तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम |
H | उच्चभूमि | ऊंचाइ के कारण शीत |
- इसमें A, B, C, D, E आर्द्र जलवायु और H शुष्क जलवायु की ओर परिलक्षित करता है।
- इसमें मौसम को छोटे अक्षरों में जैसे f, m, w, और s के रूप में दिखाया गया है।
- f– शुष्क जलवायु न होना, m– मानसून जलवायु, w- शुष्क शीत ऋतु और s– शुष्क ग्रीष्म ऋतु को दर्शाता है।
कोपेन के अनुसार जलवायु के प्रकार
समूह | प्रकार | कूट अक्षर | लक्षण |
A उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु | उष्णकटिबंधीय आर्द्र उष्णकटिबंधीय मानसून उष्णकटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क | Af Am Aw | कोई शुष्क ऋतु नहीं मानसून, लघु शुष्क ऋतु जाड़े की शुष्क ऋतु |
B शुष्क जलवायु | उपोषण कटिबंधीय स्टैपी उपोषण कटिबंधीय मरुस्थल मध्य अक्षांशीय स्टैपी मध्य अक्षांशीय मरुस्थल | BSh BWh BSk BWk | निम्न अक्षांशीय अर्ध शुष्क, शुष्क निम्न अक्षांशीय शुष्क मध्य अक्षांशीय अर्ध शुष्क, शुष्क मध्य अक्षांशीय शुष्क |
C कोष्ण शीतोषण (मध्य अक्षांशीय जलवायु) | आर्द्र उपोषण कटिबंधीय भूमध्य सागरीय समुद्री पश्चिम तटीय | Cfa Csa Cfb | मध्य अक्षांशीय अर्ध शुष्क, शुष्क शुष्क गर्म ग्रीष्म कोई शुष्क ऋतु नहीं, कोष्ण तथा शीतल ग्रीष्म |
D शीतल हिमवान जलवायु | आर्द्र महाद्वीपीय उप उत्तर ध्रुवीय | Df Dw | कोई शुष्क ऋतु नहीं, भीषण जाड़ा जाडा शुष्क तथा अत्यंत भीषण |
E शीत जलवायु | टुंड्रा ध्रुवीय हिमटोपी | ET EF | सही अर्थों में कोई ग्रीष्म नहीं सदैव हिमाच्छादित हिम |
F उच्च भूमि | उच्च भूमि | H | हिमाच्छादित उच्च भूमियाँ |
उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु- A
- इसकी उपस्थिति कर्क और मकर रेखा के बीच मिलती है।
- यहाँ का वार्षिक तापांतर कम रहता है और वर्षा की मात्रा अधिक होती है।
- इसे तीन भागों में बाँटा गया है-
- (Af) उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु
- (Am) उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु
- (Aw) उष्णकटिबंधीय आर्द्र और शुष्क जलवायु
शुष्क जलवायु- A
- वनस्पतियों की वृद्धि के लिए प्रयाप्त वर्षा की आवश्यकता है। लेकिन शुष्क जलवायु वाले इलाकों में वर्षा बेहद कम होती है, ऐसी जलवायु वाले इलाके पृथ्वी पर बहुत जगहों पर हैं।
- विषुवत् वृत से 15 से 30 डिग्री उत्तर और दक्षिण अक्षांशों के बीच फैला हुआ है। इन क्षेत्रों में बारिश के न होने का बड़ा कारण है, तापमान का अवतलन और उत्क्रमण
- शुष्क जलवायु के दो भाग हैं-
- (BSh) उपोषण कटिबंधीय स्टेपी
- (BWh) उपोषण कटिबंधीय मरुस्थल
कोष्ण शीतोषण जलवायु- C
- उत्तरी गोलार्ध के 40 से 70 डिग्री अक्षांशों पर यूरोप, एशिया और उत्तर अमेरिका के महाद्वीपीय क्षेत्रों पर होती है।
- इसके चार प्रकार हैं-
- (Cwa) आर्द्र उपोषण कटिबंधीय जलवायु (सर्दियों में शुष्क और गर्मियों में उष्ण)
- (Cs) भूमध्य सागरीय जलवायु
- (Cfa) आर्द्र उपोषण कटिबंधीय जलवायु (शुष्क ऋतु की अनुपस्थिति तथा मृदु शीत ऋतु)
- (Cfb) समुद्री पश्चिम तटीय जलवायु
शीतहिम-वन जलवायु- D
- (Df) आर्द्र जाड़ों से युक्त ठंडी जलवायु
- (Dw) शुष्क जाड़ों से युक्त ठंडी जलवायु
ध्रुवीय जलवायु- E
- ये 70 डिग्री अक्षांशों से दूर ध्रुवों की ओर मिलती है-
- (ET) टुंड्रा जलवायु
- (Ef) हिमटोपी जलवायु
जलवायु परिवर्तन एवं इसके कारण
- पृथ्वी ने अपनी उत्पत्ति के समय से ही जलवायु परिवर्तन कई प्रकार से देखा है। भू-गर्भिक अभिलेखों द्वारा परिवर्तन की प्रक्रिया को देखा जा सकता है।
- पुरातत्व खोजों से यह पता चलता है कि आज से 8000 सालों पहले राजस्थान मरुस्थल की जलवायु आर्द्र थी, जहां वर्षा होती थी।
- आर्द्र और शुष्क युगों की उपस्थिति का सबूत वृक्षों और तनों में पाए जाने वाले वलय देते हैं।
- इस तरह के बदलाव बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक एवं सतत प्रक्रिया है।
- कैंब्रियन, आर्डोविसियन और सिल्यूरियन युगों में धरती के गरम होने के प्रमाण मिलते हैं, यह करीब 50 से 30 करोड़ वर्ष पहले का काल है।
अभिनव पूर्व काल में जलवायु
- जलवायु का परिवर्तन हर काल में संभव है, 90 के दशक भयंकर बाढ़ों और सर्वाधिक तापमान का दशक माना गया था। अमेरिका के मैदानों में 1930 के दशक में भयंकर सूखा पड़ा, इसे ‘धूल का कटोरा’ कहा जाता है।
- जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भयंकर फसल विनाश, बाढ़, लोगों का प्रवास संबंधित जानकारियाँ एतिहासिक अभिलेखों से मिलती है।
- 10वीं और 11वीं शताब्दी में उष्ण और शुष्क दशाओं के चलते वाइकींग कबीलों को ग्रीनलैंड में जाकर बसना पड़ा।
जलवायु परिवर्तन के महत्वपूर्ण कारण
- इन्हें दो हिस्सों- खगोलीय और पार्थिव कारणों में परिवर्तित किया जाता है।
- खगोलीय कारण- सूर्य पर लगे काले धब्बों में होने वाली गतिविधियों के कारण सौर्यिक निर्गत ऊर्जा में होने वाले परिवर्तन इसके अंतर्गत आते हैं।
- जब ये कलंक संख्या में बढ़ जाते हैं, तो मौसम आर्द्र हो जाता है, घटने पर शुष्क।
- खगोलीय कारण का दूसरा हिस्सा है- मिलैंकोविच दोलन – पृथ्वी के कक्षीय लक्षणों में बदलाव के चक्र, डगमगाहट और अक्षीय झुकाव में बदलाव का अनुमान लगता है, इन दोनों से ही सूर्य ताप में आने वाले परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन का कारण माना गया है।
- पार्थिव कारणों में सबसे महत्वपूर्ण है, ज्वालामुखी उद्भेदन, जो वायुमंडल में ऐरोसोल की मात्रा को बढ़ा देता है, जो पृथ्वी की सतह पर लंबे समय के लिए रहती है।
- इसके परिणाम स्वरूप सौर्यिक विकिरण कम हो जाता है, जो पृथ्वी की औसत तापमान को कम कर देता है।
- जलवायु परिवर्तन का सबसे जरूरी कारण है, मानव द्वारा बढ़ता जा रहा ग्रीन हाउस जैसों का उत्सर्जन, जिसके कारण भूमंडलीय ऊष्मन हो रहा है।
भूमंडलीय ऊष्मन
- वे गैसें जो विकिरण की दीर्घ तरंगों का अवशोषण करतीं हैं, ग्रीन हाउस गैस कहलाती हैं।
- जिन कारणों से वायुमंडल का तापमान बढ़ने लगता है, उन्हें ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है।
- ग्रीन हाउस गैसें– इसके अंतर्गत-
- कार्बन-डाइऑक्साइड
- नाइट्रस ऑक्साइड
- मीथेन
- ओज़ोन
- इनके अलावा नाइट्रिक ऑक्साइड और कार्बन-मोनोऑक्साइड भी वायु मण्डल को प्रभावित करती हैं।
- मुख्य तौर पर ये ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी पर इन कारणों से प्रभाव डाल सकतीं हैं- पृथ्वी पर इनका जीवन काल, सांद्रण में वृद्धि के परिणाम और इनके द्वारा अवशोषित होने वाली विकिरण की तरंग की लंबाई।
- कार्बन-डाइऑक्साइड का सांद्रण वायुमंडल में सबसे अधिक है, जो जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्सर्जित होता है।
- पैराबैंगनी किरणें ऑक्सीजन को समताप मण्डल में विद्यमान ओज़ोन परत में बदल देती हैं, जो इन्हें पृथ्वी पर पहुँचने से रोकती हैं।
- वे ग्रीन हाउस गैसें जो समताप मण्डल में होती हैं, वे ओज़ोन परत को भी नष्ट करती हैं।
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के प्रयास अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हुए हैं जिसे 1997 में हुए क्योटो-प्रोटोकॉल के नाम से जाना जाता है।
- भूमंडलीय ऊष्मन को आने वाले समय में रोकना मुश्किल है, जिसका प्रभाव हर जगहों पर अलग होगा।
- इसके कारण हिमटोपियों और हिमनादियों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर तटीय क्षेत्रों और द्वीपों को डुबो सकता है।
- 20वीं सदी में सर्वाधिक ताप वृद्धि देखी गई है, यह दो अवधियों में हुआ- 1901-44 और 1966-99 के बीच, इन अवधियों में तापमान में 0.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हुई।
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